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गणित का इतिहास

सूची गणित का इतिहास

ब्राह्मी अंक, पहली शताब्दी के आसपास अध्ययन का क्षेत्र जो गणित के इतिहास के रूप में जाना जाता है, प्रारंभिक रूप से गणित में अविष्कारों की उत्पत्ति में एक जांच है और कुछ हद तक, अतीत के अंकन और गणितीय विधियों की एक जांच है। आधुनिक युग और ज्ञान के विश्व स्तरीय प्रसार से पहले, कुछ ही स्थलों में नए गणितीय विकास के लिखित उदाहरण प्रकाश में आये हैं। सबसे प्राचीन उपलब्ध गणितीय ग्रन्थ हैं, प्लिमपटन ३२२ (Plimpton 322)(बेबीलोन का गणित (Babylonian mathematics) सी.१९०० ई.पू.) मास्को गणितीय पेपाइरस (Moscow Mathematical Papyrus)(इजिप्ट का गणित (Egyptian mathematics) सी.१८५० ई.पू.) रहिंद गणितीय पेपाइरस (Rhind Mathematical Papyrus)(इजिप्ट का गणित सी.१६५० ई.पू.) और शुल्बा के सूत्र (Shulba Sutras)(भारतीय गणित सी. ८०० ई.पू.)। ये सभी ग्रन्थ तथाकथित पाईथोगोरस की प्रमेय (Pythagorean theorem) से सम्बंधित हैं, जो मूल अंकगणितीय और ज्यामिति के बाद गणितीय विकास में सबसे प्राचीन और व्यापक प्रतीत होती है। बाद में ग्रीक और हेल्लेनिस्टिक गणित (Greek and Hellenistic mathematics) में इजिप्त और बेबीलोन के गणित का विकास हुआ, जिसने विधियों को परिष्कृत किया (विशेष रूप से प्रमाणों (mathematical rigor) में गणितीय निठरता (proofs) का परिचय) और गणित को विषय के रूप में विस्तृत किया। इसी क्रम में, इस्लामी गणित (Islamic mathematics) ने गणित का विकास और विस्तार किया जो इन प्राचीन सभ्यताओं में ज्ञात थी। फिर गणित पर कई ग्रीक और अरबी ग्रंथों कालैटिन में अनुवाद (translated into Latin) किया गया, जिसके परिणाम स्वरुप मध्यकालीन यूरोप (medieval Europe) में गणित का आगे विकास हुआ। प्राचीन काल से मध्य युग (Middle Ages) के दौरान, गणितीय रचनात्मकता के अचानक उत्पन्न होने के कारण सदियों में ठहराव आ गया। १६ वीं शताब्दी में, इटली में पुनर् जागरण की शुरुआत में, नए गणितीय विकास हुए.

178 संबंधों: चार रंग की प्रमेय, चीन, टैको ब्राहे, डेविड हिल्बर्ट, तर्कशास्त्र, त्रिभुज, त्रिकोणमिति, त्रिकोणमितीय फलन, थेल्स, दशमलव पद्धति, दिक्सूचक, द्विपद प्रमेय, द्विघात समीकरण, दीर्घवृत्त, निकोल ओरेसमे, नेपोलियन बोनापार्ट, नील नदी, नीकोला बूरबाकी, परिधि, परवलय, पहाड़ा, पाई, पाइथागोरस, पाइथागोरस प्रमेय, पाकिस्तान, पियानो, पिङ्गल, पुनर्जागरण, प्राचीन मिस्र, प्रागितिहास, प्राकृतिक लघुगणक, प्लेटो, पृष्ट, पैरिस विश्वविद्यालय, पूर्णांक, पेरिस, पेल का समीकरण, फलन, फ़्रान्स, बर्ट्रैंड रसल, बहुपद, बाबिल, बाइबिल, बग़दाद, ब्रह्मगुप्त, ब्रह्मगुप्त का सूत्र, ब्राह्मस्फुटसिद्धान्त, ब्राह्मी, ब्लेज़ पास्कल, बूलीय बीजगणित (तर्कशास्त्र), ..., बेलन (ज्यामिति), बीज-लेखन, बीजगणित, बीजीय समीकरण, भारत का इतिहास, भारतीय विद्वान सूची, भारतीय गणित, भास्कर, भौतिक शास्त्र, मध्य एशिया, मध्य पूर्व, मध्ययुग, मास्को गणितीय पपाइरस, मिस्र, मुद्रण, मुहम्मद इब्न मूसा अल-ख़्वारिज़्मी, मौर्य राजवंश, मेसोपोटामिया, युगपत समीकरण, यूनानी भाषा, यूक्लिड, योहानेस केप्लर, रेखीय समीकरण, रोमन संख्यांक, लियोनार्ड ओइलर, लघुगणक, शतपथ ब्राह्मण, शांग राजवंश, शंकु-परिच्छेद, श्रेणी (गणित), श्रीनिवास रामानुजन्, शून्य, सममिति, समस्या, समाकलन, समिश्र संख्या, समुच्चय सिद्धान्त, समूह सिद्धांत, सरस्वती लिपि, सर्वेक्षण, सांख्यिकी, सिद्धांत (थिअरी), सिंधु घाटी सभ्यता, सिकंदर, संस्थितिविज्ञान, संस्कृत भाषा, संस्कृत व्याकरण, संख्या पद्धतियाँ, संख्या सिद्धान्त, संगमग्राम के माधव, सुमेर, स्कॉट्लैण्ड, सूर्यसिद्धान्त, सीमा (गणित), हान राजवंश, हेमचन्द्र श्रेणी, जुआ, ज्या, ज्यामिति, ज्यामिति का इतिहास, ज्येष्ठदेव, जॉन नेपियर, जॉर्ज बूल, जोसेफ फ़ूर्ये, जीवाश्मविज्ञान, ईंट, घन फलन, घनाभ, वर्ग समीकरण, वर्गमूल, विभाजन (गणित), वक्र, व्यास, व्रत और उपवास, खगोल शास्त्र, खगोलीय यांत्रिकी, खेल सिद्धांत, गणित, गणित का कालक्रम, गणितीय तर्कशास्त्र, गणितीय संकेतन, गणितीय विश्लेषण, गाटफ्रीड लैबनिट्ज़, गामा फलन, गुणोत्तर माध्य, गुरुत्वाकर्षण, ग्राफ़ सिद्धान्त, गैलीलियो गैलिली, गोलीय त्रिकोणमिति, आयतन, आर्यभट, आर्किमिडिज़, आइज़क न्यूटन, इटली, इतिहासकार, इबेरिया प्रायद्वीप, इराक़, इरैटोस्थनिज़, इस्लाम, इंग्लैण्ड, कम्प्यूटर विज्ञान, कलन, कसदी, कार्तीय निर्देशांक पद्धति, कार्ल फ्रेडरिक गाउस, क्रमचय-संचय, क्षेत्रफल, अधिकल्पित एकक, अनंत, अनुपात, अनुक्रम, अभाज्य संख्या, अभिकलन, अरब, अरब का इतिहास, अरबी भाषा, अरस्तु, अल्गोरिद्म, अष्टक, अवकल समीकरण, अवकलज, अंतरिक्ष, अंकगणित, उच्चिष्ठ और निम्निष्ठ, उत्तर भारत, उत्तर अफ़्रीका, उमर खय्याम, उस्मानी साम्राज्य सूचकांक विस्तार (128 अधिक) »

चार रंग की प्रमेय

चार रंग के मानचित्र का उदाहरण चार रंग की प्रमेय, या चार रंग मानचित्र प्रमेय एक गणितीय प्रमेय है जिसके अनुसार, किसी तल का संस्पर्शी क्षेत्रों में हुआ विभाजन मानचित्र नामक छवि का निर्माण करता है और इस मानचित्र के क्षेत्रों को रंगने के लिए चार से अधिक रंगों की आवश्यकता नहीं होती बशर्ते दो आसन्न (एक दूसरे से सटे हुए) क्षेत्र एक ही रंग से ना रंगे जायें। दो क्षेत्र, आसन्न तब ही माने जाते हैं जब उनकी सीमा साझी हो, ना कि वो मात्र एक बिन्दु पर मिलते हों। .

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चीन

---- right चीन विश्व की प्राचीन सभ्यताओं में से एक है जो एशियाई महाद्वीप के पू‍र्व में स्थित है। चीन की सभ्यता एवं संस्कृति छठी शताब्दी से भी पुरानी है। चीन की लिखित भाषा प्रणाली विश्व की सबसे पुरानी है जो आज तक उपयोग में लायी जा रही है और जो कई आविष्कारों का स्रोत भी है। ब्रिटिश विद्वान और जीव-रसायन शास्त्री जोसफ नीधम ने प्राचीन चीन के चार महान अविष्कार बताये जो हैं:- कागज़, कम्पास, बारूद और मुद्रण। ऐतिहासिक रूप से चीनी संस्कृति का प्रभाव पूर्वी और दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों पर रहा है और चीनी धर्म, रिवाज़ और लेखन प्रणाली को इन देशों में अलग-अलग स्तर तक अपनाया गया है। चीन में प्रथम मानवीय उपस्थिति के प्रमाण झोऊ कोऊ दियन गुफा के समीप मिलते हैं और जो होमो इरेक्टस के प्रथम नमूने भी है जिसे हम 'पेकिंग मानव' के नाम से जानते हैं। अनुमान है कि ये इस क्षेत्र में ३,००,००० से ५,००,००० वर्ष पूर्व यहाँ रहते थे और कुछ शोधों से ये महत्वपूर्ण जानकारी भी मिली है कि पेकिंग मानव आग जलाने की और उसे नियंत्रित करने की कला जानते थे। चीन के गृह युद्ध के कारण इसके दो भाग हो गये - (१) जनवादी गणराज्य चीन जो मुख्य चीनी भूभाग पर स्थापित समाजवादी सरकार द्वारा शासित क्षेत्रों को कहते हैं। इसके अन्तर्गत चीन का बहुतायत भाग आता है। (२) चीनी गणराज्य - जो मुख्य भूमि से हटकर ताईवान सहित कुछ अन्य द्वीपों से बना देश है। इसका मुख्यालय ताइवान है। चीन की आबादी दुनिया में सर्वाधिक है। प्राचीन चीन मानव सभ्यता के सबसे पुरानी शरणस्थलियों में से एक है। वैज्ञानिक कार्बन डेटिंग के अनुसार यहाँ पर मानव २२ लाख से २५ लाख वर्ष पहले आये थे। .

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टैको ब्राहे

टैको ब्राहे विख्यात वैज्ञानिक।.

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डेविड हिल्बर्ट

डेविड हिल्बर्ट 1912 in seiner Göttinger Zeit डेविड हिल्बर्ट (१८६२-१९४३) जर्मनवासी एक महान गणितज्ञ थे। सापेक्शता के सामान्य सिद्धान्त की अन्तिम समीकरण को इन्होने आइन्स्टीन से पहले हल कर लिया था इसे इतिहास मे हिल्बर्ट आइन्स्टीन ऐक्शन कहा जाता है मैथमैटिकल सोसायटी की बिल्डिंग जिसे डेविड हिल्बर्ट ने प्रारम्भ किया था; गॉटिंजन श्रेणी:1862 में जन्मे लोग.

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तर्कशास्त्र

तर्कशास्त्र शब्द अंग्रेजी 'लॉजिक' का अनुवाद है। प्राचीन भारतीय दर्शन में इस प्रकार के नामवाला कोई शास्त्र प्रसिद्ध नहीं है। भारतीय दर्शन में तर्कशास्त्र का जन्म स्वतंत्र शास्त्र के रूप में नहीं हुआ। अक्षपाद! गौतम या गौतम (३०० ई०) का न्यायसूत्र पहला ग्रंथ है, जिसमें तथाकथित तर्कशास्त्र की समस्याओं पर व्यवस्थित ढंग से विचार किया गया है। उक्त सूत्रों का एक बड़ा भाग इन समस्याओं पर विचार करता है, फिर भी उक्त ग्रंथ में यह विषय दर्शनपद्धति के अंग के रूप में निरूपित हुआ है। न्यायदर्शन में सोलह परीक्षणीय पदार्थों का उल्लेख है। इनमें सर्वप्रथम प्रमाण नाम का विषय या पदार्थ है। वस्तुतः भारतीय दर्शन में आज के तर्कशास्त्र का स्थानापन्न 'प्रमाणशास्त्र' कहा जा सकता है। किंतु प्रमाणशास्त्र की विषयवस्तु तर्कशास्त्र की अपेक्षा अधिक विस्तृत है। .

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त्रिभुज

त्रिभुज (Triangle), तीन शीर्षों और तीन भुजाओं वाला एक बहुभुज (Polygon) होता है। यह ज्यामिति की मूल आकृतियों में से एक है। शीर्षों A, B, और C वाले त्रिभुज को \triangle ABC द्वारा दर्शाया जाता है। यूक्लिडियन ज्यामिति में कोई भी तीन असंरेखीय बिन्दु, एक अद्वितीय त्रिभुज का निर्धारण करते हैं और साथ ही, एक अद्वितीय तल (यानी एक द्वि-विमीय यूक्लिडियन समतल) का भी। दूसरे शब्दों में, तीन सरल रेखाओं से घिरी बंद आकृति को त्रिभुज या त्रिकोण कहते हैं। त्रिभुज में तीन भुजाएं और तीन कोण होते हैं। त्रिभुज सबसे कम भुजाओं वाला बहुभुज है। किसी त्रिभुज के तीनों आन्तरिक कोणों का योग सदैव 180° होता है। इन भुजाओं और कोणों के माप के आधार पर त्रिभुज का विभिन्न प्रकार से वर्गीकरण किया जाता है। .

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त्रिकोणमिति

किसी दूरस्थ और सीधे मापन में कठिनाई वाले सर्वेक्षण के लिए समरूप त्रिभुज के उपयोग का उदाहरण (1667) त्रिकोणमिति गणित की वह शाखा है जिसमें त्रिभुज और त्रिभुजों से बनने वाले बहुभुजों का अध्ययन होता है। त्रिकोणमिति का शब्दिक अर्थ है 'त्रिभुज का मापन'। त्रिकोणमिति में सबसे अधिक महत्वपूर्ण है समकोण त्रिभुज का अध्ययन। त्रिभुजों और बहुभुजों की भुजाओं की लम्बाई और दो भुजाओं के बीच के कोणों का अध्ययन करने का मुख्य आधार यह है कि समकोण त्रिभुज की किन्ही दो भुजाओं (आधार, लम्ब व कर्ण) का अनुपात उस त्रिभुज के कोणों के मान पर निर्भर करता है। त्रिकोणमिति का ज्यामिति की प्रसिद्ध बौधायन प्रमेय (पाइथागोरस प्रमेय) से गहरा सम्बन्ध है। .

