चंद्रा एक्स-रे वेधशाला और पृथ्वी का वायुमण्डल
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चंद्रा एक्स-रे वेधशाला और पृथ्वी का वायुमण्डल के बीच अंतर
चंद्रा एक्स-रे वेधशाला vs. पृथ्वी का वायुमण्डल
(विकिपीडिया अंग्रेजी से अनुवादित) चंद्रा एक्स-रे वेधशाला (Chandra X-ray Observatory), एक कृत्रिम उपग्रह है जिसे २३ जुलाई १९९९ को STS-93 पर नासा द्वारा प्रक्षेपित किया गया। इसका नामकरण भारतीय - अमेरिकी भौतिक विज्ञानी सुब्रमण्यम चंद्रशेखर के सम्मान में किया गया जो कि सफ़ेद बौने तारों के लिए अधिकतम द्रव्यमान का निर्धारण करने के लिए जाने जाते हैं। संस्कृत में चन्द्र का अर्थ ' चन्द्रमा' और 'चमक' भी होता है। चंद्रा वेधशाला नासा की चार महान वेधशालाओं में से तीसरी वेधशाला है। सबसे पहली हबल अंतरिक्ष दूरदर्शी, दूसरी कॉम्पटॉन गामा रे वेधशाला (१९९१ में प्रक्षेपित) और अंतिम स्पिट्जर अंतरिक्ष दूरदर्शी है। सफल प्रक्षेपण से पहले चंद्रा वेधशाला को AXAF ' एडवांस एक्स -रे एस्ट्रोफिजिक्स फेसिलिटी ' के रूप में जाना जाता था।| AXAF का परिक्षण रेडोन्ड़ो तट, केलिफोर्निया में TRW (अब नोर्थरोप ग्रुम्मान एयरोस्पेस सिस्टम) द्वारा किया गया था। चंद्रा एक्स-रे अपने उच्च कोणीय रिज़ॉल्यूशन दर्पण के कारण किसी भी पिछले एक्स-रे दूरबीन की तुलना में १०० गुना अधिक संवेदनशील है। पृथ्वी के वायुमंडल द्वारा अधिकतम प्रकार की एक्स-रे का बड़ी मात्रा में अवशोषण कर लिया जाता है जिसका धरती आधारित दूरबीनों से पता नहीं लगाया जा सकता | इस कारण अवलोकन के लिए एक अंतरिक्ष आधारित दूरबीन बनानेकी आवश्यकता हुई। . अंतरिक्ष से पृथ्वी का दृश्य: वायुमंडल नीला दिख रहा है। पृथ्वी को घेरती हुई जितने स्थान में वायु रहती है उसे वायुमंडल कहते हैं। वायुमंडल के अतिरिक्त पृथ्वी का स्थलमंडल ठोस पदार्थों से बना और जलमंडल जल से बने हैं। वायुमंडल कितनी दूर तक फैला हुआ है, इसका ठीक ठीक पता हमें नहीं है, पर यह निश्चित है कि पृथ्वी के चतुर्दिक् कई सौ मीलों तक यह फैला हुआ है। वायुमंडल के निचले भाग को (जो प्राय: चार से आठ मील तक फैला हुआ है) क्षोभमंडल, उसके ऊपर के भाग को समतापमंडल और उसके और ऊपर के भाग को मध्य मण्डलऔर उसके ऊपर के भाग को आयनमंडल कहते हैं। क्षोभमंडल और समतापमंडल के बीच के बीच के भाग को "शांतमंडल" और समतापमंडल और आयनमंडल के बीच को स्ट्रैटोपॉज़ कहते हैं। साधारणतया ऊपर के तल बिलकुल शांत रहते हैं। प्राणियों और पादपों के जीवनपोषण के लिए वायु अत्यावश्यक है। पृथ्वीतल के अपक्षय पर भी इसका गहरा प्रभाव पड़ता है। नाना प्रकार की भौतिक और रासायनिक क्रियाएँ वायुमंडल की वायु के कारण ही संपन्न होती हैं। वायुमंडल के अनेक दृश्य, जैसे इंद्रधनुष, बिजली का चमकना और कड़कना, उत्तर ध्रुवीय ज्योति, दक्षिण ध्रुवीय ज्योति, प्रभामंडल, किरीट, मरीचिका इत्यादि प्रकाश या विद्युत के कारण उत्पन्न होते हैं। वायुमंडल का घनत्व एक सा नहीं रहता। समुद्रतल पर वायु का दबाव 760 मिलीमीटर पारे के स्तंभ के दाब के बराबर होता है। ऊपर उठने से दबाव में कमी होती जाती है। ताप या स्थान के परिवर्तन से भी दबाव में अंतर आ जाता है। सूर्य की लघुतरंग विकिरण ऊर्जा से पृथ्वी गरम होती है। पृथ्वी से दीर्घतरंग भौमिक ऊर्जा का विकिरण वायुमंडल में अवशोषित होता है। इससे वायुमंडल का ताप - 68 डिग्री सेल्सियस से 55 डिग्री सेल्सियस के बीच ही रहता है। 100 किमी के ऊपर पराबैंगनी प्रकाश से आक्सीजन अणु आयनों में परिणत हो जाते हैं और परमाणु इलेक्ट्रॉनों में। इसी से इस मंडल को आयनमंडल कहते हैं। रात्रि में ये आयन या इलेक्ट्रॉन फिर परस्पर मिलकर अणु या परमाणु में परिणत हो जाते हैं जिससे रात्रि के प्रकाश के वर्णपट में हरी और लाल रेखाएँ दिखाई पड़ती हैं। .
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