15 संबंधों: त्रिपिटक, धर्म, नीति, बुद्धघोष, बौद्ध ग्रंथ, बोधिसत्व, भरहुत, महाकाव्य, शुनःशेप, साँची का स्तूप, सुत्तपिटक, खण्डकाव्य, खुद्दकनिकाय, गौतम बुद्ध, अट्टकथा।
त्रिपिटक
त्रिपिटक (पाली:तिपिटक; शाब्दिक अर्थ: तीन पिटारी) बौद्ध धर्म का प्रमुख ग्रंथ है जिसे सभी बौद्ध सम्प्रदाय (महायान, थेरवाद, बज्रयान, मूलसर्वास्तिवाद, नवयान आदि) मानते है। यह बौद्ध धर्म के प्राचीनतम ग्रंथ है जिसमें भगवान बुद्ध के उपदेश संग्रहीत है। यह ग्रंथ पालि भाषा में लिखा गया है और विभिन्न भाषाओं में अनुवादित है। इस ग्रंथ में भगवान बुद्ध द्वारा बुद्धत्त्व प्राप्त करने के समय से महापरिनिर्वाण तक दिए हुए प्रवचनों को संग्रहित किया गया है। त्रिपीटक का रचनाकाल या निर्माणकाल ईसा पूर्व 100 से ईसा पूर्व 500 है। .
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धर्म
धर्मचक्र (गुमेत संग्रहालय, पेरिस) धर्म का अर्थ होता है, धारण, अर्थात जिसे धारण किया जा सके, धर्म,कर्म प्रधान है। गुणों को जो प्रदर्शित करे वह धर्म है। धर्म को गुण भी कह सकते हैं। यहाँ उल्लेखनीय है कि धर्म शब्द में गुण अर्थ केवल मानव से संबंधित नहीं। पदार्थ के लिए भी धर्म शब्द प्रयुक्त होता है यथा पानी का धर्म है बहना, अग्नि का धर्म है प्रकाश, उष्मा देना और संपर्क में आने वाली वस्तु को जलाना। व्यापकता के दृष्टिकोण से धर्म को गुण कहना सजीव, निर्जीव दोनों के अर्थ में नितांत ही उपयुक्त है। धर्म सार्वभौमिक होता है। पदार्थ हो या मानव पूरी पृथ्वी के किसी भी कोने में बैठे मानव या पदार्थ का धर्म एक ही होता है। उसके देश, रंग रूप की कोई बाधा नहीं है। धर्म सार्वकालिक होता है यानी कि प्रत्येक काल में युग में धर्म का स्वरूप वही रहता है। धर्म कभी बदलता नहीं है। उदाहरण के लिए पानी, अग्नि आदि पदार्थ का धर्म सृष्टि निर्माण से आज पर्यन्त समान है। धर्म और सम्प्रदाय में मूलभूत अंतर है। धर्म का अर्थ जब गुण और जीवन में धारण करने योग्य होता है तो वह प्रत्येक मानव के लिए समान होना चाहिए। जब पदार्थ का धर्म सार्वभौमिक है तो मानव जाति के लिए भी तो इसकी सार्वभौमिकता होनी चाहिए। अतः मानव के सन्दर्भ में धर्म की बात करें तो वह केवल मानव धर्म है। हिन्दू, मुस्लिम, ईसाई, जैन या बौद्ध आदि धर्म न होकर सम्प्रदाय या समुदाय मात्र हैं। “सम्प्रदाय” एक परम्परा के मानने वालों का समूह है। (पालि: धम्म) भारतीय संस्कृति और दर्शन की प्रमुख संकल्पना है। 'धर्म' शब्द का पश्चिमी भाषाओं में कोई तुल्य शब्द पाना बहुत कठिन है। साधारण शब्दों में धर्म के बहुत से अर्थ हैं जिनमें से कुछ ये हैं- कर्तव्य, अहिंसा, न्याय, सदाचरण, सद्-गुण आदि। .
