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ग्रहीय क्रोड

सूची ग्रहीय क्रोड

सौर मंडल के कुछ अंदरूनी ग्रहों की आंतरिक संरचना ग्रहीय क्रोड (planetary core) किसी ग्रह, उपग्रह या बड़े क्षुद्रग्रह की सबसे भीतरी तह को कहा जाता है। यह ठोस या द्रव (लिक्विड) या उन दोनों की परतों का सम्मिलन हो सकती है। हमारे सौर मंडल में ग्रहीय क्रोड का पूरी वस्तु की त्रिज्या (रेडियस) में हिस्सा चंद्रमा में २०% से लेकर बुध ग्रह (मर्क्युरी) में ८५% तक है। गैस दानवों की भी क्रोडें होती हैं लेकिन उनकी बनावट पर बहस जारी है - वह पत्थर की, बर्फ़ की या फिर धातु हाइड्रोजन के द्रव की हो सकती है। .

11 संबंधों: चन्द्रमा, त्रिज्या, द्रव, धातु हाइड्रोजन, प्राकृतिक उपग्रह, बुध (ग्रह), सौर मण्डल, खगोलीय वस्तु, ग्रह, गैस दानव, क्षुद्रग्रह

चन्द्रमा

कोई विवरण नहीं।

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त्रिज्या

किसी वृत्त के केंद्र से परिधि तक की दूरी को 'त्रिज्या' या 'अर्धव्यास' कहते हैं त्रिज्या या अर्धव्यास किसी वृत्त के केन्द्र से उसकी परिधि तक की दूरी को कहते हैं। .

