धर्मसुधार-विरोधी आंदोलन और प्राग
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धर्मसुधार-विरोधी आंदोलन और प्राग के बीच अंतर
धर्मसुधार-विरोधी आंदोलन vs. प्राग
यूरोप में धर्म सुधार आंदोलन के कारण नवीन प्रोटेस्टेंट धर्म के प्रसार से चिंतित होकर कैथोलिक धर्म के अनुयायियों ने कैथोलिक चर्च व पोपशाही की शक्ति व अधिकारों को सुरक्षित करने और उनकी सत्ता को पुनः सुदृढ़ बनाने के लिए कैथोलिक चर्च और पोपशाही में अनके सुधार किये। यह सुधार आंदोलन, कैथोलिकों की दृष्टि से उनके पुनरुत्थान का आंदोलन है और प्रोटेस्टेंट विरोधी होने से इसे धर्म-सुधार-विरोधी आंदोलन (Counter-Reformation), या प्रतिवादी अथवा प्रतिवादात्मक धर्म-सुधार आंदोलन कहा गया। यह आंदोलन सोलहवीं सदी के मध्य से प्रारंभ हुआ और सत्रहवीं शताब्दी के मध्य तक चला। (ट्रेण्ट काउंसिल (1545–1563) से आरम्भ होकर तीसवर्षीय युद्ध की समाप्ति तक (1648)) इस धर्मसुधार-विरोधी आंदोलन का उद्देश्य कैथोलिक चर्च में पवित्रता और ऊँचे आदर्शों को स्थापित करना था, चर्च और पोपशाही में व्याप्त दोषों को दूर कर उसके स्वरूप को पवित्र बनाना था। इस युग के नये पोप जैसे पॉल तृतीय, पॉल चतुर्थ, पायस चतुर्थ, पायस पंचम आदि पूर्व पोपों की अपेक्षा अधिक सदाचारी, धर्मनिष्ठ, कर्तव्यपरायण और सुधारवादी थे। इनके प्रयासों से कैथोलिक धर्म में नवीन शक्ति, स्फूर्ति और प्रेरणा आई और कई सुधार किये गये। . प्राग (चेक: प्राहा; जर्मन: प्राग; Prague) चेक गणराज्य की राजधानी और सबसे बड़ा शहर है। यह यूरोपीय संघ का 14वां सबसे बड़ा शहर है। प्राग कभी बोहेमिया की ऐतिहासिक राजधानी हुआ करती थी। वल्टावा नदी के उत्तर-पश्चिम में स्थित यह शहर 1.3 मिलियन लोगों का घर है, जबकि इसके महानगरीय क्षेत्र की 2.6 लाख की आबादी होने का अनुमान है। शहर में समशीतोष्ण जलवायु है, अर्थात: गर्म गर्मियाँ और बेहद ठंड सर्दियाँ। प्राग एक समृद्ध इतिहास के साथ मध्य यूरोप का एक राजनीतिक, सांस्कृतिक और आर्थिक केंद्र रहा है। रोमनकाल के दौरान स्थापित और गॉथिक, पुनर्जागरण और बारोक युग में समृद्ध प्राग, बोहेमिया साम्राज्य की राजधानी थी और कई पवित्र रोमन सम्राटों का मुख्य निवास स्थल थी, जिसमें मुख्यत: चार्ल्स चतुर्थ (शा.1346-1378) शामिल थे। यह हाब्सबर्ग राजशाही और उसके ऑस्ट्रो-हंगेरियन साम्राज्य का एक महत्वपूर्ण शहर था। शहर ने दोनों विश्व युद्धों और युद्ध के बाद के कम्युनिस्ट युग के दौरान बोहेमियन और यूरोपीय धर्मसुधार, तीस साल का युद्ध और 20वीं शताब्दी के इतिहास में चेकोस्लोवाकिया की राजधानी के रूप में प्रमुख भूमिका निभाई है। .
धर्मसुधार-विरोधी आंदोलन और प्राग के बीच समानता
धर्मसुधार-विरोधी आंदोलन और प्राग आम में एक बात है (यूनियनपीडिया में): यूरोपीय धर्मसुधार।
16वीं शताब्दी के प्रारंभ में समस्त पश्चिमी यूरोप धार्मिक दृष्टि से एक था - सभी ईसाई थे; सभी रोमन काथलिक चर्च के सदस्य थे; उसकी परंपरगत शिक्षा मानते थे और धार्मिक मामलों में उसके अध्यक्ष अर्थात् रोम के पोप का शासन स्वीकार करते थे। यूरोपीय धर्मसुधार अथवा रिफॉरमेशन 16वीं शताब्दी के उस महान आंदोलन को कहते हैं जिसके फलस्वरूप पाश्चात्य ईसाइयों की यह एकता छिन्न-भिन्न हुई और प्रोटेस्टैंट धर्म का उदय हुआ। चर्च के इतिहस में समय-समय पर सुधारवादी आंदोलन होते रहे किंतु वे चर्च के धार्मिक सिद्धातों अथवा उसके शासकों को चुनौती न देकर उनके निर्देश के अनुसार ही नैतिक बुराइयों का उन्मूलन तथा धार्मिक शिक्षा का प्रचार अपना उद्देश्य मानते थे। 16वीं शताब्दी में जो सुधार का आंदोलन प्रवर्तित हुआ वह शीघ्र ही चर्च की परंपरागत शिक्षा और उसके शासकों के अधिकार, दोनों का विरोध करने लगा। धर्मसुधार आंदोलन के परिणामस्वरूप यूरोप में कैथोलिक सम्प्रदाय के साथ-साथ लूथर सम्प्रदाय, कैल्विन सम्प्रदाय, एंग्लिकन सम्प्रदाय और प्रेसबिटेरियन संप्रदाय प्रचलित हो गये। .
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धर्मसुधार-विरोधी आंदोलन और प्राग के बीच तुलना
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संदर्भ
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