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चार साहिबज़ादे और बन्दा सिंह बहादुर

शॉर्टकट: मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ

चार साहिबज़ादे और बन्दा सिंह बहादुर के बीच अंतर

चार साहिबज़ादे vs. बन्दा सिंह बहादुर

चार साहिबज़ादे शब्द का प्रयोग सिखों के दशम गुरु श्री गुरु गोबिन्द सिंह जी के चार सुपुत्रों - साहिबज़ादा अजीत सिंह, जुझार सिंह, ज़ोरावर सिंह, व फतेह सिंह को सामूहिक रूप से संबोधित करने हेतु किया जाता है। छोटे साहिबजादे “निक्कियां जिंदां, वड्डा साका”.... बन्दा सिंह बहादुर बैरागी एक सिख सेनानायक थे। उन्हें बन्दा बहादुर, लक्ष्मन दास और माधो दास भी कहते हैं। वे पहले ऐसे सिख सेनापति हुए, जिन्होंने मुग़लों के अजेय होने के भ्रम को तोड़ा; छोटे साहबज़ादों की शहादत का बदला लिया और गुरु गोबिन्द सिंह द्वारा संकल्पित प्रभुसत्तासम्पन्न लोक राज्य की राजधानी लोहगढ़ में ख़ालसा राज की नींव रखी। यही नहीं, उन्होंने गुरु नानक देव और गुरू गोबिन्द सिंह के नाम से सिक्का और मोहरे जारी करके, निम्न वर्ग के लोगों की उच्च पद दिलाया और हल वाहक किसान-मज़दूरों को ज़मीन का मालिक बनाया। .

चार साहिबज़ादे और बन्दा सिंह बहादुर के बीच समानता

चार साहिबज़ादे और बन्दा सिंह बहादुर आम में 3 बातें हैं (यूनियनपीडिया में): सरहिंद फतेहगढ़, सिख, गुरु गोबिन्द सिंह

सरहिंद फतेहगढ़

सरहिन्द-फतेहगढ़ फतेहगढ़ साहिब जिला, पंजाब का एक शहर है। इसे प्रायः सरहिंद भी कहा जाता है। सरहिंद में श्री गुरु गोबिंद सिंह जी के २ बेटो को दीवार में चिनवा दिया गिया था .

चार साहिबज़ादे और सरहिंद फतेहगढ़ · बन्दा सिंह बहादुर और सरहिंद फतेहगढ़ · और देखें »

सिख

भारतीय सेना के सिख रेजिमेन्ट के सैनिक सिख धर्म के अनुयायियों को सिख कहते हैं। इसे कभी-कभी सिक्ख भी लिखा जाता है। इनके पहले गुरू गुरु नानक जी हैं। गुरु ग्रंथ साहिब सिखों का पवित्र ग्रन्थ है। इनके प्रार्थना स्थल को गुरुद्वारा कहते हैं। हिन्दू धर्म की रक्षा में तथा भारत की आजादी की लड़ाई में और भारत की आर्थिक प्रगति में सिखों का बहुत बड़ा योगदान है। .

चार साहिबज़ादे और सिख · बन्दा सिंह बहादुर और सिख · और देखें »

गुरु गोबिन्द सिंह

गुरु गोबिन्द सिंह (जन्म: २२ दिसम्बर १६६६, मृत्यु: ७ अक्टूबर १७०८) सिखों के दसवें गुरु थे। उनके पिता गुरू तेग बहादुर की मृत्यु के उपरान्त ११ नवम्बर सन १६७५ को वे गुरू बने। वह एक महान योद्धा, कवि, भक्त एवं आध्यात्मिक नेता थे। सन १६९९ में बैसाखी के दिन उन्होने खालसा पन्थ की स्थापना की जो सिखों के इतिहास की सबसे महत्वपूर्ण घटना मानी जाती है। गुरू गोबिन्द सिंह ने सिखों की पवित्र ग्रन्थ गुरु ग्रंथ साहिब को पूरा किया तथा उन्हें गुरु रूप में सुशोभित किया। बिचित्र नाटक को उनकी आत्मकथा माना जाता है। यही उनके जीवन के विषय में जानकारी का सबसे महत्वपूर्ण स्रोत है। यह दसम ग्रन्थ का एक भाग है। दसम ग्रन्थ, गुरू गोबिन्द सिंह की कृतियों के संकलन का नाम है। उन्होने मुगलों या उनके सहयोगियों (जैसे, शिवालिक पहाडियों के राजा) के साथ १४ युद्ध लड़े। धर्म के लिए समस्त परिवार का बलिदान उन्होंने किया, जिसके लिए उन्हें 'सर्वस्वदानी' भी कहा जाता है। इसके अतिरिक्त जनसाधारण में वे कलगीधर, दशमेश, बाजांवाले आदि कई नाम, उपनाम व उपाधियों से भी जाने जाते हैं। गुरु गोविंद सिंह जहां विश्व की बलिदानी परम्परा में अद्वितीय थे, वहीं वे स्वयं एक महान लेखक, मौलिक चिंतक तथा संस्कृत सहित कई भाषाओं के ज्ञाता भी थे। उन्होंने स्वयं कई ग्रंथों की रचना की। वे विद्वानों के संरक्षक थे। उनके दरबार में ५२ कवियों तथा लेखकों की उपस्थिति रहती थी, इसीलिए उन्हें 'संत सिपाही' भी कहा जाता था। वे भक्ति तथा शक्ति के अद्वितीय संगम थे। उन्होंने सदा प्रेम, एकता, भाईचारे का संदेश दिया। किसी ने गुरुजी का अहित करने की कोशिश भी की तो उन्होंने अपनी सहनशीलता, मधुरता, सौम्यता से उसे परास्त कर दिया। गुरुजी की मान्यता थी कि मनुष्य को किसी को डराना भी नहीं चाहिए और न किसी से डरना चाहिए। वे अपनी वाणी में उपदेश देते हैं भै काहू को देत नहि, नहि भय मानत आन। वे बाल्यकाल से ही सरल, सहज, भक्ति-भाव वाले कर्मयोगी थे। उनकी वाणी में मधुरता, सादगी, सौजन्यता एवं वैराग्य की भावना कूट-कूटकर भरी थी। उनके जीवन का प्रथम दर्शन ही था कि धर्म का मार्ग सत्य का मार्ग है और सत्य की सदैव विजय होती है। .

गुरु गोबिन्द सिंह और चार साहिबज़ादे · गुरु गोबिन्द सिंह और बन्दा सिंह बहादुर · और देखें »

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चार साहिबज़ादे और बन्दा सिंह बहादुर के बीच तुलना

चार साहिबज़ादे 7 संबंध है और बन्दा सिंह बहादुर 28 है। वे आम 3 में है, समानता सूचकांक 8.57% है = 3 / (7 + 28)।

संदर्भ

यह लेख चार साहिबज़ादे और बन्दा सिंह बहादुर के बीच संबंध को दर्शाता है। जानकारी निकाला गया था, जिसमें से एक लेख का उपयोग करने के लिए, कृपया देखें:

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