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ध्यानाभाव एवं अतिसक्रियता विकार और स्तनपान

शॉर्टकट: मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ

ध्यानाभाव एवं अतिसक्रियता विकार और स्तनपान के बीच अंतर

ध्यानाभाव एवं अतिसक्रियता विकार vs. स्तनपान

ध्यानाभाव एवं अतिसक्रियता विकार (ध्यातिवि) (अटेंशन डेफिसिट हाइपरएक्टिविटी डिसऑर्डर (अंग्रेजी: Attention-deficit hyperactivity disorder) या AD/HD या ADHD) एक मानसिक विकार और दीर्घकालिक स्थिति है जो लाखों बच्चों को प्रभावित करती है और अक्सर यह स्थिति व्यक्ति के वयस्क होने तक बनी रह सकती है। विश्व मे लगभग 3 से 5% बच्चे इससे पीड़ित है। ADHD के साथ जुड़ी प्रमुख समस्याओं मे ध्यानाभाव (ध्यान की कमी या ध्यान ना देना), आवेगी व्यवहार, असावधानी और अतिसक्रियता शामिल हैं। अक्सर ADHD से ग्रस्त बच्चे हीन भावना, अपने बिगड़े संबंधों और विद्यालय में खराब प्रदर्शन जैसी समस्याओं से जूझते रहते हैं। माना जाता है कि ध्यानाभाव एवं अतिसक्रियता विकार अनुवांशिक रूप से व्यक्ति मे आता है। लड़के, लड़कियों की तुलना मे इसके शिकार अधिक होते हैं। हालांकि ध्यातिवि (ADHD) का कोई स्थायी उपचार नहीं है फिर भी उपचार से इसके लक्षणों को काफी हद तक कम किया जा सकता है। आमतौर से उपचार मे मनोवैज्ञानिक परामर्श, दवायें या फिर दोनों शामिल हो सकते हैं। किसी बच्चे का ध्यातिवि (ADHD) से ग्रस्त होना अभिभावकों और बच्चों दोनों के लिए भयावह हो सकता है, साथ ही इसके साथ जीवन एक चुनौती जैसा हो सकता है, हालांकि उपचार के द्वारा इसके लक्षणों पर बहुत हद तक काबू पाया जा सकता है। ध्यातिवि (ADHD) के शिकार अधिकतर बच्चे बड़े होकर एक जीवंत, सफल और सक्रिय वयस्क बनते हैं। . अंतर्राष्ट्रीय स्तनपान चिह्न एक नवजात शिशु स्तनपान करते हुए मां द्वारा अपने शिशु को अपने स्तनों से आने वाला प्राकृतिक दूध पिलाने की क्रिया को स्तनपान कहते हैं। यह सभी स्तनपाइयों में आम क्रिया होती है। स्तनपान शिशु के लिए संरक्षण और संवर्धन का काम करता है। नवजात शिशु में रोग प्रतिरोधात्मक शक्ति नहीं होती। मां के दूध से यह शक्ति शिशु को प्राप्त होती है। मां के दूध में लेक्टोफोर्मिन नामक तत्व होता है, जो बच्चे की आंत में लौह तत्त्व को बांध लेता है और लौह तत्त्व के अभाव में शिशु की आंत में रोगाणु पनप नहीं पाते। मां के दूध से आए साधारण जीवाणु बच्चे की आंत में पनपते हैं और रोगाणुओं से प्रतिस्पर्धा कर उन्हें पनपने नहीं देते। मां के दूध में रोगाणु नाशक तत्त्व होते हैं। वातावरण से मां की आंत में पहुंचे रोगाणु, आंत में स्थित विशेष भाग के संपर्क में आते हैं, जो उन रोगाणु-विशेष के खिलाफ प्रतिरोधात्मक तत्व बनाते हैं। ये तत्व एक विशेष नलिका थोरासिक डक्ट से सीधे मां के स्तन तक पहुंचते हैं और दूध से बच्चे के पेट में। इस तरह बच्चा मां का दूध पीकर सदा स्वस्थ रहता है। अनुमान के अनुसार 820,000 बच्चों की मौत विश्व स्तर पर पांच साल की उम्र के तहत वृद्धि हुई जिसे स्तनपान के साथ हर साल रोका जा सकता है। दोनों विकासशील और विकसित देशों में स्तनपान से श्वसन तंत्र में संक्रमण और दस्त के जोखिम को कमी पाई गयी है। स्तनपान से संज्ञानात्मक विकास में सुधार और वयस्कता में मोटापे का खतरा कम हो सकती है। जिन बच्चों को बचपन में पर्याप्त रूप से मां का दूध पीने को नहीं मिलता, उनमें बचपन में शुरू होने वाले डायबिटीज की बीमारी अधिक होती है। उनमें अपेक्षाकृत बुद्धि विकास कम होता है। अगर बच्चा समय पूर्व जन्मा (प्रीमेच्योर) हो, तो उसे बड़ी आंत का घातक रोग, नेक्रोटाइजिंग एंटोरोकोलाइटिस हो सकता है। अगर गाय का दूध पीतल के बर्तन में उबाल कर दिया गया हो, तो उसे लीवर का रोग इंडियन चाइल्डहुड सिरोसिस हो सकता है। इसलिए छह-आठ महीने तक बच्चे के लिए मां का दूध श्रेष्ठ ही नहीं, जीवन रक्षक भी होता है। .

ध्यानाभाव एवं अतिसक्रियता विकार और स्तनपान के बीच समानता

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संदर्भ

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