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ग्वालियर प्रशस्ति और नागभट्ट द्वितीय

शॉर्टकट: मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ

ग्वालियर प्रशस्ति और नागभट्ट द्वितीय के बीच अंतर

ग्वालियर प्रशस्ति vs. नागभट्ट द्वितीय

मिहिरकुल की ग्वालियर प्रशस्ति एक शिलालेख है जिस पर संस्कृत में मातृछेत द्वारा सूर्य मन्दिर के निर्माण का उल्लेख है। अलेक्जैण्डर कनिंघम ने १८६१ में इसे देखा था और इसके बारे में उसी वर्ष प्रकाशित किया। उसके बाद इस शिलालेख के अनेकों अनुवाद प्रकाशित हो चुके हैं। यह क्षतिग्रत अवस्था में विद्यमान है। इसकी लिपि प्राचीन उत्तरी गुप्त लिपि है और श्लोक के रूप में लिखा गया है। इस शिलालेख में हूण राजा मिहिरकुल के शासनकाल में, ६ठी शताब्दी के प्रथम भाग में सूर्य मन्दिर के निर्माण का उल्लेख है।. नागभट्ट द्वितीय (805-833), अपने पिता वत्सराज से गद्दी प्राप्त कर गुर्जर-प्रतिहार राजवंश के चौथे राजा बने। उनकी माता का नाम सुन्दरीदेवी था। नागभट्ट द्वितीय को परमभट्टारक, महाराजाधिराज और कन्नौज विजय के बाद 'परमेश्वर' की उपाधि दी गई थी। शाकम्भरी के चाहमानों ने गुर्जरों की अधिनता स्वीकार कर ली और उस समय के चाहमान प्रमुख गुवक ने अपनी बहन कलावती का विवाह नागभट्ट से करा दिया। निस्संदेह नागभट्ट द्वितीय गुर्जर प्रतीहार वंश का एक शक्तिशाली शासक था। चन्द्रप्रभासुरि कृत प्रभावकचरित के अन्तर्गत बप्पभट्टिचरित में नागभट्ट के ग्वालियर के भव्य दरबार का वर्णन मिलता हैं। उसके दरबार के नवरत्नों मे से एक जैन आचार्य बप्पभट्टिसुरि के कहने से नागभट्ट ने ग्वालियर में जैन प्रतिमाएं स्थापित करवायी थी। पं० गौरीशंकर हीराचन्द्र ओझा के अनुसार जिस नाहड़राव प्रतिहार ने पुष्कर सरोवर (अजमेर) का निर्माण कराया था, वो असल में नागभट्ट द्वितीय ही था। .

ग्वालियर प्रशस्ति और नागभट्ट द्वितीय के बीच समानता

ग्वालियर प्रशस्ति और नागभट्ट द्वितीय आम में एक बात है (यूनियनपीडिया में): गुर्जर प्रतिहार राजवंश

गुर्जर प्रतिहार राजवंश

प्रतिहार वंश मध्यकाल के दौरान मध्य-उत्तर भारत के एक बड़े हिस्से में राज्य करने वाला राजवंश था, जिसकी स्थापना नागभट्ट नामक एक सामन्त ने ७२५ ई॰ में की थी। इस राजवंश के लोग स्वयं को राम के अनुज लक्ष्मण के वंशज मानते थे, जिसने अपने भाई राम को एक विशेष अवसर पर प्रतिहार की भाँति सेवा की। इस राजवंश की उत्पत्ति, प्राचीन कालीन ग्वालियर प्रशस्ति अभिलेख से ज्ञात होती है। अपने स्वर्णकाल में साम्राज्य पश्चिम में सतुलज नदी से उत्तर में हिमालय की तराई और पुर्व में बगांल असम से दक्षिण में सौराष्ट्र और नर्मदा नदी तक फैला हुआ था। सम्राट मिहिर भोज, इस राजवंश का सबसे प्रतापी और महान राजा थे। अरब लेखकों ने मिहिरभोज के काल को सम्पन्न काल बताते हैं। इतिहासकारों का मानना है कि गुर्जर प्रतिहार राजवंश ने भारत को अरब हमलों से लगभग ३०० वर्षों तक बचाये रखा था, इसलिए गुर्जर प्रतिहार (रक्षक) नाम पड़ा। गुर्जर प्रतिहारों ने उत्तर भारत में जो साम्राज्य बनाया, वह विस्तार में हर्षवर्धन के साम्राज्य से भी बड़ा और अधिक संगठित था। देश के राजनैतिक एकीकरण करके, शांति, समृद्धि और संस्कृति, साहित्य और कला आदि में वृद्धि तथा प्रगति का वातावरण तैयार करने का श्रेय प्रतिहारों को ही जाता हैं। गुर्जर प्रतिहारकालीन मंदिरो की विशेषता और मूर्तियों की कारीगरी से उस समय की प्रतिहार शैली की संपन्नता का बोध होता है। .

गुर्जर प्रतिहार राजवंश और ग्वालियर प्रशस्ति · गुर्जर प्रतिहार राजवंश और नागभट्ट द्वितीय · और देखें »

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ग्वालियर प्रशस्ति और नागभट्ट द्वितीय के बीच तुलना

ग्वालियर प्रशस्ति 12 संबंध है और नागभट्ट द्वितीय 15 है। वे आम 1 में है, समानता सूचकांक 3.70% है = 1 / (12 + 15)।

संदर्भ

यह लेख ग्वालियर प्रशस्ति और नागभट्ट द्वितीय के बीच संबंध को दर्शाता है। जानकारी निकाला गया था, जिसमें से एक लेख का उपयोग करने के लिए, कृपया देखें:

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