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दुग्ध कृषि और मथित्र

शॉर्टकट: मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ

दुग्ध कृषि और मथित्र के बीच अंतर

दुग्ध कृषि vs. मथित्र

न्यूयॉर्क की एक दुग्धशाला का दृष्य दुग्ध कृषि (Dairy farming), या डेरी उद्योग या दुग्ध उद्योग, कृषि की एक श्रेणी है। यह पशुपालन से जुड़ा एक बहुत लोकप्रिय उद्यम है जिसके अंतर्गत दुग्ध उत्पादन, उसकी प्रोसेसिंग और खुदरा बिक्री के लिए किए जाने वाले कार्य आते हैं। इसके वास्ते गाय-भैंसों, बकरियों या कुछेक अन्य प्रकार के पशुधन के विकास का भी काम किया जाता है। अधिकतर डेरी-फार्म अपनी गायों के बछड़ों का, गैर-दुग्ध उत्पादक पशुधन का पालन पोषण करने की बजाए सामान्यतः उन्हें मांस के उत्पादन हेतु विक्रय कर देते हैं। डेरी फार्मिंग के अंतर्गत दूध देने वाले मवेशियों का प्रजनन तथा देखभाल, दूध की खरीद और इसकी विभिन्न डेरी उत्पादों के रूप में प्रोसेसिंग आदि कार्य सम्मिलित हैं। . मथित्र (Centrifuge), या अपकेंद्रित, सामान्यत: ऐसे उपकरण या मशीन को कहते हैं, जिसमें अपकेंद्री (centrifugal) बल के उपयोग से विभिन्न घनत्व के पदार्थों का पृथक्करण किया जाता है। आजकल अपकेंद्रित की उपर्युक्त परिभाषा अधिक विस्तृत हो गई है, जिसके अनुसार ऐसी किसी भी मशीन को, जिसकी रचना इस विशेष प्रयोजन से की गई हो कि उसमें पदार्थों को केंद्राभिमुख, अपकेंद्री बल के सतत प्रभाव में रखा जा सके, अपकेंद्रित्र कहा जाता है। अपकेंद्रित्र में पदार्थों का पृथक्करण विभिन्न घनत्व के कारण होता है। अपकेंद्रण से अपकेंद्री बल उत्पन्न होता है, जो गुरुत्वाकर्षण बल के समान होता है। केंद्राभिमुख बल का उपयोग ऐसे अनेक प्रक्रमों को त्वरित करने में प्रयुक्त किया जा सकता है, जो सामान्यत: गुरुत्वाकर्षण के अपेक्षाकृत अल्प बल पर निर्भर करते हैं। भारत तथा अन्य देशों में अपकेंद्रित्र का उपयोग बहुत समय से होता आया है। दही तथा दूध को मथकर मक्खन निकालने की क्रिया केंद्राभिमुख बल पर निर्भर करती है। केंद्राभिमुख बल की वैज्ञानिक परिभाषा न्यूटन के बल तथा गति के प्रसिद्ध नियम पर आधारित है। न्यूटन के इस नियम के अनुसार मुक्त अवस्था में, गतिशील पदार्थों में, सरल रेखा में चलने की प्रवृत्ति होती है। अत: यदि इस प्रकार के गतिशील पदार्थ को वक्र पथ पर चलने के लिये संचालित किया जाए, तो वह पदार्थ उस संचालित, अथवा नियंत्रित करनेवाले पदार्थ, अथवा वस्तु के विपरीत बल प्रयुक्त करता है। इसके फलस्वरूप गतिशील पदार्थ में उस वक्रपथ की स्पर्श रेखा की दिशा की ओर चल पड़ने की निरंतर प्रवृत्ति होती है। उदाहरणार्थ, यह सामान्य अनुभव में देखा जाता है कि वृत्त पथ में परिभ्रमण करनेवाली कोई वस्तु परिभ्रमण केंद्र से दूर बलप्रयास करती है। बलप्रयास की यह दिशा परिभ्रमण वृत्त के स्पर्शज्या पथ की ओर होती है। अत: परिभ्रमण के कोणीय वेग, वस्तु, अथवा पदार्थ के भार, अथवा वस्तु के परिभ्रमणवृत्त के अर्धव्यास, में वृद्धि होने से अपकेंद्री बल में वृद्धि होती है। अपकेंद्री बल का घूर्णन वृत्त के अर्धव्यास तथा वस्तु के भार से क्रमानुपात होता है, जबकि इसका कोणीय वेग के वर्ग से अनुपात होता है। अपकेंद्रत्रि के प्रति मिनट घूर्णन की संख्या में दुगुनी वृद्धि होने से अपकेंद्री बल में चौगुनी वृद्धि होती हैं। इसी प्रकार अपकेंद्रित्र की गति में दस गुनी वृद्धि से अपकेंद्री बल में सौ गुनी वृद्धि हो जाती है। अपकेंद्रण की क्रिया में किसी वस्तु पर कार्य करने, अथवा प्रभाव उत्पन्न करने, वाले अपकेंद्री बल की, बहुधा वस्तु की तौल (वस्तु का भार व् गुरुत्वाकर्षण) से सीधे तुलना की जाती