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त्रिकोणमितीय फलन

right गणित में त्रिकोणमितीय फलन (trigonometric functions) या 'वृत्तीय फलन' (circular functions) कोणों के फलन हैं। ये त्रिभुजों के अध्ययन में तथा आवर्ती संघटनाओं (periodic phenomena) के मॉडलन एवं अन्य अनेकानेक जगह प्रयुक्त होते हैं। ज्या (sine), कोज्या (कोज) (cosine) तथा स्पर्शज्या (स्पर) (tangent) सबसे महत्व के त्रिकोणमितीय फलन हैं। ईकाई त्रिज्या वाले मानक वृत्त के संदर्भ में ये फलन सामने के चित्र में प्रदर्शित हैं। इन तीनों फलनों के व्युत्क्रम फलनों को क्रमशः व्युज्या (व्युज) (cosecant), व्युकोज्या (व्युक) (secant) तथा व्युस्पर्शज्या (व्युस) (cotangent) कहते हैं। .

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थेल्स

थेल्स यूनान का महान दार्शनिक थे। इनको ज्यामिति का जनक कहा जाता है। इन्होंने गणितीय भूगोल में महत्वपूर्ण योगदान दिया था। उस समय के सात यूनानी भौतिक विज्ञानिको में थेल्स का प्रथम स्थान था और "आयोनिक स्कुल ऑफ फिलासफी " से सम्बंधित था.इन्होने मिस्र और सहलग्न देशो की यात्रा की ।.मिस्र के ज्यामिति से परिचित थे और इसी के आधार पर उसने दो स्थान के बिच दूरी को नापे थे । इन्होने नील नदी की उत्पति,कटाव और डेल्टा प्रदेश का भी विवरण दिया है ।इन्होने पृथ्वी के आकृति को गुम्बदकार बताया और उसकी स्थिति ब्रह्माण्ड के बिच में बताई थी । इन्होने पृथवी को पाँच जलवायु में बटा था ।उस समय पृथ्वी के बहुत छोटे से भू -भाग का ही ज्ञान यूनानियो को था । श्रेणी:भूगोलवेत्ता श्रेणी:यूनानी भूगोलवेत्ता श्रेणी:यूनान के दार्शनिक.

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दशमलव पद्धति

दशमलव पद्धति या दाशमिक संख्या पद्धति या दशाधारी संख्या पद्धति (decimal system, "base ten" or "denary") वह संख्या पद्धति है जिसमें गिनती/गणना के लिये कुल दस संख्याओं (0, 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9) का सहारा लिया जाता है। यह मानव द्वारा सर्वाधिक प्रयुक्त संख्यापद्धति है। उदाहरण के लिये 645.7 दशमलव पद्धति में लिखी एक संख्या है। (गलतफहमी से बचने के लिये यहाँ दशमलव बिन्दु के स्थान पर 'कॉमा' का प्रयोग किया गया है।) इस पद्धति की सफलता के बहुत से कारण हैं-.

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दिक्सूचक

तरल भरा दिक्सूचक। दिक्सूचक (Compass) या कुतुबनुमा दिशा का ज्ञान कराता है। चुम्बकीय दिक्सूचक उत्तरी ध्रुव की दिशा की ओर संकेत करता है। (ठीक-ठीक कहें तो चुम्बकीय उत्तरी ध्रुव)। दिक्सूचक महासागरों और मरुस्थलों में दिशानिर्देशन के बहुत काम आता है, या उन स्थानो पर भी जहाँ स्थानसूचकों की कमी है। सबसे पहले दिक्सूचक का आविष्कार चीन के हान राजवंश ने किया था। यह एक बड़ी चम्मच-जैसी चुम्बकीय वस्तु थी जो काँसे की तस्तरी पर मैग्नेटाइट अयस्क को बिठा कर बनाई गई थी। दिक्सूचक का प्राथमिक कार्य एक निर्देश दिशा की ओर संकेत करना है, जिससे अन्य दिशाएँ ज्ञात की जाती हैं। ज्योतिर्विदों और पर्यवेक्षकों के लिए सामान्य निर्देश दिशा दक्षिण है एवं अन्य व्यक्तियों के लिए निर्देश दिशा उत्तर है। .

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द्विपद प्रमेय

गणित में द्विपद प्रमेय एक महत्वपूर्ण बीजगणितीय सूत्र है जो x + y प्रकार के द्विपद के किसी धन पूर्णांक घातांक का मान x एवं y के nवें घात के बहुपद के रूप में प्रदान करता है। अपने सामान्यीकृत (जनरलाइज्ड) रूप में द्विपद प्रमेय की गणना गणित के १०० महानतम प्रमेयों में होती है। .

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द्विघात समीकरण

वर्ग समीकरण x^2 -5 x + 6 .

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दीर्घवृत्त

कार्तीय निर्देशांक पद्धति में '''दीर्घवृत्त''' गणित में दीर्घवृत्त एक ऐसा शांकव होता है जिसकी उत्केन्द्रता इकाई से कम होती है। एक अन्य परिभाषा के अनुसार, दीर्घवृत्त ऐसे बिन्दुओं का बिन्दुपथ है जिनकी दो निश्चित बिन्दुओं से दूरी का योग सदैव अचर रहता है। इन निश्चित बिन्दुओं को दीर्घवृत्त की नाभियाँ (Focus) कहते हैं। माना जाता है कि पृथ्वी सहित कई ग्रह सूर्य के चारों ओर एक दीर्घवृत्तीय कक्षा में घूमते हैं और इस दीर्घवृत्त की एक नाभि पर सूर्य अवस्थित होता है। दीर्घवृत्त इस प्रकार, यह एक वृत्त का सामान्यीकृत रूप होता है। वृत्त एक विशेष प्रकार का दीर्घवृत्त होता है जिसमें दोनों नाभियाँ एक ही स्थान पर होती हैं। एक दीर्घवृत्त का आकार इसकी उत्केन्द्रता से दर्शाया जाता है, जिसका मान दीर्घवृत्त के लिए 0 से लेकर 1 के मध्य होता है। यदि किसी दीर्घवृत्त की उत्केन्द्रता 0 हो तो वह दीर्घवृत्त, एक वृत्त होता है। .

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निकोल ओरेसमे

निकोल ओरेसमे मध्य-युग के महत्वपूर्ण दार्शनिक थे। .

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नेपोलियन बोनापार्ट

नेपोलियन बोनापार्ट (15 अगस्त 1769 - 5 मई 1821) (जन्म नाम नेपोलियोनि दि बोनापार्टे) फ्रान्स की क्रान्ति में सेनापति, 11 नवम्बर 1799 से 18 मई 1804 तक प्रथम कांसल के रूप में शासक और 18 मई 1804 से 6 अप्रैल 1814 तक नेपोलियन I के नाम से सम्राट रहा। वह पुनः 20 मार्च से 22 जून 1815 में सम्राट बना। वह यूरोप के अन्य कई क्षेत्रों का भी शासक था। इतिहास में नेपोलियन विश्व के सबसे महान सेनापतियों में गिना जाता है। उसने एक फ्रांस में एक नयी विधि संहिता लागू की जिसे नेपोलियन की संहिता कहा जाता है। वह इतिहास के सबसे महान विजेताओं में से एक था। उसके सामने कोई रुक नहीं पा रहा था। जब तक कि उसने 1812 में रूस पर आक्रमण नहीं किया, जहां सर्दी और वातावरण से उसकी सेना को बहुत क्षति पहुँची। 18 जून 1815 वॉटरलू के युद्ध में पराजय के पश्चात अंग्रज़ों ने उसे अन्ध महासागर के दूर द्वीप सेंट हेलेना में बन्दी बना दिया। छः वर्षों के अन्त में वहाँ उसकी मृत्यु हो गई। इतिहासकारों के अनुसार अंग्रेज़ों ने उसे संखिया (आर्सीनिक) का विष देकर मार डाला। .

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नील नदी

संसार की सबसे लम्बी नदी नील है जो अफ्रीका की सबसे बड़ी झील विक्टोरिया से निकलकर विस्तृत सहारा मरुस्थल के पूर्वी भाग को पार करती हुई उत्तर में भूमध्यसागर में उतर पड़ती है। यह भूमध्य रेखा के निकट भारी वर्षा वाले क्षेत्रों से निकलकर दक्षिण से उत्तर क्रमशः युगाण्डा, इथियोपिया, सूडान एवं मिस्र से होकर बहते हुए काफी लंबी घाटी बनाती है जिसके दोनों ओर की भूमि पतली पट्टी के रूप में शस्यश्यामला दिखती है। यह पट्टी संसार का सबसे बड़ा मरूद्यान है। नील नदी की घाटी एक सँकरी पट्टी सी है जिसके अधिकांश भाग की चौड़ाई १६ किलोमीटर से अधिक नहीं है, कहीं-कहीं तो इसकी चौड़ाई २०० मीटर से भी कम है। इसकी कई सहायक नदियाँ हैं जिनमें श्वेत नील एवं नीली नील मुख्य हैं। अपने मुहाने पर यह १६० किलोमीटर लम्बा तथा २४० किलोमीटर चौड़ा विशाल डेल्टा बनाती है। घाटी का सामान्य ढाल दक्षिण से उत्तर की ओर है। मिस्र की प्राचीन सभ्यता का विकास इसी नदी की घाटी में हुआ है। इसी नदी पर मिस्र देश का प्रसिद्ध अस्वान बाँध बनाया गया है। नील नदी की घाटी का दक्षिणी भाग भूमध्य रेखा के समीप स्थित है, अतः वहाँ भूमध्यरेखीय जलवायु पायी जाती है। यहाँ वर्ष भर ऊँचा तापमान रहता है तथा वर्षा भी वर्ष भर होती है। वार्षिक वर्षा का औसत २१२ से.

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नीकोला बूरबाकी

१९३० के दशक में नीकोला बूरबाकी (Nicolas Bourbaki) के नाम से गणित पर बहुत सारी फ्रांसीसी किताबें आयीं। इस तरह की २० किताबें (३००० पन्ने) थीं और इन किताबों ने गणित को नयी दिशा दी। नीकोला बूरबाकी नाम का कोई भी व्यक्ति नहीं था। कुछ फ्रांसीसी गणितज्ञों ने मिल कर यह कार्य किया। किताबों में लेखक का नाम देना जरूरी होता है चार्ल्स डेनिस बूरबाकी फ्रांसीसी सेना के एक प्रसिद्ध अधिकारी थे। फ्रांसीसी गणितज्ञों ने, बस उसी के नाम पर एक काल्पनिक नाम नीकोला बूरबाकी चुन लिया और लगे लिखने गणित पर किताबें। किताबें इतनी अच्छी थीं कि उसने गणित को नयी दिशा ही दे दी। न ही उसमे किसी ने अपने नाम के बारे में सोचा, न ही किसी ने कॉपीराईट के बारे में - गणित को आगे बढ़ाना ही उनका ध्येय था। बूरबाकी के बारे में एक अच्छा लेख साईंटिफिक अमेरिकन के मई १९५७ के अंक में छपा है। इस लेख को पौल हेलमौस ने लिखा है जो कि स्वयं एक जाने माने गणितज्ञ हैं। .

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परिधि

परिधि बन्द वक्र अथवा वृत्तीय वस्तु के किनारों के चारों और की कुल रेखिक दूरी का मान होता है। वृत्त की परिधि ज्यामितीय और त्रिकोणमितीय अवधाराणओं में महत्वपूर्ण है। तथापि परिधि से दीर्घवृत्तीय बन्द वक्रों के किनारों का भी वर्णन किया जाता है। परिधि परिमाप की एक विशिष्ट अवस्था है जिसमें परिमाप किसी बहुभुज के चारों ओर की दूरी का मापन है जबकि परिधि किसी बन्द वक्र के लिए। .

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परवलय

परवलय और उससे संबंधित पारिभाषिक शब्द गणित में, परवलय एक द्विविमीय समतलीय वक्र है जो दर्पण-सममित होता है और यह अंग्रेज़ी अक्षर U के आकार का होता है। परवलय (पैराबोला) एक द्विमीय वक्र है जिसे कई तरह से परिभाषित किया जाता है। एक परिभाषा परवलय को शांकव के एक विशेष रूप में परिभाषित करती है। इसके अनुसार, परवलय वह शांकव है जिनकी उत्केन्द्रता १ के बराबर होती है। परवलय को बिन्दुपथ के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। परवलय ऐसे बिन्दुओं का बिन्दुपथ है जिसकी किसी निश्चित रेखा से दूरी, किसी निश्चित बिन्दु से दूरी के बराबर होती है। यहाँ उस रेखा को नियता (डायरेक्ट्रिक्स) एवं उस बिन्दु को नाभि (फोकस) कहते हैं। उदाहरण के लिए, समीकरण x2 .

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पहाड़ा

पहाड़ा (multiplication table) एक गणितीय सूची है जिसे प्राय: छोटी कक्षा के विद्यार्थियों को अच्छी तरह याद करा दिया जाता है। गुणा और भाग की अंकगणितीय क्रियाओं को करने इसका उपयोग में होता है। प्रायः ९ × ९ तक का पहाडा याद करना पर्याप्त होता है किन्तु १२ × १२ तक का पहाड़ा याद हो तो रोजमर्रा के गणितीय कार्यों में बहुत आसानी होती है। .

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पाई

ग्रीक अक्षर '''पाई''' यदि किसी वृत्त का व्यास '''१''' हो तो उसकी परिधि '''पाई''' के बराबर होगी. पाई या π एक गणितीय नियतांक है जिसका संख्यात्मक मान किसी वृत्त की परिधि और उसके व्यास के अनुपात के बराबर होता है। इस अनुपात के लिये π संकेत का प्रयोग सर्वप्रथम सन् १७०६ में विलियम जोन्स ने सुझाया। इसका मान लगभग 3.14159 के बराबर होता है। यह एक अपरिमेय राशि है। पाई सबसे महत्वपूर्ण गणितीय एवं भौतिक नियतांकों में से एक है। गणित, विज्ञान एवं इंजीनियरी के बहुत से सूत्रों में π आता है। .

