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जार्ज विल्हेम फ्रेड्रिक हेगेल और नवहेगेलवाद

शॉर्टकट: मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ

जार्ज विल्हेम फ्रेड्रिक हेगेल और नवहेगेलवाद के बीच अंतर

जार्ज विल्हेम फ्रेड्रिक हेगेल vs. नवहेगेलवाद

जार्ज विलहेम फ्रेड्रिक हेगेल (1770-1831) सुप्रसिद्ध दार्शनिक थे। वे कई वर्ष तक बर्लिन विश्वविद्यालय में प्राध्यापक रहे और उनका देहावसान भी उसी नगर में हुआ। . नवहेगेलवाद (neo-Hegelianism) 19वीं तथा 20वीं शताब्दी ईसवी में अंग्रेज़ तथा अमरीकन विचारकों में प्रचलित एक प्रकार का दार्शनिक दृष्टिकोण जिसके तार्किक आधार मूलत: वे ही समझे जाते हैं और जिनका उपयोग जर्मन दार्शनिक हेगेल ने अपने सिद्धांतों के निर्माण में किया था। नवहेगेलवाद का स्पष्ट जन्म इंग्लैंड में 1865 में जेम्ज़ हचिंसन स्टर्लिग द्वारा हेगेल रहस्य विषयक ग्रंथ के प्रकाशन से हुआ। स्टर्लिंग ने हेगेल को समस्त मानव चितन विषयों पर नवीन प्रकाश प्रदान करनेवाला घोषित किया। लगभग उसी समय अमरीका में सेंट लुई में विलियम टौरी हैरिस (1835-1909) द्वारा संपादित एक परिकल्पनात्मक दर्शन पत्रिका ने और कौर्नफ़ोर्ड दर्शन एवं साहित्य मंडल ने हेगेल को समस्त मानव चिंतन विषयों पर नवीन प्रकाश प्रदान करनेवाला घोषित किया। लगभग उसी समय अमरीका में सेंट लुई में विलियम टौरी हैरिस (1835-1909) द्वारा संपादित एक परिकल्पनात्मक दर्शन पत्रिका ने और कौर्नफ़ोर्ड दर्शन एवं साहित्य मंडल ने हेगेल का प्रचार आरंभ किया। इनका हेगेल से धर्म में परंपरावाद और विज्ञान में प्रकृतिवाद का विरोध करने की शक्ति प्राप्त हुई और राजनीति के क्षेत्र में यह प्रेरणा प्राप्त हुई कि व्यक्ति की स्वतंत्रता मनमाने व्यवहार में नहीं, स्थापित राज्यनियम में अभिव्यक्तिप्राप्त जीवन के विकास में है। परंतु नवहेगेलवाद के प्रमुख प्रतिपादक इंग्लैंड में टौमस हिल ग्रीन (1836-1882), एडवर्ड केयर्ड (1835-1908), जौन रोलिस मैक्टैगार्ट (1866-1925), फ्रांसिस हर्बर्ट ब्रैडले (1846-1924) तथा बर्नर्ड बोसंकेट (1848-1923) और अमरीका में जोज़िया रौयस (1855-1916) तथा जेम्ज़ राड्विन क्रेटन (1861-1924) हुए हैं। नवहेगेलवाद को परमनिरपेक्ष अध्यात्मवाद भी कहा जाता है। इसकी विशेष मान्यता यह है कि परमनिरपेक्ष ही अंतिम तत्व है और परमनिरपेक्ष संपूर्ण तंत्र अथवा विश्व भी है, मानसिक अथवा आध्यात्मिक भी और एक भी, सभी वास्तविक पदार्थ और विशेषतया आदर्श अर्थात्‌ मूल्यांकन विषय एवं प्रत्यय अर्थात्‌ बोध विषय उसके अंदर हैं। उसका विश्व के प्रत्येक प्रदेश में निवास है। इसके अतिरिक्त परमनिरपेक्ष की यह धारणा अनुभवाधारित तथा