गाँजे का पौधा और भांग का पौधा
शॉर्टकट: मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ।
गाँजे का पौधा और भांग का पौधा के बीच अंतर
गाँजे का पौधा vs. भांग का पौधा
गाँजे का पौधा गाँजे के पौधे का वानस्पतिक नाम कैनाबिस सैटिवा (Cannabis sativa) है। यह भांग की जाति का ही एक पौधा है। यह देखने में भाँग से भिन्न नहीं होता, पर भाँग की तरह इसमें फूल नहीं लगते। कैनाबिस के पौधों से गाँजा, चरस और भाँग, ये मादक और चिकित्सोपयोगी द्रव्य तथा फल, बीजतैल और हेंप (सन सदृश रेशा), ये उद्योगोपयोगी द्रव्य, प्राप्त किए जाते हैं। नैपाल की तराई, बंगाल आदि में यह भाँग के साथ आपसे आप उगता है; पर कहीं कहीं इसकी खेती भी होती है। इसमें बाहर फूल नहीं लगते, पर बीज पड़ते हैं। वनस्पतिशास्त्रविदों का मत है कि भाँग के पौधे के तीन भेद होते है—स्त्री, पुरुष और उभयलिंगी। इसकी खेती करनेवालों का यह भी अनुभव है कि यदि गाँजे के पौधे के पास या खेत में भाँग के पौधे हो, तो गाँजा अच्छा नहीं होता। इसलिये गाँजे के खेत से किसान प्रायः भाँग के पौधे उखाड़कर फेंक देते हैं। . भांग का पौधा और उसके विभिन्न भाग भांग (वानस्पतिक नामः Cannabis indica) एक प्रकार का पौधा है जिसकी पत्तियों को पीस कर भांग तैयार की जाती है। उत्तर भारत में इसका प्रयोग बहुतायत से स्वास्थ्य, हल्के नशे तथा दवाओं के लिए किया जाता है। भारतवर्ष में भांग के अपने आप पैदा हुए पौधे सभी जगह पाये जाते हैं। भांग विशेषकर उत्तर प्रदेश, बिहार एवं पश्चिम बंगाल में प्रचुरता से पाया जाता है। भांग के पौधे 3-8 फुट ऊंचे होते हैं। इसके पत्ते एकान्तर क्रम में व्यवस्थित होते हैं। भांग के ऊपर की पत्तियां 1-3 खंडों से युक्त तथा निचली पत्तियां 3-8 खंडों से युक्त होती हैं। निचली पत्तियों में इसके पत्रवृन्त लम्बे होते हैं। भांग के नर पौधे के पत्तों को सुखाकर भांग तैयार की जाती है। भांग के मादा पौधों की रालीय पुष्प मंजरियों को सुखाकर गांजा तैयार किया जाता है। भांग की शाखाओं और पत्तों पर जमे राल के समान पदार्थ को चरस कहते हैं। भांग की खेती प्राचीन समय में 'पणि' कहे जानेवाले लोगों द्वारा की जाती थी। ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने कुमाऊँ में शासन स्थापित होने से पहले ही भांग के व्यवसाय को अपने हाथ में ले लिया था तथा काशीपुर के नजदीक डिपो की स्थापना कर ली थी। दानपुर, दसोली तथा गंगोली की कुछ जातियाँ भांग के रेशे से कुथले और कम्बल बनाती थीं। भांग के पौधे का घर गढ़वाल में चांदपुर कहा जा सकता है। इसके पौधे की छाल से रस्सियाँ बनती हैं। डंठल कहीं-कहीं मशाल का काम देता है। पर्वतीय क्षेत्र में भांग प्रचुरता से होती है, खाली पड़ी जमीन पर भांग के पौधे स्वभाविक रूप से पैदा हो जाते हैं। लेकिन उनके बीज खाने के उपयोग में नहीं आते हैं। टनकपुर, रामनगर, पिथौरागढ़, हल्द्वानी, नैनीताल, अल्मोडा़, रानीखेत,बागेश्वर, गंगोलीहाट में बरसात के बाद भांग के पौधे सर्वत्र देखे जा सकते हैं। नम जगह भांग के लिए बहुत अनुकूल रहती है। पहाड़ की लोक कला में भांग से बनाए गए कपड़ों की कला बहुत महत्वपूर्ण है। लेकिन मशीनों द्वारा बुने गये बोरे, चटाई इत्यादि की पहुँच घर-घर में हो जाने तथा भांग की खेती पर प्रतिबन्ध के कारण इस लोक कला के समाप्त हो जाने का भय है। होली के अवसर पर मिठाई और ठंडाई के साथ इसका प्रयोग करने की परंपरा है। भांग का इस्तेमाल लंबे समय से लोग दर्द निवारक के रूप में करते रहे हैं। कई देशों में इसे दवा के रूप में भी उपलब्ध कराया जाता है। .
गाँजे का पौधा और भांग का पौधा के बीच समानता
गाँजे का पौधा और भांग का पौधा आम में एक बात है (यूनियनपीडिया में): गाँजा।
मादा भांग के पधे के फूल, आसपास की पत्तियों एवं तने को सुखाकर बनाया गया '''गांजा''' गांजा (Cannabis या marijuana), एक मादक पदार्थ (ड्रग) है जो गांजे के पौधे से भिन्न-भिन्न विधियों से बनाया जाता है। इसका उपयोग मनोसक्रिय मादक (psychoactive drug) के रूप में किया जाता है। मादा भांग के पौधे के फूल, आसपास की पत्तियाँ एवं तनों को सुखाकर बनने वाला गांजा सबसे सामान्य (कॉमन) है। .
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गाँजे का पौधा और भांग का पौधा के बीच तुलना
गाँजे का पौधा 11 संबंध है और भांग का पौधा 22 है। वे आम 1 में है, समानता सूचकांक 3.03% है = 1 / (11 + 22)।
संदर्भ
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