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जई और विटामिन बी१

शॉर्टकट: मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ

जई और विटामिन बी१ के बीच अंतर

जई vs. विटामिन बी१

'''जई''' जई एक फसल है। इसका उपयोग अनाज, पशुओं के दाने तथा हरे चारे के लिए होता है। भारत में जई की जातियाँ मुख्यत: ऐवना सटाइवा (Avena sativa) तथा ऐवना स्टेरिलिस (A. sterilis) वंश की हैं। यह भारत के उत्तरी भागों में उत्पन्न होती हैं। जई की खेती के लिये शीघ्र पकनेवाली खरीफ की फसल काटने के बाद चार-पाँच जोताइयाँ करके, 125-150 मन गोबर की खाद प्रति एकड़ देनी चाहिए। अक्टूबर-नवंबर में 40 सेर प्रति एकड़ की दर से बीज बोना चाहिए। इसकी दो बार सिंचाई की जाती है। हरे चारे के लिये दो बार कटाई, जनवरी के आंरभ तथा फरवरी में, की जाती है। दूसरी सिंचाई प्रथम चारे की कटाई के बाद करनी चाहिए। हरे चारे की उपज 200-250 मन तथा दाने की 15-20 मन प्रति एकड़ होती है। . विटामिन बी१ एक विटामिन है। विटामिन “बी1” का वैज्ञानिक नाम थायमिन हाइड्रोक्लोराइड है। वयस्को को प्रतिदिन विटामिन “बी1” की एक मिलीग्राम मात्रा आवश्यक होती है। गर्भवती स्त्रियो को संपूर्ण काल तक विटामिन “बी1” की 5 मिलीग्राम आवश्यक होती है। आवश्यकता से अधिक हो जाने पर विटामिन “बी1” मूत्र से बाहर हो जाता है। आयु बढ़ाने के लिए विटामिन “बी1” का महत्वपूर्ण योगदान होता है। विटामिन “बी1” की कमी से बेरी-बेरी रोग हो जाता है अतः इसलिए इसको वैज्ञानिक बेरी-बेरी विटामिन भी कहते है। यदि भोजन मे विटामिन “बी1” की कमी हो जाए तो शरीर कार्बोहाइड्रेटस तथा फास्फोरस का संपूर्ण प्रयोग कर पाने मे समर्थ नही हो पता। इससे एक विषैल एसिड जमा होकर रक्त मे मिल जाता है और मस्तिष्क के तंत्रिका संस्थान को हानि पहुंचाने लगता है। विटामिन “बी1” की कमी से होने वाले बेरी-बेरी रोग मे रोगी की मांसपेशियो को जहा भी छुआ जाए वहां वेदना होती है तथा उसके पश्चात स्पर्श शुन्यता का आभास होता है। वयस्क व्यक्ति को प्रतिदिन विटामिन “बी1” 900 युनिट अ. ई. की आवश्यकता पड़ती है। विटामिन “बी1” मूलांकुरो मे अधिक पाया जाता है। दूध पीते बच्चो का विटामिन “बी1” की कमी से कै (उलटी) और पेट दर्द जैसे विकार हो जाते है। विटामिन “बी1” निशास्ता युक्त भोजन को पचाने मे सहयोग करता है। विटामिन “बी1” की कमी हो जाने से रोगी की भूख मर जाती है तथा वजन तेजी से गिरने लगता है। विटामिन “बी1” की कमी से ह्रदय और मस्तिष्क मे कमजोरी तथा अन्य अनेक दोष हो जाते है। विटामिन “बी1” की कमी से पाचनांगो को भारी हानि पहुंचती है जो पहले रोगी को समझ मे नही आती लेकिन बाद मे जब उसके भयंकर परिणाम सामने आते है तब तक काफी देर हो चुकी होती है और सामने मृत्यु का संकट आ खड़ा होता है। कार्बोहाइड्रेटस तथा फास्फोरस का शरीर मे पूर्ण उपयोग तभी हो सकता है। जब शरीर मे पर्याप्त मात्रा मे विटामिन “बी1” हाजिर हो। विटामिन “बी1” की कमी से बेरी-बेरी रोग का रोगी इतना शक्तिहीन हो चुका होता है कि जहां एक बार बैठ जाता है दुबारा उठने का साहस अपने अंदर नही संजो पाता है। कठोर परिश्रम करने वाले लोगो का सामान्य मनुष्यो की अपेक्षा विटामिन “बी1” की मात्रा अधिक आवश्यक होती है। विटामिन “बी1” की कमी से रोगी थोड़ा सा काम करके थक जाता है। विटामिन “बी1” की कमी का रोगी अक्सर अजीर्ण का रोगी रहता है। बेरी-बेरी रोग विशेष रूप से उन लोगो को होता है जो मशीन से पिसा हुआ गेहुं तथा मशीन से पालिश किया हुआ चावल ज्यादा मात्रा मे खाते है। बेरी- बेरी रोग दो प्रकार के होते है पहला शुष्क तथा दूसरा आर्द्र। आर्द्र बेरी-बेरी रोग के रोगियो की नाड़ी तीव्र गति से चलती है तथा उसका ह्रदय कमजोर हो जाता है। शुष्क बेरी-बेरी का रोगी दिन प्रतिदिन कमजोर, कृषकाय, हीन, असहाय, दुर्बल और असमर्थ होता चला जाता है। कभी-कभी, किसी-किसी रोगी मे शुष्क और आर्द्र दोनो प्रकार के बेरी-बेरी के लक्षण मिलते है। शुष्क एवं आर्द्र लक्षणयुकत रोगी को ह्रदय संबंधी अनेक विकार होते है। उनका ह्रदय जांच करने पर फुटबाल के ब्लैडर जैसा फैला हुआ अनुभव होता है। शुष्क एवं आर्द्र बेरी-बेरी के लक्षण यदि किसी रोगी मे एक साथ दिखे तो उसकी चिकित्सा जितनी जल्दी हो सके आरम्भ कर देनी चाहिए। लापरवाही और गैर जिम्मेदरी जान का खतरा पैदा कर सकती है। विटामिन “बी1” की कमी से वात संस्थान प्रभावित होता है। इसीलिए वात नाड़ियो मे वेदना होती है। गर्भावस्था की वमन (उल्टी) विटामिन “बी1” की कमी का सूचक कहा जा सकता है। गर्भावस्था की विषममयता विटामिन “बी1” की कमी से होती है अतः विटामिन “बी1” की पूर्ति हो जाने पर गर्भावस्था की विषममयता नष्ट हो जाती है। अनेक चर्म रोग विटामिन “बी1” की कमी की वजह से भोगने पड़ते है। विटामिन “बी1” की कमी का प्रथम लक्षण बिना किसी कारण के भूख लगना बंद हो जाना है। ध्यान रहे बेरी-बेरी रोग मारक भी सिद्ध हो सकता है। वनस्पतियो, पत्तेदार शाक तथा खमीर मे विटामिन “बी1” अधिक मात्रा मे विद्यमान रहता है। पाण्डु रोग के पीछे भी विटामिन “बी1” की कमी होती है। विटामिन “बी1” की कमी से पतले वस्तु वमन तथा मितली जैसे उपद्रव हो जाते है। विटामिन “बी1” की कमी से पर्यूदर्या मे जल भर जाता है। मोटे मनुष्यो को विटामिन “बी1” की अधिक आवश्यकता होती है। विटामिन “बी1” की कमी से ह्र्दय बड़ा हो जाना मृत्यु का सूचक कहलाता है। सुखे किण्व मे विटामिन “बी1” सबसे अधिक 9000 अ. ई. युनिट होता है। मटर मे विटामिन “बी1” सबसे कम 100 युनिट अ. ई. होता है। विटामिन “बी1” की कमी से फेफ्ड़ो की झिल्ली मे तरल पदार्थ जमा हो जाता है। इसकी कमी से अण्डाकोश मे भी तरल पदार्थ जमा हो जाता है। आंतड़ियो की मांसपेशियो को शक्तिशाली बनाने मे इस विटामिन का विशेष योगदान रहता है। विटामिन “बी1” की प्रयाप्त मात्रा शरीर मे रहने पर मांसपेशियां पुष्ट रहती है। विटामिन “बी1” की प्रयाप्त भाग से आंतो के संक्रमण सुरक्षा बनी रहती है। इससे आंतो की झिल्ली मजबूत बनी रहती है। इसी मजबूती के कारण इस पर कीटाणु हमला नही कर पाते है। यह विटामिन यकृत की कार्य पणाली को स्वस्थ रखता है। यदि पाचन संस्थान स्वस्थ और शक्तिशाली है तो समझना चाहिए कि शरीर मे विटामिन “बी1” की पर्याप्त मात्रा विद्यमान है। जो लोग हरी साग-सब्जी नही खाते वे निश्चय ही विटामिन “बी1” की कमी के शिकार हो जाते है। मस्तिष्क तथा तंत्रिका संस्थान के सूत्रो को स्वस्थ रखना इसी विटामिन के जिम्मे है। यह विटामिन मानव रक्त के तरल भाग मे प्रोटीन को यथाचित मात्रा मे संतुलित रखता है। .

जई और विटामिन बी१ के बीच समानता

जई और विटामिन बी१ आम में 0 बातें हैं (यूनियनपीडिया में)।

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जई और विटामिन बी१ के बीच तुलना

जई 5 संबंध है और विटामिन बी१ 1 है। वे आम 0 में है, समानता सूचकांक 0.00% है = 0 / (5 + 1)।

संदर्भ

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