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द्रव

द्रव का कोई निश्चित आकार नहीं होता। द्रव जिस पात्र में रखा जाता है उसी का आकार ग्रहण कर लेता है। प्रकृति में सभी रासायनिक पदार्थ साधारणत: ठोस, द्रव और गैस तथा प्लाज्मा - इन चार अवस्थाओं में पाए जाते हैं। द्रव और गैस प्रवाहित हो सकते हैं, किंतु ठोस प्रवाहित नहीं होता। लचीले ठोस पदार्थों में आयतन अथवा आकार को विकृत करने से प्रतिबल उत्पन्न होता है। अल्प विकृतियों के लिए विकृति और प्रतिबल परस्पर समानुपाती होते हैं। इस गुण के कारण लचीले ठोस एक निश्चित मान तक के बाहरी बलों को सँभालने की क्षमता रखते हैं। प्रवाह का गुण होने के कारण द्रवों और गैसों को तरल पदार्थ (fluid) कहा जाता है। ये पदार्थ कर्तन (shear) बलों को सँभालने में अक्षम होते हैं और गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव के कारण प्रवाहित होकर जिस बरतन में रखे रहते हैं, उसी का आकार धारण कर लेते हैं। ठोस और तरल का यांत्रिक भेद बहुत स्पष्ट नहीं है। बहुत से पदार्थ, विशेषत: उच्च कोटि के बहुलक (polymer) के यांत्रिक गुण, श्यान तरल (viscous fluid) और लचीले ठोस के गुणों के मध्यवर्ती होते हैं। प्रत्येक पदार्थ के लिए एक ऐसा क्रांतिक ताप (critical temperature) पाया जाता है, जिससे अधिक होने पर पदार्थ केवल तरल अवस्था में रह सकता है। क्रांतिक ताप पर पदार्थ की द्रव और गैस अवस्था में विशेष अंतर नहीं रह जाता। इससे नीचे के प्रत्येक ताप पर द्रव के साथ उसका कुछ वाष्प भी उपस्थित रहता है और इस वाष्प का कुछ निश्चित दबाव भी होता है। इस दबाव को वाष्प दबाव कहते हैं। प्रत्येक ताप पर वाष्प दबाव का अधिकतम मान निश्चित होता है। इस अधिकतम दबाव को संपृक्त-वाष्प-दबाव के बराबर अथवा उससे अधिक हो, तो द्रव स्थायी रहता है। यदि ऊपरी दबाव द्रव के संपृक्तवाष्प-दबाव से कम हो, तो द्रव अस्थायी होता है। संपृक्त-वाष्प-दबाव ताप के बढ़ने से बढ़ता है। जिस ताप पर द्रव का संपृक्त-वाष्प-दबाव बाहरी वातावरण के दबाव के बराबर हो जाता है, उसपर द्रव बहुत तेजी से वाष्पित होने लगता है। इस ताप को द्रव का क्वथनांक (boiling point) कहते हैं। यदि बाहरी दबाव सर्वथा स्थायी हो तो क्वथनांक से नीचे द्रव स्थायी रहता है। क्वथनांक पर पहुँचने पर यह खौलने लगता है। इस दशा में यह ताप का शोषण करके द्रव अवस्था से गैस अवस्था में परिवर्तित होने लगता है। क्वथनांक पर द्रव के इकाई द्रव्यमान को द्रव से पूर्णत: गैस में परिवर्तित करने के लिए जितने कैलोरी ऊष्मा की आवश्यकता होती है, उसे द्रव के वाष्पीभवन की गुप्त ऊष्मा कहते हैं। विभिन्न द्रव पदार्थों के लिए इसका मान भिन्न होता है। एक नियत दबाव पर ठोस और द्रव दोनों रूप साथ साथ एक निश्चित ताप पर पाए जा सकते हैं। यह ताप द्रव का हिमबिंदु या ठोस का द्रवणांक कहलाता है। द्रवणांक पर पदार्थ के इकाई द्रव्यमान को ठोस से पूर्णत: द्रव में परिवर्तित करने में जितनी ऊष्मा की आवश्यकता होती है, उसे ठोस के गलन की गुप्त ऊष्मा कहते हैं। अक्रिस्टली पदार्थों के लिए कोई नियत गलनांक नहीं पाया जाता। वे गरम करने पर धीरे धीरे मुलायम होते जाते हैं और फिर द्रव अवस्था में आ जाते हैं। काँच तथा काँच जैसे अन्य पदार्थ इसी प्रकार का व्यवहार करते हैं। एक नियत ताप और नियत दबाव पर प्रत्येक द्रव्य की तीनों अवस्थाएँ एक साथ विद्यमान रह सकती हैं। दबाव और ताप के बीच खीचें गए आरेख (diagram) में ये नियत ताप और दबाव एक बिंदु द्वारा प्रदर्शित किए जाते हैं। इस बिंदु को द्रव का त्रिक् बिंदु (triple point) कहते हैं। त्रिक् विंदु की अपेक्षा निम्न दाबों पर द्रव अस्थायी रहता है। यदि किसी ठोस को त्रिक् विंदु की अपेक्षा निम्न दबाव पर रखकर गरम किया जाए तो वह बिना द्रव बने ही वाष्प में परिवर्तित हो जाता है, अर्थात् ऊर्ध्वपातित (sublime) हो जाता है। द्रव के मुक्त तल में, जो उस द्रव के वाष्प या सामान्य वायु के संपर्क में रहता है, एक विशेष गुण पाया जाता है, जिसके कारण यह तल तनी हुई महीन झिल्ली जैसा व्यवहार करता है। इस गुण को पृष्ठ तनाव (surface tension) कहते हैं। पृष्ठ तनाव के कारण द्रव के पृष्ठ का क्षेत्रफल यथासंभव न्यूनतम होता है। किसी दिए आयतन के लिए सबसे कम क्षेत्रफल एक गोले का होता है। अत: ऐसी स्थितियों में जब कि बाहरी बल नगण्य माने जा सकते हों द्रव की बूँदे गोल होती हैं। जब कोई द्रव किसी ठोस, या अन्य किसी अमिश्रय द्रव, के संपर्क में आता है तो भी संपर्क तल पर तनाव उत्पन्न होता है। साधारणत: कोई भी पदार्थ केवल एक ही प्रकार के द्रव रूप में प्राप्त होता है, किंतु इसके कुछ अपवाद भी मिलते हैं, जैसे हीलियम गैस को द्रवित करके दो प्रकार के हीलियम द्रव प्राप्त किए जा सकते हैं। उसी प्रकार पैरा-ऐज़ॉक्सी-ऐनिसोल (Para-azoxy-anisole) प्रकाशत: विषमदैशिक (anisotropic) द्रव के रूप में, क्रिस्टलीय अवस्था में तथा सामान्य द्रव के रूप में भी प्राप्त हो सकता है। .

