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जलविज्ञान और भूविज्ञान

शॉर्टकट: मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ

जलविज्ञान और भूविज्ञान के बीच अंतर

जलविज्ञान vs. भूविज्ञान

जलविज्ञान (Hydrology) विज्ञान की वह शाखा है जो जल के उत्पादन, आदान-प्रदान, स्त्रोत, सरिता, विलीनता, वाष्पता, हिमपात, उतारचढ़ाव, प्रपात, बाँध, संभरण तथा मापन आदि से संबंधित है। जो जल वृष्टि द्वारा पृथ्वी पर गिरता है, वह प्रथम तो भूमि के प्राकृतिक गुरुत्व के कारण या तो भूमि के अंतस्तल में प्रविष्ट हो जाता है, या नाली और नालिकाओं द्वारा नदियों में जा गिरता है और वहाँ से पुन: सागरों में प्रवेश करता है। कुछ जल वाष्प रूप में वायुमंडल में मिश्रित हो जाता है, कुछ वनस्पतियों द्वारा भूगर्भ से खिंचकर वायु के संपर्क से वाष्प रूप में परिवर्तित हो जाता है। पृथ्वी के अंतस्तल में प्रविष्ट जल का कुछ अंश स्त्रोतों द्वारा प्रकट होकर नदी, नालों या अन्य नीचे स्थलों पर प्रवाहित या संकलित होने लगता है। जब जल की मात्रा किसी कारण बहुत बढ़ जाती है, तो नदी, नाले बाढ़ अथवा बढ़ोत्तरी के रूप में बह निकलते हैं और यदाकदा बड़ी क्षति पहुँचाते हैं। वैसे तो पानी का बहाव प्रकृति के अकाट्य नियमों के अंतर्गत होता है, किंतु प्रत्येक स्थल की भूमि की रूपरेखा, वनस्पति, आबहवा और मनुष्य द्वारा बनाए हुए साधनों के कारण, पानी के बहाव में बहुत परिवर्तन हो जाता है। यदि किसी जगह कोई रोक हो तो उस रोक के कारण, पानी के बहाव का वेग बढ़ना आवश्यक है। इसीलिये पानी की वेगवती धारा के संपर्क में बड़ी बड़ी चट्टानें भी धीरे धीरे घुल जाती हैं। इसी कारण नदियों के मुहानों पर नदियों द्वारा लाई हुई रेत से नई भूमि बनती जाती है, जिसको डेल्टा (delta) कहते हैं। वास्तव में पृथ्वी पर बड़े बड़े मैदान, जैसे उत्तरी भारत में गंगा और सिंधु के विशाल मैदान, हिमालय से लाई हुई रेत के बने हुए हैं। इस बनावट में सहस्त्रों क्या करोड़ों वर्ष लगे होंगे। अब भी गंगा के मुहाने पर सुंदरवन आदि के क्षेत्र प्राकृतिक जलागमन द्वारा ही बढ़ते चले जा रहे हैं। पृथ्वी के अंतस्तल में भी जल की अनेक परतें स्थित हैं। कहीं कहीं जल पृथ्वी तल के समीप मिलता है और कहीं पर अधिक गहराई में। इस क्षेत्र में जलविज्ञान का संबंध भूगर्भ विद्या से हो जाता है। जलोत्पादन के निमित्त जहाँ बड़े बड़े कूप खोदे जाते हैं या कृत्रिम नलकूप बनाए जाते हैं, वहाँ यह प्रकट हाता है कि रेत की परतों में जो जल विद्यमान है, वह अवसर मिलने पर साधारण जलस्त्रोत के तल तक आ जाता है। कभी कभी जल पृथ्वी के गर्भ में प्रविष्ट होकर वहाँ उसी दशा में सहस्त्रों वर्ष पड़ा रहता है। कुछ जलराशि धीरे धीरे समुद्र की ओर भूगर्भ में प्रवाहित होती रहती है। इस दिशा में