जलभर और सिविल इंजीनियरी के बीच समानता
जलभर और सिविल इंजीनियरी आम में 2 बातें हैं (यूनियनपीडिया में): भूजल, जलविज्ञान।
भूजल
भूजल (अंग्रेजी: Groundwater) या भूगर्भिक जल धरती की सतह के नीचे चट्टानों के कणों के बीच के अंतरकाश या रन्ध्राकाश में मौजूद जल को कहते हैं। सामान्यतः जब धरातलीय जल से अंतर दिखाने के लिये इस शब्द का प्रयोग सतह से नीचे स्थित जल (अंग्रेजी: Sub-surface water या Subsurface water) के रूप में होता है तो इसमें मृदा जल को भी शामिल कर लिया जाता है। हालाँकि, यह मृदा जल से अलग होता है जो केवल सतह से नीचे कुछ ही गहराई में मिट्टी में मौज़ूद जल को कहते हैं। भूजल एक मीठे पानी के स्रोत के रूप में एक प्राकृतिक संसाधन है। मानव के लिये जल की प्राप्ति का एक प्रमुख स्रोत भूजल के अंतर्गत आने वाले जलभरे अंग्रेजी: Aquifers) हैं जिनसे कुओं और नलकूपों द्वारा पानी निकाला जाता है। जो भूजल पृथ्वी के अन्दर अत्यधिक गहराई तक रिसकर प्रविष्ट हो चुका है और मनुष्य द्वारा वर्तमान तकनीक का सहारा लेकर नहीं निकला जा सकता या आर्थिक रूप से उसमें उपयोगिता से ज्यादा खर्च आयेगा, वह जल संसाधन का भाग नहीं है। संसाधन केवल वहीं हैं जिनके दोहन की संभावना प्रबल और आर्थिक रूप से लाभकार हो। अत्यधिक गहराई में स्थित भूजल को जीवाश्म जल या फोसिल वाटर कहते हैं। .
जलभर और भूजल · भूजल और सिविल इंजीनियरी ·
जलविज्ञान
जलविज्ञान (Hydrology) विज्ञान की वह शाखा है जो जल के उत्पादन, आदान-प्रदान, स्त्रोत, सरिता, विलीनता, वाष्पता, हिमपात, उतारचढ़ाव, प्रपात, बाँध, संभरण तथा मापन आदि से संबंधित है। जो जल वृष्टि द्वारा पृथ्वी पर गिरता है, वह प्रथम तो भूमि के प्राकृतिक गुरुत्व के कारण या तो भूमि के अंतस्तल में प्रविष्ट हो जाता है, या नाली और नालिकाओं द्वारा नदियों में जा गिरता है और वहाँ से पुन: सागरों में प्रवेश करता है। कुछ जल वाष्प रूप में वायुमंडल में मिश्रित हो जाता है, कुछ वनस्पतियों द्वारा भूगर्भ से खिंचकर वायु के संपर्क से वाष्प रूप में परिवर्तित हो जाता है। पृथ्वी के अंतस्तल में प्रविष्ट जल का कुछ अंश स्त्रोतों द्वारा प्रकट होकर नदी, नालों या अन्य नीचे स्थलों पर प्रवाहित या संकलित होने लगता है। जब जल की मात्रा किसी कारण बहुत बढ़ जाती है, तो नदी, नाले बाढ़ अथवा बढ़ोत्तरी के रूप में बह निकलते हैं और यदाकदा बड़ी क्षति पहुँचाते हैं। वैसे तो पानी का बहाव प्रकृति के अकाट्य नियमों के अंतर्गत होता है, किंतु प्रत्येक स्थल की भूमि की रूपरेखा, वनस्पति, आबहवा और मनुष्य द्वारा बनाए हुए साधनों के कारण, पानी के बहाव में बहुत परिवर्तन हो जाता है। यदि किसी जगह कोई रोक हो तो उस रोक के कारण, पानी के बहाव का वेग बढ़ना आवश्यक है। इसीलिये पानी की वेगवती धारा के संपर्क में बड़ी बड़ी चट्टानें भी धीरे धीरे घुल जाती हैं। इसी कारण नदियों के मुहानों पर नदियों द्वारा लाई हुई रेत से नई भूमि बनती जाती है, जिसको डेल्टा (delta) कहते हैं। वास्तव में पृथ्वी पर बड़े बड़े मैदान, जैसे उत्तरी भारत में गंगा और सिंधु के विशाल मैदान, हिमालय से लाई हुई रेत के बने हुए हैं। इस बनावट में सहस्त्रों क्या करोड़ों वर्ष लगे होंगे। अब भी गंगा के मुहाने पर सुंदरवन आदि के क्षेत्र प्राकृतिक जलागमन द्वारा ही बढ़ते चले जा रहे हैं। पृथ्वी के अंतस्तल में भी जल की अनेक परतें स्थित हैं। कहीं कहीं जल पृथ्वी तल के समीप मिलता है और कहीं पर अधिक गहराई में। इस क्षेत्र में जलविज्ञान का संबंध भूगर्भ विद्या से हो जाता है। जलोत्पादन के निमित्त जहाँ बड़े बड़े कूप खोदे जाते हैं या कृत्रिम नलकूप बनाए जाते हैं, वहाँ यह प्रकट हाता है कि रेत की परतों में जो जल विद्यमान है, वह अवसर मिलने पर साधारण जलस्त्रोत के तल तक आ जाता है। कभी कभी जल पृथ्वी के गर्भ में प्रविष्ट होकर वहाँ उसी दशा में सहस्त्रों वर्ष पड़ा रहता है। कुछ जलराशि धीरे धीरे समुद्र की ओर भूगर्भ में प्रवाहित होती रहती है। इस दिशा में जलविज्ञान की प्रगति अभी बहुत सीमित है। प्रवाहित जल का मापन भी जलविज्ञान का एक विशेष अंग है। इसका प्रयोग विशेषत: भूमिसिंचन के साधनों में जलविद्युत्, पनचक्की आदि में होता है। आजकल के युग में तो बहुत से कारखानों में भी जल का प्रयोग ठंडक पहुँचाने अथवा जल द्वारा चालित मशीनों को चलाने के लिये होता है। अत: भिन्न भिन्न प्रकार की जलमापन की विधियों का होना अनिवार्य है। बड़ी नदियों में जब बाढ़ आती है, उस समय जलमापन एक समस्या बन जाता है, क्योंकि नदियों के तल में रेत और मिट्टी भी जल के साथ बहती चलती है। वैसे जलमापन के निमित्त बहुत से यंत्र बन चुके हैं, जैसे धारावेगमापी (Current meter) आदि वर्षा द्वारा प्राप्त जल के मापन के लिये जगह जगह यंत्र लगाए जाते हैं, जिससे इस बात का अनुमान हो सके कि कितना जल वर्षा द्वारा प्राप्त होता है, कितना नदियों द्वारा समुद्र में चला जाता हे, कितना भूगर्भ में प्रविष्ट हो जाता हे और कित वाष्प में परिवर्तित होता है। जल के आवागमन का यही ज्ञान साधारणतया जलविज्ञान कहलाता है। .
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संदर्भ
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