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धातु हाइड्रोजन

बृहस्पति जैसे कुछ गैस दानव ग्रहों के केन्द्रों में धातु हाइड्रोजन है धातु हाइड्रोजन (metallic hydrogen) हाइड्रोजन की ऐसी अवस्था को कहते हैं जब वह भयंकर दबाव में कुचली जाकर अवस्था परिवर्तन (phase transition) करके विकृत हो जाए।, Gabor Kalman, J. Martin Rommel, Krastan Blagoev, Kastan Blagoev, Springer, 1998, ISBN 978-0-306-46031-9,...

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प्राकृतिक उपग्रह

टाइटन) इतना बड़ा है के उसका अपना वायु मण्डल है - आकारों की तुलना के लिए पृथ्वी भी दिखाई गई है प्राकृतिक उपग्रह या चन्द्रमा ऐसी खगोलीय वस्तु को कहा जाता है जो किसी ग्रह, क्षुद्रग्रह या अन्य वस्तु के इर्द-गिर्द परिक्रमा करता हो। जुलाई २००९ तक हमारे सौर मण्डल में ३३६ वस्तुओं को इस श्रेणी में पाया गया था, जिसमें से १६८ ग्रहों की, ६ बौने ग्रहों की, १०४ क्षुद्रग्रहों की और ५८ वरुण (नॅप्ट्यून) से आगे पाई जाने वाली बड़ी वस्तुओं की परिक्रमा कर रहे थे। क़रीब १५० अतिरिक्त वस्तुएँ शनि के उपग्रही छल्लों में भी देखी गई हैं लेकिन यह ठीक से अंदाज़ा नहीं लग पाया है के वे शनि की उपग्रहों की तरह परिक्रमा कर रही हैं या नहीं। हमारे सौर मण्डल से बाहर मिले ग्रहों के इर्द-गिर्द अभी कोई उपग्रह नहीं मिला है लेकिन वैज्ञानिकों का विशवास है के ऐसे उपग्रह भी बड़ी संख्या में ज़रूर मौजूद होंगे। जो उपग्रह बड़े होते हैं वे अपने अधिक गुरुत्वाकर्षण की वजह से अन्दर खिचकर गोल अकार के हो जाते हैं, जबकि छोटे चन्द्रमा टेढ़े-मेढ़े भी होते हैं (जैसे मंगल के उपग्रह - फ़ोबस और डाइमस)। .

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बुध (ग्रह)

