ताप उत्क्रमण और मौसम विज्ञान
शॉर्टकट: मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ।
ताप उत्क्रमण और मौसम विज्ञान के बीच अंतर
ताप उत्क्रमण vs. मौसम विज्ञान
घरती पर की वायु जैसे-जैसे 10 से 15 किलोमीटर तक ऊपर उठती है, वैसे-वैसे उसका ताप क्रमश: कम होता जाता है। यह सामान्य नियम है, पर बहुधा देखा जाता है कि वायुमंडल में वायु के कुछ ऐसे स्तर पाए जाते हैं, जिनमें ऊँचाई के कारण ताप कम होने के स्थान पर बढ़ता है। ताप के ऐसे स्तरों को ताप का उत्क्रमण (Inversion of Temperature) या केवल उत्क्रमण कहते हैं। ऊँचाई के कारण ताप के कम होने की दर को क्षयदर (lapse rate) कहते है। ऊँचाई के कारण जब ताप कम होने के स्थान पर बढ़ता है, तब क्षयदर ऋणात्मक होती है। मौसम विज्ञान संबंधी निबंधों में वायु के ऐसे स्तरों को भी उत्क्रमण कहते हैं, जिनके क्षयदर धनात्मक होने पर भी ऊपर और नीचे के वायुस्तरों से कम हो। उत्क्रमण की माप (1) स्तर की मोटाई, (2) तापवृद्धि की दर और (3) स्तर के ताप की समस्त वृद्धि से की जाती है। ताप की समस्त वृद्धि को उत्क्रमण का परिमाण (magnitude) कहते हैं। यदि ताप की वृद्धि बड़ी तीव्रता से हो तो उसे तीक्ष्ण उत्क्रमण (Sharp inversion) और तीक्ष्ण तथा वृहत् उत्क्रमण (Large inversion) और तीक्ष्ण तथा वृहद दोनों हो तो उसे प्रबल उत्क्रमण (Strong inversion) कहते हैं। वायुमंडल के 10 से लेकर 15 किमी0 तक से नीचे के भाग को, जहाँ क्षयदर सामान्य घनात्मक होती है, क्षोभमंडल (Troposphere) कहते हैं। क्षोभमंडल में उत्क्रमण बहुत रहता है। समान्यतया कम ऊँचाई के कुछ क्षेत्रों में उत्क्रमण प्राय: सदा ही उपस्थित रहता है। क्षोभमंडल के ऊपर के भाग को समतापमंडल (Stratosphere) कहते हैं। यहाँ का ताप सामान्यत: स्थायी रहता हैं, अथवा ऊँचाई में बहुत ही धीरे धीरे बढ़ता है। अधिक ऊँचे तलों पर यह अधिकता से बढ़ता है। 16 से लेकर 50 किमी0 तक के बीच विभिन्न तीक्षणता के स्थाई उत्क्रमण होते हैं। पृथ्वी ही सतह पर जो उत्क्रमण होता है उसे भू-उत्क्रमण कहते हैं। उस उत्क्रमण को उच्च उत्क्रमण (High inversion) कहते हैं जिसमें स्तर के नीचे की वायु में ताप की कमी सामान्य होती है। . वायुवेगमापी ऋतुविज्ञान या मौसम विज्ञान (Meteorology) कई विधाओं को समेटे हुए विज्ञान है जो वायुमण्डल का अध्ययन करता है। मौसम विज्ञान में मौसम की प्रक्रिया एवं मौसम का पूर्वानुमान अध्ययन के केन्द्रबिन्दु होते हैं। मौसम विज्ञान का इतिहास हजारों वर्ष पुराना है किन्तु अट्ठारहवीं शती तक इसमें खास प्रगति नहीं हो सकी थी। उन्नीसवीं शती में विभिन्न देशों में मौसम के आकड़ों के प्रेक्षण से इसमें गति आयी। बीसवीं शती के उत्तरार्ध में मौसम की भविष्यवाणी के लिये कम्प्यूटर के इस्तेमाल से इस क्षेत्र में क्रान्ति आ गयी। मौसम विज्ञान के अध्ययन में पृथ्वी के वायुमण्डल के कुछ चरों (variables) का प्रेक्षण बहुत महत्व रखता है; ये चर हैं - ताप, हवा का दाब, जल वाष्प या आर्द्रता आदि। इन चरों का मान व इनके परिवर्तन की दर (समय और दूरी के सापेक्ष) बहुत हद तक मौसम का निर्धारण करते हैं। .
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संदर्भ
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