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नीति
उचित समय और उचित स्थान पर उचित कार्य करने की कला को नीति (Policy) कहते हैं। नीति, सोचसमझकर बनाये गये सिद्धान्तों की प्रणाली है जो उचित निर्णय लेने और सम्यक परिणाम पाने में मदद करती है। नीति में अभिप्राय का स्पष्ट उल्लेख होता है। नीति को एक प्रक्रिया (procedure) या नयाचार (नय+आचार / protocol) की तरह लागू किया जाता है। .
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बुद्धघोष
बुद्धघोष, पालि साहित्य के एक महान भारतीय बौद्धाचार्य और विद्वान थे। .
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बौद्ध ग्रंथ
बौद्ध धर्म और बौद्ध दर्शन से संबन्धित ग्रंथ प्रागैतिहासिक काल से लिखे गये हैं। ये संस्कृत, पालि तथा अन्य कई भाषाओं में लिखे या अनूदित किये गये हैं। .
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बोधिसत्व
बौद्ध धर्म में, बोधिसत्व (बोधिसत्त्व; बोधिसत्त) सत्त्व के लिए प्रबुद्ध (शिक्षा दिये हुये) को कहते हैं। पारम्परिक रूप से महान दया से प्रेरित, बोधिचित्त जनित, सभी संवेदनशील प्राणियों के लाभ के लिए सहज इच्छा से बुद्धत्व प्राप्त करने वाले को बोधिसत्व माना जाता है। तिब्बती बौद्ध धर्म के अनुसार, बोधिसत्व मानव द्वारा जीवन में प्राप्त करने योग्य चार उत्कृष्ठ अवस्थाओं में से एक है। बोधिसत्व शब्द का उपयोग समय के साथ विकसित हुआ। प्राचीन भारतीय बौद्ध धर्म के अनुसार, उदाहरण के लिए गौतम बुद्ध के पूर्व जीवन को विशिष्ट रूप से प्रदर्शित करने के लिए काम में लिया जाता था।http://www.britannica.com/EBchecked/topic/70982/bodhisattva दस पारमिताओं का पूर्ण पालन करने वाला बोधिसत्व कहलाता है। बोधिसत्व जब दस बलों या भूमियों (मुदिता, विमला, दीप्ति, अर्चिष्मती, सुदुर्जया, अभिमुखी, दूरंगमा, अचल, साधुमती, धम्म-मेघा) को प्राप्त कर लेते हैं तब " गौतम बुद्ध " कहलाते हैं, बुद्ध बनना ही बोधिसत्व के जीवन की पराकाष्ठा है। इस पहचान को बोधि (ज्ञान) नाम दिया गया है। कहा जाता है कि बुद्ध शाक्यमुनि केवल एक बुद्ध हैं - उनके पहले बहुत सारे थे और भविष्य में और होंगे। उनका कहना था कि कोई भी बुद्ध बन सकता है अगर वह दस पारमिताओं का पूर्ण पालन करते हुए बोधिसत्व प्राप्त करे और बोधिसत्व के बाद दस बलों या भूमियों को प्राप्त करे। बौद्ध धर्म का अन्तिम लक्ष्य है सम्पूर्ण मानव समाज से दुःख का अंत। "मैं केवल एक ही पदार्थ सिखाता हूँ - दुःख है, दुःख का कारण है, दुःख का निरोध है, और दुःख के निरोध का मार्ग है" (बुद्ध)। बौद्ध धर्म के अनुयायी अष्टांगिक मार्ग पर चलकर न के अनुसार जीकर अज्ञानता और दुःख से मुक्ति और निर्वाण पाने की कोशिश करते हैं। .
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भरहुत
भरहुत भारत के मध्य प्रदेश राज्य में सतना जिले में स्थित एक स्थल है। यह स्थान बौद्ध स्तूप और कलाकृतियों के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ का स्तूप सम्भवतः अशोक द्वारा तीसरी शताब्दी ईसापूर्व निर्मित किया गया था। श्री कनिंघम ने सर्वप्रथम 1873 ई. में इस स्थल का पता लगाया था। .
