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दैववाद और यूरोप

शॉर्टकट: मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ

दैववाद और यूरोप के बीच अंतर

दैववाद vs. यूरोप

भगवद्गीता के अनुसार, प्रत्येक क्रिया के पाँच कारण होते हैं- अधिष्ठान, कर्ता, करण, चेष्टा और दैव। दैव कारण का वह भाग है जो मनुष्य के उद्योग से सबंद्ध नहीं। दैववाद के अनुसार यह अंश क्रिया का संपूर्ण कारण है; मनुष्य भी कर्ता नहीं, करण ही है, हमारा सारा जीवन भाग्यवश व्यतीत होता है। प्रकृतिवाद प्रकृतिनियम को इस भाग्य का विधाता बताता है। विकसित धर्मों में कुछ देव को ईश्वरेच्छा के अर्थ में लेते हैं। प्रकृतिवाद कहता है कि जब सारा विश्व नियमाधीन चल रहा है, तो इसका अति अल्प भाग नियम की उपेक्षा नहीं कर सकता। सेंट आगस्तिन ने कहा कि सर्वज्ञ होने के कारण ईश्वर भविष्य में होनेवाले कर्मों को भी जानता है। परंतु ज्ञान का विषय कोई ऐसा पदार्थ ही हो सकता है जिसका वास्तविक अस्तित्व हो; इसलिए ऐसे कर्म पहले ही ईश्वर की ओर से निर्णीत हो चुके होते हैं। अनुभव बताता है कि हमारी स्वाधीनता परिमित तो है, परंतु हम यह नहीं मान सकते कि हम सर्वथा पराधीन हैं। किसी वस्तु को देखने में ही हमारा मन उपलब्धों को संयुक्त करता है और अपनी स्वाधीनता की घोषणा करता है। नैतिक जीवन का तो आधार ही स्वाधीनता है। अभाव में उत्तरदायित्व के लिए कोई स्थान नहीं। स्वंय धर्म के लिए भी दैववाद कठिनाइयाँ खड़ी कर देता है। यदि हमारा भाग्य पूर्ण रूप से ईश्वर ने निश्चित किया है, तो पुण्य पाप हमारे कर्म ही नहीं; उनका फल हमें क्यों मिलेगा? इस कठिनाई से बचने के लिए कुछ विचारक कहते हैं कि दैव हमारे पूर्वजन्मों के कर्मों का संस्कार ही है; हमारा भाग्य, हमारा अपना बनाया हुआ है। . यूरोप पृथ्वी पर स्थित सात महाद्वीपों में से एक महाद्वीप है। यूरोप, एशिया से पूरी तरह जुड़ा हुआ है। यूरोप और एशिया वस्तुतः यूरेशिया के खण्ड हैं और यूरोप यूरेशिया का सबसे पश्चिमी प्रायद्वीपीय खंड है। एशिया से यूरोप का विभाजन इसके पूर्व में स्थित यूराल पर्वत के जल विभाजक जैसे यूराल नदी, कैस्पियन सागर, कॉकस पर्वत शृंखला और दक्षिण पश्चिम में स्थित काले सागर के द्वारा होता है। यूरोप के उत्तर में आर्कटिक महासागर और अन्य जल निकाय, पश्चिम में अटलांटिक महासागर, दक्षिण में भूमध्य सागर और दक्षिण पश्चिम में काला सागर और इससे जुड़े जलमार्ग स्थित हैं। इस सबके बावजूद यूरोप की सीमायें बहुत हद तक काल्पनिक हैं और इसे एक महाद्वीप की संज्ञा देना भौगोलिक आधार पर कम, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक आधार पर अधिक है। ब्रिटेन, आयरलैंड और आइसलैंड जैसे देश एक द्वीप होते हुए भी यूरोप का हिस्सा हैं, पर ग्रीनलैंड उत्तरी अमरीका का हिस्सा है। रूस सांस्कृतिक दृष्टिकोण से यूरोप में ही माना जाता है, हालाँकि इसका सारा साइबेरियाई इलाका एशिया का हिस्सा है। आज ज़्यादातर यूरोपीय देशों के लोग दुनिया के सबसे ऊँचे जीवनस्तर का आनन्द लेते हैं। यूरोप पृष्ठ क्षेत्रफल के आधार पर विश्व का दूसरा सबसे छोटा महाद्वीप है, इसका क्षेत्रफल के १०,१८०,००० वर्ग किलोमीटर (३,९३०,००० वर्ग मील) है जो पृथ्वी की सतह का २% और इसके भूमि क्षेत्र का लगभग ६.८% है। यूरोप के ५० देशों में, रूस क्षेत्रफल और आबादी दोनों में ही सबसे बड़ा है, जबकि वैटिकन नगर सबसे छोटा देश है। जनसंख्या के हिसाब से यूरोप एशिया और अफ्रीका के बाद तीसरा सबसे अधिक आबादी वाला महाद्वीप है, ७३.१ करोड़ की जनसंख्या के साथ यह विश्व की जनसंख्या में लगभग ११% का योगदान करता है, तथापि, संयुक्त राष्ट्र के अनुसार (मध्यम अनुमान), २०५० तक विश्व जनसंख्या में यूरोप का योगदान घटकर ७% पर आ सकता है। १९०० में, विश्व की जनसंख्या में यूरोप का हिस्सा लगभग 25% था। पुरातन काल में यूरोप, विशेष रूप से यूनान पश्चिमी संस्कृति का जन्मस्थान है। मध्य काल में इसी ने ईसाईयत का पोषण किया है। यूरोप ने १६ वीं सदी के बाद से वैश्विक मामलों में एक प्रमुख भूमिका अदा की है, विशेष रूप से उपनिवेशवाद की शुरुआत के बाद.

दैववाद और यूरोप के बीच समानता

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दैववाद और यूरोप के बीच तुलना

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संदर्भ

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