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पाइथागोरस

सामोस के पाईथोगोरस (Ὁ Πυθαγόρας ὁ Σάμιος, ओ पुथागोरस ओ समिओस, "पाईथोगोरस दी समियन (Samian)," या साधारण रूप से; उनका जन्म 580 और 572 ई॰पू॰ के बीच हुआ और मृत्यु 500 और 490 ई॰पू॰ के बीच हुई), या फ़ीसाग़ोरस, एक अयोनिओयन (Ionian) ग्रीक (Greek)गणितज्ञ (mathematician) और दार्शनिक थे और पाईथोगोरियनवाद (Pythagoreanism) नामक धार्मिक आन्दोलन के संस्थापक थे। उन्हें अक्सर एक महान गणितज्ञ, रहस्यवादी (mystic) और वैज्ञानिक (scientist) के रूप में सम्मान दिया जाता है; हालाँकि कुछ लोग गणित और प्राकृतिक दर्शन में उनके योगदान की संभावनाओं पर सवाल उठाते हैं। हीरोडोट्स उन्हें "यूनानियों के बीच सबसे अधिक सक्षम दार्शनिक" मानते हैं। उनका नाम उन्हें पाइथिआ (Pythia) और अपोलो से जोड़ता है; एरिस्तिपस (Aristippus) ने उनके नाम को यह कह कर स्पष्ट किया कि "वे पाइथियन (पाइथ-) से कम सच (एगोर-) नहीं बोलते थे," और लम्ब्लिकास (Iamblichus) एक कहानी बताते हैं कि पाइथिआ ने भविष्यवाणी की कि उनकी गर्भवती माँ एक बहुत ही सुन्दर, बुद्धिमान बच्चे को जन्म देगी जो मानव जाती के लिए बहुत ही लाभकारी होगा। (The Savisier-) उन्हें मुख्यतः पाईथोगोरस की प्रमेय (Pythagorean theorem) के लिए जाना जाता है, जिसका नाम उनके नाम पर दिया गया है। पाइथोगोरस को "संख्या के जनक" के रूप में जाना जाता है, छठी शताब्दी ईसा पूर्व में धार्मिक शिक्षण और दर्शनमें उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा। पूर्व सुकराती (pre-Socratic) काल के अन्य लोगों की तुलना में उनके कार्य ने कथा कहानियों को अधिक प्रभावित किया, उनके जीवन और शिक्षाओं के बारे में अधिक विश्वास के साथ कहा जा सकता है। हम जानते हैं कि पाइथोगोरस और उनके शिष्य मानते थे कि सब कुछ गणित से सम्बंधित है और संख्याओं में ही अंततः वास्तविकता है और गणित के माध्यम से हर चीज के बारे में भविष्यवाणी की जा सकती है तथा हर चीज को एक ताल बद्ध प्रतिरूप या चक्र के रूप में मापा जा सकता है। लम्बलीकस (Iamblichus) के अनुसार, पाइथोगोरस ने कहा कि "संख्या ही विचारों और रूपों का शासक है और देवताओं और राक्षसों का कारण है।" वो पहले आदमी थे जो अपने आप को एक दार्शनिक, या बुद्धि का प्रेमी कहते थे, और पाइथोगोरस के विचारों ने प्लेटो पर एक बहुत गहरा प्रभाव डाला। दुर्भाग्य से, पाइथोगोरस के बारे में बहुत कम तथ्य ज्ञात हैं, क्योंकि उन के लेखन में से बहुत कम ही बचे हैं। पाइथोगोरस की कई उपलब्धियां वास्तव में उनके सहयोगियों और उत्तराधिकारियों की उपलब्धियां हैं। पाईथोगोरस का जन्म सामोस (Samos) में हुआ, जो एशिया माइनर (Asia Minor) के किनारे पर, पूर्वी ईजियन में एक यूनानी द्वीप है। उनकी माँ पायथायस (समोस की निवासी) और पिता मनेसार्चस (टायर (Tyre) के एक फोनिसियन (Phoenicia) व्यापारी) थे। जब वे जवान थे तभी उन्होंने, अपने जन्म स्थान को छोड़ दिया और पोलिक्रेट्स (Polycrates) की अत्याचारी (tyrannical) सरकार से बच कर दक्षिणी इटलीमें क्रोटोन (Croton) केलेब्रिया (Calabria) में चले गए। लम्ब्लिकस (Iamblichus) के अनुसार थेल्स (Thales) उनकी क्षमताओं से बहुत अधिक प्रभावित था, उसने पाइथोगोरस को इजिप्त में मेम्फिस (Memphis) को चलने और वहाँ के पुजारियों के साथ अध्ययन करने की सलाह दी जो अपनी बुद्धि के लिए जाने जाते थे। वे फोनेशिया में टायर और बैब्लोस में शिष्य बन कर भी रहे। इजिप्ट में उन्होंने कुछ ज्यामितीय सिद्धांतों को सिखा जिससे प्रेरित होकर उन्होंने अंततः प्रमेय दी जो अब उनके नाम से जानी जाती है। यह संभव प्रेरणा बर्लिन पेपाइरस (Berlin Papyrus) में एक असाधारण समस्या के रूप में प्रस्तुत है। समोस से क्रोटोन (Croton), केलेब्रिया (Calabria), इटली, आने पर उन्होंने एक गुप्त धार्मिक समाज की स्थापना की जो प्रारंभिक ओर्फिक कल्ट (Orphic cult) से बहुत अधिक मिलती जुलती थी और संभवतः उससे प्रभावित भी थी। Vatican) पाइथोगोरस ने क्रोटन के सांस्कृतिक जीवन में सुधर लाने की कोशिश की, नागरिकों को सदाचार का पालन करने के लिए प्रेरित किया और अपने चारों और एक अनुयायियों का समूह स्थापित कर लिया जो पाइथोइगोरियन कहलाते हैं। इस सांस्कृतिक केन्द्र के संचालन के नियम बहुत ही सख्त थे। उसने लड़कों और लड़कियों दोनों के liye सामान रूप से अपना विद्यालय खोला.जिन लोगों ने पाइथोगोरस के सामाज के अंदरूनी हिस्से में भाग लिए वे अपने आप को मेथमेटकोई कहते थे। वे स्कूल में ही रहते थे, उनकी अपनी कोई निजी संपत्ति नहीं थी, उन्हें मुख्य रूप से शाकाहारी भोजन खाना होता था, (बलि दिया जाने वाला मांस खाने की अनुमति थी) अन्य विद्यार्थी जो आस पास के क्षेत्रों में रहते थे उन्हें भी पाइथोगोरस के स्कूल में भाग लेने की अनुमति थी। उन्हें अकउसमेटीकोई के नाम से जाना जाता था और उन्हें मांस खाने और अपनी निजी सम्पति रखने की अनुमति थी। रिचर्ड ब्लेक्मोर ने अपनी पुस्तक दी ले मोनेस्ट्री (१७१४) में पाइथोगोरियनो के धार्मिक प्रेक्षणों को बताया, "यह इतिहास में दर्ज संन्यासी जीवन का पहला उदाहरण था। लम्ब्लिकास (Iamblichus) के अनुसार, पाइथोगोरस ने धार्मिक शिक्षण, सामान्य भोजन, व्यायाम, पठन और दार्शनिक अध्ययन से युक्त जीवन का अनुसरण किया। संगीत इस जीवन का एक आवश्यक आयोजन कारक था: शिष्य अपोलो के लिए नियमित रूप से मिल जुल कर भजन गाते थे; वे आत्मा या शरीर की बीमारी का इलाज करने के लिए वीणा (lyre) का उपयोग करते थे; याद्दाश्त को बढ़ाने के लिए सोने से पहले और बाद में कविता पठन किया जाता था। फ्लेवियस जोजेफस (Flavius Josephus), एपियन के विरुद्ध (Against Apion), यहूदी धर्म की रक्षा में ग्रीक दर्शनशास्त्र (Greek philosophy) के खिलाफ कहा कि समयरना के हर्मिपस (Hermippus of Smyrna) के अनुसार पाइथोगोरस यहूदी विश्वासों से परिचित था, उसने उनमें से कुछ को अपने दर्शन में शामिल किया। जिंदगी के अंतिम चरण में उसके और उसके अनुयायियों के खिलाफ क्रोतों के एक कुलीन सैलों (Cylon) द्वारा रचित शाजिश की वजह से वह मेतापोंतुम (Metapontum) भाग गया। वह अज्ञात कारणों से मेटापोंटम म में ९० साल की उम्र में मर गया। बर्ट्रेंड रसेल, ने पश्चिमी दर्शन के इतिहास (History of Western Philosophy), में बताया कि पाइथोगोरस का प्लेटो और अन्य लोगों पर इतना अधिक प्रभाव था कि वह सभी पश्चिमी दार्शनिकों में सबसे ज्यादा प्रभावी माना जाता था। .

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पाइथागोरस प्रमेय

'''बौधायन का प्रमेय''': समकोण त्रिभुज की दो भुजाओं की लम्बाइयों के वर्गों का योग कर्ण की लम्बाई के वर्ग के बराबर होता है। पाइथागोरस प्रमेय (या, बौधायन प्रमेय) यूक्लिडीय ज्यामिति में किसी समकोण त्रिभुज के तीनों भुजाओं के बीच एक सम्बन्ध बताने वाला प्रमेय है। इस प्रमेय को आमतौर पर एक समीकरण के रूप में निम्नलिखित तरीके से अभिव्यक्त किया जाता है- जहाँ c समकोण त्रिभुज के कर्ण की लंबाई है तथा a और b अन्य दो भुजाओं की लम्बाई है। पाइथागोरस यूनान के गणितज्ञ थे। परम्परानुसार उन्हें ही इस प्रमेय की खोज का श्रेय दिया जाता है,हेथ, ग्रंथ I,p.

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पाकिस्तान

इस्लामी जम्हूरिया पाकिस्तान या पाकिस्तान इस्लामी गणतंत्र या सिर्फ़ पाकिस्तान भारत के पश्चिम में स्थित एक इस्लामी गणराज्य है। 20 करोड़ की आबादी के साथ ये दुनिया का छठा बड़ी आबादी वाला देश है। यहाँ की प्रमुख भाषाएँ उर्दू, पंजाबी, सिंधी, बलूची और पश्तो हैं। पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद और अन्य महत्वपूर्ण नगर कराची व लाहौर रावलपिंडी हैं। पाकिस्तान के चार सूबे हैं: पंजाब, सिंध, बलोचिस्तान और ख़ैबर​-पख़्तूनख़्वा। क़बाइली इलाक़े और इस्लामाबाद भी पाकिस्तान में शामिल हैं। इन के अलावा पाक अधिकृत कश्मीर (तथाकथित आज़ाद कश्मीर) और गिलगित-बल्तिस्तान भी पाकिस्तान द्वारा नियंत्रित हैं हालाँकि भारत इन्हें अपना भाग मानता है। पाकिस्तान का जन्म सन् 1947 में भारत के विभाजन के फलस्वरूप हुआ था। सर्वप्रथम सन् 1930 में कवि (शायर) मुहम्मद इक़बाल ने द्विराष्ट्र सिद्धान्त का ज़िक्र किया था। उन्होंने भारत के उत्तर-पश्चिम में सिंध, बलूचिस्तान, पंजाब तथा अफ़गान (सूबा-ए-सरहद) को मिलाकर एक नया राष्ट्र बनाने की बात की थी। सन् 1933 में कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के छात्र चौधरी रहमत अली ने पंजाब, सिन्ध, कश्मीर तथा बलोचिस्तान के लोगों के लिए पाक्स्तान (जो बाद में पाकिस्तान बना) शब्द का सृजन किया। सन् 1947 से 1970 तक पाकिस्तान दो भागों में बंटा रहा - पूर्वी पाकिस्तान और पश्चिमी पाकिस्तान। दिसम्बर, सन् 1971 में भारत के साथ हुई लड़ाई के फलस्वरूप पूर्वी पाकिस्तान बांग्लादेश बना और पश्चिमी पाकिस्तान पाकिस्तान रह गया। .

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पियानो

वर्तमान समय का महावाद्य महावाद्य या पियानो तारवाला वाद्ययंत्र है। इसका आविष्कार 10वीं शताब्दी में हुआ था और धीरे-धीरे यह अपने वर्तमान रूप में विकसित हुआ है। आरंभ में इसकी आकृति आधुनिक पियानों से भिन्न थी। उसमें एक ग्रिल होती थी, जिसे घुमाने से तीन-तार एक साथ पहिए पर ध्वनि पैदा करते थे। .

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पिङ्गल

पिंगल भारत के प्राचीन गणितज्ञ और छन्दःसूत्रम् के रचयिता। इनका काल ४०० ईपू से २०० ईपू अनुमानित है। जनश्रुति के अनुसार यह पाणिनि के अनुज थे। छन्द:सूत्र में मेरु प्रस्तार (पास्कल त्रिभुज), द्विआधारी संख्या (binary numbers) और द्विपद प्रमेय (binomial theorem) मिलते हैं। .

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पुनर्जागरण

फ्लोरेंस पुनर्जागरण का केन्द्र था पुनर्जागरण या रिनैंसा यूरोप में मध्यकाल में आये एक संस्कृतिक आन्दोलन को कहते हैं। यह आन्दोलन इटली से आरम्भ होकर पूरे यूरोप फैल गया। इस आन्दोलन का समय चौदहवीं शताब्दी से लेकर सत्रहवीं शताब्दी तक माना जाता है।.

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प्राचीन मिस्र

गीज़ा के पिरामिड, प्राचीन मिस्र की सभ्यता के सबसे ज़्यादा पहचाने जाने वाले प्रतीकों में से एक हैं। प्राचीन मिस्र का मानचित्र, प्रमुख शहरों और राजवंशीय अवधि के स्थलों को दर्शाता हुआ। (करीब 3150 ईसा पूर्व से 30 ई.पू.) प्राचीन मिस्र, नील नदी के निचले हिस्से के किनारे केन्द्रित पूर्व उत्तरी अफ्रीका की एक प्राचीन सभ्यता थी, जो अब आधुनिक देश मिस्र है। यह सभ्यता 3150 ई.पू.

