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चरमपसंदी और प्राच्य

शॉर्टकट: मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ

चरमपसंदी और प्राच्य के बीच अंतर

चरमपसंदी vs. प्राच्य

स्पेन की रिओ तिन्तो (नदी) जिसके तेज़ाब-युक्त पानी को उसमें रह रहे चरमपसंदी जीवाणु एक पीला-नारंगी सा रंग दे देते हैं चरमपसंदी ऐसे जीव को कहा जाता है, जो ऐसे चरम वातावरण में फलता-फूलता हो जहाँ पृथ्वी पर रहने वाले साधारण जीव बहुत कठिनाई से जीवित रह पाते हो या बिलकुल ही रह न सके। ऐसे चरम वातावरणों में ज्वालामुखी चश्मों का खौलता-उबलता हुऐ पानी, तेज़ाब से भरपूर वातावरण और आरसॅनिक जैसे ज़हरीले पदार्थों से युक्त वातावरण शामिल हैं। . प्राच्य या आर्किया (Archaea) एककोशिकीय सूक्ष्मजीवों का अधिजगत निर्मित करते हैं। ये सूक्ष्मजीव अकेन्द्रिक होते हैं, अर्थात् इनके पास कोशिका केन्द्रक नहीं होता हैं। प्राच्य प्रारम्भ में जीवाणु की तरह वगीकृत किये गएँ थे, जिससे उन्हें प्राच्यजीवाणु का नाम मिला (प्राच्यजीवाणु अधिजगत में), पर यह वर्गीकरण अब पुराना हो चुका हैं। प्राच्यीय कोशिकाओं के पास विशिष्ट विशेषताएँ हैं, जो उसे जीवन के अन्य दो अभिजगतों, जीवाणु और सुकेन्द्रिक, से पृथक करता हैं। प्राच्य आगे और कई अभिज्ञात संघों में विभाजित किया जाता हैं। प्राच्य और जीवाणु आम तौर पर आकर और आकृति में समान ही होते हैं, यद्यपि कुछ प्राच्यों का बहुत विचित्र आकार होता हैं, जैसे कि लवणवर्गाकार वॉलस्बी की समतल और वर्गाकार कोशिकाएँ। प्राच्यों को प्रारंभिक रूप से कठोर वातावरण,जैसे हॉट स्प्रिंग्स और नमक झीलों, में रहने वाले चरमपसंदियों के रूप में देखा जाता था, लेकिन वे तब से मिट्टीयों, महासागरों और दलदलों सहित पर्यवासों की एक विस्तृत शृंखला में पाएँ गएँ हैं। प्राच्य महासागरों में विशेष रूप से बहुत संख्या में पाया जाता हैं, और प्लवक में प्राच्य ग्रह पर जीवों के सबसे प्रचुर मात्रा में समूहों में से एक हो सकते हैं। .

