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चित्रकूट और रामायण

शॉर्टकट: मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ

चित्रकूट और रामायण के बीच अंतर

चित्रकूट vs. रामायण

चित्रकूट धाम मंदाकिनी नदी के किनारे पर बसा भारत के सबसे प्राचीन तीर्थस्थलों में एक है। उत्तर प्रदेश में 38.2 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला शांत और सुन्दर चित्रकूट प्रकृति और ईश्वर की अनुपम देन है। चारों ओर से विन्ध्य पर्वत श्रृंखलाओं और वनों से घिरे चित्रकूट को अनेक आश्चर्यो की पहाड़ी कहा जाता है। मंदाकिनी नदी के किनार बने अनेक घाट और मंदिर में पूरे साल श्रद्धालुओं का आना-जाना लगा रहता है। माना जाता है कि भगवान राम ने सीता और लक्ष्मण के साथ अपने वनवास के चौदह वर्षो में ग्यारह वर्ष चित्रकूट में ही बिताए थे। इसी स्थान पर ऋषि अत्रि और सती अनसुइया ने ध्यान लगाया था। ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने चित्रकूट में ही सती अनसुइया के घर जन्म लिया था। . रामायण आदि कवि वाल्मीकि द्वारा लिखा गया संस्कृत का एक अनुपम महाकाव्य है। इसके २४,००० श्लोक हैं। यह हिन्दू स्मृति का वह अंग हैं जिसके माध्यम से रघुवंश के राजा राम की गाथा कही गयी। इसे आदिकाव्य तथा इसके रचयिता महर्षि वाल्मीकि को 'आदिकवि' भी कहा जाता है। रामायण के सात अध्याय हैं जो काण्ड के नाम से जाने जाते हैं। .

चित्रकूट और रामायण के बीच समानता

चित्रकूट और रामायण आम में 13 बातें हैं (यूनियनपीडिया में): तुलसीदास, दुर्वासा ऋषि, भरत, राम, राज्याभिषेक, लक्ष्मण, शिव, सीता, हनुमान, जनक, विष्णु, इलाहाबाद, अत्रि

तुलसीदास

गोस्वामी तुलसीदास (1511 - 1623) हिंदी साहित्य के महान कवि थे। इनका जन्म सोरों शूकरक्षेत्र, वर्तमान में कासगंज (एटा) उत्तर प्रदेश में हुआ था। कुछ विद्वान् आपका जन्म राजापुर जिला बाँदा(वर्तमान में चित्रकूट) में हुआ मानते हैं। इन्हें आदि काव्य रामायण के रचयिता महर्षि वाल्मीकि का अवतार भी माना जाता है। श्रीरामचरितमानस का कथानक रामायण से लिया गया है। रामचरितमानस लोक ग्रन्थ है और इसे उत्तर भारत में बड़े भक्तिभाव से पढ़ा जाता है। इसके बाद विनय पत्रिका उनका एक अन्य महत्वपूर्ण काव्य है। महाकाव्य श्रीरामचरितमानस को विश्व के १०० सर्वश्रेष्ठ लोकप्रिय काव्यों में ४६वाँ स्थान दिया गया। .