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प्रागितिहास

आज से लगभग २७,००० साल पहले फ़्रान्स की एक गुफ़ा में एक प्रागैतिहासिक मानव ने अपने हाथ के इर्दगिर्द कालख लगाकर यह छाप छोड़ी प्रागैतिहासिक (Prehistory) इतिहास के उस काल को कहा जाता है जब मानव तो अस्तित्व में थे लेकिन जब लिखाई का आविष्कार न होने से उस काल का कोई लिखित वर्णन नहीं है।, Chris Gosden, pp.

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प्राकृतिक लघुगणक

प्राकृतिक लघुगणक का ग्राफ; y .

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प्लेटो

प्लेटो (४२८/४२७ ईसापूर्व - ३४८/३४७ ईसापूर्व), या अफ़्लातून, यूनान का प्रसिद्ध दार्शनिक था। वह सुकरात (Socrates) का शिष्य तथा अरस्तू (Aristotle) का गुरू था। इन तीन दार्शनिकों की त्रयी ने ही पश्चिमी संस्कृति की दार्शनिक आधार तैयार किया। यूरोप में ध्वनियों के वर्गीकरण का श्रेय प्लेटो को ही है। .

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पृष्ट

गणित व संस्थितिविज्ञान में पृष्ट एक द्विविम संस्थितिक दिक् (two-dimensional, topological space) होती है। मानवों के लिये सबसे सरलता से समझने वाले पृष्ठ हमारे त्रिविम दिक् (three-dimensional space) में ठोस वस्तुओं की सीमाएँ होती हैं, यानि किसी भी वस्तु की सबसे बाहरी परत। सतहों के कई आकार हो सकते हैं। मसलन पृथ्वी की सतह का एक आकार है और किसी मेज़ की सतह का अलग आकार होता है। भौतिकी, अभियान्त्रिकी, कंप्यूटर ग्राफिक्स, और अन्य विद्याओं में सतहों का अध्ययन और प्रयोग बहुत महत्वपूर्ण है। .

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पैरिस विश्वविद्यालय

पैरिस विश्वविद्यालय (फ़्रांसीसी: Université de Paris) फ़्रांस के सबसे पुराने विश्वविद्यालयों में से एक है और सर्वप्रथम १२वीं सदीं में स्थापित किया गया था। १९७० में इसे १३ स्वायत्तशासी विश्वविद्यालयों के रूप में मान्यता मिली (पैरिस विश्वविद्यालय I–XIII)। इसकी स्थापना रॉबर्ट डि सोर्बोन द्वारा १२५७ में कि गई थी। वर्तमान के १३ उत्तराधिकारी विश्वविद्यालयों में से, प्रथम चार ऐतिहासिक सोर्बोन भवन में हैं और तीन के नामों में "सोर्बोन" है। श्रेणी:फ़्रांस के विश्वविद्यालय.

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पूर्णांक

right पूर्ण संख्या धनात्मक प्राकृतिक संख्या, ऋणात्मक प्राकृतिक संख्या तथा शून्य के समूह को कहते हैं जैसे -2,-1,0,1,2 श्रेणी:गणित पूर्णांक श्रेणी:बीजीय संख्या सिद्धान्त.

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पेरिस

पेरिस (फ़्रांसीसी: Paris, फ़्रांसिसी उच्चारण: पारी) फ़्रांस का सबसे बड़ा नगर और उसकी राजधानी है। यह 105 वर्ग किलोमीटर (41 वर्ग मील) में फैला हुआ है, और इसकी प्रशासनिक सीमा के भीतर 2015 में 22,29,621 की आबादी थी। 17वीं शताब्दी में पेरिस, यूरोप में वित्त, वाणिज्य, फैशन, विज्ञान और कला के प्रमुख केंद्रों में से एक बना, और यह आज भी उस स्थिति को बरकरार रखता है। 2012 में पेरिस क्षेत्र का सकल घरेलू उत्पाद 649.6 अरब यूरो (763.4 अरब अमेरिकी डॉलर) था, जो कि पूरे फ्रांस के सकल घरेलू उत्पाद का 30.4 प्रतिशत होता है। इसे दुनिया के सबसे सुन्दर नगरों में से एक और दुनिया की फ़ैशन और ग्लैमर राजधानी माना जाता है। पेरिस के शहर को सेन नदी के किनारे एक निर्मित क्षेत्र के केंद्र के रूप में बनाया गया था, जोकि अब प्रशासनिक सीमाओं से परे भी फैल चुकी है। 2013 की जनगणना के अनुसार पेरिस शहर की आबादी 10,601,122 है, जो इसे यूरोपीय संघ में सबसे बड़ा बनाता है। वही इसके महानगरीय क्षेत्र की अबादी 12,405,426 है, जोकि फ्रांस की कुल आबादी का पांचवाँ हिस्सा है। और साथ लंदन के बाद, यूरोपीय संघ में दूसरा सबसे बड़ा महानगर क्षेत्र है। पेरिस-चार्ल्स डी गॉल (2014 में 63.8 मिलियन यात्रियों के साथ लंदन हीथ्रो विमानक्षेत्र के बाद यूरोप में दूसरा सबसे व्यस्त हवाई अड्डा) और पेरिस-ओरली सहित दो प्रमुख अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डों के साथ शहर, रेल, राजमार्ग और हवाई-परिवहन का केंद्र है। 1900 में खोला गया, शहर की मेट्रो प्रणाली (पेरिस मेट्रो) रोजाना 5.23 मिलियन यात्रियों की सेवाएं देती है। मॉस्को मेट्रो के बाद यह यूरोप में दूसरा सबसे व्यस्त मेट्रो प्रणाली है। पेरिस में कई महत्वपूर्ण सांस्कृतिक संस्थान हैं: इसकी लौवर संग्रहालय दुनिया में सबसे अधिक देखी जाने वाली है; इसकी मुसे डी'ओर्से, फ्रांसिस इंपीरियनिस्ट कला के संग्रह के लिए प्रसिद्ध है, और इसकी पोम्पिडु-केंद्र म्यूसिक नेशनल डी'आर्ट मॉर्डेन, यूरोप में आधुनिक और समकालीन कला का सबसे बड़ा संग्रह है। सेन नदी के साथ शहर के केंद्रीय क्षेत्र को यूनेस्को विरासत स्थल के रूप में वर्गीकृत किया गया है, और नॉट्रे डेम कैथेड्रल, सैंट-चैपल, पुर्व यूनिवर्सल प्रदर्शनी ग्रैंड पैलेस, पेटिट पालिसी और आइफ़िल टावर सहित कई उल्लेखनीय स्मारक शामिल हैं। 2015 में 22.2 मिलियन पर्यटक पेरिस घुमने आये थे, इसके साथ ही यह दुनिया का शीर्ष पर्यटन स्थलों में से एक बन गया। .

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पेल का समीकरण

निम्नलिखित स्वरूप वाले समीकरण को पेल् का समीकरण (Pell's equation) कहते हैं- जहाँ n एक धनात्मक अवर्ग पूर्णांक है। इस समीकरण में आये x और y के लिये पूर्णांक हल वांचित होता है। भारत में इस तरह के समीकरणों को वर्ग-प्रकृति कहते थे। ब्रह्मगुप्त ने ऐसे समीकरणों का विस्तृत अध्ययन किया था तथा पेल से १००० वर्ष पहले ब्राह्मस्फुटसिद्धान्त में इसके हल की चक्रवाल विधि बतायी थी। इनके हल के लिये ब्रह्मगुप्त ने दो प्रमेयिकाओं (लेम्माज) की खोज की थी जिन्हें 'भावना' कहा गया है। .

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फलन

''X'' के किसी सदस्य का ''Y'' के केवल एक सदस्य से सम्बन्ध हो तो वह फलन है अन्यथा नहीं। ''Y''' के कुछ सदस्यों का '''X''' के किसी भी सदस्य से सम्बन्ध '''न''' होने पर भी फलन परिभाषित है। गणित में जब कोई राशि का मान किसी एक या एकाधिक राशियों के मान पर निर्भर करता है तो इस संकल्पना को व्यक्त करने के लिये फलन (function) शब्द का प्रयोग किया जाता है। उदाहरण के लिये किसी ऋण पर चक्रवृद्धि ब्याज की राशि मूलधन, समय एवं ब्याज की दर पर निर्भर करती है; इसलिये गणित की भाषा में कह सकते हैं कि चक्रवृद्धि ब्याज, मूलधन, ब्याज की दर तथा समय का फलन है। स्पष्ट है कि किसी फलन के साथ दो प्रकार की राशियां सम्बन्धित होती हैं -.

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फ़्रान्स

फ़्रान्स,या फ्रांस (आधिकारिक तौर पर फ़्रान्स गणराज्य; फ़्रान्सीसी: République française) पश्चिम यूरोप में स्थित एक देश है किन्तु इसका कुछ भूभाग संसार के अन्य भागों में भी हैं। पेरिस इसकी राजधानी है। यह यूरोपीय संघ का सदस्य है। क्षेत्रफल की दृष्टि से यह यूरोप महाद्वीप का सबसे बड़ा देश है, जो उत्तर में बेल्जियम, लक्ज़मबर्ग, पूर्व में जर्मनी, स्विट्ज़रलैण्ड, इटली, दक्षिण-पश्चिम में स्पेन, पश्चिम में अटलांटिक महासागर, दक्षिण में भूमध्यसागर तथा उत्तर पश्चिम में इंग्लिश चैनल द्वारा घिरा है। इस प्रकार यह तीन ओर सागरों से घिरा है। सुरक्षा की दृष्टि से इसकी स्थिति उत्तम नहीं है। लौह युग के दौरान, अभी के महानगरीय फ्रांस को कैटलिक से आये गॉल्स ने अपना निवास स्थान बनाया। रोम ने 51 ईसा पूर्व में इस क्षेत्र पर कब्जा कर लिया गया। फ्रांस, गत मध्य युग में सौ वर्ष के युद्ध (1337 से 1453) में अपनी जीत के साथ राज्य निर्माण और राजनीतिक केंद्रीकरण को मजबूत करने के बाद एक प्रमुख यूरोपीय शक्ति के रूप में उभरा। पुनर्जागरण के दौरान, फ्रांसीसी संस्कृति विकसित हुई और एक वैश्विक औपनिवेशिक साम्राज्य स्थापित हुआ, जो 20 वीं सदी तक दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी थी। 16 वीं शताब्दी में यहाँ कैथोलिक और प्रोटेस्टैंट (ह्यूजेनॉट्स) के बीच धार्मिक नागरिक युद्धों का वर्चस्व रहा। फ्रांस, लुई चौदहवें के शासन में यूरोप की प्रमुख सांस्कृतिक, राजनीतिक और सैन्य शक्ति बन कर उभरा। 18 वीं शताब्दी के अंत में, फ्रेंच क्रांति ने पूर्ण राजशाही को उखाड़ दिया, और आधुनिक इतिहास के सबसे पुराने गणराज्यों में से एक को स्थापित किया, साथ ही मानव और नागरिकों के अधिकारों की घोषणा के प्रारूप का मसौदा तैयार किया, जोकि आज तक राष्ट्र के आदर्शों को व्यक्त करता है। 19वीं शताब्दी में नेपोलियन ने वहाँ की सत्ता हथियाँ कर पहले फ्रांसीसी साम्राज्य की स्थापना की, इसके बाद के नेपोलियन युद्धों ने ही वर्तमान यूरोप महाद्वीपीय के स्वरुप को आकार दिया। साम्राज्य के पतन के बाद, फ्रांस में 1870 में तृतीय फ्रांसीसी गणतंत्र की स्थापना हुई, हलाकि आने वाली सभी सरकार लचर अवस्था में ही रही। फ्रांस प्रथम विश्व युद्ध में एक प्रमुख भागीदार था, जहां वह विजयी हुआ, और द्वितीय विश्व युद्ध में मित्र राष्ट्र में से एक था, लेकिन 1940 में धुरी शक्तियों के कब्जे में आ गया। 1944 में अपनी मुक्ति के बाद, चौथे फ्रांसीसी गणतंत्र की स्थापना हुई जिसे बाद में अल्जीरिया युद्ध के दौरान पुनः भंग कर दिया गया। पांचवां फ्रांसीसी गणतंत्र, चार्ल्स डी गॉल के नेतृत्व में, 1958 में बनाई गई और आज भी यह कार्यरत है। अल्जीरिया और लगभग सभी अन्य उपनिवेश 1960 के दशक में स्वतंत्र हो गए पर फ्रांस के साथ इसके घनिष्ठ आर्थिक और सैन्य संबंध आज भी कायम हैं। फ्रांस लंबे समय से कला, विज्ञान और दर्शन का एक वैश्विक केंद्र रहा है। यहाँ पर यूरोप की चौथी सबसे ज्यादा सांस्कृतिक यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल मौजूद है, और दुनिया में सबसे अधिक, सालाना लगभग 83 मिलियन विदेशी पर्यटकों की मेजबानी करता है। फ्रांस एक विकसित देश है जोकि जीडीपी में दुनिया की छठी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था तथा क्रय शक्ति समता में नौवीं सबसे बड़ा है। कुल घरेलू संपदा के संदर्भ में, यह दुनिया में चौथे स्थान पर है। फ्रांस का शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल, जीवन प्रत्याशा और मानव विकास की अंतरराष्ट्रीय रैंकिंग में अच्छा प्रदर्शन है। फ्रांस, विश्व की महाशक्तियों में से एक है, वीटो का अधिकार और एक आधिकारिक परमाणु हथियार संपन्न देश के साथ ही यह संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के पांच स्थायी सदस्यों में से एक है। यह यूरोपीय संघ और यूरोजोन का एक प्रमुख सदस्यीय राज्य है। यह समूह-8, उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (नाटो), आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (ओईसीडी), विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) और ला फ्रैंकोफ़ोनी का भी सदस्य है। .

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बर्ट्रैंड रसल

बर्ट्रेंड रसेल बर्ट्रेंड रसेल (18 मई 1872 - 3 फ़रवरी 1970) अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त ब्रिटिश दार्शनिक, गणितज्ञ, वैज्ञानिक, शिक्षाशास्त्री, राजनीतिज्ञ, समाजशास्त्री तथा लेखक थे। .

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बहुपद

7 घात वाले एक बहुपद का कार्तीय निरेशांक प्रणाली में ग्राफ प्रारंभिक बीजगणित में धन (+) और ऋण (-) चिह्नों से संबंद्ध कई पदों के व्यंजक (expression) को बहुपद (Polynomial) कहते हैं, यथा (3a+2b-5c).

