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गायन और वृन्दगान

शॉर्टकट: मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ

गायन और वृन्दगान के बीच अंतर

गायन vs. वृन्दगान

हैरी बेलाफोन्ट 1954 गायन एक ऐसी क्रिया है जिससे स्वर की सहायता से संगीतमय ध्वनि उत्पन्न की जाती है और जो सामान्य बोलचाल की गुणवत्ता को राग और ताल दोनों के प्रयोग से बढाती है। जो व्यक्ति गाता है उसे गायक या गवैया कहा जाता है। गायक गीत गाते हैं जो एकल हो सकते हैं यानी बिना किसी और साज या संगीत के साथ या फिर संगीतज्ञों व एक साज से लेकर पूरे आर्केस्ट्रा या बड़े बैंड के साथ गाए जा सकते हैं। गायन अकसर अन्य संगीतकारों के समूह में किया जाता है, जैसे भिन्न प्रकार के स्वरों वाले कई गायकों के साथ या विभिन्न प्रकार के साज बजाने वाले कलाकारों के साथ, जैसे किसी रॉक समूह या बैरोक संगठन के साथ। हर वह व्यक्ति जो बोल सकता है वह गा भी सकता है, क्योंकि गायन बोली का ही एक परिष्कृत रूप है। गायन अनौपचारिक हो सकता है और संतोष या खुशी के लिये किया जा सकता है, जैसे नहाते समय या कैराओके में; या यह बहुत औपचारिक भी हो सकता है जैसे किसी धार्मिक अनुष्ठान के समय या मंच पर या रिकार्डिंग के स्टुडियो में पेशेवर गायन के समय। ऊंचे दर्जे के पेशेवर या नौसीखिये गायन के लिये सामान्यतः निर्देशन और नियमित अभ्यास आवश्यकता होती है। पेशेवर गायक सामान्यतः किसी एक प्रकार के संगीत में अपने पेशे का निर्माण करते हैं जैसे शास्त्रीय या रॉक और आदर्श रूप से वे अपने सारे करियर के दौरान किसी स्वर-अध्यापक या स्वर-प्रशिक्षक की सहायता से स्वर-प्रशिक्षण लेते हैं। . बर्लिन में बच्चों का वृंदगान (सन् १९३२) वृन्दगान या कोरस (Chorus या Choir) दो अथवा दो से अधिक व्यक्तियों का सामूहिक रूप से गान अथवा सहगान मंडली। यह शब्द मूलत: यूनानी है और अंगरेजी के माध्यम से भारतीय भाषाओं में प्रविष्ट हुआ है तथा नाटक अथवा सार्वजनिक स्टेज पर सामूहिक रूप में किए जानेवाले गायन के लिये प्रयुक्त होता है। यूनानी भाषा में इस शब्द का प्रयोग संगीतयुक्त ऐसे धार्मिक नृत्यों के लिये होता था जो विशेष अवसरों अथवा त्योहारों पर किए जाते थे। शास्त्रीय संगीत में वृन्दगान की परंपरा प्राचीनकाल से ही चली आ रही है। ब्राह्मणों द्वारा मन्त्रों का सामूहिक उच्चारण, देवालय में सामूहिक प्रार्थना, कीर्तन, भजन, अथवा लोक में विभिन्न अवसरों पर गाये जाने वाले लोकगीत समूह गान या समवेत गान के अंतर्गत आते हैं।सभी वृन्दगानों का विषय प्रायः राष्ट्रीय, सामाजिक अथवा सांस्कृतिक होता है। पारंपरिक एकता, राष्ट्र के प्रति प्रेम, समाज की गौरवशाली परम्पराओं का उद्घोष वृन्दगान के द्वारा ही उद्घाटित होता है। .

गायन और वृन्दगान के बीच समानता

गायन और वृन्दगान आम में एक बात है (यूनियनपीडिया में): शास्त्रीय संगीत

शास्त्रीय संगीत

भारतीय शास्त्रीय संगीत या मार्ग, भारतीय संगीत का अभिन्न अंग है। शास्त्रीय संगीत को ही ‘क्लासिकल म्जूजिक’ भी कहते हैं। शास्त्रीय गायन ध्वनि-प्रधान होता है, शब्द-प्रधान नहीं। इसमें महत्व ध्वनि का होता है (उसके चढ़ाव-उतार का, शब्द और अर्थ का नहीं)। इसको जहाँ शास्त्रीय संगीत-ध्वनि विषयक साधना के अभ्यस्त कान ही समझ सकते हैं, अनभ्यस्त कान भी शब्दों का अर्थ जानने मात्र से देशी गानों या लोकगीत का सुख ले सकते हैं। इससे अनेक लोग स्वाभाविक ही ऊब भी जाते हैं पर इसके ऊबने का कारण उस संगीतज्ञ की कमजोरी नहीं, लोगों में जानकारी की कमी है। .

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गायन और वृन्दगान के बीच तुलना

गायन 23 संबंध है और वृन्दगान 6 है। वे आम 1 में है, समानता सूचकांक 3.45% है = 1 / (23 + 6)।

संदर्भ

यह लेख गायन और वृन्दगान के बीच संबंध को दर्शाता है। जानकारी निकाला गया था, जिसमें से एक लेख का उपयोग करने के लिए, कृपया देखें:

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