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दुर्वासा ऋषि

दुर्वासा हिंदुओं के एक महान ऋषि हैं। वे अपने क्रोध के लिए जाने जाते हैं। दुर्वासा सतयुग, त्रैता एवं द्वापर तीनों युगों के एक प्रसिद्ध सिद्ध योगी महर्षि हैं। वे महादेव शंकर के अंश से आविर्भूत हुए हैं। कभी-कभी उनमें अकारण ही भयंकर क्रोध भी देखा जाता है। वे सब प्रकार के लौकिक वरदान देने में समर्थ हैं। महर्षि अत्रि जी सृष्टिकर्ता ब्रह्माजी के मानस पुत्र थे। उनकी पत्नी अनसूयाजी के पातिव्रत धर्म की परीक्षा लेने हेतु ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों ही पत्‍ि‌नयों के अनुरोध पर श्री अत्री और अनसूयाजी के चित्रकुट स्थित आश्रम में शिशु रूप में उपस्थित हुए। ब्रह्मा जी चंद्रमा के रूप में, विष्णु दत्तात्रेय के रूप में और महेश दुर्वासा के रूप में उपस्थित हुए। बाद में देव पत्नियों के अनुरोध पर अनसूयाजी ने कहा कि इस वर्तमान स्वरूप में वे पुत्रों के रूप में मेरे पास ही रहेंगे। साथ ही अपने पूर्ण स्वरूप में अवस्थित होकर आप तीनों अपने-अपने धाम में भी विराजमान रहेंगे। यह कथा सतयुग के प्रारम्भ की है। पुराणों और महाभारत में इसका विशद वर्णन है। दुर्वासा जी कुछ बड़े हुए, माता-पिता से आदेश लेकर वे अन्न जल का त्याग कर कठोर तपस्या करने लगे। विशेषत: यम-नियम, आसन, प्राणायाम, ध्यान-धारणा आदि अष्टांग योग का अवलम्बन कर वे ऐसी सिद्ध अवस्था में पहुंचे कि उनको बहुत सी योग-सिद्धियां प्राप्त हो गई। अब वे सिद्ध योगी के रूप में विख्यात हो गए। तत्पश्चात् यमुना किनारे इसी स्थल पर उन्होंने एक आश्रम का निर्माण किया और यहीं पर रहकर आवश्यकता के अनुसार बीच-बीच में भ्रमण भी किया। दुर्वासा आश्रम के निकट ही यमुना के दूसरे किनारे पर महाराज अम्बरीष का एक बहुत ही सुन्दर राजभवन था। एक बार राजा निर्जला एकादशी एवं जागरण के उपरांत द्वादशी व्रत पालन में थे। समस्त क्रियाएं सम्पन्न कर संत-विप्र आदि भोज के पश्चात भगवत प्रसाद से पारण करने को थे कि महर्षि दुर्वासा आ गए। महर्षि को देख राजा ने प्रसाद ग्रहण करने का निवेदन किया, पर ऋषि यमुना स्नान कर आने की बात कहकर चले गए। पारण काल निकलने जा रहा था। धर्मज्ञ ब्राह्मणों के परामर्श पर श्री चरणामृत ग्रहण कर राजा का पारण करना ही था कि ऋषि उपस्थित हो गए तथा क्रोधित होकर कहने लगे कि तुमने पहले पारण कर मेरा अपमान किया है। भक्त अम्बरीश को जलाने के लिए महर्षि ने अपनी जटा निचोड़ क्रत्या राक्षसी उत्पन्न की, परन्तु प्रभु भक्त अम्बरीश अडिग खडे रहे। भगवान ने भक्त रक्षार्थ चक्र सुदर्शन प्रकट किया और राक्षसी भस्म हुई। दुर्वासाजी चौदह लोकों में रक्षार्थ दौड़ते फिरे। शिवजी की चरण में पहुंचे। शिवजी ने विष्णु के पास भेजा। विष्णु जी ने कहा आपने भक्त का अपराध किया है। अत:यदि आप अपना कल्याण चाहते हैं, तो भक्त अम्बरीश के निकट ही क्षमा प्रार्थना करें। जब से दुर्वासाजी अपने प्राण बचाने के लिए इधर-उधर भाग रहे थे, तब से महाराज अम्बरीशने भोजन नहीं किया था। उन्होंने दुर्वासाजी के चरण पकड़ लिए और बडे़ प्रेम से भोजन कराया। दुर्वासाजी भोजन करके तृप्त हुए और आदर पूर्वक राजा से भोजन करने का आग्रह किया। दुर्वासाजी ने संतुष्ट होकर महाराज अम्बरीश के गुणों की प्रशंसा की और आश्रम लौट आए। महाराज अम्बरीश के संसर्ग से महर्षि दुर्वासा का चरित्र बदल गया। अब वे ब्रह्म ज्ञान और अष्टांग योग आदि की अपेक्षा शुद्ध भक्ति मार्ग की ओर झुक गए। महर्षि दुर्वासा जी शंकर जी के अवतार एवं प्रकाश हैं। शंकर जी के ईश्वर होने के कारण ही उनका निवास स्थान ईशापुर के नाम से प्रसिद्ध है। आश्रम का पुनर्निर्माण त्रिदण्डि स्वामी श्रीमद्भक्ति वेदान्त गोस्वामी जी ने कराया। सम्प्रति व्यवस्था सन्त रास बिहारी दास आश्रम पर रह कर देख रहे हैं। ब्रज मण्डल के अंतर्गत प्रमुख बारह वनों में से लोहवनके अंतर्गत यमुना के किनारे मथुरा में दुर्वासाजी का अत्यन्त प्राचीन आश्रम है। यह महर्षि दुर्वासा की सिद्ध तपस्या स्थली एवं तीनों युगों का प्रसिद्ध आश्रम है। भारत के समस्त भागों से लोग इस आश्रम का दर्शन करने और तरह-तरह की लौकिक कामनाओं की पूर्ति करने के लिए आते हैं। .