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बाबिल

बाबिल के इश्टर द्वार का चित्रण बाबिल आजकल के ईराक क्षेत्र की सुमेर के पश्चात दूसरी सभ्यता। इस की भाषा सुमेर की भाषा से भिन्न थी। इसे बेबीलोनियन सभ्यता के नाम से भी जाना जाता है। बाबिल नगर जो इसी नाम के साम्राज्य की राजधानी था, आजकल के बगदाद से ८० किलोमीटर दक्षिण में स्थित था। बेबीलोन प्राचीन मेसोपोटामिया का एक नगर था। यह बेबीलोनिया साम्राज्य का केन्द्र था। .

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बाइबिल

बाइबिल (अथवा बाइबल, Bible, अर्थात "किताब") ईसाई धर्म(मसीही धर्म) की आधारशिला है और ईसाइयों (मसीहियों) का पवित्रतम धर्मग्रन्थ है। इसके दो भाग हैं: पूर्वविधान (ओल्ड टेस्टामैंट) और नवविधान (न्यू टेस्टामेंट)। बाइबिल का पूर्वार्ध अर्थात् पूर्वविधान यहूदियों का भी धर्मग्रंथ है। बाइबिल ईश्वरप्रेरित (इंस्पायर्ड) है किंतु उसे अपौरुषेय नहीं कहा जा सकता। ईश्वर ने बाइबिल के विभिन्न लेखकों को इस प्रकार प्रेरित किया है कि वे ईश्वरकृत होते हुए भी उनकी अपनी रचनाएँ भी कही जा सकती हैं। ईश्वर ने बोलकर उनसे बाइबिल नहीं लिखवाई। वे अवश्य ही ईश्वर की प्रेरणा से लिखने में प्रवृत्त हुए किंतु उन्होंने अपनी संस्कृति, शैली तथा विचारधारा की विशेषताओं के अनुसार ही उसे लिखा है। अत: बाइबिल ईश्वरीय प्रेरणा तथा मानवीय परिश्रम दोनों का सम्मिलित परिणाम है। मानव जाति तथा यहूदियों के लिए ईश्वर ने जो कुछ किया और इसके प्रति मनुष्य की जो प्रतिक्रिया हुई उसका इतिहास और विवरण ही बाइबिल का वण्र्य विषय है। बाइबिल गूढ़ दार्शनिक सत्यों का संकलन नहीं है बल्कि इसमें दिखलाया गया है कि ईश्वर ने मानव जाति की मुक्ति का क्या प्रबंध किया है। वास्तव में बाइबिल ईश्वरीय मुक्तिविधान के कार्यान्वयन का इतिहास है जो ओल्ड टेस्टामेंट में प्रारंभ होकर ईसा के द्वारा न्यू टेस्टामेंट में संपादित हुआ है। अत: बाइबिल के दोनों भागों में घनिष्ठ संबंध है। ओल्ड टेस्टामेंट की घटनाओं द्वारा ईसा के जीवन की घटनाओं की पृष्ठभूमि तैयार की गई है। न्यू टेस्टामेंट में दिखलाया गया है कि मुक्तिविधान किस प्रकार ईसा के व्यक्तित्व, चमत्कारों, शिक्षा, मरण तथा पुनरुत्थान द्वारा संपन्न हुआ है; किस प्रकार ईसा ने चर्च की स्थापना की और इस चर्च ने अपने प्रारंभिक विकास में ईसा के जीवन की घटनाओं को किस दृष्टि से देखा है कि उनमें से क्या निष्कर्ष निकाला है। बाइबिल में प्रसंगवश लौकिक ज्ञान विज्ञान संबंधी बातें भी आ गई हैं; उनपर तात्कालिक धारणाओं की पूरी छाप है क्योंकि बाइबिल उनके विषय में शायद ही कोई निर्देश देना चाहती है। मानव जाति के इतिहास की ईश्वरीय व्याख्या प्रस्तुत करना और धर्म एवं मुक्ति को समझना, यही बाइबिल का प्रधान उद्देश्य है, बाइबिल की तत्संबंधी शिक्षा में कोई भ्रांति नहीं हो सकती। उसमें अनेक स्थलों पर मनुष्यों के पापाचरण का भी वर्णन मिलता है। ऐसा आचरण अनुकरणीय आदर्श के रूप में नहीं प्रस्तुत हुआ है किंतु उसके द्वारा स्पष्ट हो जाता है कि मनुष्य कितने कलुषित हैं और उनको ईश्वर की मुक्ति की कितनी आवश्यकता है। .

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बग़दाद

बगदाद एक प्रमुख नगर बग़दाद (بغداد) विश्व का एक प्रमुख नगर एवं ईराक की राजधानी है। इसका नाम ६०० ईपू के बाबिल के राजा भागदत्त पर पड़ा है। यह नगर 4,000 वर्ष पहले पश्चिमी यूरोप और सुदूर पूर्व के देशों के बीच, समुद्री मार्ग के आविष्कार के पहले कारवाँ मार्ग का प्रसिद्ध केंद्र था तथा नदी के किनारे इसकी स्थिति व्यापारिक महत्व रखती थी। मेसोपोटामिया के उपजाऊ भाग में स्थित बगदाद वास्तव में शांति और समृद्धि का केंद्र था। 9वीं शताब्दी के प्रारंभिक वर्षों में यह अपने चरमोत्कर्ष पर था। उस समय यहाँ प्रबुद्ध खलीफा की छत्रछाया में धनी व्यापारी एवं विद्वान लोग फले-फूले। रेशमी वस्त्र एवं विशाल खपरैल के भवनों के लिए प्रसिद्ध बगदाद इस्लाम धर्म का केंद्र रहा है। यहाँ का औसत ताप लगभग 23 डिग्री सें.

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ब्रह्मगुप्त

ब्रह्मगुप्त का प्रमेय, इसके अनुसार ''AF'' .

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ब्रह्मगुप्त का सूत्र

ब्रह्मगुप्त का सूत्र किसी चक्रीय चतुर्भुज का क्षेत्रफल निकालने का सूत्र है यदि उसकी चारों भुजाएँ ज्ञात हों। उस चतुर्भुज को चक्रीय चतुर्भुज कहते हैं जिसके चारों शीर्षों से होकर कोई वृत्त खींचा जा सके।I .

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ब्राह्मस्फुटसिद्धान्त

ब्राह्मस्फुटसिद्धान्त, ब्रह्मगुप्त की प्रमुख रचना है। यह संस्कृत मे है। इसकी रचना सन ६२८ के आसपास हुई। ध्यानग्रहोपदेशाध्याय को मिलाकर इसमें कुल पचीस (२५) अध्याय हैं। यह ग्रन्थ पूर्णतः काव्य रूप में लिखा गई है। 'ब्राह्मस्फुटसिद्धान्त' का अर्थ है - 'ब्रह्मगुप्त द्वारा स्फुटित (प्रकाशित) सिद्धान्त'। इस ग्रन्थ में अन्य बातों के अलावा गणित के निम्नलिखित विषय वर्णित हैं-.

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ब्राह्मी

तालकटोरा उद्यान, दिल्ली में ब्राह्मी का पौधा ब्राह्मी का पौधा ब्राह्मी (वानस्पतिक नाम: Bacapa monnieri) का एक औषधीय पौधा है जो भूमि पर फैलकर बड़ा होता है। इसके तने और पत्तियाँ मुलामय, गूदेदार और फूल सफेद होते है। यह पौधा नम स्‍थानों में पाया जाता है, तथा मुख्‍यत: भारत ही इसकी उपज भूमि है। इसे भारत वर्ष में विभिन्‍न नामों से जाना जाता है जैसे हिन्‍दी में सफेद चमनी, संस्‍कृत में सौम्‍यलता, मलयालम में वर्ण, नीरब्राम्‍ही, मराठी में घोल, गुजराती में जल ब्राह्मी, जल नेवरी आदि तथा इसका वैज्ञानिक नाम बाकोपा मोनिएरी है। यह पूर्ण रूपेण औषधीय पौधा है। यह औषधि नाडि़यों के लिये पौष्टिक होती है। कब्‍ज को दूर करती है। इसके पत्‍ते के रस को पेट्रोल के साथ मिलाकर लगाने से गठिया दूर करती है। ब्राह्मी में रक्‍त शुद्ध करने के गुण भी पाये जाते है। यह हृदय के लिये भी पौष्टिक होता है। .

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ब्लेज़ पास्कल

ब्लेज़ पास्कल (फ्रांसीसी: Blaise Pascal), (19 जून १६२३, क्लेरमों-फर्रां – १९ अगस्त १६६२, पैरिस) फ्रांसीसी गणितज्ञ, भौतिकज्ञ और धार्मिक दार्शनिक थे। पास्कल ने व्यावहारिक विज्ञान पर काम करते हुए मशीनी गणक बनाए, द्रव्यों के गुणों को समझा और टॉरिसैली के काम को आगे बढ़ाते हुए दबाव और निर्वात की अवधारणाओं को स्पष्ट किया। इन्होंने वैज्ञानिक विधि के समर्थन में भी लेख लिखे। साथ ही धार्मिक दर्शन में भी इनकी कृतियों ने बहुत असर छोड़ा। ३ वर्ष की आयु में इनकी माँ चल बसीं और इन्हें इनके पिता ने ही पाला-पोसा। ये बचपन से ही बहुत मेधावी थे। इनकी प्रतिभा को देखकर इनके पिता ने इन्हें स्वयं पढ़ाने-लिखाने का निर्णय लिया। बारह वर्ष की आयु से ये प्रसिद्ध गणितज्ञों की सभाओं में बैठने लगे। पास्कल बहुत माने हुए गणितज्ञ थे। इन्होंने वैज्ञानिक शोध के दो मुख्य क्षेत्रों में सर्वप्रथम कार्य शुरु किया- प्रक्षेपण ज्यामिति, जिस पर इन्होंने १६ साल की आयु में आलेख लिखा और संभाव्यता सिद्धान्त, जिसपर आधुनिक अर्थशास्त्र और समाज विज्ञान आधारित हैं। गैलीलियो और टॉरिसैली की तरह ही इन्होंने अरस्तू के कथन "प्रकृति को निर्वात से घृणा है" का जमकर विरोध किया। इनके कई निष्कर्षों पर बहुत समय विवाद हुआ, लेकिन अन्त में स्वीकार कर लिए गए। १६४२ में इन्होंने अपने पिता का गणना का काम आसान करने के लिए एक मशीनी गणक बनाया, जिसे आज "पास्कल गणक" कहा जाता है। द्रव्य विज्ञान के जरिये इन्होंने हाइड्रॉलिक प्रेस और सिरिंज का आविष्कार किया। १६४६ में इन्होंने अपनी बहन के साथ कैथोलिक संप्रदाय की जैन्सनवाद धारा को अपना लिया। इनके पिता १६५१ में चल बसे। १६५४ में एक आध्यात्मिक अनुभूति हुई, जिसके बाद इन्होंने वैज्ञानिक शोध छोड़कर अपना ध्यान धर्मशास्त्र और दर्शन में लगाना शुरु किया। इनकी दो सबसे प्रसिद्ध कृतियाँ इस काल की हैं। लैथ्र प्रोविन्सियाल (Lettres provinciales, प्रांतीय पत्र) में पास्कल ने पाप के प्रति कैथोलिक चर्च के नरम रुख की जमकर निन्दा की। इन पत्रों की शैली से वॉल्टेयर और ज़ां ज़ाक रूसो जैसे लेखक प्रभावित हुए। प्रकाशन के शीघ्र बाद ही इस पर चर्च ने प्रतिबन्ध लगा दिया, लेकिन फिर पोप एलेक्सैण्डर ने इसमें दिये तर्कों को माना और खुद चर्च के नरम रुख की निन्दा की। दूसरी रचना थी पौंसे (Pensées, विचार), जिसे इनकी मृत्यु के पश्चात इनके बिखरे कागज़ों को इकट्ठा करके प्रकाशित किया गया। इस रचना में इन्होंने कई दार्शनिक विरोधाभासों पर विचार किया-असीमता और शून्यता, विश्वास और तर्क, आत्मा और पदार्थ, मृत्यु और जीवन, उद्देश्य और अभिमान-और अन्त में ऐसा प्रतीत होता है कि ये किसी ठोस परिणाम पर नहीं पहुँचते, बस नम्रता, अज्ञानता और कृपा को मिलाते हुए एक दार्शनिक निष्कर्ष निकालते हैं, जिसे आजकल "पास्कल का दांव" कहा जाता है। इसी दौरान इन्होंने त्रिकोणों के अंकगणित पर और ठोस वस्तुओं का घनफल निकालने के लिए चक्रज के उपयोग पर भी प्रपत्र लिखे। १८ साल की उम्र से ही पास्कल की सेहत खराब रहने लगी थी और ३९ वर्ष की आयु में इनकी मृत्यु हो गई। दबाव की SI इकाई एवं एक कम्प्यूटर भाषा का नाम इनके सम्मान में पास्कल रखा गया है। .

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बूलीय बीजगणित (तर्कशास्त्र)

बूलीय बीजगणित (बूलीयन अल्जब्रा) या बूली का तर्कशास्त्र, तार्किक ऑपरेशन का एक सम्पूर्ण तन्त्र है। इसे सबसे पहले जॉर्ज बूल ने उन्नीसवीं शदी के मध्य में बीजगणितीय तर्क के रूप में प्रस्तुत किया। बहुत दिनो तक इस पर लोगों का ध्यान नहीं गया और इसे महत्व नहीं दिया गया। इसके बहुत दिनों के बाद सन १९३८ में क्लॉड शैनन ने प्रदर्शित किया कि रिले-युक्त परिपथ का कार्य बूली के तर्क पर आधारित हैं। एक बार जब इसका प्रयोग डिजिटल एलेक्ट्रानिक परिपथों के डिजाइन एवं सरलीकरण में होने लगा तो क्रान्ति ही आ गयी। आज बूली का बीजगणित आंकिक एलेक्ट्रानिकी का आधार बन गया है तथा एलेक्ट्रानिकी, संगणक का हार्डवेयर तथा साफ्टवेयर, डेटाबेस, खोजी-यंत्र (सर्च-इंजन) एवं अन्य तार्किक डिजाइनों में अत्यन्त उपयोगी है। .

