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धर्म (पंथ) और नारुतो

शॉर्टकट: मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ

धर्म (पंथ) और नारुतो के बीच अंतर

धर्म (पंथ) vs. नारुतो

अनेक धर्म का चिह्न प्रमुख धर्मों के अनुयायियों का प्रतिशत धर्म (या मज़हब) किसी एक या अधिक परलौकिक शक्ति में विश्वास और इसके साथ-साथ उसके साथ जुड़ी रीति, रिवाज, परम्परा, पूजा-पद्धति और दर्शन का समूह है। इस संबंध में प्रोफ़ेसर महावीर सरन जैन का अभिमत है कि आज धर्म के जिस रूप को प्रचारित एवं व्याख्यायित किया जा रहा है उससे बचने की जरूरत है। वास्तव में धर्म संप्रदाय नहीं है। ज़िंदगी में हमें जो धारण करना चाहिए, वही धर्म है। नैतिक मूल्यों का आचरण ही धर्म है। धर्म वह पवित्र अनुष्ठान है जिससे चेतना का शुद्धिकरण होता है। धर्म वह तत्व है जिसके आचरण से व्यक्ति अपने जीवन को चरितार्थ कर पाता है। यह मनुष्य में मानवीय गुणों के विकास की प्रभावना है, सार्वभौम चेतना का सत्संकल्प है। मध्ययुग में विकसित धर्म एवं दर्शन के परम्परागत स्वरूप एवं धारणाओं के प्रति आज के व्यक्ति की आस्था कम होती जा रही है। मध्ययुगीन धर्म एवं दर्शन के प्रमुख प्रतिमान थे- स्वर्ग की कल्पना, सृष्टि एवं जीवों के कर्ता रूप में ईश्वर की कल्पना, वर्तमान जीवन की निरर्थकता का बोध, अपने देश एवं काल की माया एवं प्रपंचों से परिपूर्ण अवधारणा। उस युग में व्यक्ति का ध्यान अपने श्रेष्ठ आचरण, श्रम एवं पुरुषार्थ द्वारा अपने वर्तमान जीवन की समस्याओं का समाधान करने की ओर कम था, अपने आराध्य की स्तुति एवं जय गान करने में अधिक था। धर्म के व्याख्याताओं ने संसार के प्रत्येक क्रियाकलाप को ईश्वर की इच्छा माना तथा मनुष्य को ईश्वर के हाथों की कठपुतली के रूप में स्वीकार किया। दार्शनिकों ने व्यक्ति के वर्तमान जीवन की विपन्नता का हेतु 'कर्म-सिद्धान्त' के सूत्र में प्रतिपादित किया। इसकी परिणति मध्ययुग में यह हुई कि वर्तमान की सारी मुसीबतों का कारण 'भाग्य' अथवा ईश्वर की मर्जी को मान लिया गया। धर्म के ठेकेदारों ने पुरुषार्थवादी-मार्ग के मुख्य-द्वार पर ताला लगा दिया। समाज या देश की विपन्नता को उसकी नियति मान लिया गया। समाज स्वयं भी भाग्यवादी बनकर अपनी सुख-दुःखात्मक स्थितियों से सन्तोष करता रहा। आज के युग ने यह चेतना प्रदान की है कि विकास का रास्ता हमें स्वयं बनाना है। किसी समाज या देश की समस्याओं का समाधान कर्म-कौशल, व्यवस्था-परिवर्तन, वैज्ञानिक तथा तकनीकी विकास, परिश्रम तथा निष्ठा से सम्भव है। आज के मनुष्य की रुचि अपने वर्तमान जीवन को सँवारने में अधिक है। उसका ध्यान 'भविष्योन्मुखी' न होकर वर्तमान में है। वह दिव्यताओं को अपनी ही धरती पर उतार लाने के प्रयास में लगा हुआ है। वह पृथ्वी को ही स्वर्ग बना देने के लिए बेताब है। . नारुतो मासाशी किशिमोतो द्वारा लिखित और चित्रांकित एक निरंतर चालू जापानी मांगा श्रृंखला