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भरत

कोई विवरण नहीं।

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राम

राम (रामचन्द्र) प्राचीन भारत में अवतार रूपी भगवान के रूप में मान्य हैं। हिन्दू धर्म में राम विष्णु के दस अवतारों में से सातवें अवतार हैं। राम का जीवनकाल एवं पराक्रम महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित संस्कृत महाकाव्य रामायण के रूप में वर्णित हुआ है। गोस्वामी तुलसीदास ने भी उनके जीवन पर केन्द्रित भक्तिभावपूर्ण सुप्रसिद्ध महाकाव्य श्री रामचरितमानस की रचना की है। इन दोनों के अतिरिक्त अनेक भारतीय भाषाओं में अनेक रामायणों की रचना हुई हैं, जो काफी प्रसिद्ध भी हैं। खास तौर पर उत्तर भारत में राम बहुत अधिक पूजनीय हैं और हिन्दुओं के आदर्श पुरुष हैं। राम, अयोध्या के राजा दशरथ और रानी कौशल्या के सबसे बड़े पुत्र थे। राम की पत्नी का नाम सीता था (जो लक्ष्मी का अवतार मानी जाती हैं) और इनके तीन भाई थे- लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न। हनुमान, भगवान राम के, सबसे बड़े भक्त माने जाते हैं। राम ने राक्षस जाति के लंका के राजा रावण का वध किया। राम की प्रतिष्ठा मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में है। राम ने मर्यादा के पालन के लिए राज्य, मित्र, माता पिता, यहाँ तक कि पत्नी का भी साथ छोड़ा। इनका परिवार आदर्श भारतीय परिवार का प्रतिनिधित्व करता है। राम रघुकुल में जन्मे थे, जिसकी परम्परा प्रान जाहुँ बरु बचनु न जाई की थी। श्रीराम के पिता दशरथ ने उनकी सौतेली माता कैकेयी को उनकी किन्हीं दो इच्छाओं को पूरा करने का वचन (वर) दिया था। कैकेयी ने दासी मन्थरा के बहकावे में आकर इन वरों के रूप में राजा दशरथ से अपने पुत्र भरत के लिए अयोध्या का राजसिंहासन और राम के लिए चौदह वर्ष का वनवास माँगा। पिता के वचन की रक्षा के लिए राम ने खुशी से चौदह वर्ष का वनवास स्वीकार किया। पत्नी सीता ने आदर्श पत्नी का उदहारण देते हुए पति के साथ वन जाना उचित समझा। सौतेले भाई लक्ष्मण ने भी भाई के साथ चौदह वर्ष वन में बिताये। भरत ने न्याय के लिए माता का आदेश ठुकराया और बड़े भाई राम के पास वन जाकर उनकी चरणपादुका (खड़ाऊँ) ले आये। फिर इसे ही राज गद्दी पर रख कर राजकाज किया। राम की पत्नी सीता को रावण हरण (चुरा) कर ले गया। राम ने उस समय की एक जनजाति वानर के लोगों की मदद से सीता को ढूँढ़ा। समुद्र में पुल बना कर रावण के साथ युद्ध किया। उसे मार कर सीता को वापस लाये। जंगल में राम को हनुमान जैसा मित्र और भक्त मिला जिसने राम के सारे कार्य पूरे कराये। राम के अयोध्या लौटने पर भरत ने राज्य उनको ही सौंप दिया। राम न्यायप्रिय थे। उन्होंने बहुत अच्छा शासन किया इसलिए लोग आज भी अच्छे शासन को रामराज्य की उपमा देते हैं। इनके पुत्र कुश व लव ने इन राज्यों को सँभाला। हिन्दू धर्म के कई त्योहार, जैसे दशहरा, राम नवमी और दीपावली, राम की जीवन-कथा से जुड़े हुए हैं। .

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राज्याभिषेक

राम के राज्याभिषेक का दृष्य राज्याभिषेक एक वैदिक संस्कार है जो राजा बनने की विधिवत घोषणा है। इसी समय राज्य के अन्य अधिकारियों की भी घोषणा होती थी। .

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लक्ष्मण

लक्ष्मण रामायण के एक आदर्श पात्र हैं। इनको शेषनाग का अवतार माना जाता है। रामायण के अनुसार, राजा दशरथ के तीसरे पुत्र थे, उनकी माता सुमित्रा थी। वे राम के भाई थे, इन दोनों भाईयों में अपार प्रेम था। उन्होंने राम-सीता के साथ १४ वर्षो का वनवास किया। मंदिरों में अक्सर ही राम-सीता के साथ उनकी भी पूजा होती है। उनके अन्य भाई भरत और शत्रुघ्न थे। लक्ष्मण हर कला में निपुण थे, चाहे वो मल्लयुद्ध हो या धनुर्विद्या। .

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शिव

शिव या महादेव हिंदू धर्म में सबसे महत्वपूर्ण देवताओं में से एक है। वह त्रिदेवों में एक देव हैं। इन्हें देवों के देव भी कहते हैं। इन्हें भोलेनाथ, शंकर, महेश, रुद्र, नीलकंठ,गंगाधार के नाम से भी जाना जाता है। तंत्र साधना में इन्हे भैरव के नाम से भी जाना जाता है। हिन्दू धर्म के प्रमुख देवताओं में से हैं। वेद में इनका नाम रुद्र है। यह व्यक्ति की चेतना के अन्तर्यामी हैं। इनकी अर्धांगिनी (शक्ति) का नाम पार्वती है। इनके पुत्र कार्तिकेय और गणेश हैं, तथा पुत्री अशोक सुंदरी हैं। शिव अधिक्तर चित्रों में योगी के रूप में देखे जाते हैं और उनकी पूजा शिवलिंग तथा मूर्ति दोनों रूपों में की जाती है। शिव के गले में नाग देवता विराजित हैं और हाथों में डमरू और त्रिशूल लिए हुए हैं। कैलाश में उनका वास है। यह शैव मत के आधार है। इस मत में शिव के साथ शक्ति सर्व रूप में पूजित है। भगवान शिव को संहार का देवता कहा जाता है। भगवान शिव सौम्य आकृति एवं रौद्ररूप दोनों के लिए विख्यात हैं। अन्य देवों से शिव को भिन्न माना गया है। सृष्टि की उत्पत्ति, स्थिति एवं संहार के अधिपति शिव हैं। त्रिदेवों में भगवान शिव संहार के देवता माने गए हैं। शिव अनादि तथा सृष्टि प्रक्रिया के आदिस्रोत हैं और यह काल महाकाल ही ज्योतिषशास्त्र के आधार हैं। शिव का अर्थ यद्यपि कल्याणकारी माना गया है, लेकिन वे हमेशा लय एवं प्रलय दोनों को अपने अधीन किए हुए हैं। राम, रावण, शनि, कश्यप ऋषि आदि इनके भक्त हुए है। शिव सभी को समान दृष्टि से देखते है इसलिये उन्हें महादेव कहा जाता है। .

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सीता

सीता रामायण और रामकथा पर आधारित अन्य रामायण ग्रंथ, जैसे रामचरितमानस, की मुख्य पात्र है। सीता मिथिला के राजा जनक की ज्येष्ठ पुत्री थी। इनका विवाह अयोध्या के राजा दशरथ के ज्येष्ठ पुत्र राम से स्वयंवर में शिवधनुष को भंग करने के उपरांत हुआ था। इनकी स्त्री व पतिव्रता धर्म के कारण इनका नाम आदर से लिया जाता है। त्रेतायुग में इन्हे सौभाग्य की देवी लक्ष्मी का अवतार मानते हैं। .

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हनुमान

हनुमान (संस्कृत: हनुमान्, आंजनेय और मारुति भी) परमेश्वर की भक्ति (हिंदू धर्म में भगवान की भक्ति) की सबसे लोकप्रिय अवधारणाओं और भारतीय महाकाव्य रामायण में सबसे महत्वपूर्ण व्यक्तियों में प्रधान हैं। वह कुछ विचारों के अनुसार भगवान शिवजी के ११वें रुद्रावतार, सबसे बलवान और बुद्धिमान माने जाते हैं। रामायण के अनुसार वे जानकी के अत्यधिक प्रिय हैं। इस धरा पर जिन सात मनीषियों को अमरत्व का वरदान प्राप्त है, उनमें बजरंगबली भी हैं। हनुमान जी का अवतार भगवान राम की सहायता के लिये हुआ। हनुमान जी के पराक्रम की असंख्य गाथाएं प्रचलित हैं। इन्होंने जिस तरह से राम के साथ सुग्रीव की मैत्री कराई और फिर वानरों की मदद से राक्षसों का मर्दन किया, वह अत्यन्त प्रसिद्ध है। ज्योतिषीयों के सटीक गणना के अनुसार हनुमान जी का जन्म 1 करोड़ 85 लाख 58 हजार 112 वर्ष पहले तथा लोकमान्यता के अनुसार त्रेतायुग के अंतिम चरण में चैत्र पूर्णिमा को मंगलवार के दिन चित्रा नक्षत्र व मेष लग्न के योग में सुबह 6.03 बजे भारत देश में आज के झारखंड राज्य के गुमला जिले के आंजन नाम के छोटे से पहाड़ी गाँव के एक गुफ़ा में हुआ था। इन्हें बजरंगबली के रूप में जाना जाता है क्योंकि इनका शरीर एक वज्र की तरह था। वे पवन-पुत्र के रूप में जाने जाते हैं। वायु अथवा पवन (हवा के देवता) ने हनुमान को पालने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। मारुत (संस्कृत: मरुत्) का अर्थ हवा है। नंदन का अर्थ बेटा है। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार हनुमान "मारुति" अर्थात "मारुत-नंदन" (हवा का बेटा) हैं। हनुमान प्रतिमा .

