दीपक और बाहुधरन
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दीपक और बाहुधरन के बीच अंतर
दीपक vs. बाहुधरन
मिट्टी का पारंपरिक दीयादीप, दीपक, दीवा या दीया वह पात्र है जिसमें सूत की बाती और तेल या घी रख कर ज्योति प्रज्वलित की जाती है। पारंपरिक दीया मिट्टी का होता है लेकिन धातु के दीये भी प्रचलन में हैं। प्राचीनकाल में इसका प्रयोग प्रकाश के लिए किया जाता था पर बिजली के आविष्कार के बाद अब यह सजावट की वस्तु के रूप में अधिक प्रयोग होता है। हाँ धार्मिक व सामाजिक अनुष्ठानों में इसका महत्व अभी भी बना हुआ है। यह पंचतत्वों में से एक अग्नि का प्रतीक माना जाता है। दीपक जलाने का एक मंत्र भी है जिसका उच्चारण सभी शुभ अवसरों पर किया जाता है। इसमें कहा गया है कि सुन्दर और कल्याणकारी, आरोग्य और संपदा को देने वाले हे दीप, शत्रु की बुद्धि के विनाश के लिए हम तुम्हें नमस्कार करते हैं। विशिष्ट अवसरों पर जब दीपों को पंक्ति में रख कर जलाया जाता है तब इसे दीपमाला कहते हैं। ऐसा विशेष रूप से दीपावली के दिन किया जाता हैं। अन्य खुशी के अवसरों जैसे विवाह आदि पर भी दीपमाला की जाती है। . इस योजनामूलक चित्र में जो क्षैतिज अवयव है उसका दाहिना भाग बाहुधरन जैसे कार्य कर रहा है। उस धरन (बीम), प्लेट या ट्रस-संरचना को टोड़ा या बाहुधरन या कैंटीलीवर (Cantilever) कहते हैं जिसका एक सिरा पूर्णतया आबद्ध हो और शेष बाहर निकला हुआ आलंबरहित भाग का भार सँभाले हो। (बाहु .
दीपक और बाहुधरन के बीच समानता
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संदर्भ
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