जय सिंह द्वितीय और सोमेश्वर प्रथम
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जय सिंह द्वितीय और सोमेश्वर प्रथम के बीच अंतर
जय सिंह द्वितीय vs. सोमेश्वर प्रथम
सवाई जयसिंह या द्वितीय जयसिंह (०३ नवम्बर १६८८ - २१ सितम्बर १७४३) अठारहवीं सदी में भारत में राजस्थान प्रान्त के नगर/राज्य आमेर के कछवाहा वंश के सर्वाधिक प्रतापी शासक थे। सन १७२७ में आमेर से दक्षिण छः मील दूर एक बेहद सुन्दर, सुव्यवस्थित, सुविधापूर्ण और शिल्पशास्त्र के सिद्धांतों के आधार पर आकल्पित नया शहर 'सवाई जयनगर', जयपुर बसाने वाले नगर-नियोजक के बतौर उनकी ख्याति भारतीय-इतिहास में अमर है। काशी, दिल्ली, उज्जैन, मथुरा और जयपुर में, अतुलनीय और अपने समय की सर्वाधिक सटीक गणनाओं के लिए जानी गयी वेधशालाओं के निर्माता, सवाई जयसिह एक नीति-कुशल महाराजा और वीर सेनापति ही नहीं, जाने-माने खगोल वैज्ञानिक और विद्याव्यसनी विद्वान भी थे। उनका संस्कृत, मराठी, तुर्की, फ़ारसी, अरबी, आदि कई भाषाओं पर गंभीर अधिकार था। भारतीय ग्रंथों के अलावा गणित, रेखागणित, खगोल और ज्योतिष में उन्होंने अनेकानेक विदेशी ग्रंथों में वर्णित वैज्ञानिक पद्धतियों का विधिपूर्वक अध्ययन किया था और स्वयं परीक्षण के बाद, कुछ को अपनाया भी था। देश-विदेश से उन्होंने बड़े बड़े विद्वानों और खगोलशास्त्र के विषय-विशेषज्ञों को जयपुर बुलाया, सम्मानित किया और यहाँ सम्मान दे कर बसाया। . सोमेश्वर प्रथम (आहवमल्ल) प्रसिद्ध चालुक्यराज जयसिंह द्वितीय जगदेकमल्ल का पुत्र जो 1042 ई. में सिंहासन पर बैठा। पिता का समृद्ध राज्य प्राप्त कर उसने दिग्विजय करने का निश्चय किया। चोल और परमार दोनों उसके शत्रु थे। पहले वह परमारों की ओर बढ़ा। राजा भोज धारा और मांडू छोड़ उज्जैन भागा और सोमेश्वर दोनों नगरों को लूटता उज्जैन जा चढ़ा। उज्जैन की भी वही गति हुई, यद्यपि भोज सेना तैयार कर फिर लौटा और उसने खोए हुए प्रांत लौटा लिए। कुछ दिनों बाद जब अह्निलवाड के भीम और कलचुरी लक्ष्मीकर्ण से संघर्ष के बीच भोज मर गया तब उसके उत्तराधिकारी जयसिंह ने सोमेश्वर से सहायता मांगी। सोमेश्वर ने उसे मालवा की गद्दी पर बैठा दिया और स्वयं चोलों से जा भिड़ा। 1052 ई. में कृष्णा और पंचगंगा के संगम पर कोप्पम के प्रसिद्ध युद्ध में चोलों को परास्त किया। बिल्हण के 'विक्रमांकदेवचरित' के अनुसार तो सोमेश्वर एक बार चोल शक्ति के केंद्र रांची तक जा पहुँचा। सोमेश्वर ने दक्षिण और निकट के राजकुलों से सफल लोहा लेकर अब अपना रूख उत्तर की ओर किया। मध्यभारत में चंदेलों और कछवाहों को रौदता वह गंगा जमुना के द्वाब की ओर बढ़ा और कन्नौजराज ने डरकर कंदराओं में शरण ली। उसकी शक्ति इस प्रकार बढ़ती देख लक्ष्मीकर्ण कलचुरी ने उसकी राह रोकी, पर उसे हारकर मैदान छोड़ना पड़ा। इसी बीच सोमेश्वर के बेटे विक्रमादित्य ने मिथिला, मगध, अंग, बंग और गौड़ को रौंद डाला। तब कहीं कामरूप (आसाम) पहुँचने पर वहाँ के राजा रत्नपाल ने चालुक्यों की बाग रोकी और सोमेश्वर कोशल की राह घर लौटा। हैदराबाद में कल्याणी नाम का नगर उसी का बसाया हुआ प्राचीन कल्याण है जिसे उसने अपनी राजधानी बनाया था। 1068 ई. में बीमार पड़ने पर जब सोमेश्वर ने अपने बचने की आशा न देखी तब वह तुंगभद्रा में स्वेच्छा से डूबकर मर गया। श्रेणी:चालुक्य वंश श्रेणी:चित्र जोड़ें श्रेणी:राजा भोज.
जय सिंह द्वितीय और सोमेश्वर प्रथम के बीच समानता
जय सिंह द्वितीय और सोमेश्वर प्रथम आम में एक बात है (यूनियनपीडिया में): उज्जैन।
उज्जैन का प्रसिद्ध महाकालेश्वर मंदिर उज्जैन (उज्जयिनी) भारत के मध्य प्रदेश राज्य का एक प्रमुख शहर है जो क्षिप्रा नदी के किनारे बसा है। यह एक अत्यन्त प्राचीन शहर है। यह विक्रमादित्य के राज्य की राजधानी थी। इसे कालिदास की नगरी के नाम से भी जाना जाता है। यहाँ हर १२ वर्ष पर सिंहस्थ कुंभ मेला लगता है। भगवान शिव के १२ ज्योतिर्लिंगों में एक महाकाल इस नगरी में स्थित है। उज्जैन मध्य प्रदेश के सबसे बड़े शहर इन्दौर से ५५ कि॰मी॰ पर है। उज्जैन के प्राचीन नाम अवन्तिका, उज्जयनी, कनकश्रन्गा आदि है। उज्जैन मंदिरों की नगरी है। यहाँ कई तीर्थ स्थल है। इसकी जनसंख्या लगभग 5.25 लाख है। यह मध्य प्रदेश का पाँचवा सबसे बड़ा शहर है। नगर निगम सीमा का क्षेत्रफल ९३ वर्ग किलोमीटर है। .
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संदर्भ
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