थाईलैण्ड का इतिहास और राजनय
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थाईलैण्ड का इतिहास और राजनय के बीच अंतर
थाईलैण्ड का इतिहास vs. राजनय
वर्तमान थाईलैंड, पुरानी आयल चित्रण,मूर्तियों और मूर्तियां सियाम थाई लोग अपनी जातीय विशेषताओं में चीनियों के निकट हैं। इन लोगों ने चीन के दक्षिण भाग में नान चाऊ नामक एक शक्तिशाली राज्य स्थापित किया था। किंतु उत्तरी चीनियों और तिब्बतियों के दबाव तथा 1253 में कुबलई खाँ के आक्रमणों के कारण थाई लोगों को दक्षिणी पूर्वी एशिया की ओर हटना पड़ा। चाओ फ्राया (Chao Phraya) नदी की घाटी में पहुँच कर उन्होंने वहाँ के निवासियों को कम्बोडिया की ओर भगा दिया और थाईलैंड नामक देश बसाया। 17वीं शताब्दी तक थाईलैंड में सामंततंत्र स्थापित रहा। इन्हीं दिनों उसने डचों, पुर्तगालियों, फ्रांसीसियों और अंग्रेजों से व्यापार संबंध भी जोड़ लिए थे। 19वीं शताब्दी में मांकूट (Mongkut) (1851-68) और उसके पुत्र चूलालोंगकार्न (Chulalongkorn) (1868-1910) के शासनकाल में सामंतवाद की व्यवस्था शनै: शनै: समाप्त हुई और थाईलैंड का वर्तमान संसार में आगमन हुआ। सम्मतिदाताओं की एक समिति गठित हुई तथा ब्रिटेन (1855) संयुक्त राज्य अमरीका और फ्रांस (1856) से व्यापार संधियाँ हुई। पुराने सामंतों के अधिकार सीमित कर दिए गए और दास प्रथा बिल्कुल उठा दी गई। 1932 में रक्तहीन क्रांति द्वारा संवैधानिक राज्यतंत्र की स्थापना हुई। किंतु उसके बाद से भी थाईलैण्ड की राजनीति में स्थिरता नहीं आई। द्वितीय विश्वयुद्ध के आरंभ में थाईलेण्ड ने जापान से संधि की और ब्रिटेन और अमरीका के विरुद्ध युद्ध ठाना। लेकिन युद्ध के बाद उसने संयुक्तराज्य अमरीका से संधि की। 1962 में लाओस की ओर से साम्यवादी संकट से थाईलैंड की रक्षा के लिये संयुक्तराज्य की सैनिक टुकड़ियाँ भी वहाँ रहीं। . न्यूयार्क स्थित संयुक्त राष्ट्रसंघ संसार का सबसे बडा राजनयिक संगठन है। राष्ट्रों अथवा समूहों के प्रतिनिधियों द्वारा किसी मुद्दे पर चर्चा एवं वार्ता करने की कला व अभ्यास (प्रैक्टिस) राजनय (डिप्लोमैसी) कहलाता है। आज के वैज्ञानिक युग में कोई देश अलग-अलग नहीं रह सकता। इन देशों में पारस्परिक सम्बन्ध जोड़ना आज के युग में आवश्यक हो गया है। इन सम्बन्धों को जोड़ने के लिए योग्य व्यक्ति एक देश से दूसरे देश में भेजे जाते हैं। ये व्यक्ति अपनी योग्यता, कुशलता और कूटनीति से दूसरे देश को प्रायः मित्र बना लेते हैं। प्राचीन काल में भी एक राज्य दूसरे राज्य से कूटनीतिक सम्बन्ध जोड़ने के लिए अपने कूटनीतिज्ञ भेजता था। पहले कूटनीति का अर्थ 'सौदे में या लेन देन में वाक्य चातुरी, छल-प्रपंच, धोखा-धड़ी' लगाया जाता था। जो व्यक्ति कम मूल्य देकर अधिकाधिक लाभ अपने देश के लिए प्राप्त करता था, कुशल कूटनीतिज्ञ कहलाता था। परन्तु आज छल-प्रपंच को कूटनीति नहीं कहा जाता है। वैज्ञानिक दृष्टि से आधुनिक काल में इस शब्द का प्रयोग दो राज्यों में शान्तिपूर्ण समझौते के लिए किया जाता है। डिप्लोमेसी के लिए हिन्दी में कूटनीति के स्थान पर राजनय शब्द का प्रयोग होने लगा है। अन्तर्राष्ट्रीय जगत एक परिवार के समान बन गया है। परिवार के सदस्यों में प्रेम, सहयोग, सद्भावना तथा मित्रता का सम्बन्ध जोड़ना एक कुशल राजनयज्ञ का काम है। .
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