बुध (Mercury), सौरमंडल के आठ ग्रहों में सबसे छोटा और सूर्य से निकटतम है। इसका परिक्रमण काल लगभग 88 दिन है। पृथ्वी से देखने पर, यह अपनी कक्षा के ईर्दगिर्द 116 दिवसो में घूमता नजर आता है जो कि ग्रहों में सबसे तेज है। गर्मी बनाए रखने के लिहाज से इसका वायुमंडल चुंकि करीब करीब नगण्य है, बुध का भूपटल सभी ग्रहों की तुलना में तापमान का सर्वाधिक उतार-चढाव महसूस करता है, जो कि 100 K (−173 °C; −280 °F) रात्रि से लेकर भूमध्य रेखीय क्षेत्रों में दिन के समय 700 K (427 °C; 800 °F) तक है। वहीं ध्रुवों के तापमान स्थायी रूप से 180 K (−93 °C; −136 °F) के नीचे है। बुध के अक्ष का झुकाव सौरमंडल के अन्य किसी भी ग्रह से सबसे कम है (एक डीग्री का करीब), परंतु कक्षीय विकेन्द्रता सर्वाधिक है। बुध ग्रह पर की तुलना में सूर्य से करीब 1.5 गुना ज्यादा दूर होता है। बुध की धरती क्रेटरों से अटी पडी है तथा बिलकुल हमारे चन्द्रमा जैसी नजर आती है, जो इंगित करता है कि यह भूवैज्ञानिक रूप से अरबो वर्षों तक मृतप्राय रहा है। बुध को पृथ्वी जैसे अन्य ग्रहों के समान मौसमों का कोई भी अनुभव नहीं है। यह जकडा हुआ है इसलिए इसके घूर्णन की राह सौरमंडल में अद्वितीय है। किसी स्थिर खडे सितारे के सापेक्ष देखने पर, यह हर दो कक्षीय प्रदक्षिणा के दरम्यान अपनी धूरी के ईर्दगिर्द ठीक तीन बार घूम लेता है। सूर्य की ओर से, किसी ऐसे फ्रेम ऑफ रिफरेंस में जो कक्षीय गति से घूमता है, देखने पर यह हरेक दो बुध वर्षों में मात्र एक बार घूमता नजर आता है। इस कारण बुध ग्रह पर कोई पर्यवेक्षक एक दिवस हरेक दो वर्षों का देखेगा। बुध की कक्षा चुंकि पृथ्वी की कक्षा (शुक्र के भी) के भीतर स्थित है, यह पृथ्वी के आसमान में सुबह में या शाम को दिखाई दे सकता है, परंतु अर्धरात्रि को नहीं। पृथ्वी के सापेक्ष अपनी कक्षा पर सफर करते हुए यह शुक्र और हमारे चन्द्रमा की तरह कलाओं के सभी रुपों का प्रदर्शन करता है। हालांकि बुध ग्रह बहुत उज्जवल वस्तु जैसा दिख सकता है जब इसे पृथ्वी से देख जाए, सूर्य से इसकी निकटता शुक्र की तुलना में इसे देखना और अधिक कठिन बनाता है। .

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सौर मण्डल

सौर मंडल में सूर्य और वह खगोलीय पिंड सम्मलित हैं, जो इस मंडल में एक दूसरे से गुरुत्वाकर्षण बल द्वारा बंधे हैं। किसी तारे के इर्द गिर्द परिक्रमा करते हुई उन खगोलीय वस्तुओं के समूह को ग्रहीय मण्डल कहा जाता है जो अन्य तारे न हों, जैसे की ग्रह, बौने ग्रह, प्राकृतिक उपग्रह, क्षुद्रग्रह, उल्का, धूमकेतु और खगोलीय धूल। हमारे सूरज और उसके ग्रहीय मण्डल को मिलाकर हमारा सौर मण्डल बनता है। इन पिंडों में आठ ग्रह, उनके 166 ज्ञात उपग्रह, पाँच बौने ग्रह और अरबों छोटे पिंड शामिल हैं। इन छोटे पिंडों में क्षुद्रग्रह, बर्फ़ीला काइपर घेरा के पिंड, धूमकेतु, उल्कायें और ग्रहों के बीच की धूल शामिल हैं। सौर मंडल के चार छोटे आंतरिक ग्रह बुध, शुक्र, पृथ्वी और मंगल ग्रह जिन्हें स्थलीय ग्रह कहा जाता है, मुख्यतया पत्थर और धातु से बने हैं। और इसमें क्षुद्रग्रह घेरा, चार विशाल गैस से बने बाहरी गैस दानव ग्रह, काइपर घेरा और बिखरा चक्र शामिल हैं। काल्पनिक और्ट बादल भी सनदी क्षेत्रों से लगभग एक हजार गुना दूरी से परे मौजूद हो सकता है। सूर्य से होने वाला प्लाज़्मा का प्रवाह (सौर हवा) सौर मंडल को भेदता है। यह तारे के बीच के माध्यम में एक बुलबुला बनाता है जिसे हेलिओमंडल कहते हैं, जो इससे बाहर फैल कर बिखरी हुई तश्तरी के बीच तक जाता है। .