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महाकाव्य
संस्कृत काव्यशास्त्र में महाकाव्य (एपिक) का प्रथम सूत्रबद्ध लक्षण आचार्य भामह ने प्रस्तुत किया है और परवर्ती आचार्यों में दंडी, रुद्रट तथा विश्वनाथ ने अपने अपने ढंग से इस महाकाव्य(एपिक)सूत्रबद्ध के लक्षण का विस्तार किया है। आचार्य विश्वनाथ का लक्षण निरूपण इस परंपरा में अंतिम होने के कारण सभी पूर्ववर्ती मतों के सारसंकलन के रूप में उपलब्ध है।महाकाव्य में भारत को भारतवर्ष अथवा भरत का देश कहा गया है तथा भारत निवासियों को भारती अथवा भरत की संतान कहा गया है .
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शुनःशेप
शुनःशेप ऐतरेय ब्राह्मण में स्थित एक आख्यान है। इसका सारांश यह है कि जब तक मृत्यु सामने न आये तब तक रूपान्तरण नहीं होता। यह आख्यान मानवीय लोभ, बेइमानी और उससे ऊपर उठने की क्षमता की कथा है। .
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साँची का स्तूप
सांची भारत के मध्य प्रदेश राज्य के रायसेन जिले, में बेतवा नदी के तट स्थित एक छोटा सा गांव है। यह भोपाल से ४६ कि॰मी॰ पूर्वोत्तर में, तथा बेसनगर और विदिशा से १० कि॰मी॰ की दूरी पर मध्य प्रदेश के मध्य भाग में स्थित है। यहां कई बौद्ध स्मारक हैं, जो तीसरी शताब्दी ई.पू.
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सुत्तपिटक
सुत्तपिटक बौद्ध धर्म का एक ग्रंथ है। यह ग्रंथ त्रिपिटक के तीन भागों में से एक है। सुत्त पिटक में तर्क और संवादों के रूप में भगवान बुद्ध के सिद्धांतों का संग्रह है। इनमें गद्य संवाद हैं, मुक्तक छन्द हैं तथा छोटी-छोटी प्राचीन कहानियाँ हैं। यह पाँच निकायों या संग्रहों में विभक्त है। । .
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खण्डकाव्य
खण्डकाव्य साहित्य में प्रबंध काव्य का एक रूप है। जीवन की किसी घटना विशेष को लेकर लिखा गया काव्य खण्डकाव्य है। "खण्ड काव्य' शब्द से ही स्पष्ट होता है कि इसमें मानव जीवन की किसी एक ही घटना की प्रधानता रहती है। जिसमें चरित नायक का जीवन सम्पूर्ण रूप में कवि को प्रभावित नहीं करता। कवि चरित नायक के जीवन की किसी सर्वोत्कृष्ट घटना से प्रभावित होकर जीवन के उस खण्ड विशेष का अपने काव्य में पूर्णतया उद्घाटन करता है। प्रबन्धात्मकता महाकाव्य एवं खण्ड काव्य दोनों में ही रहती है परंतु खण्ड काव्य के कथासूत्र में जीवन की अनेकरुपता नहीं होती। इसलिए इसका कथानक कहानी की भाँति शीघ्रतापूर्वक अन्त की ओर जाता है। महाकाव्य प्रमुख कथा केसाथ अन्य अनेक प्रासंगिक कथायें भी जुड़ी रहती हैं इसलिए इसका कथानक उपन्यास की भाँति धीरे-धीरे फलागम की ओर अग्रसर होता है। खण्डाकाव्य में केवल एक प्रमुख कथा रहती है, प्रासंगिक कथाओं को इसमें स्थान नहीं मिलने पाता है। संस्कृत साहित्य में इसकी जो एकमात्र परिभाषा साहित्य दर्पण में उपलब्ध है वह इस प्रकार है- इस परिभाषा के अनुसार किसी भाषा या उपभाषा में सर्गबद्ध