है | यह कथानक नारुतो उज़ुमाकी, जो एक किशोर निंजा है, की कहानी है जो लगातार मान्यता की खोज में रहता है | वह होकागे, जो उसके गाँव का एक निंजा है जिसे नेता और सबसे सशक्त इंसान माना जाता है, बनने की आकांक्षा रखता है | यह श्रृंखला एक किशिमोतो की चित्रकथा पर आधारित है जो अगस्त 1997 के अकामारू जम्प के अंक में प्रकाशित की गई थी | मांगा का पहला प्रकाशन 1999 में शुइशा द्वारा जापानी साप्ताहिक शोनेन जंप पत्रिका के 43 अंकों में प्रकाशित हुआ था | वर्तमान में, मांगा के 51 तंकोबोन संस्करण जारी होने के साथ धारावाहिक निर्माण जारी है | मांगा को बाद में एक अनिमे में रूपांतरित किया गया जिसके निर्माता स्टूडियो पिएर्रोत और एनिप्लेक्स थे | इसका प्रीमियर पूरे जापान में स्थलीय टीवी तोक्यो नेटवर्क और अनिमे उपग्रह टेलीविज़ न नेटवर्क एनिमैक्स पर 3 अक्टूबर 2002 को हुआ | पहली श्रृंखला 220 एपिसोड तक चली, जबकि नारुतो: शिपूदेन जो मूल श्रृंखला की अगली कड़ी है, का प्रसारण 15 फ़रवरी 2007 से किया गया है | अनिमे श्रृंखला के अलावा, स्टूडियो पिएर्रोत ने श्रृंखला के लिए छह फिल्में और कई मूल वीडियो एनीमेशन भी विकसित किये है | अन्य उत्पादों में अनेक कंपनियों द्वारा विकसित छोटे उपन्यास, वीडियोखेल और व्यापारिक कार्ड शामिल हैं | विज मीडिया ने त्तरी नोर्थ अमेरिकन प्रोडक्शन के लिए मांगा और अनिमे का लाइसेंस प्राप्त किया है| विज़ इस श्रंखला को अपनी पत्रिका शोनेन जम्प और साथ ही व्यक्तिगत संस्करणों में प्रकाशित करता आ रहा है | अनिमे श्रृंखला का प्रसारण संयुक्त राज्य अमेरिका और कनाडा 2005 में और बाद में यूनाइटेड किंगडम और ऑस्ट्रेलिया में 2006 और 2007 में क्रमशः शुरू हुआ | पहली फिल्म के सिनेमा में प्रीमियर के साथ श्रंखला की फिल्मों और ओवीए का प्रकाशन विज़ द्वारा किया गया | नारुतो:शिपूदेन के पहले डीवीडी का संस्करण उत्तरी अमेरिका में 29 सितम्बर 2009 विज़ द्वारा किया गया और उसी साल अक्तूबर में डिज्नी एक्स डी पर इसका प्रसारण शुरू कर दिया गया | 44 संस्करण तक जापान में मांगा की 89 मिलियन से अधिक प्रतियां बिक चुकी है | विज़ ़ की शोनेन जम्प पत्रिका में धारावाहिक के बाद नारुतो कंपनी की सबसे ज्यादा बिक्री वाली मांगा श्रृंखला बन गयी है | इस श्रृंखला का अंग्रेजी रूपांतर यूएसए टुडे बुकलिस्ट में भी कई बार शामिल हुआ है और संस्करण 11 ने 2006 में क्विल पुरस्कार जीता | श्रृंखला के समीक्षकों ने कॉमेडी और लड़ाई के दृश्यों के बीच के संतुलन और साथ ही किरदारों के व्यक्तित्वों की प्रशंसा की है लेकिन सामान्य शोनेन कथानक तत्वों को उपयोग करने के लिए आलोचना की है | .

धर्म (पंथ) और नारुतो के बीच समानता

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धर्म (पंथ) और नारुतो के बीच तुलना

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संदर्भ

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