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जनक

जनक नाम से अनेक व्यक्ति हुए हैं। पुराणों के अनुसार इक्ष्वाकुपुत्र निमि ने विदेह के सूर्यवंशी राज्य की स्थापना की, जिसकी राजधानी मिथिला हुई। मिथिला में जनक नाम का एक अत्यंत प्राचीन तथा प्रसिद्ध राजवंश था जिसके मूल पुरुष कोई जनक थे। मूल जनक के बाद मिथिला के उस राजवंश का ही नाम 'जनक' हो गया जो उनकी प्रसिद्धि और शक्ति का द्योतक है। जनक के पुत्र उदावयु, पौत्र नंदिवर्धन् और कई पीढ़ी पश्चात् ह्रस्वरोमा हुए। ह्रस्वरोमा के दो पुत्र सीरध्वज तथा कुशध्वज हुए। जनक नामक एक अथवा अनेक राजाओं के उल्लेख ब्राह्मण ग्रंथों, उपनिषदों, रामायण, महाभारत और पुराणों में हुए हैं। इतना निश्चित प्रतीत होता है कि जनक नाम के कम से कम दो प्रसिद्ध राजा अवश्य हुए; एक तो वैदिक साहित्य के दार्शनिक और तत्वज्ञानी जनक विदेह और दूसरे राम के ससुर जनक, जिन्हें वायुपुराण और पद्मपुराण में सीरध्वज कहा गया है। असंभव नहीं, और भी जनक हुए हों और यही कारण है, कुछ विद्वान् वशिष्ठ और विश्वामित्र की भाँति 'जनक' को भी कुलनाम मानते हैं। सीरध्वज की दो कन्याएँ सीता तथा उर्मिला हुईं जिनका विवाह, राम तथा लक्ष्मण से हुआ। कुशध्वज की कन्याएँ मांडवी तथा श्रुतिकीर्ति हुईं जिनके व्याह भरत तथा शत्रुघ्न से हुए। श्रीमद्भागवत में दी हुई जनकवंश की सूची कुछ भिन्न है, परंतु सीरध्वज के योगिराज होने में सभी ग्रंथ एकमत हैं। इनके अन्य नाम 'विदेह' अथवा 'वैदेह' तथा 'मिथिलेश' आदि हैं। मिथिला राज्य तथा नगरी इनके पूर्वज निमि के नाम पर प्रसिद्ध हुए। .

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विष्णु

वैदिक समय से ही विष्णु सम्पूर्ण विश्व की सर्वोच्च शक्ति तथा नियन्ता के रूप में मान्य रहे हैं। हिन्दू धर्म के आधारभूत ग्रन्थों में बहुमान्य पुराणानुसार विष्णु परमेश्वर के तीन मुख्य रूपों में से एक रूप हैं। पुराणों में त्रिमूर्ति विष्णु को विश्व का पालनहार कहा गया है। त्रिमूर्ति के अन्य दो रूप ब्रह्मा और शिव को माना जाता है। ब्रह्मा को जहाँ विश्व का सृजन करने वाला माना जाता है, वहीं शिव को संहारक माना गया है। मूलतः विष्णु और शिव तथा ब्रह्मा भी एक ही हैं यह मान्यता भी बहुशः स्वीकृत रही है। न्याय को प्रश्रय, अन्याय के विनाश तथा जीव (मानव) को परिस्थिति के अनुसार उचित मार्ग-ग्रहण के निर्देश हेतु विभिन्न रूपों में अवतार ग्रहण करनेवाले के रूप में विष्णु मान्य रहे हैं। पुराणानुसार विष्णु की पत्नी लक्ष्मी हैं। कामदेव विष्णु जी का पुत्र था। विष्णु का निवास क्षीर सागर है। उनका शयन शेषनाग के ऊपर है। उनकी नाभि से कमल उत्पन्न होता है जिसमें ब्रह्मा जी स्थित हैं। वह अपने नीचे वाले बाएँ हाथ में पद्म (कमल), अपने नीचे वाले दाहिने हाथ में गदा (कौमोदकी),ऊपर वाले बाएँ हाथ में शंख (पाञ्चजन्य) और अपने ऊपर वाले दाहिने हाथ में चक्र(सुदर्शन) धारण करते हैं। शेष शय्या पर आसीन विष्णु, लक्ष्मी व ब्रह्मा के साथ, छंब पहाड़ी शैली के एक लघुचित्र में। .