एवं एक कथा का निरूपक ऐसा पद्यात्मक ग्रंथ जिसमें सभी संधियां न हों वह खंडकाव्य है। वह महाकाव्य के केवल एक अंश का ही अनुसरण करता है। तदनुसार हिंदी के कतिपय आचार्य खंडकाव्य ऐसे काव्य को मानते हैं जिसकी रचना तो महाकाव्य के ढंग पर की गई हो पर उसमें समग्र जीवन न ग्रहण कर केवल उसका खंड विशेष ही ग्रहण किया गया हो। अर्थात् खंडकाव्य में एक खंड जीवन इस प्रकार व्यक्त किया जाता है जिससे वह प्रस्तुत रचना के रूप में स्वत: प्रतीत हो। वस्तुत: खंडकाव्य एक ऐसा पद्यबद्ध काव्य है जिसके कथानक में एकात्मक अन्विति हो; कथा में एकांगिता (साहित्य दर्पण के शब्दों में एकदेशीयता) हो तथा कथाविन्यास क्रम में आरंभ, विकास, चरम सीमा और निश्चित उद्देश्य में परिणति हो और वह आकार में लघु हो। लघुता के मापदंड के रूप में आठ से कम सर्गों के प्रबंधकाव्य को खंडकाव्य माना जाता है। .
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खुद्दकनिकाय
खुद्दकनिकाय (पालि भाषा:खुद्दक.
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गौतम बुद्ध
गौतम बुद्ध (जन्म 563 ईसा पूर्व – निर्वाण 483 ईसा पूर्व) एक श्रमण थे जिनकी शिक्षाओं पर बौद्ध धर्म का प्रचलन हुआ। उनका जन्म लुंबिनी में 563 ईसा पूर्व इक्ष्वाकु वंशीय क्षत्रिय शाक्य कुल के राजा शुद्धोधन के घर में हुआ था। उनकी माँ का नाम महामाया था जो कोलीय वंश से थी जिनका इनके जन्म के सात दिन बाद निधन हुआ, उनका पालन महारानी की छोटी सगी बहन महाप्रजापती गौतमी ने किया। सिद्धार्थ विवाहोपरांत एक मात्र प्रथम नवजात शिशु राहुल और पत्नी यशोधरा को त्यागकर संसार को जरा, मरण, दुखों से मुक्ति दिलाने के मार्ग की तलाश एवं सत्य दिव्य ज्ञान खोज में रात में राजपाठ छोड़कर जंगल चले गए। वर्षों की कठोर साधना के पश्चात बोध गया (बिहार) में बोधि वृक्ष के नीचे उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई और वे सिद्धार्थ गौतम से बुद्ध बन गए। .
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अट्टकथा
अट्ठकथा (अर्थकथा) पालि ग्रंथों पर लिखे गए भाष्य हैं। मूल पाठ की व्याख्या स्पष्ट करने के लिए पहले उससे संबद्ध कथा का उल्लेख कर दिया जाता है, फिर उसके शब्दों के अर्थ बताए जाते हैं। त्रिपिटक के प्रत्येक ग्रंथ पर ऐसी अट्ठकथा प्राप्त होती है। अट्ठकथा की परंपरा मूलतः कदाचित् लंका में सिंहल भाषा में प्रचलित हुई थी। आगे चलकर जब भारतवर्ष में बौद्ध धर्म का ह्रास होने लगा तब लंका से अट्ठकथा लाने की आवश्यकता हुई। इसके लिए चौथी शताब्दी में आचार्य रेवत ने अपने प्रतिभाशाली शिष्य बुद्धघोष को लंका भेजा। बुद्धघोष ने विसुद्धिमग्ग जैसा प्रौढ़ ग्रंथ लिखकर लंका के स्थविरों को संतुष्ट किया और सिंहली ग्रंथों के पालि अनुवाद करने में उनका सहयोग प्राप्त किया। आचार्य बुद्धदत्त और धम्मपाल ने भी इसी परंपरा में कतिपय ग्रंथों पर अट्ठकथाएँ लिखीं। .
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