तंत्रसंग्रह और भारतीय गणित के बीच समानता
तंत्रसंग्रह और भारतीय गणित आम में 3 बातें हैं (यूनियनपीडिया में): नीलकण्ठ सोमयाजि, आर्यभट, केरलीय गणित सम्प्रदाय।
नीलकण्ठ सोमयाजि
नीलकण्ठ सोमयाजि (1444-1544) भारतीय गणितज्ञ थे। वह केरल प्रदेश से थे। .
तंत्रसंग्रह और नीलकण्ठ सोमयाजि · नीलकण्ठ सोमयाजि और भारतीय गणित ·
आर्यभट
आर्यभट (४७६-५५०) प्राचीन भारत के एक महान ज्योतिषविद् और गणितज्ञ थे। इन्होंने आर्यभटीय ग्रंथ की रचना की जिसमें ज्योतिषशास्त्र के अनेक सिद्धांतों का प्रतिपादन है। इसी ग्रंथ में इन्होंने अपना जन्मस्थान कुसुमपुर और जन्मकाल शक संवत् 398 लिखा है। बिहार में वर्तमान पटना का प्राचीन नाम कुसुमपुर था लेकिन आर्यभट का कुसुमपुर दक्षिण में था, यह अब लगभग सिद्ध हो चुका है। एक अन्य मान्यता के अनुसार उनका जन्म महाराष्ट्र के अश्मक देश में हुआ था। उनके वैज्ञानिक कार्यों का समादर राजधानी में ही हो सकता था। अतः उन्होंने लम्बी यात्रा करके आधुनिक पटना के समीप कुसुमपुर में अवस्थित होकर राजसान्निध्य में अपनी रचनाएँ पूर्ण की। .
आर्यभट और तंत्रसंग्रह · आर्यभट और भारतीय गणित ·
केरलीय गणित सम्प्रदाय
केरलीय गणित सम्प्रदाय केरल के गणितज्ञों और खगोलशास्त्रियों का एक के बाद एक आने वाला क्रम था जिसने गणित और खगोल के क्षेत्र में बहुत उन्नत कार्य किया। इसकी स्थापना संगमग्राम के माधव द्वारा की गयी थी। परमेश्वर, नीलकण्ठ सोमजाजिन्, ज्येष्ठदेव, अच्युत पिशारती, मेलापतुर नारायण भट्टतिरि तथा अच्युत पान्निकर इसके अन्य सदस्य थे। यह सम्प्रदाय १४वीं शदी से लेकर १६वीं शदी तक फला-फूला। खगोलीय समस्याओं के समाधान के खोज के चक्कर में इस सम्प्रदाय ने स्वतंत्र रूप से अनेकों महत्वपूर्ण गणितीय संकल्पनाएँ सृजित की। इनमें नीलकंठ द्वारा तंत्रसंग्रह नामक ग्रन्थ में दिया गया त्रिकोणमितीय फलनों का श्रेणी के रूप में प्रसार सबसे महत्वपूर्ण है। केरलीय गणित सम्प्रदाय माधवन के बाद कम से कम दो शताब्दियों तक फलता-फूलता रहा। ज्येष्ठदेव से हमें समाकलन का विचार मिला, जिसे संकलितम कहा गया था, (हिंदी अर्थ संग्रह), जैसा कि इस कथन में है: जो समाकलन को एक ऐसे चर (पद) के रूप में अनुवादित करता है जो चर के वर्ग के आधे के बराबर होगा; अर्थात x dx का समाकलन x2 / 2 के बराबर होगा। यह स्पष्ट रूप से समाकलन की शुरुआत है। इससे सम्बंधित एक अन्य परिणाम कहता है कि किसी वक्र के अन्दर का क्षेत्रफल उसके समाकल के बराबर होता है। इसमें से अधिकांश परिणाम यूरोप में ऐसे ही परिणामों के अस्तित्व से कई शताब्दियों पूर्व के हैं। अनेक प्रकार से, ज्येष्ठदेव की युक्तिभाषा कलन पर विश्व की पहली पुस्तक मानी जा सकती है। इस समूह ने खगोल विज्ञान में अन्य कई कार्य भी किये; वास्तव में खगोलीय परिकलनों पर विश्लेषण संबंधी परिणामों की तुलना में कहीं अधिक पृष्ठ लिखे गए हैं। केरल स्कूल ने भाषाविज्ञान (भाषा और गणित के मध्य सम्बन्ध एक प्राचीन भारतीय परंपरा है, देखें, कात्यायन) में भी योगदान दिया है। केरल की आयुर्वेदिक और काव्यमय परंपरा की जड़ें भी इस स्कूल में खोजी जा सकती हैं। प्रसिद्ध कविता, नारायणीयम, की रचना नारायण भात्ताथिरी द्वारा की गयी थी। .
केरलीय गणित सम्प्रदाय और तंत्रसंग्रह · केरलीय गणित सम्प्रदाय और भारतीय गणित ·
सूची के ऊपर निम्न सवालों के जवाब
- क्या तंत्रसंग्रह और भारतीय गणित लगती में
- यह आम तंत्रसंग्रह और भारतीय गणित में है क्या
- तंत्रसंग्रह और भारतीय गणित के बीच समानता
तंत्रसंग्रह और भारतीय गणित के बीच तुलना
तंत्रसंग्रह 11 संबंध है और भारतीय गणित 178 है। वे आम 3 में है, समानता सूचकांक 1.59% है = 3 / (11 + 178)।
संदर्भ
यह लेख तंत्रसंग्रह और भारतीय गणित के बीच संबंध को दर्शाता है। जानकारी निकाला गया था, जिसमें से एक लेख का उपयोग करने के लिए, कृपया देखें: