ज्ञान और निगमनात्मक तर्क
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ज्ञान और निगमनात्मक तर्क के बीच अंतर
ज्ञान vs. निगमनात्मक तर्क
निरपेक्ष सत्य की स्वानुभूति ही ज्ञान है। यह प्रिय अप्रिय सुख-दू:ख इत्यादि भावों से निरपेक्ष होता है। इसका विभाजन विषयों के आधार पर होता है। विषय पाँच होते हैं - रूप, रस, गंध, शब्द और स्पर्श। ज्ञान लोगों के भौतिक तथा बौद्धिक सामाजिक क्रियाकलाप की उपज; संकेतों के रूप में जगत के वस्तुनिष्ठ गुणों और संबंधों, प्राकृतिक और मानवीय तत्त्वों के बारे में विचारों की अभिव्यक्ति है। ज्ञान दैनंदिन तथा वैज्ञानिक हो सकता है। वैज्ञानिक ज्ञान आनुभविक और सैद्धांतिक वर्गों में विभक्त होता है। इसके अलावा समाज में ज्ञान की मिथकीय, कलात्मक, धार्मिक तथा अन्य कई अनुभूतियाँ होती हैं। सिद्धांततः सामाजिक-ऐतिहासिक अवस्थाओं पर मनुष्य के क्रियाकलाप की निर्भरता को प्रकट किये बिना ज्ञान के सार को नहीं समझा जा सकता है। ज्ञान में मनुष्य की सामाजिक शक्ति संचित होती है, निश्चित रूप धारण करती है तथा विषयीकृत होती है। यह तथ्य मनुष्य के बौद्धिक कार्यकलाप की प्रमुखता और आत्मनिर्भर स्वरूप के बारे में आत्मगत-प्रत्ययवादी सिद्धांतों का आधार है। gyan . तर्क की जिस प्रक्रिया में एक या अधिक ज्ञात सामान्य कथनों के आधार पर किसी निश्चित निष्कर्ष पर पहुँचा जाता है, निगमनात्मक तर्क (Deductive reasoning या deductive logic) कहते हैं। 'निगमनात्मक तर्क', 'आगमनात्मक तर्क' से बिलकुल भिन्न है। नीचे एक निगमनात्मक तर्क दिया गया है-: 1.
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संदर्भ
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