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गुदना और विद्युत्-चुम्बकीय कुंडली

शॉर्टकट: मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ

गुदना और विद्युत्-चुम्बकीय कुंडली के बीच अंतर

गुदना vs. विद्युत्-चुम्बकीय कुंडली

गोदना या अंकन गुदना (tatoo) को पछेना या अंकन भी कहते हैं। शरीर की त्वचा पर रंगीन आकृतियाँ उत्कीर्ण करने के लिए अंग विशेष पर घाव करके, चीरा लगाकर अथवा सतही छेद करके उनके अंदर लकड़ी के कोयले का चूर्ण, राख या फिर रँगने के मसाले भर दिए जाते हैं। घाव भर जाने पर खाल के ऊपर स्थायी रंगीन आकृति विशेष बन जाती है। गुदनों का रंग प्राय: गहरा नीला, काला या हल्का लाल रहता है। अंकन की एक विधि और भी है जिससे बनने वाले व्रणरोपण को क्षतचिह्न या क्षतांक कहा जाता है। इसमें किसी एक ही स्थान की त्वचा को बार-बार काटते हैं और घाव के ठीक हो जाने के बाद उक्त स्थान पर एक अर्बुद या उभरा हुआ चकत्ता बन जाता है जो देखने में रेशेदार लगता है। पशुओं मे गोदना पहचान या ब्रांडिंग के लिए उपयोग किया जाता है पर मनुष्यों मे गोदना का उद्देश्य सजावटी शरीर संशोधन है। कुछ देशों या जातियों में रंगीन गुदने गुदवाने की प्रथा है तो कुछ में केवल क्षतचिह्नों की। परंतु कुछ ऐसी भी जातियाँ हैं जिनमें दोनों प्रकार के अंकन प्रचलित हैं यथा, दक्षिण सागर द्वीप के निवासी। ऐडमिरैस्टी द्वीप में रहने वालों, फिजी निवासियों, भारत के गोड़ एवं टोडो, ल्यू क्यू द्वीप के बाशिंदों और अन्य कई जातियों में रंगीन गुदने गुदवाने की प्रथा केवल स्त्रियों तक सीमित है या थी। मिस्र में नील नदी की उर्ध्व उपत्यका में बसने वाले लटुका लोग केवल स्त्रियों के शरीरों पर क्षतचिह्न बनवाते हैं। रंगीन गुदनों के पीछे प्राय: अलंकरण की प्रवृत्ति होती है जब कि क्षतचिह्नों का महत्व अधिकतर कबीलों की पहचान के लिए रहता है। अफ्रीका के अनेक आदिम कबीले क्षतचिह्नों को पसंद करते हैं और मध्य कांगों के बगल शरीर अलंकरण हेतु पूरे शरीर पर क्षतांक बनवाते हैं। कहीं-कहीं विवाह और गुदनों में परस्पर गहरा संबंध रहता है। सालामन द्वीप में लड़कियों का विवाह तब तक नहीं हो पाता जब तक कि उनके चेहरों और वक्षस्थलों पर गुदने न गुदवा दिए जाएँ। आस्ट्रेलिया के आदिवासियों में विवाह से पूर्व लड़कियों का पीठ पर क्षतचिह्नों का होना अनिवार्य है। फारमोसा निवासियों में विवाह से पहले लड़कियों के चेहरों पर गुदने गुदवाए जाते हैं और न्यूगिनी के पापुअन विवाह से पूर्व लड़कियों के पूरे शरीर पर (मुँह को छोड़कर) गुदने गुदवाते हैं। न्यूजीलैंड के माओरिस लोगों तथा जापानियों ने रंगीन गुदनों का विकास उच्च कलात्मक रूप में किया था। किंतु अन्य कई जातियों की तरह इन दोनों ने भी सभ्यता के प्रकाश में गुदना प्रथा को अधिकतर त्याग दिया है। मलय जाति में गुदनों को पुरस्कारस्वरूप ग्रहण किया जाता है और केवल सफल तथा प्रमुख शिकारी ही गुदने गुदवाने के अधिकारी होते हैं। सभ्य देशों के नाविक भी बहुधा किसी एक रंग के गुदने अपने हाथों और छातियों पर गुदवाते हैं जिनकी आकृति प्राय: तारे या ध्वज की होती है। भारत के स्त्रियाँ ही गुदनों की शौकीन होती हैं लेकिन पुरुषों में वैष्णव लोग शंख, चक्र, गदा, पद्म विष्णु के चार आयुधों के चिह्न छपवाते हैं और दक्षिण के शैव लोग त्रिशूल या शिवलिंग के। रामानुज संप्रदाय के सदस्यों में इसका चलन अधिक है। द्वारिका इसके लिए प्रसिद्ध स्थान है। ओम का चिह्न भी लोग हाथों पर बनवाते हैं और बहुत सी स्त्रियाँ पति के नाम बाहों पर गुदवा लेती हैं। . इलेक्ट्रॉनिकी में उपयोग आने वाले कुछ प्रेरकत्व मकड़ी के जाल जैसी कुंडली प्लेनर कोर और कुंडली जब किसी विद्युत चालक (जैसे, तार या बस-बार) को वृत्ताकार रूप में, या कुंडलिनी (हेलिक्स) के रूप में, या सर्पिल (स्पाइरल) के रूप में लपेटा जाता है तो इस रचना को विद्युत्-चुम्बकीय कुंडली (electromagnetic coil) कहते हैं। विद्युत इंजीनियरी में इनका अनेकों तरह से उपयोग किया जाता है, जैसे- प्रेरकत्व, विद्युत चुम्बक, ट्रांसफॉर्मर, सेन्सर की कुंडली आदि। .

गुदना और विद्युत्-चुम्बकीय कुंडली के बीच समानता

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संदर्भ

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