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इलाहाबाद

इलाहाबाद उत्तर भारत के उत्तर प्रदेश के पूर्वी भाग में स्थित एक नगर एवं इलाहाबाद जिले का प्रशासनिक मुख्यालय है। इसका प्राचीन नाम प्रयाग है। इसे 'तीर्थराज' (तीर्थों का राजा) भी कहते हैं। इलाहाबाद भारत का दूसरा प्राचीनतम बसा नगर है। हिन्दू मान्यता अनुसार, यहां सृष्टिकर्ता ब्रह्मा ने सृष्टि कार्य पूर्ण होने के बाद प्रथम यज्ञ किया था। इसी प्रथम यज्ञ के प्र और याग अर्थात यज्ञ से मिलकर प्रयाग बना और उस स्थान का नाम प्रयाग पड़ा जहाँ भगवान श्री ब्रम्हा जी ने सृष्टि का सबसे पहला यज्ञ सम्पन्न किया था। इस पावन नगरी के अधिष्ठाता भगवान श्री विष्णु स्वयं हैं और वे यहाँ माधव रूप में विराजमान हैं। भगवान के यहाँ बारह स्वरूप विध्यमान हैं। जिन्हें द्वादश माधव कहा जाता है। सबसे बड़े हिन्दू सम्मेलन महाकुंभ की चार स्थलियों में से एक है, शेष तीन हरिद्वार, उज्जैन एवं नासिक हैं। हिन्दू धर्मग्रन्थों में वर्णित प्रयाग स्थल पवित्रतम नदी गंगा और यमुना के संगम पर स्थित है। यहीं सरस्वती नदी गुप्त रूप से संगम में मिलती है, अतः ये त्रिवेणी संगम कहलाता है, जहां प्रत्येक बारह वर्ष में कुंभ मेला लगता है। इलाहाबाद में कई महत्त्वपूर्ण राज्य सरकार के कार्यालय स्थित हैं, जैसे इलाहाबाद उच्च न्यायालय, प्रधान महालेखाधिकारी (एजी ऑफ़िस), उत्तर प्रदेश राज्य लोक सेवा आयोग (पी.एस.सी), राज्य पुलिस मुख्यालय, उत्तर मध्य रेलवे मुख्यालय, केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड का क्षेत्रीय कार्यालय एवं उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा परिषद कार्यालय। भारत सरकार द्वारा इलाहाबाद को जवाहर लाल नेहरू राष्ट्रीय शहरी नवीकरण योजना के लिये मिशन शहर के रूप में चुना गया है। .