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खगोलीय वस्तु

आकाशगंगा सब से बड़ी खगोलीय वस्तुएँ होती हैं - एन॰जी॰सी॰ ४४१४ हमारे सौर मण्डल से ६ करोड़ प्रकाश-वर्ष दूर एक ५५,००० प्रकाश-वर्ष के व्यास की आकाशगंगा है खगोलीय वस्तु ऐसी वस्तु को कहा जाता है जो ब्रह्माण्ड में प्राकृतिक रूप से पायी जाती है, यानि जिसकी रचना मनुष्यों ने नहीं की होती है। इसमें तारे, ग्रह, प्राकृतिक उपग्रह, गैलेक्सी आदि शामिल हैं। .

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ग्रह

हमारे सौरमण्डल के ग्रह - दायें से बाएं - बुध, शुक्र, पृथ्वी, मंगल, बृहस्पति, शनि, युरेनस और नेप्चून सौर मंडल के ग्रहों, सूर्य और अन्य पिंडों के तुलनात्मक चित्र सूर्य या किसी अन्य तारे के चारों ओर परिक्रमा करने वाले खगोल पिण्डों को ग्रह कहते हैं। अंतर्राष्ट्रीय खगोलीय संघ के अनुसार हमारे सौर मंडल में आठ ग्रह हैं - बुध, शुक्र, पृथ्वी, मंगल, बृहस्पति, शनि, युरेनस और नेप्चून। इनके अतिरिक्त तीन बौने ग्रह और हैं - सीरीस, प्लूटो और एरीस। प्राचीन खगोलशास्त्रियों ने तारों और ग्रहों के बीच में अन्तर इस तरह किया- रात में आकाश में चमकने वाले अधिकतर पिण्ड हमेशा पूरब की दिशा से उठते हैं, एक निश्चित गति प्राप्त करते हैं और पश्चिम की दिशा में अस्त होते हैं। इन पिण्डों का आपस में एक दूसरे के सापेक्ष भी कोई परिवर्तन नहीं होता है। इन पिण्डों को तारा कहा गया। पर कुछ ऐसे भी पिण्ड हैं जो बाकी पिण्डों के सापेक्ष में कभी आगे जाते थे और कभी पीछे - यानी कि वे घुमक्कड़ थे। Planet एक लैटिन का शब्द है, जिसका अर्थ होता है इधर-उधर घूमने वाला। इसलिये इन पिण्डों का नाम Planet और हिन्दी में ग्रह रख दिया गया। शनि के परे के ग्रह दूरबीन के बिना नहीं दिखाई देते हैं, इसलिए प्राचीन वैज्ञानिकों को केवल पाँच ग्रहों का ज्ञान था, पृथ्वी को उस समय ग्रह नहीं माना जाता था। ज्योतिष के अनुसार ग्रह की परिभाषा अलग है। भारतीय ज्योतिष और पौराणिक कथाओं में नौ ग्रह गिने जाते हैं, सूर्य, चन्द्रमा, बुध, शुक्र, मंगल, गुरु, शनि, राहु और केतु। .

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गैस दानव

हमारे सौर मण्डल के चार गैस दानव - सूर्य के आगे दर्शाए गए गैस दानव उन ग्रहों को कहा जाता है जिनमें मिटटी-पत्थर की बजाय ज़्यादातर गैस ही गैस होती है और जिनका आकार बहुत ही विशाल होता है। हमारे सौर मण्डल में चार ग्रह इस श्रेणी में आते हैं - बृहस्पति, शनि, अरुण (युरेनस)) और वरुण (नॅप्टयून)। इनमें पायी जाने वाली गैस ज़्यादातर हाइड्रोजन और हीलियम होती है, हालाँकि इनमें अक्सर और गैसें भी मिलती हैं, जैसे कि अमोनिया। अन्य सौर मंडलों में बहुत से गैस दानव ग्रह पाए जा चुके हैं। .

