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ढलवां लोहा और धातुरचना विज्ञान

शॉर्टकट: मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ

ढलवां लोहा और धातुरचना विज्ञान के बीच अंतर

ढलवां लोहा vs. धातुरचना विज्ञान

आयरन-सेमेंटाईट मेटा-स्टेबल डायग्राम. ढलवां लोहा (कास्ट आयरन) आम तौर पर धूसर रंग के लोहे को कहा जाता है लेकिन इसके साथ-साथ यह एक बड़े पुंज में लौह अयस्कों का मिश्रण भी है, जो एक गलनक्रांतिक तरीके से ठोस बन जाता है। किसी भी धातु की खंडित सतह को देखकर उसके मिश्र धातु होने का पता लगाया जा सकता है। सफेद ढलवां लोहे का नामकरण इसकी खंडित सफ़ेद सतह के आधार पर किया गया है क्योंकि इसमें कार्बाइड सम्बन्धी अशुद्धियां पाई जाती हैं जिसकी वजह से इसमें सीधी दरार पड़ती है। धूसर ढलवां लोहे का नामकरण इसकी खंडित धूसर सतह के आधार पर किया गया है, इसके खंडित होने का कारण यह है कि ग्रेफाइट की परतें पदार्थ के टूटने के दौरान पड़ने वाली दरार को विक्षेपित कर देती हैं जिससे अनगिनत नई दरारें पड़ने लगती हैं। मिश्र (अयस्क) धातु में पाए जाने वाले पदार्थों के वजन (wt%) में से 95% से भी अधिक लोहा (Fe) होता है जबकि अन्य मुख्य तत्वों में कार्बन (C) और सिलिकॉन (Si) शामिल हैं। ढलवां लोहे में कार्बन की मात्रा 2.1 से 4 wt% होती है। ढलवां लोहे में सिलिकॉन की पर्याप्त राशि, सामान्य रूप से 1 से 3 wt% होती है और इसके फलस्वरूप इन धातुओं को त्रिगुट Fe-C-Si (लोहा-कार्बन-सिलिकन) धातु माना जाना चाहिए। तथापि ढलवां लोहा घनीकरण का सिद्धांत द्विआधारी लोहा-कार्बन चरण आरेख से समझ आता है, जहां गलनक्रांतिक बिंदु और 4.3 wt% कार्बन के 4.3 % वजन (4.3 wt%) पर है। चूंकि ढलवां लोहे की संरचना का अनुमान इस तथ्य से ही लग जता है कि, इसका गलनांक (पिघलने का तापमान) शुद्ध लोहे के गलनांक से लगभग कम है। पिटवां ढलवां लोहे को छोड़कर, बाकि ढलवां लोहे भंगुर होते है। निम्न गलनांक (कम पिघलने वाले तापमान), अच्छी द्रवता, आकार देने की योग्यता, इच्छित आकार देने की उत्कृष्ट योग्यता, विरूपण करने के लिए प्रतिरोध और जीर्ण होने के प्रतिरोध के साथ ढलवां लोहा अनुप्रयोगों की व्यापक श्रेणी के साथ इंजीनियरिंग सामग्री बन गए हैं, पाइप और मशीनों और मोटर वाहन उद्योग के कुछ हिस्सों, जैसे सिलेंडर हेड्स (उपयोग में गिरावट), सिलेंडर ब्लॉक और गियरबॉक्स के डब्बे (केसेज)(उपयोग में गिरावट) में इसका प्रयोग किया जाता है। यह ऑक्सीकरण (जंग) के द्वारा क्षय होने और कमजोर हो जाने में प्रतिरोधी है। . धातुओं के अनेकानेक गुण सूक्ष्मदर्शी की सहायता से ज्ञात किए जा सकते हैं। सूक्ष्मदर्शी द्वारा धातुपरीक्षण की इस विधि को धातु-रचना-विज्ञान (Metallography) कहते हैं। इसके द्वारा धातुओं अथवा मिश्र धातुओं की आंतरिक रचना, अथवा उनपर उष्मोपचार के प्रभाव का अध्ययन किया जाता है। इस कार्य के लिए जो सूक्ष्मदर्शी उपयोग में लाए जाते हैं उनका निर्माण जीवविज्ञान इत्यादि में प्रयुक्त होनेवाले सूक्ष्मदर्शियों से भिन्न होता है। धातुएँ परांध होती हैं। प्रकाश की किरणें उनमें से पार नहीं हो सकती। इसलिए यहाँ पर परावर्तन सिद्धांत का उपयोग किया जाता है, जिससे निदर्श (specimen) पर पड़नेवाली प्रकाश की किरणें परावर्तित होकर मनुष्य के नेत्र तक पहुँचती हैं। धातुओं के सूक्ष्मदर्शियों परीक्षण के लिए पहले उन्हें लगभग 1/2 इंच घनाकार टुकड़े के रूप में काट लेते हैं। इस टुकड़े को निदर्श कहते हैं। तत्पश्चात्‌ निदर्श एमरी रेगमाल (emery paper) से अच्छी तरह पालिश किया जाता है। इसके बाद पालिश चक्र पर इसे शीशे की तरह चमक दी जाती है। अब निदर्श सूक्ष्मदर्शी परीक्षण के लिए तैयार हो गया। इस रूप में इसे सूक्ष्मदर्शी द्वारा देखने से उसमें विद्यमान छिद्र, विजातीय पदार्थ अथवा धातुमल इत्यादि दिखलाई पड़ते हैं। फलक में पिटवां लोहे का एक सूक्ष्म आलेख (micrograph) दिखाया गया है। इसमें ग्रैफाइट के काले रेशे दिखाई दे रहे हैं। केवल पालिश की हुई सतह से धातु की आंतरिक संरचना नहीं दिखाई पड़ती, इसलिए इसे किसी रासायनिक विलयन से निक्षारित (etch) किया जाता है। निक्षारण के पश्चात्‌ धातु की आंतरिक संरचना दिखाई पड़ने लगती है। फलक में पिटवाँ लोहे का निक्षारित सूक्ष्म आलेख दिखलाया गया है। अन्य चित्रों में क्रमश: मृदु तथा कठोर इस्पात की सूक्ष्म संरचना (micro-structure) देखी जा सकती है। अब धातुरचना का क्षेत्र बहुत विस्तृत हो गया है और नए नए प्रकार के सूक्ष्मदर्शी उपयोग में लाए जाने लगे हैं। इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी द्वारा धातुओं की संरचना को एक लाख गुना आवर्धित किया जा सकता है। एक्सरे द्वारा भी धातुओं की आंतरिक संरचना के अध्ययन में बहुत सहायता मिली है। .

ढलवां लोहा और धातुरचना विज्ञान के बीच समानता

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संदर्भ

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