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अत्रि

Atri (Sanskrit: अत्रि अत्री एक वैदिक ऋषि है, जो कि अग्नि, इंद्र और हिंदू धर्म के अन्य वैदिक देवताओं को बड़ी संख्या में भजन लिखने का श्रेय दिया जाता है। अत्री हिंदू परंपरा में सप्तर्षि (सात महान वैदिक ऋषियों) में से एक है, और सबसे अधिक ऋग्वेद में इसका उल्लेख है। ऋग्वेद के पांचवें मंडल (पुस्तक 5) को उनके सम्मान में अत्री मंडला कहा जाता है, और इसमें अस्सी और सात भजन उनके और उनके वंशज के लिए जिम्मेदार हैं। अत्री का पुराणों और हिंदू महाकाव्य जैसे रामायण और महाभारत में भी उल्लेख किया गया है। अत्रि गोत्र भार्गव ब्राह्मणों की शाखा है। ब्राह्मणों में श्रेष्ठतम अत्रि पूर्व में शिक्षण और तप किया करते थे। अत्रि गोत्रिय ब्राह्मण पूर्व काल से ही अन्य ब्राह्मणों की भांति केवल शैव, वैष्णव या शाक्त मत वाले नहीं है अपितु सभी मतों को मानने वाले हैं। अत्रि मुनि के अनुसार दिवसों, समय योग और औचित्य के अनुसार देव आराधना होनी चाहिए। Life (जीवन) अत्री सात महान ऋषि या सप्तर्षी में से एक है, जिसमें मरिची, अंगिरस, पुलाहा, क्रतु, पुलस्ट्य और वशिष्ठ शामिल हैं। वैदिक युग के पौराणिक कथाओं के अनुसार ऋषि अत्री का अनसुया देवी से विवाह हुआ था। उनके तीन पुत्र थे, दत्तात्रेय, दुर्वासस और सोमा। दैवीय लेखा के अनुसार, वह सात सांपथीओं में से अंतिम है और माना जाता है कि वह जीभ से उत्पन्न हुआ है। अत्री की पत्नी अनुसूया थी, जिन्हें सात महिला पथरावों में से एक माना जाता है। जब दैवीय आवाज़ से तपस्या करने का निर्देश दिया जाता है, तो अत्री तुरंत सहमत हो गया और गंभीर तपस्या की। उनकी भक्ति और प्रार्थनाओं से प्रसन्नता, हिंदू त्रयी, अर्थात्, ब्रह्मा, विष्णु और शिव उनके सामने प्रकट हुए और उन्हें वरदान दिया। उसने सभी तीनों को उसके पास जन्म लेने की मांग की पौराणिक कथाओं का एक और संस्करण बताता है कि अनसुया, उसकी शुद्धता की शक्तियों के द्वारा, तीन देवताओं को बचाया और बदले में, उनका जन्म बच्चों के रूप में हुआ था। ब्रह्मा का जन्म चंद्र के रूप में हुआ, विष्णु को दत्तात्रेय के रूप में और शिव के कुछ हिस्से में दुर्वासा के रूप में पैदा हुआ था। अत्री के बारे में उल्लेख विभिन्न शास्त्रों में पाया जाता है, जिसमें ऋगवेद में उल्लेखनीय अस्तित्व है। वह कई युगों से भी जुड़ा हुआ है, रामायण के दौरान त्रेता युग में उल्लेखनीय अस्तित्व है, जब वह और अनुसूया ने राम और उनकी पत्नी सीता को सलाह दी थी। इस जोड़ी को भी गंगा नदी को धरती पर लाने के लिए जिम्मेदार ठहराया गया है, जिसका उल्लेख शिव पुराण में पाया जाता है। ऋग्वेद का द्रष्टा (Seer of Rig Veda) वह ऋग्वेद का पांचवां मंडल (पुस्तक 5) का द्रष्टा है। अत्री के कई पुत्र और शिष्यों ने ऋगवेद और अन्य वैदिक ग्रंथों के संकलन में योगदान दिया है। मंडल 5 में 87 भजन शामिल हैं, मुख्य रूप से अग्नि और इंद्र, लेकिन विस्वासदेव ("सभी देवताओं"), मारुत्स, जुड़वां-देवता मित्रा-वरुना और असिन्स के लिए। दो भजन उषाओं (सुबह में) और सावित्री के लिए। इस पुस्तक के अधिकांश भजन अत्रि कबीले संगीतकारों को दिया जाता है, जिन्हें अत्रेस कहा जाता है। ऋग्वेद के ये भजन भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र में बनाये गये थे, जो कि लगभग 1500 -1200 बीसीई। ऋग्वेद के अत्री भजन उनके संगीत संबंधी संरचना के लिए महत्वपूर्ण हैं और पहेलियों के रूप में आध्यात्मिक विचारों को दर्शाने के लिए भी महत्वपूर्ण हैं। इन भजनों में संस्कृत भाषा की लचीलेपन का उपयोग करने वाले लेक्सिकल, वाक्यविन्यास, रूपवाचक और क्रिया नाटक शामिल हैं। अत्री मंडल में ऋग्वेद का भजन 5.44 विद्वानों द्वारा माना जाता है जैसे कि गेल्डनर ऋग्वेद में सबसे कठिन पहेली भजन है। छंद, रूपकों के माध्यम से प्राकृतिक घटना की अपनी सुरुचिपूर्ण प्रस्तुति के लिए भी जाना जाता है, जैसे भजन 5.80 में एक हंसमुख महिला के रूप में काव्य रूप से प्रारम्भ किया गया। जबकि पांचवी मंडल को अत्री और उसके सहयोगियों के लिए जिम्मेदार माना जाता है, ऋषि अत्री को अन्य मंडल में 10.137.4 के रूप में ऋग्वेद की कई अन्य छंदों का उल्लेख या श्रेय दिया गया है। रामयान में अध्याय रामायण में, राम, सीता और लक्ष्मण उनके आश्रम में अत्री और अनासूया का दौरा करते हैं। अत्री की झोपड़ी को चित्रकूट में वर्णित किया गया है, दिव्य संगीत और गीतों के साथ एक झील के पास, पानी, फूलों से भरा हुआ, कई "क्रेन, मछुआरों, फ्लोटिंग