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क्षुद्रग्रह

क्षुद्रग्रह क्षुद्रग्रह (English: Asteroid) अथवा ऐस्टरौएड एक खगोलिय पिंड होते है जो ब्रह्माण्ड में विचरण करते रहते हे। यह आपने आकार में ग्रहो से छोटे और उल्का पिंडो से बड़े होते है। खोजा जाने वाला पहला क्षुद्रग्रह, सेरेस, 1819 में ग्यूसेप पियाज़ी द्वारा पाया गया था और इसे मूल रूप से एक नया ग्रह माना जाता था। इसके बाद अन्य समान निकायों की खोज के बाद, जो समय के उपकरण के साथ, प्रकाश के अंक होने लगते हैं, जैसे सितारों, छोटे या कोई ग्रहिक डिस्क नहीं दिखाते हैं, हालांकि उनके स्पष्ट गति के कारण सितारों से आसानी से अलग हो सकते हैं। इसने खगोल विज्ञानी सर विलियम हर्शल को "ग्रह", शब्द को प्रस्तावित करने के लिए प्रेरित किया, जिसे ग्रीस में ἀστεροειδής या एस्टरियोइड्स के रूप में तब्दील किया गया, जिसका अर्थ है 'तारा-जैसे, तारा-आकार', और प्राचीन ग्रीक ἀστήρ astér 'तारा, ग्रह से व्युत्पन्न '। उन्नीसवीं सदी के शुरुआती छमाही में, शब्द "क्षुद्रग्रह" और "ग्रह" (हमेशा "नाबालिग" के रूप में योग्य नहीं) अभी भी एक दूसरे का प्रयोग किया गया था पिछले दो शताब्दियों में एस्टरॉयड डिस्कवरी विधियों में नाटकीय रूप से सुधार हुआ है 18 वीं शताब्दी के आखिरी वर्षों में, बैरन फ्रांज एक्सवेर वॉन जैच ने 24 खगोलविदों के समूह को एक ग्रह का आयोजन किया, जिसमें आकाश के बारे में 2.8 एयू के बारे में अनुमानित ग्रह के लिए आकाश की खोज थी, जिसे टिटियस-बोद कानून द्वारा आंशिक रूप से खोज की गई थी। कानून द्वारा अनुमानित दूरी पर ग्रह यूरेनस के 1781 में सर विलियम हर्शल। इस काम के लिए ज़ोनियाकल बैंड के सभी सितारों के लिए हाथों से तैयार हुए आकाश चार्ट तैयार किए जाने की आवश्यकता है, जो कि संवेदनाहीनता की सीमा के नीचे है। बाद की रातों में, आकाश फिर से सनदी जाएगा और किसी भी चलती वस्तु को उम्मीद है, देखा जाना चाहिए। लापता ग्रह की उम्मीद की गति प्रति घंटे 30 सेकंड का चाप था, पर्यवेक्षकों द्वारा आसानी से पता चला। मंगल ग्रह से पहले क्षुद्रग्रह छवि (सेरेस और वेस्ता) - जिज्ञासा (20 अप्रैल 2014) द्वारा देखा गया। पहला उद्देश्य, सेरेस, समूह के किसी सदस्य द्वारा नहीं खोजा गया था, बल्कि 1801 में सिसिली में पालेर्मो के वेधशाला के निदेशक ग्यूसेप पियाज़ी ने दुर्घटना के कारण नहीं खोजा था। उन्होंने वृषभ में एक नया सितारा की तरह वस्तु की खोज की और कई वस्तुओं के दौरान इस ऑब्जेक्ट के विस्थापन का अनुसरण किया। उस वर्ष बाद, कार्ल फ्रेडरिक गॉस ने इस अज्ञात वस्तु की कक्षा