ज़्याक शिराक और धर्म (पंथ)
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ज़्याक शिराक और धर्म (पंथ) के बीच अंतर
ज़्याक शिराक vs. धर्म (पंथ)
राष्ट्रपति शिराक ज़्याक शिराक (फ़्रांसिसी:, अन्तर्राष्ट्रीय ध्वन्यात्मक लिपि) फ्राँस के राष्ट्रपति हैं। अपने राजनीतिक जीवन में वे दो बार देश के प्रधानमंत्री भी रह चुके हैं। उन्होने 1976 में अपनी पार्टी आरपीआर की स्थापना की थी और 18 वर्षों तक पेरिस के मेयर पद पर आसीन रहे। शिराक मतदाताओं के बीच लोकप्रिय रहे हैं। जनरल डि गॉल से प्रेरित होकर सार्वजनिक जीवन में आए शिराक 1960 के अंत तक वित्त मंत्री बन गए थे। और वे देश की और यूरोपीय संसदों दोनों में रह चुके हैं। खाने का विशेष शौक, दिल को छूने वाली मुस्कुराहट औरतों के साथ उनके संबंध, उनसे प्रेम करने वाली पत्नी और बेटियाँ, सूमो कुश्ती में उनका विशेष रुझान - सबने उनकी लंबे समय से लोकप्रिय छवि बनाने में मदद की है। उम्र और विभिन्न कांडों के बावजूद राष्ट्रपति पद के लिए दोबारा चुना जाना उनके अनुभव भरे जीवन की सफलता का गवाह है। शिराक की नैतिकता पर प्रश्न उठते रहे हैं उनका एक उपनाम है 'कमेलियन बोनापार्ट' यानि 'गिरगिट'। 1997 में बगैर किसी प्रत्यक्ष कारण के शिराक ने नेशनल असेंब्ली ख़त्म कर दी जिसकी दक्षिण पंथी बहुमत के तीन साल बाकी थे। तुरंत बाद उनके समर्थक चुनाव हार गए। और राष्ट्रपति पद के आखिरी पाँच सालों में हाथ पर हाथ धरे बैठे रहे। ज़्याक शिराक पर पेरिस के मेयर होने के दौरान पार्टी के लिए ग़लत तरीकों से पैसे उगाहने का आरोप है। लेकिन लगातार सबूत देने की माँग को वे यह कह कर टालते रहे हैं कि वे निर्दोष हैं और चाहते हुए भी राष्ट्रपति का पद उन्हे गवाही देने से रोकता है। . अनेक धर्म का चिह्न प्रमुख धर्मों के अनुयायियों का प्रतिशत धर्म (या मज़हब) किसी एक या अधिक परलौकिक शक्ति में विश्वास और इसके साथ-साथ उसके साथ जुड़ी रीति, रिवाज, परम्परा, पूजा-पद्धति और दर्शन का समूह है। इस संबंध में प्रोफ़ेसर महावीर सरन जैन का अभिमत है कि आज धर्म के जिस रूप को प्रचारित एवं व्याख्यायित किया जा रहा है उससे बचने की जरूरत है। वास्तव में धर्म संप्रदाय नहीं है। ज़िंदगी में हमें जो धारण करना चाहिए, वही धर्म है। नैतिक मूल्यों का आचरण ही धर्म है। धर्म वह पवित्र अनुष्ठान है जिससे चेतना का शुद्धिकरण होता है। धर्म वह तत्व है जिसके आचरण से व्यक्ति अपने जीवन को चरितार्थ कर पाता है। यह मनुष्य में मानवीय गुणों के विकास की प्रभावना है, सार्वभौम चेतना का सत्संकल्प है। मध्ययुग में विकसित धर्म एवं दर्शन के परम्परागत स्वरूप एवं धारणाओं के प्रति आज के व्यक्ति की आस्था कम होती जा रही है। मध्ययुगीन धर्म एवं दर्शन के प्रमुख प्रतिमान थे- स्वर्ग की कल्पना, सृष्टि एवं जीवों के कर्ता रूप में ईश्वर की कल्पना, वर्तमान जीवन की निरर्थकता का बोध, अपने देश एवं काल की माया एवं प्रपंचों से परिपूर्ण अवधारणा। उस युग में व्यक्ति का ध्यान अपने श्रेष्ठ आचरण, श्रम एवं पुरुषार्थ द्वारा अपने वर्तमान जीवन की समस्याओं का समाधान करने की ओर कम था, अपने आराध्य की स्तुति एवं जय गान करने में अधिक था। धर्म के व्याख्याताओं ने संसार के प्रत्येक क्रियाकलाप को ईश्वर की इच्छा माना तथा मनुष्य को ईश्वर के हाथों की कठपुतली के रूप में स्वीकार किया। दार्शनिकों ने व्यक्ति के वर्तमान जीवन की विपन्नता का हेतु 'कर्म-सिद्धान्त' के सूत्र में प्रतिपादित किया। इसकी परिणति मध्ययुग में यह हुई कि वर्तमान की सारी मुसीबतों का कारण 'भाग्य' अथवा ईश्वर की मर्जी को मान लिया गया। धर्म के ठेकेदारों ने पुरुषार्थवादी-मार्ग के मुख्य-द्वार पर ताला लगा दिया। समाज या देश की विपन्नता को उसकी नियति मान लिया गया। समाज स्वयं भी भाग्यवादी बनकर अपनी सुख-दुःखात्मक स्थितियों से सन्तोष करता रहा। आज के युग ने यह चेतना प्रदान की है कि विकास का रास्ता हमें स्वयं बनाना है। किसी समाज या देश की समस्याओं का समाधान कर्म-कौशल, व्यवस्था-परिवर्तन, वैज्ञानिक तथा तकनीकी विकास, परिश्रम तथा निष्ठा से सम्भव है। आज के मनुष्य की रुचि अपने वर्तमान जीवन को सँवारने में अधिक है। उसका ध्यान 'भविष्योन्मुखी' न होकर वर्तमान में है। वह दिव्यताओं को अपनी ही धरती पर उतार लाने के प्रयास में लगा हुआ है। वह पृथ्वी को ही स्वर्ग बना देने के लिए बेताब है। .
ज़्याक शिराक और धर्म (पंथ) के बीच समानता
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