कछुए, हंस, बेडूक और गुलाबी हंस" के साथ। पुराणों अत्रियों नाम के कई संतों का उल्लेख विभिन्न मध्यकालीन युग पुराणों में किया गया है। अत्री में उस पौराणिक किंवदंतियां विविध और असंगत हैं। यह स्पष्ट नहीं है कि यदि ये एक ही व्यक्ति, या अलग ऋषियों के समान है, जिनका नाम एक ही है। सांस्कृतिक प्रभाव बाएं से दाएं: अत्री, भृगु, विखानास, मारिची और कश्यप वैष्णववाद के भीतर वैश्यन्सास उप-परंपरा तिरुपति के निकट दक्षिण भारत में पाए गए, उनके धर्मशास्त्र को चार ऋषियों (ऋषियों), अर्थात् अत्री, मारीसी, भृगु और कश्यप को जमा करते हैं। इस परंपरा के प्राचीन ग्रंथों में से एक है अत्री संहिता, जो पांडुलिपियों के बेहद असंगत टुकड़ों में जीवित है। पाठ वैचारणा परंपरा के ब्राह्मणों के उद्देश्य से आचरण के नियम हैं। अत्री संहिता के जीवित हिस्सों का सुझाव है कि पाठ में अन्य बातों के बीच, योग और नैतिकता के बारे में चर्चा की गई थी, जैसे कि: आत्म संयम: अगर सामग्री या आध्यात्मिक दर्द दूसरों के द्वारा उत्पन्न होता है, और कोई नाराज नहीं होता है और बदला लेने की स्थिति में नहीं है, इसे दामा कहा जाता है। अन्य की स्त्री को माता समझना भी आत्म संयम में शामिल है। दान पुण्य: यहां तक ​​कि सीमित आय के साथ, कुछ को ध्यान में रखते हुए दैनिक और दैनिक उदारवाद के साथ दिया जाना चाहिए। इसे दाना कहा जाता है। करुणा: किसी को अपने स्वयं की तरह व्यवहार करना चाहिए, दूसरों के प्रति, अपने स्वयं के संबंधों और दोस्तों, जो उसे ईर्ष्या करते हैं, और यहां तक ​​कि अपने दुश्मन भी। इसे दया कहा जाता है। मन-वचन-कर्म से की गई अहिंसा भी करुणा के अंतर्गत आती है। - अत्री संहिता, एमएन दत्त द्वारा अनुवादित दक्षिण भारत में वैचारस एक महत्वपूर्ण समुदाय बना रहे हैं, और वे अपने वैदिक विरासत का पालन करते हैं। अत्रि हिंदुओं के एक महान ऋषि हैं। वनवास काल में श्रीराम तथा माता सीता ने अत्रि आश्रम का भ्रमण किया था। इनकी पत्नी अनसूया ने सीता को पतिव्रता धर्म का उपदेश दिया। अत्रि परंपरा के तीर्थ स्थलों में चित्रकूट, रामेश्वरम, मीनाक्षी अम्मन, तिरुपति बालाजी और हिंगलाज माता मंदिर(वर्तमान में पाकिस्तान) आदि हैं। श्रेणी:रामायण के पात्र श्रेणी:चित्र जोड़ें श्रेणी:हिन्दू पुराण आधार (अत्री/अत्रि, अत्रे/अत्रस्य/आत्रेय।अत्रिष/दत्तात्रे) " हरियाणा, पंजाब, जम्मू & कश्मीर, हिमाचल, उत्तरांचल, देहली, उतर-प्रदेश,चंडीगढ़, पश्चिम-बंगाल, महाराष्ट्र,गुजरात, मध्य प्रदेश के भिंड एवं ग्वालियर जिलों, गोवा,राजस्थान,केरल,तमिल, कर्णाटक, उड़ीसा, श्री-लंका,नेपाल, मलेशिया आदि स्थान पर "अत्री गोत्र" बस्ते हैं। अत्री ऋषि के अनेक पुत्र हुये, इनमें से तीन बड़े पुत्रओ के नाम 1. सोम 2. दुर्वासा 3. दत्ताअत्रे, सभी ब्राह्मण पुत्र हैं, चंद्रमा ओर चन्द्रमा से सभी अत्री हम "चंद्रवंसी" हैं। ओर बहुत प्राचीन समय में हमारी एक शाखा ने क्षत्रिये कर्म अपना लिया। ओर वो शाखा क्षत्रिये अत्रियों की हुई, उतर-प्रदेश में ह वो शाखा जो "अत्रि ऋषि के पुत्र सोम से ये शाखा सोम-राजपूतो की हुई, इसमें राणा ओर तोमर राजपूत आते हैं जो हमारे अत्रि भाई है, ये गाजियाबाद में 64 गांव ओर गौतमबुद्ध नगर(नोयडा) में 84 गांव में हैं ऒर सोम(राणा) अत्रि शामली-बड़ोत में 24 गांव में हैं,महाभारत से पहले अत्रियों के एक ओर शाखा के "यदु" नामक हमारे बड़े ने एक राज्य की स्थापना कि ओर उससे "यदु" अत्री कुल शरू किया ओर इस कुल को मानने वाले यादव हुये।16वीं शाताब्दी में अत्रियों की एक शाखा जाट जाति में आ गई। और ये शाखा राजस्थान,उतरप्रदेश ओर हरियाणा में है।हरियाणा के फरिदाबाद के मोहना और 2गांव पलवल में है।ये शाखा ज्यादा नही है। अब भी ब्राह्मणों वाली शाखा सबसे बड़ी है ओर पुरे हिंदुस्तान के साथ सभी हिन्दू देशो में है। अत्रि ऋषि ने "अत्रि स्मृति लिखी । SC-ST ने भी अत्री गौत्र को ग्रहण किया अत्री गोत्र लिखने लगे। ये पंजाब और जम्मु & कश्मीर में पाए जाते है। गौड़-सारस्वत-द्रविड़-तमिल-मैथली, अय्यर-अयंगर, नंबूदरीपाद, मोहयाल-चितपावन-पंडा-बरागी-डकोत-भूमिहार(बिहार) हम सब (हम सब भाई-भाई) 卐🚩ॐ🚩 वेद_उपनिषद_दर्शन_सारे, स्मृती_पुराण_इतिहास_हमारे ~~🚩ॐ🚩卐.

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चित्रकूट और रामायण के बीच तुलना

चित्रकूट 46 संबंध है और रामायण 150 है। वे आम 13 में है, समानता सूचकांक 6.63% है = 13 / (46 + 150)।

संदर्भ

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