गति विज्ञान और दालाँवेयर का सिद्धान्त
शॉर्टकट: मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ।
गति विज्ञान और दालाँवेयर का सिद्धान्त के बीच अंतर
गति विज्ञान vs. दालाँवेयर का सिद्धान्त
गति विज्ञान (Dynamics) अनुप्रयुक्त गणित की यह शाखा पिंडों की गति से तथा इन गतियों को नियमित करनेवाले बलों से संबद्ध है। गतिविज्ञान को दो भागों में अंतिर्विभक्त किया जा सकता है। पहला शुद्धगतिकी (Kinematics), जिसमें माप तथा यथातथ्य चित्रण की दृष्टि से गति का अध्ययन किया जाता है, तथा दूसरा बलगतिकी (Kinetics) अथवा वास्तविक गति विज्ञान, जो कारणों अथवा गतिनियमों से संबद्ध है। व्यापक दृष्टि से दोनों दृष्टिकोण संभव हैं। पहला गतिविज्ञान को ऐसे विज्ञान के रूप में प्रस्तुत करता है जिसका निर्माण परीक्षण की प्रक्रियाओं (प्रयोगों) के आधार पर तथ्योपस्थापन (आगम, अनुमान) द्वारा हुआ है। तदनुसार गति विज्ञान में गतिनियम यूक्लिड के स्वयंसिद्धों का स्थान ग्रहण करते हैं। दावा यह है कि प्रयोगों द्वारा इन नियमों की परीक्षा की जा सकती है, परंतु यह भी निश्चित है कि व्यावहारिक कठिनाइयों के कारण कोई सैद्धांतिक नियम यथातथ्य रूप में प्रकाशित नहीं हो पाता है। इन नियमों को प्रमाणित कर सकने में व्यावहारिक कठिनाइयों के अतिरिक्त कुछ तर्कविषयक बाधाएँ भी हैं, जो इस स्थिति को दूषित अथवा त्रुटिपूर्ण बना देती हैं। इन कठिनाइयों का परिहार किया जा सकता है, यदि हम दूसरा दृष्टिकोण अपनाएँ। उक्त दृष्टिकोण के अनुसार गतिविज्ञान शुद्ध अमूर्त विज्ञान (abstract science) है, जिसके समस्त नियम कुछ आधारभूत कल्पनाओं से निकाल जा सकते हैं। . दालाँबेयर का सिद्धान्त (D'Alembert's principle) गति के मूलभूत नियमों से सम्बन्धित एक कथन है। इस सिद्धान्त का नाम इसके आविष्कर्ता फ्रांसीसी गणितज्ञ एवं भौतिकशास्त्री दालाँवेयर के नाम पर पड़ा है। इसे 'दालाँवेयर-लाग्रेंज सिद्धान्त' के नाम से भी जाना जाता है। इस सिद्धान्त को निम्नलिखित रूप में व्यक्त किया जा सकता है- where |- | \mathbf _i || i-वें कण पर लगाए गए सभी बलों का योग (व्यवरोध (constraint) बलों को छोड़कर), |- | m_i \scriptstyle || i-वें कण का द्रव्यमान, |- | \mathbf a_i || i-वें कण का त्वरण, |- | m_i \mathbf a_i || i-वें कण के संवेग परिवर्तन की दर को निरूपित करता है, तथा |- | \delta \mathbf r_i || i-वें कण का आभासी विस्थापन है। | दूसरे शब्दों में, आभासी विस्थापन की किसी भी दिशा में, द्रव्यमानधारी कणों के किसी समुदाय पर लगने वाले बलों तथा उनके संवेगों का समय के सापेक्ष अवकलजों के अन्तर का योग शून्य होता है। स्थैतिक तन्त्र में आभासी कार्य (virtual work) के सिद्धान्त की जो स्थिति है, वही स्थिति वास्तव में गतिक तन्त्रों के लिए दालाँवेयर के सिद्धान्त की है। यह सिद्धान्त हैमिल्टन के सिद्धान्त (Hamilton's principle) से अधिक व्यापक सिद्धान्त है। उपरोक्त समीकरण को प्रायः 'दालाँवेयर का सिद्धान्त' कहा जाता है यद्यपि इस रूप में यह सबसे पहले जोसेफ लुई लागरेंज (Joseph Louis Lagrange) द्वारा लिखा गया था। .
गति विज्ञान और दालाँवेयर का सिद्धान्त के बीच समानता
गति विज्ञान और दालाँवेयर का सिद्धान्त आम में 2 बातें हैं (यूनियनपीडिया में): त्वरण, आभासी कार्य।
विभिन्न प्रकार के त्वरण के अन्तर्गत गति में वस्तु की समान समयान्तराल बाद स्थितियाँ दोलन करता हुआ लोलक: इसका वेग एवं त्वरण तीर द्वारा दर्शाया गया है। वेग एवं त्वरण दोनों का परिमाण एवं दिशा हर क्षण बदल रही है। किसी वस्तु के वेग परिवर्तन की दर को त्वरण (Acceleration) कहते हैं। इसका मात्रक मीटर प्रति सेकेण्ड2 होता है तथा यह एक सदिश राशि हैं। या, उदाहरण: माना समय t.
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किसी कण पर किसी बल द्वारा किसी आभासी विस्थापन की दिशा में किया गया कार्य 'आभासी कार्य अथवा कल्पित कार्य (virtual work) कहलाता है। आभासी कार्य के सिद्धान्त की सहायता से किसी यांत्रिक तन्त्र पर लगने वाले बलों एवं उनके कारण हुए विस्थापन का अध्ययन किया जाता है। आभासी कार्य का सिद्धान्त, अल्पतम क्रिया नियम (principle of least action) से व्युत्पन्न हुआ है। ऐतिहासिक रूप से आभासी कार्य तथा इससे सम्बन्धित विचरण कैलकुलस (calculus of variations) का विकास दृढ़ पिण्डों (rigid body) की गति के लिए किया गया था किन्तु इन सिद्धान्तों का प्रयोग विरूप्य पिंडों की यांत्रिकी (mechanics of deformable bodies) का अध्ययन करने के लिए भी किया जाता है। यदि किसी यांत्रिक तन्त्र के साम्य के सन्दर्भ में इस सिद्धान्त का प्रयोग करें तो कह सकते हैं कि किसी तन्त्र पर लगे सभी बलों द्वारा किए गये आभासी कार्यों का योग शून्य होता है। आभासी कार्य .
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संदर्भ
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