की गणना करने के लिए इन टिप्पणियों का इस्तेमाल किया, जो मंगल और बृहस्पति ग्रहों के बीच पाया गया था। पियाजी ने इसे कृषि के रोमन देवी सेरेस के नाम पर रखा था। अगले कुछ वर्षों में तीनों क्षुद्रग्रहों (2 पल्लस, 3 जूनो और 4 वेस्ता) की खोज की गई, साथ में वेस्ता को 1807 में मिला। आठ वर्षों के व्यर्थ खोजों के बाद, अधिकांश खगोलविदों ने मान लिया था कि अब और नहीं और आगे की खोजों को छोड़ दिया गया था। हालांकि, कार्ल लुडविग हेन्के ने दृढ़ किया, और 1830 में अधिक क्षुद्रग्रहों की खोज करना शुरू कर दिया। पन्द्रह वर्ष बाद, उन्हें 38 अस्वास्थापों में पहला नया क्षुद्रग्रह पाया गया, जो 5 अस्त्रिया पाए गए। उन्होंने यह भी पाया 6 हेबे कम से कम दो साल बाद इसके बाद, अन्य खगोलविदों ने खोज में शामिल हो गए और इसके बाद हर वर्ष कम से कम एक नया क्षुद्रग्रह पाया गया (युद्धकालीन वर्ष 1 9 45 को छोड़कर) इस शुरुआती युग के उल्लेखनीय क्षुद्रग्रह शिकारी जे आर हिंद, एनीबेल डी गैसपरिस, रॉबर्ट लूथर, एचएमएस गोल्डस्मिथ, जीन चिकार्नाक, जेम्स फर्ग्यूसन, नॉर्मन रॉबर्ट पॉगसन, ईडब्ल्यू टेम्पाल, जेसी वाटसन, सीएफ़एफ़ पीटर्स, ए। बोरलिलली, जे। पॉलिसा, हेनरी भाई और अगस्टे चार्लोइस 1891 में, मैक्स वुल्फ ने क्षुद्रग्रहों का पता लगाने के लिए "आस्ट्रोफ़ोटोग्राफी" के इस्तेमाल की शुरुआत की, जो लंबे समय तक एक्सपोजर फोटोग्राफिक प्लेट्स पर छोटी धारियों के रूप में दिखाई दिए। इससे पहले दृश्य तरीकों की तुलना में नाटकीय रूप से पहचान की दर में वृद्धि हुई: वुल्फ ने केवल 248 क्षुद्रग्रहों की खोज की, 323 ब्रुसिया से शुरुआत करते हुए, जबकि उस समय तक केवल 300 से थोड़ा अधिक की खोज की गई थी यह ज्ञात था कि वहां बहुत अधिक थे, लेकिन अधिकांश खगोलविदों ने उनके साथ परेशान नहीं किया, उन्हें "आसमान की किरण" कहा, एडुआर्ड सूसे और एडमंड वेज़ के लिए अलग-अलग वाक्यांशों का श्रेय। यहां तक ​​कि एक सदी बाद, केवल कुछ हज़ार क्षुद्रग्रहों की पहचान की गई,क्षुद्रग्रह छोटे ग्रह हैं, विशेषकर इनर सौर मंडल के बड़े लोगों को ग्रहोइड कहा जाता है इन शब्दों को ऐतिहासिक रूप से किसी भी खगोलीय वस्तु पर लागू किया गया है जो कि सूर्य की परिक्रमा करता है, जो कि किसी ग्रह की डिस्क नहीं दिखाया था और सक्रिय धूमकेतु की विशेषताओं को देखते हुए नहीं देखा गया था। के रूप में बाहरी सौर मंडल में छोटे ग्रहों की खोज की गई और उन्हें ज्वालामुखी-आधारित सतहों को मिला जो कि धूमकेतु के समान थे, वे अक्सर क्षुद्रग्रह बेल्ट के क्षुद्रग्रहों से अलग थे। इस लेख में, "एस्टरॉयड" शब्द का