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बेलन (ज्यामिति)

बेलन (ज्यामिति) (Cylinder)ज्यामिति में एक त्रिआयामी ठोस की आकृति है। इसका पार्श्व पृष्ठ वक्र, सिरे समान त्रिज्या के वृत्ताकार होते हैं।:बेलन सरल रूप में एक रोलर या समान व्यास का गिलास है .

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बीज-लेखन

द्वितीय विश्व युद्ध में सेना के उच्च स्तरीय जनरल स्टाफ के संदेशों को कूटबद्ध करने के लिए या उन्हें गुप्त भाषा में लिखने के लिए प्रयोग की गई। Lorenz cipher) क्रिप्टोग्राफ़ी या क्रिप्टोलोजी यानि कूट-लेखन यूनानी शब्द κρυπτός,, क्रिपटोस औरγράφω ग्राफ़ो या -λογία,लोजिया (-logia), से लिया गया है। इनके अर्थ हैं क्रमशः छुपा हुआ रहस्य और मैं लिखता हूँ। यह किसी छुपी हुई जानकारी (information) का अध्ययन करने की प्रक्रिया है। आधुनिक समय में, क्रिप्टोग्राफ़ी या कूट-लेखन को गणित और कंप्यूटर विज्ञान (computer science) दोनों की एक शाखा माना जाता है और सूचना सिद्धांत (information theory), कंप्यूटर सुरक्षा (computer security) और इंजीनियरिंग से काफ़ी ज्यादा जुड़ा हुआ है। तकनीकी रूप से उन्नत समाज में कूटलेखन के अनुप्रयोग कई रूपों में मौजूद हैं। उदाहरण के लिये - एटीएम कार्ड (ATM cards), कंप्यूटर पासवर्ड (computer passwords) और इलेक्ट्रॉनिक वाणिज्य (electronic commerce)- ये सभी कूटलेखन पर निर्भर करते हैं। .

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बीजगणित

बीजगणित (संस्कृत ग्रन्थ) भी देखें। ---- आर्यभट बीजगणित (algebra) गणित की वह शाखा जिसमें संख्याओं के स्थान पर चिन्हों का प्रयोग किया जाता है। बीजगणित चर तथा अचर राशियों के समीकरण को हल करने तथा चर राशियों के मान निकालने पर आधारित है। बीजगणित के विकास के फलस्वरूप निर्देशांक ज्यामिति व कैलकुलस का विकास हुआ जिससे गणित की उपयोगिता बहुत बढ़ गयी। इससे विज्ञान और तकनीकी के विकास को गति मिली। महान गणितज्ञ भास्कराचार्य द्वितीय ने कहा है - अर्थात् मंदबुद्धि के लोग व्यक्ति गणित (अंकगणित) की सहायता से जो प्रश्न हल नहीं कर पाते हैं, वे प्रश्न अव्यक्त गणित (बीजगणित) की सहायता से हल कर सकते हैं। दूसरे शब्दों में, बीजगणित से अंकगणित की कठिन समस्याओं का हल सरल हो जाता है। बीजगणित से साधारणतः तात्पर्य उस विज्ञान से होता है, जिसमें संख्याओं को अक्षरों द्वारा निरूपित किया जाता है। परंतु संक्रिया चिह्न वही रहते हैं, जिनका प्रयोग अंकगणित में होता है। मान लें कि हमें लिखना है कि किसी आयत का क्षेत्रफल उसकी लंबाई तथा चौड़ाई के गुणनफल के समान होता है तो हम इस तथ्य को निमन प्रकार निरूपित करेंगे— बीजगणिति के आधुनिक संकेतवाद का विकास कुछ शताब्दी पूर्व ही प्रारंभ हुआ है; परंतु समीकरणों के साधन की समस्या बहुत पुरानी है। ईसा से 2000 वर्ष पूर्व लोग अटकल लगाकर समीकरणों को हल करते थे। ईसा से 300 वर्ष पूर्व तक हमारे पूर्वज समीकरणों को शब्दों में लिखने लगे थे और ज्यामिति विधि द्वारा उनके हल ज्ञात कर लेते थे। .

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बीजीय समीकरण

गणित में निम्नलिखित स्वरूप वाले समीकरणों को बीजीय समीकरण (algebraic equation) या बहुपद समीकरण (polynomial equation) कहते हैं। जहाँ P_n(x), n घात का बहुपद है। तथा a_n \neq 0.

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भारत का इतिहास

भारत का इतिहास कई हजार साल पुराना माना जाता है। मेहरगढ़ पुरातात्विक दृष्टि से महत्वपूर्ण स्थान है जहाँ नवपाषाण युग (७००० ईसा-पूर्व से २५०० ईसा-पूर्व) के बहुत से अवशेष मिले हैं। सिन्धु घाटी सभ्यता, जिसका आरंभ काल लगभग ३३०० ईसापूर्व से माना जाता है, प्राचीन मिस्र और सुमेर सभ्यता के साथ विश्व की प्राचीनतम सभ्यता में से एक हैं। इस सभ्यता की लिपि अब तक सफलता पूर्वक पढ़ी नहीं जा सकी है। सिंधु घाटी सभ्यता वर्तमान पाकिस्तान और उससे सटे भारतीय प्रदेशों में फैली थी। पुरातत्त्व प्रमाणों के आधार पर १९०० ईसापूर्व के आसपास इस सभ्यता का अक्स्मात पतन हो गया। १९वी शताब्दी के पाश्चात्य विद्वानों के प्रचलित दृष्टिकोणों के अनुसार आर्यों का एक वर्ग भारतीय उप महाद्वीप की सीमाओं पर २००० ईसा पूर्व के आसपास पहुंचा और पहले पंजाब में बस गया और यहीं ऋग्वेद की ऋचाओं की रचना की गई। आर्यों द्वारा उत्तर तथा मध्य भारत में एक विकसित सभ्यता का निर्माण किया गया, जिसे वैदिक सभ्यता भी कहते हैं। प्राचीन भारत के इतिहास में वैदिक सभ्यता सबसे प्रारंभिक सभ्यता है जिसका संबंध आर्यों के आगमन से है। इसका नामकरण आर्यों के प्रारम्भिक साहित्य वेदों के नाम पर किया गया है। आर्यों की भाषा संस्कृत थी और धर्म "वैदिक धर्म" या "सनातन धर्म" के नाम से प्रसिद्ध था, बाद में विदेशी आक्रांताओं द्वारा इस धर्म का नाम हिन्दू पड़ा। वैदिक सभ्यता सरस्वती नदी के तटीय क्षेत्र जिसमें आधुनिक भारत के पंजाब (भारत) और हरियाणा राज्य आते हैं, में विकसित हुई। आम तौर पर अधिकतर विद्वान वैदिक सभ्यता का काल २००० ईसा पूर्व से ६०० ईसा पूर्व के बीच में मानते है, परन्तु नए पुरातत्त्व उत्खननों से मिले अवशेषों में वैदिक सभ्यता से संबंधित कई अवशेष मिले है जिससे कुछ आधुनिक विद्वान यह मानने लगे हैं कि वैदिक सभ्यता भारत में ही शुरु हुई थी, आर्य भारतीय मूल के ही थे और ऋग्वेद का रचना काल ३००० ईसा पूर्व रहा होगा, क्योंकि आर्यो के भारत में आने का न तो कोई पुरातत्त्व उत्खननों पर अधारित प्रमाण मिला है और न ही डी एन ए अनुसन्धानों से कोई प्रमाण मिला है। हाल ही में भारतीय पुरातत्व परिषद् द्वारा की गयी सरस्वती नदी की खोज से वैदिक सभ्यता, हड़प्पा सभ्यता और आर्यों के बारे में एक नया दृष्टिकोण सामने आया है। हड़प्पा सभ्यता को सिन्धु-सरस्वती सभ्यता नाम दिया है, क्योंकि हड़प्पा सभ्यता की २६०० बस्तियों में से वर्तमान पाकिस्तान में सिन्धु तट पर मात्र २६५ बस्तियां थीं, जबकि शेष अधिकांश बस्तियां सरस्वती नदी के तट पर मिलती हैं, सरस्वती एक विशाल नदी थी। पहाड़ों को तोड़ती हुई निकलती थी और मैदानों से होती हुई समुद्र में जाकर विलीन हो जाती थी। इसका वर्णन ऋग्वेद में बार-बार आता है, यह आज से ४००० साल पूर्व भूगर्भी बदलाव की वजह से सूख गयी थी। ईसा पूर्व ७ वीं और शुरूआती ६ वीं शताब्दि सदी में जैन और बौद्ध धर्म सम्प्रदाय लोकप्रिय हुए। अशोक (ईसापूर्व २६५-२४१) इस काल का एक महत्वपूर्ण राजा था जिसका साम्राज्य अफगानिस्तान से मणिपुर तक और तक्षशिला से कर्नाटक तक फैल गया था। पर वो सम्पूर्ण दक्षिण तक नहीं जा सका। दक्षिण में चोल सबसे शक्तिशाली निकले। संगम साहित्य की शुरुआत भी दक्षिण में इसी समय हुई। भगवान गौतम बुद्ध के जीवनकाल में, ईसा पूर्व ७ वीं और शुरूआती ६ वीं शताब्दि के दौरान सोलह बड़ी शक्तियां (महाजनपद) विद्यमान थे। अति महत्‍वपूर्ण गणराज्‍यों में कपिलवस्‍तु के शाक्‍य और वैशाली के लिच्‍छवी गणराज्‍य थे। गणराज्‍यों के अलावा राजतंत्रीय राज्‍य भी थे, जिनमें से कौशाम्‍बी (वत्‍स), मगध, कोशल, कुरु, पान्चाल, चेदि और अवन्ति महत्‍वपूर्ण थे। इन राज्‍यों का शासन ऐसे शक्तिशाली व्‍यक्तियों के पास था, जिन्‍होंने राज्‍य विस्‍तार और पड़ोसी राज्‍यों को अपने में मिलाने की नीति अपना रखी थी। तथापि गणराज्‍यात्‍मक राज्‍यों के तब भी स्‍पष्‍ट संकेत थे जब राजाओं के अधीन राज्‍यों का विस्‍तार हो रहा था। इसके बाद भारत छोटे-छोटे साम्राज्यों में बंट गया। आठवीं सदी में सिन्ध पर अरबी अधिकार हो गाय। यह इस्लाम का प्रवेश माना जाता है। बारहवीं सदी के अन्त तक दिल्ली की गद्दी पर तुर्क दासों का शासन आ गया जिन्होंने अगले कई सालों तक राज किया। दक्षिण में हिन्दू विजयनगर और गोलकुंडा के राज्य थे। १५५६ में विजय नगर का पतन हो गया। सन् १५२६ में मध्य एशिया से निर्वासित राजकुमार बाबर ने काबुल में पनाह ली और भारत पर आक्रमण किया। उसने मुग़ल वंश की स्थापना की जो अगले ३०० सालों तक चला। इसी समय दक्षिण-पूर्वी तट से पुर्तगाल का समुद्री व्यापार शुरु हो गया था। बाबर का पोता अकबर धार्मिक सहिष्णुता के लिए विख्यात हुआ। उसने हिन्दुओं पर से जज़िया कर हटा लिया। १६५९ में औरंग़ज़ेब ने इसे फ़िर से लागू कर दिया। औरंग़ज़ेब ने कश्मीर में तथा अन्य स्थानों पर हिन्दुओं को बलात मुसलमान बनवाया। उसी समय केन्द्रीय और दक्षिण भारत में शिवाजी के नेतृत्व में मराठे शक्तिशाली हो रहे थे। औरंगज़ेब ने दक्षिण की ओर ध्यान लगाया तो उत्तर में सिखों का उदय हो गया। औरंग़ज़ेब के मरते ही (१७०७) मुगल साम्राज्य बिखर गया। अंग्रेज़ों ने डचों, पुर्तगालियों तथा फ्रांसिसियों को भगाकर भारत पर व्यापार का अधिकार सुनिश्चित किया और १८५७ के एक विद्रोह को कुचलने के बाद सत्ता पर काबिज़ हो गए। भारत को आज़ादी १९४७ में मिली जिसमें महात्मा गाँधी के अहिंसा आधारित आंदोलन का योगदान महत्वपूर्ण था। १९४७ के बाद से भारत में गणतांत्रिक शासन लागू है। आज़ादी के समय ही भारत का विभाजन हुआ जिससे पाकिस्तान का जन्म हुआ और दोनों देशों में कश्मीर सहित अन्य मुद्दों पर तनाव बना हुआ है। .

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भारतीय विद्वान सूची

* भारतीय गणितज्ञ सूची.

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भारतीय गणित

गणितीय गवेषणा का महत्वपूर्ण भाग भारतीय उपमहाद्वीप में उत्पन्न हुआ है। संख्या, शून्य, स्थानीय मान, अंकगणित, ज्यामिति, बीजगणित, कैलकुलस आदि का प्रारम्भिक कार्य भारत में सम्पन्न हुआ। गणित-विज्ञान न केवल औद्योगिक क्रांति का बल्कि परवर्ती काल में हुई वैज्ञानिक उन्नति का भी केंद्र बिन्दु रहा है। बिना गणित के विज्ञान की कोई भी शाखा पूर्ण नहीं हो सकती। भारत ने औद्योगिक क्रांति के लिए न केवल आर्थिक पूँजी प्रदान की वरन् विज्ञान की नींव के जीवंत तत्व भी प्रदान किये जिसके बिना मानवता विज्ञान और उच्च तकनीकी के इस आधुनिक दौर में प्रवेश नहीं कर पाती। विदेशी विद्वानों ने भी गणित के क्षेत्र में भारत के योगदान की मुक्तकंठ से सराहना की है। .

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भास्कर

भास्कर तेनाली रामा का पुत्र था। शारधा भास्कर की माता थी।.

