थियिसोफिकल सोसाइटी और वेद
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थियिसोफिकल सोसाइटी और वेद के बीच अंतर
थियिसोफिकल सोसाइटी vs. वेद
थियिसोफिकल सोसाइटी की मुहर थियोसॉफिकल सोसाइटी (Theosophical Society) एक अंतर्राष्ट्रीय आध्यात्मिक संस्था है। 'थियोसोफी ग्रीक भाषा के दो शब्दों "थियोस" तथा "सोफिया" से मिलकर बना है जिसका अर्थ हिंदू धर्म की "ब्रह्मविद्या", ईसाई धर्म के 'नोस्टिसिज्म' अथवा इस्लाम धर्म के "सूफीज्म" के समकक्ष किया जा सकता है। कोई प्राचीन अथव अर्वाचीन दर्शन, जो परमात्मा के विषय में चर्चा करे, सामान्यत: थियोसाफी कहा जा सकता है। इस शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग आइंब्लिकस (Iamblichus) ने ईसवी सन् 300 के आसपास किया था। आइंब्लिकस प्लैटो संप्रदाय के अमोनियस सक्कस (Ammonias Saccas) का अनुयायी था। उसने सिमंदरिया के अपने "सारग्राही मतवादः (Eclectic school) के प्रसंग में इस शब्द का प्रयोग किया था। इसके पश्चात् पाईथोगोरस के जीवनदर्शन में उसकीर शिक्षाओं के अंश उपलब्ध होते हैं। थियोसॉफिकल सोसाइटी ने विधिवत् एवं सुनिश्चित परिभाषा द्वारा थियोसॉफी शब्द को सीमाबद्ध करने का कभी भी प्रयत्न नहीं किया। सोसाइटी के उद्देश्य में इस शब्द का उल्लेख तक नहीं है। समस्त धर्म एवं दर्शन का मूलाधार "सत्य", थियोसोफी ही है। थियोसॉफिकल सोसाइटी वस्तुत: सब प्रकार के भेदभाव से रहित सत्यान्वेषी साधकों का एक समूह है। सोसाइटी के लिये महत्वपूर्ण है केवल सत्यान्वेषण। उसके लिए व्यक्ति सर्वथा गौण है। व्यक्ति के संमान अथवा उसके विरोध के लिये उसमें कोई स्थान नहीं है। इसने अनेक सुविख्यात, महत्वपूर्ण और विभिन्न विचारधारावाले व्यक्तियों को प्रभावित किया है। सांस्कृतिक दृष्टि से इस संस्था द्वारा प्रचारित चिंतनपद्धति विज्ञान, धर्म और दर्शन के संश्लेषण द्वारा आत्मचेतना के विकास की प्रेरणा प्रदान करती है। सोसाइटी का लक्ष्य ऐसे मानव समाज का निर्माण करना है जिसमें सेवा, सहिष्णुता, आत्मविश्वास और समत्व भाव स्वयंसिद्ध हों। . वेद प्राचीन भारत के पवितत्रतम साहित्य हैं जो हिन्दुओं के प्राचीनतम और आधारभूत धर्मग्रन्थ भी हैं। भारतीय संस्कृति में वेद सनातन वर्णाश्रम धर्म के, मूल और सबसे प्राचीन ग्रन्थ हैं, जो ईश्वर की वाणी है। ये विश्व के उन प्राचीनतम धार्मिक ग्रंथों में हैं जिनके पवित्र मन्त्र आज भी बड़ी आस्था और श्रद्धा से पढ़े और सुने जाते हैं। 'वेद' शब्द संस्कृत भाषा के विद् शब्द से बना है। इस तरह वेद का शाब्दिक अर्थ 'ज्ञान के ग्रंथ' है। इसी धातु से 'विदित' (जाना हुआ), 'विद्या' (ज्ञान), 'विद्वान' (ज्ञानी) जैसे शब्द आए हैं। आज 'चतुर्वेद' के रूप में ज्ञात इन ग्रंथों का विवरण इस प्रकार है -.
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