अर्थ आंतरिक सौर मंडल के छोटे ग्रहों को संदर्भित करता है जिसमें उन सह-कक्षाओं में बृहस्पति शामिल हैं। वहाँ लाखों क्षुद्रग्रह हैं, बहुत से ग्रहों के बिखर अवशेष, सूर्य के सौर नेब्यूला के भीतर निकाले जाने वाले शरीर के रूप में माना जाता है, जो कि ग्रह बनने के लिए बड़े पैमाने पर कभी बड़ा नहीं बनता था। मंगल और बृहस्पति के कक्षाओं के बीच क्षुद्रग्रहों के बेल्ट में ज्ञात क्षुद्रग्रहों की बड़ी संख्या, या बृहस्पति (बृहस्पति ट्रोजन) के साथ सह-कक्षीय हैं। हालांकि, अन्य कक्षीय परिवारों में पास-पृथ्वी ऑब्जेक्ट्स सहित महत्वपूर्ण आबादी मौजूद है। व्यक्तिगत क्षुद्रग्रहों को उनके विशिष्ट स्पेक्ट्रा द्वारा वर्गीकृत किया जाता है, जिनमें बहुमत तीन मुख्य समूहों में आती है: सी-टाइप, एम-प्रकार और एस-टाइप। इसका नाम क्रमशः कार्बन-समृद्ध, धातु, और सिलिकेट (पत्थर) रचनाओं के नाम पर रखा गया था। क्षुद्रग्रहों का आकार बहुत भिन्न होता है, कुछ तक पहुंचते हुए 1000 किमी तक पहुंचते हैं। क्षुद्रग्रहों को धूमकेतु और मेटोरोइड से विभेदित किया जाता है धूमकेतु के मामले में, अंतर संरचना में से एक है: जबकि क्षुद्रग्रह मुख्य रूप से खनिज और चट्टान से बना है, धूमकेतु धूल और बर्फ से बना है इसके अलावा, क्षुद्रग्रहों ने सूरज के करीब का गठन किया, जो कि ऊपर उल्लिखित धूमकेतू बर्फ के विकास को रोकता है। क्षुद्रग्रहों और meteorids के बीच का अंतर मुख्य रूप से आकार में से एक है: उल्कापिंडों का एक मीटर से कम का व्यास है, जबकि क्षुद्रग्रहों का एक मीटर से अधिक का व्यास है। अंत में, उल्कामी द्रव्य या तो समृद्ध या क्षुद्रग्रहयुक्त पदार्थों से बना हो सकता है। केवल एक क्षुद्रग्रह, 4 वेस्ता, जो एक अपेक्षाकृत चिंतनशील सतह है, आमतौर पर नग्न आंखों के लिए दिखाई देता है, और यह केवल बहुत ही अंधेरे आसमान में है जब यह अनुकूल स्थिति है शायद ही, छोटे क्षुद्रग्रह पृथ्वी के नजदीक से गुजरते हैं, कम समय के लिए नग्न आंखों में दिखाई दे सकते हैं। मार्च 2016 तक, माइनर प्लैनेट सेंटर के आंतरिक और बाहरी सौर मंडल में 1.3 मिलियन से अधिक ऑब्जेक्ट्स पर डेटा था, जिसमें से 750,000 में पर्याप्त जानकारी दी गई पदनामों की जानी थी। संयुक्त राष्ट्र ने 30 जून को अंतर्राष्ट्रीय क्षुद्रग्रह दिवस की घोषणा की ताकि क्षुद्रग्रहों के बारे में जनता को शिक्षित किया जा सके। अंतर्राष्ट्रीय एस्टरॉयड दिवस की तारीख 30 जून 1 9 08 को साइबेरिया, रूसी संघ पर टंगुस्का क्षुद्रग्रह की सालगिरह की स्मृति मनाई जाती है।  .

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