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भौतिक शास्त्र

भौतिकी के अन्तर्गत बहुत से प्राकृतिक विज्ञान आते हैं भौतिक शास्त्र अथवा भौतिकी, प्रकृति विज्ञान की एक विशाल शाखा है। भौतिकी को परिभाषित करना कठिन है। कुछ विद्वानों के मतानुसार यह ऊर्जा विषयक विज्ञान है और इसमें ऊर्जा के रूपांतरण तथा उसके द्रव्य संबन्धों की विवेचना की जाती है। इसके द्वारा प्राकृत जगत और उसकी आन्तरिक क्रियाओं का अध्ययन किया जाता है। स्थान, काल, गति, द्रव्य, विद्युत, प्रकाश, ऊष्मा तथा ध्वनि इत्यादि अनेक विषय इसकी परिधि में आते हैं। यह विज्ञान का एक प्रमुख विभाग है। इसके सिद्धांत समूचे विज्ञान में मान्य हैं और विज्ञान के प्रत्येक अंग में लागू होते हैं। इसका क्षेत्र विस्तृत है और इसकी सीमा निर्धारित करना अति दुष्कर है। सभी वैज्ञानिक विषय अल्पाधिक मात्रा में इसके अंतर्गत आ जाते हैं। विज्ञान की अन्य शाखायें या तो सीधे ही भौतिक पर आधारित हैं, अथवा इनके तथ्यों को इसके मूल सिद्धांतों से संबद्ध करने का प्रयत्न किया जाता है। भौतिकी का महत्व इसलिये भी अधिक है कि अभियांत्रिकी तथा शिल्पविज्ञान की जन्मदात्री होने के नाते यह इस युग के अखिल सामाजिक एवं आर्थिक विकास की मूल प्रेरक है। बहुत पहले इसको दर्शन शास्त्र का अंग मानकर नैचुरल फिलॉसोफी या प्राकृतिक दर्शनशास्त्र कहते थे, किंतु १८७० ईस्वी के लगभग इसको वर्तमान नाम भौतिकी या फिजिक्स द्वारा संबोधित करने लगे। धीरे-धीरे यह विज्ञान उन्नति करता गया और इस समय तो इसके विकास की तीव्र गति देखकर, अग्रगण्य भौतिक विज्ञानियों को भी आश्चर्य हो रहा है। धीरे-धीरे इससे अनेक महत्वपूर्ण शाखाओं की उत्पत्ति हुई, जैसे रासायनिक भौतिकी, तारा भौतिकी, जीवभौतिकी, भूभौतिकी, नाभिकीय भौतिकी, आकाशीय भौतिकी इत्यादि। भौतिकी का मुख्य सिद्धांत "उर्जा संरक्षण का नियम" है। इसके अनुसार किसी भी द्रव्यसमुदाय की ऊर्जा की मात्रा स्थिर होती है। समुदाय की आंतरिक क्रियाओं द्वारा इस मात्रा को घटाना या बढ़ाना संभव नहीं। ऊर्जा के अनेक रूप होते हैं और उसका रूपांतरण हो सकता है, किंतु उसकी मात्रा में किसी प्रकार परिवर्तन करना संभव नहीं हो सकता। आइंस्टाइन के सापेक्षिकता सिद्धांत के अनुसार द्रव्यमान भी उर्जा में बदला जा सकता है। इस प्रकार ऊर्जा संरक्षण और द्रव्यमान संरक्षण दोनों सिद्धांतों का समन्वय हो जाता है और इस सिद्धांत के द्वारा भौतिकी और रसायन एक दूसरे से संबद्ध हो जाते हैं। .

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मध्य एशिया

मध्य एशिया एशिया के महाद्वीप का मध्य भाग है। यह पूर्व में चीन से पश्चिम में कैस्पियन सागर तक और उत्तर में रूस से दक्षिण में अफ़ग़ानिस्तान तक विस्तृत है। भूवैज्ञानिकों द्वारा मध्य एशिया की हर परिभाषा में भूतपूर्व सोवियत संघ के पाँच देश हमेशा गिने जाते हैं - काज़ाख़स्तान, किरगिज़स्तान, ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और उज़बेकिस्तान। इसके अलावा मंगोलिया, अफ़ग़ानिस्तान, उत्तरी पाकिस्तान, भारत के लद्दाख़ प्रदेश, चीन के शिनजियांग और तिब्बत क्षेत्रों और रूस के साइबेरिया क्षेत्र के दक्षिणी भाग को भी अक्सर मध्य एशिया का हिस्सा समझा जाता है। इतिहास में मध्य एशिया रेशम मार्ग के व्यापारिक और सांस्कृतिक महत्व के लिए जाना जाता है। चीन, भारतीय उपमहाद्वीप, ईरान, मध्य पूर्व और यूरोप के बीच लोग, माल, सेनाएँ और विचार मध्य एशिया से गुज़रकर ही आते-जाते थे। इस इलाक़े का बड़ा भाग एक स्तेपी वाला घास से ढका मैदान है हालाँकि तियान शान जैसी पर्वत शृंखलाएँ, काराकुम जैसे रेगिस्तान और अरल सागर जैसी बड़ी झीलें भी इस भूभाग में आती हैं। ऐतिहासिक रूप मध्य एशिया में ख़ानाबदोश जातियों का ज़ोर रहा है। पहले इसपर पूर्वी ईरानी भाषाएँ बोलने वाली स्किथी, बैक्ट्रियाई और सोग़दाई लोगों का बोलबाला था लेकिन समय के साथ-साथ काज़ाख़, उज़बेक, किरगिज़ और उईग़ुर जैसी तुर्की जातियाँ अधिक शक्तिशाली बन गई।Encyclopædia Iranica, "CENTRAL ASIA: The Islamic period up to the Mongols", C. Edmund Bosworth: "In early Islamic times Persians tended to identify all the lands to the northeast of Khorasan and lying beyond the Oxus with the region of Turan, which in the Shahnama of Ferdowsi is regarded as the land allotted to Fereydun's son Tur.

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मध्य पूर्व

मध्य पूर्व का राजनीतिक नक्शा मध्य पूर्व (या पूर्व में ज्यादा प्रचलित पूर्व के करीब (Near East)) दक्षिण पश्चिम एशिया, दक्षिण पूर्वी यूरोप और उत्तरी पूर्वी अफ़्रीका में विस्तारित क्षेत्र है। इसकी कोई स्पष्ट सीमा रेखा नहीं है, अक्सर इस शब्द का प्रयोग पूर्व के पास (Near East) के एक पर्याय के रूप में प्रयोग किया जाता, ठीक सुदूर पूर्व (Far East) के विपरित। मध्य पूर्व शब्द का प्रचलन १९०० के आसपास के यूनाइटेड किंगडम में शुरू हुआ। .

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मध्ययुग

रोमन साम्राज्य के पतन के उपरांत, पाश्चात्य सभ्यता एक हजार वर्षों के लिये उस युग में प्रविष्ट हुई, जो साधारणतया मध्ययुग (मिडिल एजेज) के नाम से विख्यात है। ऐतिहासिक रीति से यह कहना कठिन है कि किस किस काल अथवा घटना से इस युग का प्रारंभ और अंत होता है। मोटे तौर से मध्ययुग का काल पश्चिमी यूरोप में पाँचवीं शताब्दी के प्रारंभ से पंद्रहवीं तक कहा जा सकता है। तथाकथित मध्ययुग में एकरूपता नहीं है और इसका विभाजन दो निश्चित एवं पृथक् युगों में किया जा सकता है। 11वीं शताब्दी के पहले का युग सतत संघर्षों, अनुशासनहीनता, तथा निरक्षरता के कारण 'अंधयुग' कहलाया, यद्यपि इसमें भी यूरोप को रूपांतरित करने के कदम उठाए गए। इस युग का प्रारंभ रोमन साम्राज्य के पश्यिमी यूरोप के प्रदेशों में, बर्बर गोथ फ्रैंक्स वैंडल तथा वरगंडियन के द्वारा स्थापित जर्मन साम्राज्य से होता है। यहाँ तक कि शक्तिशाली शार्लमेन (742-814) भी थोड़े ही समय के लिये व्यवस्था ला सका। शार्लमेन के प्रपौलों की कलह तथा उत्तरी स्लाव और सूरासेन के आक्रमणों से पश्चिमी यूरोप एक बार फिर उसी अराजकता को पहुँचा जो सातवीं और आठवीं शताब्दी में थी। अतएव सातवीं और आठवीं शताब्दी का ईसाई संसार, प्रथम शताब्दी के लगभग के ग्रीक रोम जगत् की अपेक्षा सभ्यता एवं संस्कृति की निम्न श्रेणी पर था। गृहनिर्माण विद्या के अतिरिक्त, शिक्षा, विज्ञान तथा कला किसी भी क्षेत्र में उन्नति नहीं हुई थी। फिर भी अंधयुग उतना अंध नहीं था, जितना बताया जाता है। ईसाई भिक्षु एवं पादरियों ने ज्ञानदीप को प्रज्वलित रखा। 11वीं शताब्दी के अंत से 15वीं शताब्दी तक के उत्तर मध्य युग में मानव प्रत्येक दिशा में उन्नतिशील रहा। राष्ट्रीय एकता की भावना इंग्लैंड में 11वीं शताब्दी में, तथा फ्रांस में 12वीं शताब्दी में आई। शार्लमैन के उत्तराधिकारियों की शिथिलता तथा ईसाई चर्च के अभ्युदय ने, पोप को ईसाई समाज का एकमात्र अधिष्टाता बनने का अवसर दिया। अतएव, पोप तथा रोमन सम्राट् की प्रतिस्पर्धा, पावन धर्मयुद्ध, विद्या का नियंत्रण तथा रोमन केथोलिक धर्म के अंतर्राष्ट्रीय स्वरूप इत्यादि में इस प्रतिद्वंद्विता का आभास मिलता है। 13वीं शताब्दी के अंत तक राष्ट्रीय राज्य इतने शक्तिशाली हो गए थे कि चर्च की शक्ति का ह्रास निश्चित प्रतीत होने लगा। नवीं शताब्दी से 14वीं शताब्दी तक, पश्चिमी यूरोप का भौतिक, राजनीतिक तथा सामाजिक आधार सामंतवाद था, जिसके उदय का कारण राजा की शक्तियों का क्षीण होना था। समाज का यह संगठन भूमिव्यवस्था के माध्यम से पैदा हुआ। भूमिपति सामंत को अपने राज्य के अंतर्गत सारी जनता का प्रत्यक्ष स्वामित्व प्राप्त था। मध्ययुग नागरिक जीवन के विकास के लिये उल्लेखनीय है। अधिकांश मध्ययुगीन नगर सामंतों की गढ़ियों, मठों तथा वाणिज्य केंद्रों के आस पास विकसित हुए। 12वीं तथा 13वीं शताब्दी में यूरोप में व्यापार की उन्नति हुई। इटली के नगर विशेषतया वेनिस तथा जेनोआ पूर्वी व्यापार के केंद्र बने। इनके द्वारा यूरोप में रूई, रेशम, बहुमूल्य रत्न, स्वर्ण तथा मसाले मँगाए जाते थे। पुरोहित तथा सामंत वर्ग के समानांतर ही व्यापारिक वर्ग का ख्याति प्राप्त करना मध्ययुग की विशेषताओं में है। इन्हीं में से आधुनिक मध्यवर्ग प्रस्फुटित हुआ। मध्ययुग की कला तथा बौद्धिक जीवन अपनी विशेष सफलताओं के लिये प्रसिद्ध है। मध्ययुग में लैटिन अंतरराष्ट्रीय भाषा थी, किंतु 11वीं शताब्दी के उपरांत वर्नाक्यूलर भाषाओं के उदय ने इस प्राचीन भाषा की प्राथमिकता को समाप्त कर दिया। विद्या पर से पादरियों का स्वामित्व भी शीघ्रता से समाप्त होने लगा। 12वीं और 13वीं शताब्दी से विश्वविद्यालयों का उदय हुआ। अरस्तू की रचनाओं के साथ साथ, कानून, दर्शन, तथा धर्मशास्त्रों का अध्ययन सर्वप्रिय होने लगा। किंतु वैज्ञानिक साहित्य का सर्वथा अभाव था। भवन-निर्माण-कला की प्रधानता थी, जैसा वैभवशाली चर्च, गिरजाघरों तथा नगर भवनों से स्पष्ट है। भवननिर्माण की रोमन पद्धति के स्थान पर गोथिक पद्धति विकसित हुई। आधुनिक युग की अधिकांश विशेषताएँ उत्तर मध्ययुग के प्रवाहों की प्रगाढ़ता है। .

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मास्को गणितीय पपाइरस

thumb मास्को गणितीय पपाइरस (Moscow Mathematical Papyrus) मिस्र का एक प्राचीन गणितीय पपाइरस है जिसे 'गोलेनिश्चेव गणितीय पपाइरस' भी कहते हैं। ब्लादिमिर गोलेनिश्चेव ने १८९२ या १८९३ में इस पपाइरस को थेबीज (Thebes) में खरीदा था। सम्प्रति यह पपाइरस मॉस्को के पुश्किन राजकीय ललित कला संग्रहालय में रखी है।Clagett, Marshall.

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मिस्र

मिस्र (अरबी; مصر, अंग्रेजी:Egypt), आधिकारिक तौर पर मिस्र अरब गणराज्य, एक देश है जिसका अधिकांश हालांकि उत्तरी अफ्रीका में स्थित है जबकि इसका सिनाई प्रायद्वीप, दक्षिणपश्चिम एशिया में एक स्थल पुल बनाता है। इस प्रकार मिस्र एक अंतरमहाद्वीपीय देश है, तथा अफ्रीका, भूमध्य क्षेत्र, मध्य पूर्व और इस्लामी दुनिया की यह एक प्रमुख शक्ति है। इसका क्षेत्रफल 1010000 वर्ग किलोमीटर है और इसके उत्तर में भूमध्य सागर, पूर्वोत्तर में गाजा पट्टी और इस्राइल, पूर्व में लाल सागर, दक्षिण में सूडान और पश्चिम में लीबिया स्थित है। मिस्र, अफ्रीका और मध्य पूर्व के सबसे अधिक जनसंख्या वाले देशों में से एक है। इसकी अनुमानित 7.90 करोड़ जनसंख्या का अधिकतर हिस्सा नील नदी के किनारे वाले हिस्से में रहता है। नील नदी का यह क्षेत्र लगभग 40000 वर्ग किलोमीटर (15000 वर्ग मील) का है और पूरे देश का सिर्फ इसी क्षेत्र में कृषि योग्य भूमि पायी जाती है। सहारा मरुस्थल के एक बड़े हिस्से में विरल जनसंख्या निवास करती है। मिस्र के लगभग आधे निवासी शहरों में वास करते हैं जिनमें नील नदी के मुहाने के क्षेत्र में बसे सघन जनसंख्या वाले शहर जैसे कि काहिरा, सिकन्दरिया आदि प्रमुख हैं। मिस्र की मान्यता उसकी प्राचीन सभ्यता के लिए है। गीज़ा पिरामिड परिसर और महान स्फिंक्स जैसे प्रसिद्ध स्मारक यहीं स्थित है। मिस्र के प्राचीन खंडहर जैसे कि मेम्फिस, थेबिस, करनाक और राजाओं की घाटी जो लक्सर के बाहर स्थित हैं, पुरातात्विक अध्ययन का एक महत्वपूर्ण केंद्र हैं। यहां के शासक को फारो नाम से जाना जाता था। इस पदवी का प्रयोग ईसाई और इस्लाम काल के पूर्व काल में होता था। इसे फारोह भी लिखते हैं। फारो को मिस्र के देवता होरसका पुनर्जन्म माना जाता था। होरस द्यौ (आकाश) का देवता था और इसे सूर्य भी माना जाता था। मिस्र की कार्यशक्ति का लगभग 12% हिस्सा पर्यटन और लाल सागर रिवेरा में कार्यरत है। मध्य पूर्व में, मिस्र की अर्थव्यवस्था सबसे अधिक विकसित और विविध अर्थव्यवस्थाओं में से एक है। पर्यटन, कृषि, उद्योग और सेवा जैसे क्षेत्रों का उत्पादन स्तर लगभग एक समान है। 2011 के शुरूआत में मिस्र उस क्रांति का गवाह बना, जिसके द्वारा मिस्र से होस्नी मुबारक नाम के तानाशाह के 30 साल के शासन का खात्मा हुआ। .