है। इस आधार पर अपकेंद्री बल को गुरुत्व के गुणज रूप में व्यक्त किया जाता है। गुरुत्व के लिये g अक्षर को प्रतीक माना जाता है, अत: अपकेंद्री बल को संक्षेप में g के गुणज में लिखा जाता है। यदि अपकेंद्रित्र में कोई वस्तु 600 घूर्णन प्रति मिनट की गति से घूर्णन कर रही हो तथा घूर्णनवृत्त का अर्धव्यास 3.84 इंच अथवा 10 सेंटीमीटर हो, तो इस परिस्थिति में जनित होनेवाला अपकेंद्री बल गुरुत्व का 41 गुना होता है। आधुनिक एवं विशेष प्रकार के अपकेंद्रित में गुरुत्व का लाख गुना अपकेंद्री बल उत्पन्न किया जा सकता है। आधुनिक अपकेंद्रित धातुनिर्मित एक ऐसा पात्र होता है जिसमें घूर्णन करनेवाला भाग विद्युन्मोटर की स्थिर धुरी से जुड़ा हुआ होता है। अत: विद्युन्मोटर के चलने पर अपकेंद्रित्र का घूर्णन करनेवाला भाग भी विद्युन्मोटर की गति से घूर्णित होने लगता है। घूर्णन की गति विघुत् की धुरी के घूर्णन के समान होती है। पूर्व समय में अपकेंद्रित में घूर्णन हाथ से उत्पन्न किया जाता था। आजकल भी घरेलू उपयोग में अपकेंद्रित्र के घूर्णन के लिये शारीरिक श्रम का उपयोग होता है। आधुनिक अति तीव्र गति से घूर्णित होनेवाले उपकेंद्रित्र में विद्युन्मोटर के स्थान पर वायु टरबाइन का उपयोग होने लगा है। अपकेंद्रित्र के घूर्णन करनेवाले भाग को रोटर कहा जाता है। इसका आकार कटोरी के समान, अथवा उल्टे प्याले के समान होता है। इसमें द्रव अथवा अन्य वस्तु को अपकेंद्रित्र नली में, अथवा सीधे कटोरी में, अपकेंद्रण के लिये रखा जाता है। अपकेंद्रण कार्य में अपकेद्रित्र में अनावश्यक एवं हानिकर कंपन उत्पन्न न हो, इसके लिये आवश्यक होता है कि वस्तु से पूरित रोटर पूर्ण रूप से संतुलित हो। इसके लिये वस्तु के संपूर्ण भार को घूर्णन धूरी के चारों ओर समान रूप से वितरित रखना पड़ता है। आदर्श परिस्थिति में इस व्यवस्था से मूल बलों का परिणामी शून्य के बराबर होता है। अपकेंद्रण में द्रवों की, विशेषकर ऐसे द्रवों की जिनमें ठोस पदार्थ के सूक्ष्म कण निलंबित हों अथवा जिनमें अमिश्रणीय द्रव की गोलिकाएँ अथवा दोनों ही विद्यमान हों, अपकेंद्रण प्रवृत्ति विशेष महत्व की होती है। ठोस पदार्थ के सूक्ष्म कण, जल तथा तेल से बने पायस से तीनों वस्तुओं का पृथक्करण सरलता से किया जा सकता है। अपकेंद्रण में उत्पन्न होनेवाले अपकेंद्री बल की तुलना में गुरुत्व बल अत्यंत अल्प होता है। अपकेंद्री बल के क्षेत्र में, द्रव पदार्थ घूर्णन अक्ष से अधिक से अधिक दूरी पर विपरीत होने का प्रयत्न करता है, जिससे द्रव अपकेंद्रित्र के घूर्णन पात्र के बाहरी किनारें के समीप समान मोटाई में स्थित हो जाता है। इस प्रकार पात्र में अक्ष से लेकर द्रव तक समान रूप में फैला हुआ मुक्त स्थान उत्पन्न हो जाता है, जो कि रंभाकार होता है। इस प्रकार अपकेंद्रण की क्रिया के द्वारा निलंबित करनेवाले द्रव से अपेक्षाकृत अधिक घनत्ववाले, निलंबित सूक्ष्मकण परिभ्रमण पात्र की परिधि में एकत्रित हो जाते हैं तथा निलंबन करनेवाले द्रव से कम घनत्व के निलंबित सूक्ष्मकण पात्र के स्थल पर एकत्रित हो जाते हैं। उपर्युक्त पृथक्करण कितना शीध्र होगा, यह केंद्राभिमुख बल की तीव्रता, निलंबित करनेवाले द्रव तथा निलंबित सूक्ष्म कणों के घनत्व के अंतर, द्रव की श्यानता, निलंबित सूक्ष्म कणों के आकार तथा परिमाण और कणों की सांद्रता तथा अनेक वैद्युत प्रभार के स्तर पर निर्भर करता है। .

दुग्ध कृषि और मथित्र के बीच समानता

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दुग्ध कृषि और मथित्र के बीच तुलना

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संदर्भ

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