अनुभवगत विषमता से परिपूर्ण है नवहेगेलवादी हेगेल के द्वंद्वात्मक तर्क के इस मूल आधार सिद्धांत से अत्यंत प्रभावित थे कि प्रत्येक तार्किक तथ्य में एक तृतीय अंग अथवा चरण होता है जिसे हेगेल ने परिकल्पनात्मक अथवा तथ्यात्मक बुद्धि का चरण कहा है, जिसमें विरोधी तत्वों की एकता अर्थात्‌ अभाव में भाव का बोध होता है, जो सब अमूर्त्त स्वरूपों को एकता के ठोस मूर्त्त सूत्र में बाँधकर ग्रहण करनेवाला है, जिसमें स्वयंभू ज्ञाता एवं स्वयंभू ज्ञेयतत्व का विरोध मिट जाता है, जिसमें अस्तित्व शुद्ध प्रत्यय के रूप में और शुद्ध प्रत्यय के रूप में और शुद्ध प्रत्यय अस्तित्व के रूप में ज्ञात हो जाता है और जिसमें सत्य मूलतत्व अपने ही विकास द्वारा अपनी पूर्णता को प्राप्त होता हुआ संपूर्ण रूपी मूलतत्व है। नवहेगेलवादी दार्शनिक पूरी तरह हेगेलवादी कहलाने को तैयार नहीं थे। विशेषतया उनमें से किसी को भी हेगेल के द्वंद्वात्मक तर्कं की आकृतिक रूपरेखा को अपनाना स्वीकार नहीं हुआ। अत: उन्होंने हेगेलवादी तर्कशास्त्र की एक नवीन, स्वतंत्र, स्पष्टतर एवं अधिक विश्वासोत्पादक रूप में व्याख्या करने का प्रयत्न किया। इस नवव्याख्या के तीन मुख्य सिद्धांत हैं। एक यह कि जो बुद्धि को संतुष्ट कर दे वही सत्य है और उसी का अंतिम अस्तित्व है। इस सिद्धांत के अनुसार सत्यता अस्तित्व में कोई अंतर नहीं है। प्रत्येक तर्कवाक्य का उद्देश्य वास्तवता ही है। दूसरा सिद्धांत यह है किसी किसी तार्किक निर्णय का एक निकट उद्देश्य और एक दूरस्थ उद्देश्य होता है। परंतु यह दोनों एक ही संपूर्ण के अंश होते हैं और निर्णय इस संपूर्ण के विषय में ही हुआ करता है। इस संपूर्ण को नवहेगेलवादियों ने 'मूर्त्त सर्वव्यापी' कहा है। इसके विचारानुसार यह वास्तवतंत्र है। इसमें प्रत्ययों के बाह्यार्थ और अंतरार्थ होते हैं और वे परस्पर प्रकार्यात्मक संबंधों में बँधे रहते हैं। तर्क इस तंत्र के अंदर ही विभिन्न पदों और संबंधों के बीच चला करता है। परमनिरपेक्षवादियों ने सभी संबंधों को आंतरिक माना है और संबंधों की आंतरिकता के इस सिद्धांत की पूर्ति परमनिरपेक्ष की धारणा में ही समझी है। नवहेगेलवाद का तृतीय मुख्य सिद्धांत यह है कि बोध तथा मूल्यांकन मन की एक ही बौद्धिक क्रिया के दो अविच्छेद्य अंग हैं। इसलिए सत्य और मूल्य अर्थात्‌ अर्थ दोनों की कसौटी एक ही है और वह है संपूर्णता अर्थात्‌ अव्याघात। विचार संकल्प और भाव में और संकल्प अथवा भाव विचार में ही विश्राम प्राप्त करेगा। .

जार्ज विल्हेम फ्रेड्रिक हेगेल और नवहेगेलवाद के बीच समानता

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संदर्भ

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