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दिगम्बर और श्रुतकेवली

शॉर्टकट: मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ

दिगम्बर और श्रुतकेवली के बीच अंतर

दिगम्बर vs. श्रुतकेवली

गोम्मटेश्वर बाहुबली (श्रवणबेळगोळ में) दिगम्बर जैन धर्म के दो सम्प्रदायों में से एक है। दूसरा सम्प्रदाय है - श्वेताम्बर। दिगम्बर. श्रुतकेवली, श्रुतज्ञान अर्थात् शास्त्रों के पूर्ण ज्ञाता होते हैं। श्रुतकेवली और केवली, ज्ञान की दृष्टि से दोनों समान हैं, लेकिन श्रुतज्ञान परोक्ष और केवल ज्ञान प्रत्यक्ष होता है। केवलियों को जितना ज्ञान होता है उसके अतनवें भाग का वे प्ररूपण कर सकते हैं और जितना वे प्ररूपण करते हैं उसका अनंतवाँ भाग शास्त्रों में संकलित किया जाता है। इसलिए केवलज्ञान से श्रुतज्ञान अनंतवें भाग का भी अनंतवाँ भाग है। श्रुतकेवली १४ पूर्वों के पाठी होते हैं। महावीर स्वामी के निर्वाण के पश्चात् गौतम, सुधर्मा और जंबूस्वामी, ये तीन केवली हुए। जंबूस्वामी के बाद दिगंबर परंपरा के अनुसार विष्णु, नंदि, अपराजित, गोवर्धन और भद्रबहु तथा श्वेतांबर परंपरा के अनुसार प्रभव, शय्यंभव, वशोभद्र, सभूतविजय, भद्रबाहु और स्थूलभद्र नाम के छह श्रुतकेवली हुए। स्थूलभद्र को श्रुतकेवलियों में न गिनने से श्वेतांबर संप्रदाय के अनुसार पांच ही श्रुतकेवली माने गए हैं। .

दिगम्बर और श्रुतकेवली के बीच समानता

दिगम्बर और श्रुतकेवली आम में एक बात है (यूनियनपीडिया में): महावीर

महावीर

भगवान महावीर जैन धर्म के चौंबीसवें (२४वें) तीर्थंकर है। भगवान महावीर का जन्म करीब ढाई हजार साल पहले (ईसा से 599 वर्ष पूर्व), वैशाली के गणतंत्र राज्य क्षत्रिय कुण्डलपुर में हुआ था। तीस वर्ष की आयु में महावीर ने संसार से विरक्त होकर राज वैभव त्याग दिया और संन्यास धारण कर आत्मकल्याण के पथ पर निकल गये। १२ वर्षो की कठिन तपस्या के बाद उन्हें केवलज्ञान प्राप्त हुआ जिसके पश्चात् उन्होंने समवशरण में ज्ञान प्रसारित किया। ७२ वर्ष की आयु में उन्हें पावापुरी से मोक्ष की प्राप्ति हुई। इस दौरान महावीर स्वामी के कई अनुयायी बने जिसमें उस समय के प्रमुख राजा बिम्बिसार, कुनिक और चेटक भी शामिल थे। जैन समाज द्वारा महावीर स्वामी के जन्मदिवस को महावीर-जयंती तथा उनके मोक्ष दिवस को दीपावली के रूप में धूम धाम से मनाया जाता है। जैन ग्रन्थों के अनुसार समय समय पर धर्म तीर्थ के प्रवर्तन के लिए तीर्थंकरों का जन्म होता है, जो सभी जीवों को आत्मिक सुख प्राप्ति का उपाय बताते है। तीर्थंकरों की संख्या चौबीस ही कही गयी है। भगवान महावीर वर्तमान अवसर्पिणी काल की चौबीसी के अंतिम तीर्थंकर थे और ऋषभदेव पहले। हिंसा, पशुबलि, जात-पात का भेद-भाव जिस युग में बढ़ गया, उसी युग में भगवान महावीर का जन्म हुआ। उन्होंने दुनिया को सत्य, अहिंसा का पाठ पढ़ाया। तीर्थंकर महावीर स्वामी ने अहिंसा को सबसे उच्चतम नैतिक गुण बताया। उन्होंने दुनिया को जैन धर्म के पंचशील सिद्धांत बताए, जो है– अहिंसा, सत्य, अपरिग्रह, अचौर्य (अस्तेय) और ब्रह्मचर्य। उन्होंने अनेकांतवाद, स्यादवाद और अपरिग्रह जैसे अद्भुत सिद्धांत दिए।महावीर के सर्वोदयी तीर्थों में क्षेत्र, काल, समय या जाति की सीमाएँ नहीं थीं। भगवान महावीर का आत्म धर्म जगत की प्रत्येक आत्मा के लिए समान था। दुनिया की सभी आत्मा एक-सी हैं इसलिए हम दूसरों के प्रति वही विचार एवं व्यवहार रखें जो हमें स्वयं को पसंद हो। यही महावीर का 'जीयो और जीने दो' का सिद्धांत है। .

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दिगम्बर और श्रुतकेवली के बीच तुलना

दिगम्बर 19 संबंध है और श्रुतकेवली 6 है। वे आम 1 में है, समानता सूचकांक 4.00% है = 1 / (19 + 6)।

संदर्भ

यह लेख दिगम्बर और श्रुतकेवली के बीच संबंध को दर्शाता है। जानकारी निकाला गया था, जिसमें से एक लेख का उपयोग करने के लिए, कृपया देखें:

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