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ग्रिगोरी रास्पुतिन और थियिसोफिकल सोसाइटी

शॉर्टकट: मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ

ग्रिगोरी रास्पुतिन और थियिसोफिकल सोसाइटी के बीच अंतर

ग्रिगोरी रास्पुतिन vs. थियिसोफिकल सोसाइटी

ग्रिगोरी रास्पुतिन (p) एक रूसी किसान, एक अनुभवी यात्री, एक रहस्यवादी आस्था चिकित्सक, और रूसी साम्राज्य के अंतिम त्सार, निकोलस द्वितीय के परिवार के एक विश्वसनीय मित्र थे। वे सेंट पीटर्सबर्ग में एक प्रभावशाली व्यक्ति बन गएँ, ख़ासकर अगस्त १९१५ के पश्चात्, जब निकोलस ने प्रथम विश्व युद्ध में युद्धरत सेना की कमान संभाली। असंख्य आध्यात्मिक और राजनीतिक मुद्दों पर त्सार की पत्नी Alexandra Feodorovna को सलाह देते हुयें, रास्पुतिन रूसी राष्ट्रवादियों, उदारवादियों और अभिजातों के लिए एक आसान बलि का बकरा बन गएँ। रास्पुतिन के जीवन और उनका कमज़ोर इच्छाशक्ति वाले त्सार और हठी त्सारिना पर कितना प्रभाव था, इन बातों को लेकर बहुत अनिश्चितता हैं। वर्णन अक्सर संदिग्ध संस्मरणों, अफ़वाहों और किंवदंती पर आधारित हैं। भले उनके प्रभाव और स्तर की अतिशयोक्ति हुई हो — रास्पुतिन शक्ति, ऐयाशी और हवस का समानार्थी बन गएँ — उनकी उपस्थिति ने शाही दम्पति की बढ़ती अलोकप्रियता में अहम भूमिका निभाई। रास्पुतिन की हत्या राजतन्त्रवादियों द्वारा हुई, जिन्हें शाही परिवार पर रास्पुतिन के असर को ख़त्म कर, त्सारवाद को बचाने की उम्मीद थी। आचार्य रास्पुतिन . थियिसोफिकल सोसाइटी की मुहर थियोसॉफिकल सोसाइटी (Theosophical Society) एक अंतर्राष्ट्रीय आध्यात्मिक संस्था है। 'थियोसोफी ग्रीक भाषा के दो शब्दों "थियोस" तथा "सोफिया" से मिलकर बना है जिसका अर्थ हिंदू धर्म की "ब्रह्मविद्या", ईसाई धर्म के 'नोस्टिसिज्म' अथवा इस्लाम धर्म के "सूफीज्म" के समकक्ष किया जा सकता है। कोई प्राचीन अथव अर्वाचीन दर्शन, जो परमात्मा के विषय में चर्चा करे, सामान्यत: थियोसाफी कहा जा सकता है। इस शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग आइंब्लिकस (Iamblichus) ने ईसवी सन् 300 के आसपास किया था। आइंब्लिकस प्लैटो संप्रदाय के अमोनियस सक्कस (Ammonias Saccas) का अनुयायी था। उसने सिमंदरिया के अपने "सारग्राही मतवादः (Eclectic school) के प्रसंग में इस शब्द का प्रयोग किया था। इसके पश्चात् पाईथोगोरस के जीवनदर्शन में उसकीर शिक्षाओं के अंश उपलब्ध होते हैं। थियोसॉफिकल सोसाइटी ने विधिवत् एवं सुनिश्चित परिभाषा द्वारा थियोसॉफी शब्द को सीमाबद्ध करने का कभी भी प्रयत्न नहीं किया। सोसाइटी के उद्देश्य में इस शब्द का उल्लेख तक नहीं है। समस्त धर्म एवं दर्शन का मूलाधार "सत्य", थियोसोफी ही है। थियोसॉफिकल सोसाइटी वस्तुत: सब प्रकार के भेदभाव से रहित सत्यान्वेषी साधकों का एक समूह है। सोसाइटी के लिये महत्वपूर्ण है केवल सत्यान्वेषण। उसके लिए व्यक्ति सर्वथा गौण है। व्यक्ति के संमान अथवा उसके विरोध के लिये उसमें कोई स्थान नहीं है। इसने अनेक सुविख्यात, महत्वपूर्ण और विभिन्न विचारधारावाले व्यक्तियों को प्रभावित किया है। सांस्कृतिक दृष्टि से इस संस्था द्वारा प्रचारित चिंतनपद्धति विज्ञान, धर्म और दर्शन के संश्लेषण द्वारा आत्मचेतना के विकास की प्रेरणा प्रदान करती है। सोसाइटी का लक्ष्य ऐसे मानव समाज का निर्माण करना है जिसमें सेवा, सहिष्णुता, आत्मविश्वास और समत्व भाव स्वयंसिद्ध हों। .

ग्रिगोरी रास्पुतिन और थियिसोफिकल सोसाइटी के बीच समानता

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