धर्ममीमांसा और विज्ञान का दर्शन
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धर्ममीमांसा और विज्ञान का दर्शन के बीच अंतर
धर्ममीमांसा vs. विज्ञान का दर्शन
किसी धार्मिक संप्रदाय के द्वारा स्वीकृत विश्वासों का क्रमबद्ध संग्रह उस संप्रदाय की धर्ममीमांसा है। धर्ममीमांसा में विज्ञान और दर्शन के दृष्टिकोण की सार्वभौमता नहीं होती, इसकी पद्धति भी उनकी पद्धति से भिन्न होती है। विज्ञान प्रत्यक्ष पर आधारित है, दर्शन में बुद्धि की प्रमुखता है और धर्ममीमांसा में, आप्त वचन की प्रधानता स्वीकृत होती है। जब तक विश्वास का अधिकार प्रश्नरहित था, धर्ममीमांसकों को इस बात की चिंता न थी कि उनके मंतव्य विज्ञान के आविष्कारों और दर्शन के निष्कर्षों के अनुकूल हैं या नहीं। परंतु अब स्थिति बदल गई है और धर्ममीमांसा को विज्ञान तथा दर्शन के मेल में रहना होता है। धर्ममीमांसा किसी धार्मिक संप्रदाय के स्वीकृत सिद्धांतों का संग्रह है। इस प्रकार की सामग्री का स्रोत कहाँ है? इन सिद्धांतों का सर्वोपरि स्रोत तो ऐसी पुस्तक है, जिसे उस संप्रदाय में ईश्वरीय ज्ञान समझा जाता है। इससे उतरकर उन विशेष पुरुषों का स्थान है जिन्हें ईश्वर की ओर से धर्म के संबंध में निर्भ्रांत ज्ञान प्राप्त हुआ है। रोमन कैथोलिक चर्च में पोप को ऐसा पद प्राप्त है। विवाद के विषयों पर आचार्यों की परिषदों के निश्चय भी प्रामाणिक सिद्धांत समझे जाते हैं। धर्ममीमांसा के विचार विषयों में ईश्वर की सत्ता और स्वरूप प्रमुख हैं। इनके अतिरिक्त जगत् और जीवात्मा के स्वरूप पर भी विचार होता है। ईश्वर के संबंध में प्रमुख प्रश्न यह है कि वह जगत् में अंतरात्मा के रूप में विद्यमान है, या इससे परे, ऊपर भी है। जगत् के विषय मं पूछा जाता है कि यह ईश्वर का उत्पादन है, उसका उद्गार है, या निर्माण मात्र है। उत्पादनवाद, उद्गारवाद और निर्माणवाद की जाँच की जाती है। जीवात्मा के संबंध में, स्वाधीनता और मोक्षसाधन चिरकाल के विवाद के विषय बने रहे हैं। संत आगस्तिन ने पूर्व निर्धारणवाद का समर्थन किया और कहा कि कोई मनुष्य अपने कर्मों से दोषमुक्त नहीं हो सकता, दोषमुक्ति ईश्वरीय करुणा पर निर्भर है। इसके विपरीत भारत की विचारधारा में जीवात्मा स्वतंत्र है और मनुष्य का भाग्य उसके कर्मों से निर्णीत होता है। . विज्ञान के दर्शन के अन्तर्गत विज्ञान (जिसमे प्राकृतिक विज्ञान तथा सामाजिक विज्ञान शामिल हैं) के दार्शनिक तथा तार्किक पूर्वधारणाओं, नींव तथा उनसे निकलने वाले परिणामों का अध्ययन किया जाता है। इस प्रकार, विज्ञान के दर्शन में निम्नलिखित विषयों पर ध्यान दिया जाता है: अभिधारणाओं का चरित्र एवं विकास, परिकल्पनाएं, तर्क एवं निष्कर्ष, जिस प्रकार विज्ञान में इन्का उपयोग होता है; किस प्रकार से विज्ञान में प्राकृतिक घटनाओं की व्याख्या तथा भविष्यवाणी होती है; वैज्ञानिक निष्कर्षों तक पहुंचने के लिए किस प्रकार के तर्क का प्रयोग होता है; वैज्ञानिक विधि का सूत्रीकरण, कार्यक्षेत्र और उसकी सीमाएँ; वे साधन जिनके द्वारा यह निर्धारित किया जाता है कि कब किसी वैज्ञानिक तथ्य को समुचित वस्तुनिष्ठ समर्थन प्राप्त है; तथा वैज्ञानिक विधि और नमूनों के प्रयोग के परिणाम। .
धर्ममीमांसा और विज्ञान का दर्शन के बीच समानता
धर्ममीमांसा और विज्ञान का दर्शन आम में एक बात है (यूनियनपीडिया में): विज्ञान।
संक्षेप में, प्रकृति के क्रमबद्ध ज्ञान को विज्ञान (Science) कहते हैं। विज्ञान वह व्यवस्थित ज्ञान या विद्या है जो विचार, अवलोकन, अध्ययन और प्रयोग से मिलती है, जो किसी अध्ययन के विषय की प्रकृति या सिद्धान्तों को जानने के लिये किये जाते हैं। विज्ञान शब्द का प्रयोग ज्ञान की ऐसी शाखा के लिये भी करते हैं, जो तथ्य, सिद्धान्त और तरीकों को प्रयोग और परिकल्पना से स्थापित और व्यवस्थित करती है। इस प्रकार कह सकते हैं कि किसी भी विषय के क्रमबद्ध ज्ञान को विज्ञान कह सकते है। ऐसा कहा जाता है कि विज्ञान के 'ज्ञान-भण्डार' के बजाय वैज्ञानिक विधि विज्ञान की असली कसौटी है। .
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धर्ममीमांसा और विज्ञान का दर्शन के बीच तुलना
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संदर्भ
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