जर्मन रोमान्तिका और विषाणु
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जर्मन रोमान्तिका और विषाणु के बीच अंतर
जर्मन रोमान्तिका vs. विषाणु
बच्चे के पीठ पर जर्मन रोमान्तिका के दाने जर्मन रोमान्तिका या जर्मन मसूरिका (German measles या Rubella) अत्यंत सूक्ष्म विषाणु (वाइरस) द्वारा होता है जिसका नाम रुबेला (Rubella) है। वर्ष के पूर्वार्ध में प्रकोप अधिक होता है। दाने निकलने के पूर्व अत्यत संक्रामक होता है। उद्भवन काल १७-१८ दिनों का होता है। जटिलताओं की संभावना कम होती है। एक आक्रमण जीवनपर्यंत रोग प्रतिशोधक शक्ति उत्पन्न कर देता है। साधारणता बड़े बच्चे तथा किशोर ही इस रोग के शिकार होते हैं। प्रथम २४ घंटों में ही दाने निकल आते हैं तथा संपूर्ण शरीर पर फैल जाते हैं। चेहरे तथा गर्दन से प्रारंभ होकर, ये दाने वक्ष, पीठ, हाथ और पैर पर फैलते हैं तथा रक्तवर्ण के होते हैं। ये ७२ घंटों में समाप्त हो जाते हैं। कान के पीछे, सिर के पिछले हिस्से तथा गले में लसिका ग्रंथियाँ बड़ी हो जाती है तथा स्पर्श से दर्द होता है। यदि गर्भवती नारी को यह रोग गर्भधारण के प्रथम कुछ सप्ताहों के भीतर होता है, तो ५० प्रतिशत संभावना है कि बच्चे के हृदय, आँख, कान या मस्तिष्क की बनावट में कुछ दोष आ जाएगा। रोग की रोकथाम या चिकित्सा के लिए उचित ओषधि नहीं है। . विषाणु अकोशिकीय अतिसूक्ष्म जीव हैं जो केवल जीवित कोशिका में ही वंश वृद्धि कर सकते हैं। ये नाभिकीय अम्ल और प्रोटीन से मिलकर गठित होते हैं, शरीर के बाहर तो ये मृत-समान होते हैं परंतु शरीर के अंदर जीवित हो जाते हैं। इन्हे क्रिस्टल के रूप में इकट्ठा किया जा सकता है। एक विषाणु बिना किसी सजीव माध्यम के पुनरुत्पादन नहीं कर सकता है। यह सैकड़ों वर्षों तक सुशुप्तावस्था में रह सकता है और जब भी एक जीवित मध्यम या धारक के संपर्क में आता है उस जीव की कोशिका को भेद कर आच्छादित कर देता है और जीव बीमार हो जाता है। एक बार जब विषाणु जीवित कोशिका में प्रवेश कर जाता है, वह कोशिका के मूल आरएनए एवं डीएनए की जेनेटिक संरचना को अपनी जेनेटिक सूचना से बदल देता है और संक्रमित कोशिका अपने जैसे संक्रमित कोशिकाओं का पुनरुत्पादन शुरू कर देती है। विषाणु का अंग्रेजी शब्द वाइरस का शाब्दिक अर्थ विष होता है। सर्वप्रथम सन १७९६ में डाक्टर एडवर्ड जेनर ने पता लगाया कि चेचक, विषाणु के कारण होता है। उन्होंने चेचक के टीके का आविष्कार भी किया। इसके बाद सन १८८६ में एडोल्फ मेयर ने बताया कि तम्बाकू में मोजेक रोग एक विशेष प्रकार के वाइरस के द्वारा होता है। रूसी वनस्पति शास्त्री इवानोवस्की ने भी १८९२ में तम्बाकू में होने वाले मोजेक रोग का अध्ययन करते समय विषाणु के अस्तित्व का पता लगाया। बेजेर्निक और बोर ने भी तम्बाकू के पत्ते पर इसका प्रभाव देखा और उसका नाम टोबेको मोजेक रखा। मोजेक शब्द रखने का कारण इनका मोजेक के समान तम्बाकू के पत्ते पर चिन्ह पाया जाना था। इस चिन्ह को देखकर इस विशेष विषाणु का नाम उन्होंने टोबेको मोजेक वाइरस रखा। विषाणु लाभप्रद एवं हानिकारक दोनों प्रकार के होते हैं। जीवाणुभोजी विषाणु एक लाभप्रद विषाणु है, यह हैजा, पेचिश, टायफायड आदि रोग उत्पन्न करने वाले जीवाणुओं को नष्ट कर मानव की रोगों से रक्षा करता है। कुछ विषाणु पौधे या जन्तुओं में रोग उत्पन्न करते हैं एवं हानिप्रद होते हैं। एचआईवी, इन्फ्लूएन्जा वाइरस, पोलियो वाइरस रोग उत्पन्न करने वाले प्रमुख विषाणु हैं। सम्पर्क द्वारा, वायु द्वारा, भोजन एवं जल द्वारा तथा कीटों द्वारा विषाणुओं का संचरण होता है परन्तु विशिष्ट प्रकार के विषाणु विशिष्ट विधियों द्वारा संचरण करते हैं। .
जर्मन रोमान्तिका और विषाणु के बीच समानता
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