जलविज्ञान की प्रगति अभी बहुत सीमित है। प्रवाहित जल का मापन भी जलविज्ञान का एक विशेष अंग है। इसका प्रयोग विशेषत: भूमिसिंचन के साधनों में जलविद्युत्, पनचक्की आदि में होता है। आजकल के युग में तो बहुत से कारखानों में भी जल का प्रयोग ठंडक पहुँचाने अथवा जल द्वारा चालित मशीनों को चलाने के लिये होता है। अत: भिन्न भिन्न प्रकार की जलमापन की विधियों का होना अनिवार्य है। बड़ी नदियों में जब बाढ़ आती है, उस समय जलमापन एक समस्या बन जाता है, क्योंकि नदियों के तल में रेत और मिट्टी भी जल के साथ बहती चलती है। वैसे जलमापन के निमित्त बहुत से यंत्र बन चुके हैं, जैसे धारावेगमापी (Current meter) आदि वर्षा द्वारा प्राप्त जल के मापन के लिये जगह जगह यंत्र लगाए जाते हैं, जिससे इस बात का अनुमान हो सके कि कितना जल वर्षा द्वारा प्राप्त होता है, कितना नदियों द्वारा समुद्र में चला जाता हे, कितना भूगर्भ में प्रविष्ट हो जाता हे और कित वाष्प में परिवर्तित होता है। जल के आवागमन का यही ज्ञान साधारणतया जलविज्ञान कहलाता है। . पृथ्वी के भूवैज्ञनिक क्षेत्र पृथ्वी से सम्बंधित ज्ञान ही भूविज्ञान कहलाता है।भूविज्ञान या भौमिकी (Geology) वह विज्ञान है जिसमें ठोस पृथ्वी का निर्माण करने वाली शैलों तथा उन प्रक्रियाओं का अध्ययन किया जाता है जिनसे शैलों, भूपर्पटी और स्थलरूपों का विकास होता है। इसके अंतर्गत पृथ्वी संबंधी अनेकानेक विषय आ जाते हैं जैसे, खनिज शास्त्र, तलछट विज्ञान, भूमापन और खनन इंजीनियरी इत्यादि। इसके अध्ययन बिषयों में से एक मुख्य प्रकरण उन क्रियाओं की विवेचना है जो चिरंतन काल से भूगर्भ में होती चली आ रही हैं एवं जिनके फलस्वरूप भूपृष्ठ का रूप निरंतर परिवर्तित होता रहता है, यद्यपि उसकी गति साधारणतया बहुत ही मंद होती है। अन्य प्रकरणों में पृथ्वी की आयु, भूगर्भ, ज्वालामुखी क्रिया, भूसंचलन, भूकंप और पर्वतनिर्माण, महादेशीय विस्थापन, भौमिकीय काल में जलवायु परिवर्तन तथा हिम युग विशेष उल्लेखनीय हैं। भूविज्ञान में पृथ्वी की उत्पत्ति, उसकी संरचना तथा उसके संघटन एवं शैलों द्वारा व्यक्त उसके इतिहास की विवेचना की जाती है। यह विज्ञान उन प्रक्रमों पर भी प्रकाश डालता है जिनसे शैलों में परिवर्तन आते रहते हैं। इसमें अभिनव जीवों के साथ प्रागैतिहासिक जीवों का संबंध तथा उनकी उत्पत्ति और उनके विकास का अध्ययन भी सम्मिलित है। इसके अंतर्गत पृथ्वी के संघटक पदार्थों, उन पर क्रियाशील शक्तियों तथा उनसे उत्पन्न संरचनाओं, भूपटल की शैलों के वितरण, पृथ्वी के इतिहास (भूवैज्ञानिक कालों) आदि के अध्ययन को सम्मिलित किया जाता है। .

जलविज्ञान और भूविज्ञान के बीच समानता

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संदर्भ

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