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तृत्सु लोग और दिवोदास (ऋग्वेद)

शॉर्टकट: मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ

तृत्सु लोग और दिवोदास (ऋग्वेद) के बीच अंतर

तृत्सु लोग vs. दिवोदास (ऋग्वेद)

तृत्सु बृहत भारतीय उपमहाद्वीप के पश्चिमोत्तर भाग में बसने वाले आर्य समुदाय के भारत लोगों की एक उपशाखा थी। इनका उल्लेख ऋग्वेद के सातवें मंडल में ७:१८, ७:३३ और ७:८३ में मिलता है। १७०० से १००० ईसापूर्व काल में राजा सुदास और महऋषि वशिष्ठ के नेतृत्व में लड़े गये दस राजाओं के युद्ध (दशराज्ञ युद्ध) में उन्होने पुरु परिसंघ को हराकर सम्स्त हिन्द-आर्य क़बीलों पर अपनी धाक जमा ली।, Krishna Reddy, pp. दिवोदास भारत में एक प्राचीन राजा थे जिनका उल्लेख ऋग्वेद में मिलता है। वे सुदास नामक राजा के पिता थे जो दशराज्ञ युद्ध के विजेता थे और जिनका जीवनकाल अलग-अलग स्रोतों में १७०० ईसापूर्व से लेकर ११०० ईसापूर्व के बीच के किसी समय में अनुमानित किया जाता है।, Raj Kumar, pp.

तृत्सु लोग और दिवोदास (ऋग्वेद) के बीच समानता

तृत्सु लोग और दिवोदास (ऋग्वेद) आम में 3 बातें हैं (यूनियनपीडिया में): दशराज्ञ युद्ध, सुदास (ऋग्वेद), ऋग्वेद

दशराज्ञ युद्ध

दशराज्ञ युद्ध या दस राजाओं का युद्ध एक युद्ध था जिसका उल्लेख ऋग्वेद के सातवें मंडल में ७:१८, ७:३३ और ७:८३:४-८ में मिलता है। इस युद्ध में एक तरफ़ पुरु नामक आर्य क़बीला और उनका मित्रपक्ष समुदाय था, जिनके सलाहकार ऋषि विश्वामित्र थे। दूसरी ओर भारत नामक समुदाय था, जिसका नेतृत्व तृत्सु नामक क़बीले के राजा सुदास कर रहें थे और जिनके प्रेरक ऋषि वशिष्ठ थे।, Sushant Kumar, pp.

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सुदास (ऋग्वेद)

सुदास भारत में एक प्राचीन राजा थे जिनका उल्लेख ऋग्वेद में मिलता है। वे दशराज्ञ युद्ध के विजेता थे जिसका वर्णन ऋग्वेद ७:१८, ७:३३ और ७:८३:४-८ में है।, Sushant Kumar, pp.

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ऋग्वेद

ऋग्वेद सनातन धर्म का सबसे आरंभिक स्रोत है। इसमें १०२८ सूक्त हैं, जिनमें देवताओं की स्तुति की गयी है इसमें देवताओं का यज्ञ में आह्वान करने के लिये मन्त्र हैं, यही सर्वप्रथम वेद है। ऋग्वेद को इतिहासकार हिन्द-यूरोपीय भाषा-परिवार की अभी तक उपलब्ध पहली रचनाऔं में एक मानते हैं। यह संसार के उन सर्वप्रथम ग्रन्थों में से एक है जिसकी किसी रूप में मान्यता आज तक समाज में बनी हुई है। यह एक प्रमुख हिन्दू धर्म ग्रंथ है। ऋक् संहिता में १० मंडल, बालखिल्य सहित १०२८ सूक्त हैं। वेद मंत्रों के समूह को सूक्त कहा जाता है, जिसमें एकदैवत्व तथा एकार्थ का ही प्रतिपादन रहता है। ऋग्वेद में ही मृत्युनिवारक त्र्यम्बक-मंत्र या मृत्युंजय मन्त्र (७/५९/१२) वर्णित है, ऋग्विधान के अनुसार इस मंत्र के जप के साथ विधिवत व्रत तथा हवन करने से दीर्घ आयु प्राप्त होती है तथा मृत्यु दूर हो कर सब प्रकार का सुख प्राप्त होता है। विश्व-विख्यात गायत्री मन्त्र (ऋ० ३/६२/१०) भी इसी में वर्णित है। ऋग्वेद में अनेक प्रकार के लोकोपयोगी-सूक्त, तत्त्वज्ञान-सूक्त, संस्कार-सुक्त उदाहरणतः रोग निवारक-सूक्त (ऋ०१०/१३७/१-७), श्री सूक्त या लक्ष्मी सूक्त (ऋग्वेद के परिशिष्ट सूक्त के खिलसूक्त में), तत्त्वज्ञान के नासदीय-सूक्त (ऋ० १०/१२९/१-७) तथा हिरण्यगर्भ सूक्त (ऋ०१०/१२१/१-१०) और विवाह आदि के सूक्त (ऋ० १०/८५/१-४७) वर्णित हैं, जिनमें ज्ञान विज्ञान का चरमोत्कर्ष दिखलाई देता है। ऋग्वेद के विषय में कुछ प्रमुख बातें निम्नलिखित है-.

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तृत्सु लोग और दिवोदास (ऋग्वेद) के बीच तुलना

तृत्सु लोग 6 संबंध है और दिवोदास (ऋग्वेद) 8 है। वे आम 3 में है, समानता सूचकांक 21.43% है = 3 / (6 + 8)।

संदर्भ

यह लेख तृत्सु लोग और दिवोदास (ऋग्वेद) के बीच संबंध को दर्शाता है। जानकारी निकाला गया था, जिसमें से एक लेख का उपयोग करने के लिए, कृपया देखें:

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