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गौतम बुद्ध और निषेधवाद

शॉर्टकट: मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ

गौतम बुद्ध और निषेधवाद के बीच अंतर

गौतम बुद्ध vs. निषेधवाद

गौतम बुद्ध (जन्म 563 ईसा पूर्व – निर्वाण 483 ईसा पूर्व) एक श्रमण थे जिनकी शिक्षाओं पर बौद्ध धर्म का प्रचलन हुआ। उनका जन्म लुंबिनी में 563 ईसा पूर्व इक्ष्वाकु वंशीय क्षत्रिय शाक्य कुल के राजा शुद्धोधन के घर में हुआ था। उनकी माँ का नाम महामाया था जो कोलीय वंश से थी जिनका इनके जन्म के सात दिन बाद निधन हुआ, उनका पालन महारानी की छोटी सगी बहन महाप्रजापती गौतमी ने किया। सिद्धार्थ विवाहोपरांत एक मात्र प्रथम नवजात शिशु राहुल और पत्नी यशोधरा को त्यागकर संसार को जरा, मरण, दुखों से मुक्ति दिलाने के मार्ग की तलाश एवं सत्य दिव्य ज्ञान खोज में रात में राजपाठ छोड़कर जंगल चले गए। वर्षों की कठोर साधना के पश्चात बोध गया (बिहार) में बोधि वृक्ष के नीचे उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई और वे सिद्धार्थ गौतम से बुद्ध बन गए। . निषेधावाद (Nihilism) 18वीं शती के छठें दशक में रूस के उस बौद्धिक आंदोलन को उपस्थित करता है जो अपना चिह्न रूसी बौद्धिक वर्ग पर तथा उस देश के क्रांतिकारी आंदोलन पर छोड़ गया। तुर्गनेव ने अपने उपन्यास 'पिता और पुत्र' में उसके नायक को 'निषेधवादी' रूप में चित्रित किया था। उसके बाद 'निषेधवादी' रूप में चित्रित किया था। उसके बाद 'निषेधवादी' शब्द का व्यापक प्रचार हो गया। अराजकतावाद शब्द की भांति ही निषेधवाद भी शिथिल रूप से और भ्रम से ऐसा आतंकवादी कार्यकलाप माना जाने लगा है जिसकी पराकाष्ठा रूस में जार (1882) की हत्या जैसी घटना में हुई। ज़ार के समान उग्र निरंकुश शासन में विचार और व्यवहार की समस्याओं ने संवेदनशील लोगों को आकुल कर दिया था और प्राय: भावावेश तथा कुछ अपरिपक्वता में ही आचार के समस्त स्वीकृत मानदंडों से अलग हो जाने की अत्यंत सरलीकृत और अहंवाद प्रवृत्ति का जन्म हुआ। निषेधवाद के प्रमुख प्रतिनिधि पिसारोव नामक युवक ने 1860 में अपने सेंट पीटर्सबर्ग रिव्यू रूस्को स्लोवो (रूसी शब्द) में लिखा यह हमारे मत का मौलिक सिद्धांत है कि जो भी ध्वंस हो सकता है उसे चूर-चूर करना होगा; जो आघात सहन कर लेगा वह खरा है, जो टुकड़े टुकड़े हो जाता है वह कूड़ा है; जो कुछ हो, सब ओर प्रहार करो, उससे कोई हानि नहीं हो सकती। इस प्रकार पिसारोव ने पित्रीय और अन्य अधिकारों पर प्रहार किया, लैगिक समानता की घोषणा की, कर्तव्य और धर्मशीलता जैसे विचारों की खिल्ली उड़ाई और कुछ संभ्रममय ढंग से हृदय के आदेशों का अनुसरण करने की स्वतंत्रता का नारा बुलंद किया। निषेधवादियों ने बातचीत और व्यवहार में एक प्रकार का अक्खड़पन बरतना आरंभ किया और दिखाने के लिए ऐसे ढंग अख्तियार किए जो उद्धतरूप से भौतिक तथा सत्ता के प्रति असंमानपूर्ण थे। किंतु इस उद्दंखडता के बावजूद इससे ज़ारकालीन रूस के घुटनेवाले वातावरण में ताजी और प्रबल हवा का एक झोंका आया। स्वयं निषेधवादी न होते हुए भी हर्ज़ेन और चेर्निशेव्स्की के समान चिंतकों को इसमें कुछ ऐसा मिला जिसने विकास का काम किया, क्योंकि इसने लोगों के दिमाग के कूड़ाकरकट दूर कर दिया। इस प्रकार, यद्यपि जनता में तथा सामाजिक दृढ़ता में इसका कोई विश्वास नहीं था और यद्यपि वह संपूर्ण रूप से निर्बध व्यक्तित्व पर बल देता था, तथापि यह रूस में क्रांतिकारी विचारों और कार्यों के परवर्ती विकास में एक प्रबल प्रेरक तत्व माना गया। .

गौतम बुद्ध और निषेधवाद के बीच समानता

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गौतम बुद्ध और निषेधवाद के बीच तुलना

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संदर्भ

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