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चौरासी वैष्णवन की वार्ता

सूची चौरासी वैष्णवन की वार्ता

चौरासी वैष्णवन की वार्ता, ब्रजभाषा में लिखित गद्य ग्रन्थ है। इसमें महाप्रभु वल्लभाचार्य जी के पुष्टि सम्प्रदाय के शिष्यों की कथाएँ (जीवन चरित) संकलित हैं। इसके रचयिता के सम्बन्ध में विद्वानों में मतभेद है। यह ग्रन्थ तहा अन्य 'वार्ता ग्रन्थ' ('दो सौ बावन वैष्णवन की वार्ता' तथा 'अष्ट सखान की वार्ता') ब्रजभाषा साहित्य के प्राचीन महाकवियों के जीवन वृत्तांत प्रकट करने के कारण तो महत्वपूर्ण हैं ही, किंतु उनका महत्व इसलिए और भी अधिक है कि वे ब्रजभाषा की आरंभिक गद्य रचनाएँ हैं। यदि ये पुस्तकें प्रामाणित हैं, तो इनसे सत्रहवीं शताब्दी के ब्रजभाषा गद्य का रूप ज्ञात हो सकता है। इन पुस्तकों में दी हुई वार्ताओं में उस समय की धार्मिक, सामाजिक और राजनैतिक स्थिति पर भी बड़ा महत्वपूर्ण प्रकाश पड़ता है, इसलिए उनका ऐतिहासिक महत्व भी कुछ कम नहीं है। .

4 संबंधों: पुष्टिमार्ग, ब्रजभाषा, वल्लभाचार्य, गद्य

पुष्टिमार्ग

भक्ति के क्षेत्र में महापुभु श्रीवल्‍लभाचार्य जी का साधन मार्ग पुष्टिमार्ग कहलाता है। पुष्टिमार्ग के अनुसार सेवा दो प्रकार से होती है - नाम-सेवा और स्‍वरूप-सेवा। स्‍वरूप-सेवा भी तीन प्रकार की होती है -- तनुजा, वित्तजा और मानसी। मानसी सेवा के दो प्रकार होते हैं - मर्यादा-मार्गीय और पुष्टिमार्गीय। मर्यादा-मार्गीय मानसी-सेवा पद्धति का आचरण करने वाला साधक जहाँ अपनी ममता और अहं को देर करता है, वहाँ पुष्टि-मार्गीय मानसी-सेवा पद्धति वाला साधक अपने शुद्ध प्रेम के द्वारा श्रीकृष्‍ण भक्ति में लीन हो जाता है और उनके अनुग्रह से सहज में ही अपनी वांक्षित वस्‍तु प्राप्‍त कर लेता है। .

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ब्रजभाषा

ब्रजभाषा मूलत: ब्रज क्षेत्र की बोली है। (श्रीमद्भागवत के रचनाकाल में "व्रज" शब्द क्षेत्रवाची हो गया था। विक्रम की 13वीं शताब्दी से लेकर 20वीं शताब्दी तक भारत के मध्य देश की साहित्यिक भाषा रहने के कारण ब्रज की इस जनपदीय बोली ने अपने उत्थान एवं विकास के साथ आदरार्थ "भाषा" नाम प्राप्त किया और "ब्रजबोली" नाम से नहीं, अपितु "ब्रजभाषा" नाम से विख्यात हुई। अपने विशुद्ध रूप में यह आज भी आगरा, हिण्डौन सिटी,धौलपुर, मथुरा, मैनपुरी, एटा और अलीगढ़ जिलों में बोली जाती है। इसे हम "केंद्रीय ब्रजभाषा" भी कह सकते हैं। ब्रजभाषा में ही प्रारम्भ में काव्य की रचना हुई। सभी भक्त कवियों ने अपनी रचनाएं इसी भाषा में लिखी हैं जिनमें प्रमुख हैं सूरदास, रहीम, रसखान, केशव, घनानंद, बिहारी, इत्यादि। फिल्मों के गीतों में भी ब्रजभाषा के शब्दों का प्रमुखता से प्रयोग किया जाता है। .

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वल्लभाचार्य

श्रीवल्लभाचार्यजी (1479-1531) भक्तिकालीन सगुणधारा की कृष्णभक्ति शाखा के आधारस्तंभ एवं पुष्टिमार्ग के प्रणेता थे। उनका प्रादुर्भाव विक्रम संवत् 1535, वैशाख कृष्ण एकादशी को दक्षिण भारत के कांकरवाड ग्रामवासी तैलंग ब्राह्मण श्रीलक्ष्मणभट्टजी की पत्नी इलम्मागारू के गर्भ से हुआ। यह स्थान वर्तमान छत्तीसगढ़ राज्य के रायपुर के निकट चम्पारण्य है। उन्हें वैश्वानरावतार (अग्नि का अवतार) कहा गया है। वे वेदशास्त्र में पारंगत थे। महाप्रभु वल्लभाचार्य के सम्मान में भारत सरकार ने सन 1977 में एक रुपये मूल्य का एक डाक टिकट जारी किया था। .

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गद्य

सामान्यत: मनुष्य की बोलने या लिखने पढ़ने की छंदरहित साधारण व्यवहार की भाषा को गद्य (prose) कहा जाता है। इसमें केवल आंशिक सत्य है क्योंकि इसमें गद्यकार के रचनात्मक बोध की अवहेलना है। साधारण व्यवहार की भाषा भी गद्य तभी कही जा सकती है जब यह व्यवस्थित और स्पष्ट हो। रचनात्मक प्रक्रिया को ध्यान में रखते हुए गद्य को मनुष्य की साधारण किंतु व्यस्थित भाषा या उसकी विशिष्ट अभिव्यक्ति कहना अधिक समीचीन होगा। .

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