चरमपसंदी और प्राच्य के बीच समानता

चरमपसंदी और प्राच्य आम में 2 बातें हैं (यूनियनपीडिया में): सूक्ष्मजीव, जीवाणु

सूक्ष्मजीव

जीवाणुओं का एक झुंड वे जीव जिन्हें मनुष्य नंगी आंखों से नही देख सकता तथा जिन्हें देखने के लिए सूक्ष्मदर्शी यंत्र की आवश्यकता पड़ता है, उन्हें सूक्ष्मजीव (माइक्रोऑर्गैनिज्म) कहते हैं। सूक्ष्मजैविकी (microbiology) में सूक्ष्मजीवों का अध्ययन किया जाता है। सूक्ष्मजीवों का संसार अत्यन्त विविधता से बह्रा हुआ है। सूक्ष्मजीवों के अन्तर्गत सभी जीवाणु (बैक्टीरिया) और आर्किया तथा लगभग सभी प्रोटोजोआ के अलावा कुछ कवक (फंगी), शैवाल (एल्गी), और चक्रधर (रॉटिफर) आदि जीव आते हैं। बहुत से अन्य जीवों तथा पादपों के शिशु भी सूक्ष्मजीव ही होते हैं। कुछ सूक्ष्मजीवविज्ञानी विषाणुओं को भी सूक्ष्मजीव के अन्दर रखते हैं किन्तु अन्य लोग इन्हें 'निर्जीव' मानते हैं। सूक्ष्मजीव सर्वव्यापी होते हैं। यह मृदा, जल, वायु, हमारे शरीर के अंदर तथा अन्य प्रकार के प्राणियों तथा पादपों में पाए जाते हैं। जहाँ किसी प्रकार जीवन संभव नहीं है जैसे गीज़र के भीतर गहराई तक, (तापीय चिमनी) जहाँ ताप 100 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ा हुआ रहता है, मृदा में गहराई तक, बर्फ की पर्तों के कई मीटर नीचे तथा उच्च अम्लीय पर्यावरण जैसे स्थानों पर भी पाए जाते हैं। जीवाणु तथा अधिकांश कवकों के समान सूक्ष्मजीवियों को पोषक मीडिया (माध्यमों) पर उगाया जा सकता है, ताकि वृद्धि कर यह कालोनी का रूप ले लें और इन्हें नग्न नेत्रों से देखा जा सके। ऐसे संवर्धनजन सूक्ष्मजीवियों पर अध्ययन के दौरान काफी लाभदायक होते हैं। .

चरमपसंदी और सूक्ष्मजीव · प्राच्य और सूक्ष्मजीव · और देखें »

जीवाणु

जीवाणु जीवाणु एक एककोशिकीय जीव है। इसका आकार कुछ मिलिमीटर तक ही होता है। इनकी आकृति गोल या मुक्त-चक्राकार से लेकर छड़, आदि आकार की हो सकती है। ये अकेन्द्रिक, कोशिका भित्तियुक्त, एककोशकीय सरल जीव हैं जो प्रायः सर्वत्र पाये जाते हैं। ये पृथ्वी पर मिट्टी में, अम्लीय गर्म जल-धाराओं में, नाभिकीय पदार्थों में, जल में, भू-पपड़ी में, यहां तक की कार्बनिक पदार्थों में तथा पौधौं एवं जन्तुओं के शरीर के भीतर भी पाये जाते हैं। साधारणतः एक ग्राम मिट्टी में ४ करोड़ जीवाणु कोष तथा १ मिलीलीटर जल में १० लाख जीवाणु पाए जाते हैं। संपूर्ण पृथ्वी पर अनुमानतः लगभग ५X१०३० जीवाणु पाए जाते हैं। जो संसार के बायोमास का एक बहुत बड़ा भाग है। ये कई तत्वों के चक्र में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं, जैसे कि वायुमंडलीय नाइट्रोजन के स्थरीकरण में। हलाकि बहुत सारे वंश के जीवाणुओं का श्रेणी विभाजन भी नहीं हुआ है तथापि लगभग आधी प्रजातियों को किसी न किसी प्रयोगशाला में उगाया जा चुका है। जीवाणुओं का अध्ययन बैक्टिरियोलोजी के अन्तर्गत किया जाता है जो कि सूक्ष्म जैविकी की ही एक शाखा है। मानव शरीर में जितनी भी मानव कोशिकाएं है, उसकी लगभग १० गुणा संख्या तो जीवाणु कोष की ही है। इनमें से अधिकांश जीवाणु त्वचा तथा अहार-नाल में पाए जाते हैं। हानिकारक जीवाणु इम्यून तंत्र के रक्षक प्रभाव के कारण शरीर को नुकसान नहीं पहुंचा पाते। कुछ जीवाणु लाभदायक भी होते हैं। अनेक प्रकार के परजीवी जीवाणु कई रोग उत्पन्न करते हैं, जैसे - हैजा, मियादी बुखार, निमोनिया, तपेदिक या क्षयरोग, प्लेग इत्यादि.

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चरमपसंदी और प्राच्य के बीच तुलना

चरमपसंदी 21 संबंध है और प्राच्य 13 है। वे आम 2 में है, समानता सूचकांक 5.88% है = 2 / (21 + 13)।

संदर्भ

यह लेख चरमपसंदी और प्राच्य के बीच संबंध को दर्शाता है। जानकारी निकाला गया था, जिसमें से एक लेख का उपयोग करने के लिए, कृपया देखें:

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