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मुद्रण

'हीरक सूत्र' नामक पुस्तक सबसे पहले ८६८ ई में चीन में छपी थी एक मास्टर फॉर्म या टेम्प्लेट का उपयोग करके किसी टेक्स्ट या/और छबि (इमेज) की अनेक प्रतियाँ बनाना मुद्रण या छपाई (प्रिंटिंग) कहलाता है। मुद्रण का इतिहास कम से कम तेरह-चौदह सौ वर्ष पुराना है। आधुनिक छपाई प्रायः कागज पर स्याही से मुद्रण मशीन के द्वारा की जाती है। इसके अलावा धातुओं पर, प्लास्टिक पर, वस्त्रों पर तथा अन्य मिश्रित पदार्थों पर भी छपाई की जाती है। कपड़ा या कागज आदि पर एक स्याही-युक्त सतह रखकर उसपर दाब डाला जाता है जिससे स्याहीयुक्त सतह पर बनी छवि उल्टे रूप में कागज या कपड़े पर छप जाती है। .

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मुहम्मद इब्न मूसा अल-ख़्वारिज़्मी

अबू अब्दल्लाह मुहम्मद इब्न मूसा अल-ख़्वारिज़्मी (अरबी:, अंग्रेज़ी: Muḥammad ibn Mūsā al-Khwārizmī; जन्म: लगभग ७८० ई; देहांत: लगभग ८५० ई), जिन्हें पश्चिमी देशों में ग़लती से अल्गोरित्मी (Algoritmi) और अलगौरिज़िन​ (Algaurizin) भी कहा जाता था, एक ईरानी-मूल के गणितज्ञ, खगोलशास्त्री और भूगोलवेत्ता थे।, Cristopher Moore, Stephan Mertens, pp.

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मौर्य राजवंश

मौर्य राजवंश (३२२-१८५ ईसापूर्व) प्राचीन भारत का एक शक्तिशाली एवं महान राजवंश था। इसने १३७ वर्ष भारत में राज्य किया। इसकी स्थापना का श्रेय चन्द्रगुप्त मौर्य और उसके मन्त्री कौटिल्य को दिया जाता है, जिन्होंने नन्द वंश के सम्राट घनानन्द को पराजित किया। मौर्य साम्राज्य के विस्तार एवं उसे शक्तिशाली बनाने का श्रेय सम्राट अशोक को जाता है। यह साम्राज्य पूर्व में मगध राज्य में गंगा नदी के मैदानों (आज का बिहार एवं बंगाल) से शुरु हुआ। इसकी राजधानी पाटलिपुत्र (आज के पटना शहर के पास) थी। चन्द्रगुप्त मौर्य ने ३२२ ईसा पूर्व में इस साम्राज्य की स्थापना की और तेजी से पश्चिम की तरफ़ अपना साम्राज्य का विकास किया। उसने कई छोटे छोटे क्षेत्रीय राज्यों के आपसी मतभेदों का फायदा उठाया जो सिकन्दर के आक्रमण के बाद पैदा हो गये थे। ३१६ ईसा पूर्व तक मौर्य वंश ने पूरे उत्तरी पश्चिमी भारत पर अधिकार कर लिया था। चक्रवर्ती सम्राट अशोक के राज्य में मौर्य वंश का बेहद विस्तार हुआ। सम्राट अशोक के कारण ही मौर्य साम्राज्य सबसे महान एवं शक्तिशाली बनकर विश्वभर में प्रसिद्ध हुआ। .

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मेसोपोटामिया

मेसोपोटामिया के विस्तार को दर्शाता मानचित्र मेसोपोटामिया का यूनानी अर्थ है "दो नदियों के बीच"। यह इलाका दजला (टिगरिस) और फ़ुरात (इयुफ़्रेटीस) नदियों के बीच के क्षेत्र में पड़ता है। इसमें आधुनिक इराक़ बाबिल ज़िला, उत्तरपूर्वी सीरिया, दक्षिणपूर्वी तुर्की तथा ईरान का क़ुज़ेस्तान प्रांत के क्षेत्र शामिल हैं। यह कांस्ययुगीन सभ्यता का उद्गम स्थल माना जाता है। यहाँ सुमेर, अक्कदी सभ्यता, बेबीलोन तथा असीरिया के साम्राज्य अलग-अलग समय में स्थापित हुए थे। हड़प्पा सभ्यता में मेसोपोटामिया को 'मेलुहा' कहा गया है। .

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युगपत समीकरण

गणित के सन्दर्भ में एक से अधिक चरों (variables or unknown) से युक्त एक से अधिक समीकरणों के समूह को युगपत समीकरण (simultaneous equations) कहते हैं। 'युगपत' का अर्थ है - 'एक साथ'। दिये गये समीकरणों पर गणितीय संक्रियायें करके उनमें आने वाले सभी चरों का ऐसा मान निकालते हैं जो सभी समीकरणों को संतुष्ट करें; इन चरों का मान प्राप्त करना ही युगपत समीकरण का हल कहलाता है। .

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यूनानी भाषा

यूनानी या ग्रीक (Ελληνικά या Ελληνική γλώσσα), हिन्द-यूरोपीय (भारोपीय) भाषा परिवार की स्वतंत्र शाखा है, जो ग्रीक (यूनानी) लोगों द्वारा बोली जाती है। दक्षिण बाल्कन से निकली इस भाषा का अन्य भारोपीय भाषा की तुलना में सबसे लंबा इतिहास है, जो लेखन इतिहास के 34 शताब्दियों में फैला हुआ है। अपने प्राचीन रूप में यह प्राचीन यूनानी साहित्य और ईसाईयों के बाइबल के न्यू टेस्टामेंट की भाषा है। आधुनिक स्वरूप में यह यूनान और साइप्रस की आधिकारिक भाषा है और करीबन 2 करोड़ लोगों द्वारा बोली जाती है। लेखन में यूनानी अक्षरों का उपयोग किया जाता है। यूनानी भाषा के दो ख़ास मतलब हो सकते हैं.

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यूक्लिड

यूक्लिड यूक्लिड (Euclid; 300 ईसा पूर्व), या उकलैदिस, प्राचीन यूनान का एक गणितज्ञ था। उसे "ज्यामिति का जनक" कहा जाता है। उसकी एलिमेण्ट्स (Elements) नामक पुस्तक गणित के इतिहास में सफलतम् पुस्तक है। इस पुस्तक में कुछ गिने-चुने स्वयंसिद्धों (axioms) के आधार पर ज्यामिति के बहुत से सिद्धान्त निष्पादित (deduce) किये गये हैं। इनके नाम पर ही इस तरह की ज्यामिति का नाम यूक्लिडीय ज्यामिति पड़ा। हजारों वर्षों बाद भी गणितीय प्रमेयों को सिद्ध करने की यूक्लिड की विधि सम्पूर्ण गणित का रीढ़ बनी हुई यूक्लिड ने शांकवों, गोलीय ज्यामिति और संभवत: द्विघातीय तलों पर भी पुस्तकें लिखीं। .

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योहानेस केप्लर

योहानेस केप्लर जोहैनीज़ केपलर (Johannes Kepler, १५७१-१६३० ईo) महान जर्मन ज्योतिषी थे। .

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रेखीय समीकरण

रेखीय समीकरणों का ग्राफ् पर निरुपण गणित मै रेखीय समीकरण एक एसा समीकरण होता है जिसमे चर की अधिकतम् घात एक होती है, इन समीकरणों को रेखीय समीकरण कहते है क्योंकि ये कार्तीय निर्देशांक पद्ध्ती मै एकसरल रेखा को निरुपित करते हैं। दो चरों x व y वाला एक सामन्य रेखीय समीकरण होता है, इस सबसे साधारण रूप मै m, रेखा की प्रवणता एवं नियतांक c रेखा द्वारा Y-अक्ष पर काटे गए अंत: खन्ड के बराबर होते हैं .

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रोमन संख्यांक

रोमन संख्यांक द्वारा दर्शायी गयी संख्यांक पद्धत्ति का प्राचीन रोम में उद्गम हुआ और भली भांति उत्तर मध्य युग में पूर्ण यूरोप में संख्याओं को लिखना का सामान्य तरीका बना रहा। ऑस्ट्रिया के लोफ़र नामक शहर में एक गिरजे के ऊपर उसके निर्माण की तिथि रोमन अंकों में तराशी हुई है - MDCLXXVIII का अर्थ सन् १६७८ है रोमन अंक प्राचीन रोम की संख्या प्रणाली है, जिसमें लातिनी भाषा के अक्षरों को जोड़कर संख्याएँ लिखी जाती थीं। पहले दस रोमन अंक इस प्रकार हैं - .

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लियोनार्ड ओइलर

लियोनार्ड ओइलर लियोनार्ड ओइलर (Leonhard Euler; १५ अप्रैल १७०७, बाज़ेल - १८ सितंबर १७८३) एक स्विस गणितज्ञ थे। ये जोहैन बेर्नूली के शिष्य थे। गणित के संकेतों को भी ऑयलर की देन अपूर्व है। इन्होंने संकेतों में अनेक संशोधन करके त्रिकोणमितीय सूत्रों को क्रमबद्ध किया। 1734 ई. में ऑयलर ने x के किसी फलन के लिए f (x), 1728 ई. में लघुगणकों के प्राकृत आधार के लिए e, 1750 ई. में अर्ध-परिमिति के लिए s, 1755 ई. में योग के लिए Σ और काल्पनिक ईकाई के लिए i संकेतों का प्रचलन किया। 1766 ई. में ये अंधे हो गए, परंतु मृत्यु पर्यंत (18 सितंबर 1783 ई.) शोधकार्य में संलग्न रहे। .

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लघुगणक

अलग-अलग आधार के लिये लघुगणकीय फलन का आरेखण: लाल रंग वाला ''e'', हरा रंग वाला 10, तथाबैगनी वाला 1.7. सभी आधारों के लघुगणक बिन्दु (1, 0) से होकर गुजरते हैं क्योंकि किसी भी संख्या पर शून्य घातांक का मान 1 होता है। स्कॉटलैंड निवासी जाॅन नेपियर द्वारा प्रतिपादित लघुगणक (Logarithm / लॉगेरिद्म) एक ऐसी गणितीय युक्ति है जिसके प्रयोग से गणनाओं को छोटा किया जा सकता है। इसके प्रयोग से गुणा और भाग जैसी जटिल प्रक्रियाओं को जोड़ और घटाने जैसी अपेक्षाकृत सरल क्रियाओं में बदल दिया जाता है। कम्प्यूटर और कैलकुलेटर के आने के पहले जटिल गणितीय गननाएँ लघुगणक के सहारे ही की जातीं थीं। .

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शतपथ ब्राह्मण

शतपथ ब्राह्मण शुक्ल यजुर्वेद का ब्राह्मणग्रन्थ है। ब्राह्मण ग्रन्थों में इसे सर्वाधिक प्रमाणिक माना जाता है। .

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शांग राजवंश

चीन के शांग राजवंश का इलाक़ा (पीला रंग) शांग काल में हड्डियों पर खरोंची गई चीनी चित्रलिपि - इनसे भविष्यवानियाँ की जाती थीं शांग राजवंश (चीनी: 商朝, शांग चाओ; पिनयिन अंग्रेज़ीकरण: Shang dynasty) प्राचीन चीन में लगभग १६०० ईसापूर्व से १०४६ ईसापूर्व तक राज करने वाला एक राजवंश था, जिनका राज्य ह्वांगहो (पीली नदी) की वादी में स्थित था। चीनी स्रोतों के अनुसार यह राजवंश शिया राजवंश के राजकाल के बाद आया और शांग राजवंश के बाद चीन में झोऊ राजवंश सत्ता में आया। चीन के हेनान प्रांत के सुदूर उत्तरी इलाक़े में स्थित यिनशु पुरातत्व स्थल को शांग राजधानी का स्थान माना जाता है। यहाँ ग्याराह शाही मक़बरे मिले हैं और महलों-मंदिरों के खँडहर भी मिले हैं। इनसे हथियार और जानवरों और मानवों की बलि देने के स्थल भी देखे गए हैं। इसके अलावा हज़ारों कांसे, हरिताश्म (जेड), पत्थर, हड्डी और चिकनी मिटटी की वस्तुएँ मिली हैं, जिनकी बारीक़ कारीगिरी को देखकर इस संस्कृति के काफ़ी विकसित होने का पता चलता है।, James P. Holoka, Jiu-Hwa Lo Upshur, West Pub.

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शंकु-परिच्छेद

शांकवों की सूची, साइक्लोपीडिया, 1728 गणित में, किसी लम्ब वृत्तीय शंकु की एक समतल द्वारा परिच्छेद करने से प्राप्त वक्रों (curves) को शांकव या शंकु-परिच्छेद(conic section) कहते हैं।शांकव की एक अन्य परिभाषा के अनुसार शांकव (समतल मे) किसी एसे चर बिन्दु का बिन्दुपथ है जिसकी एक निर्धारित बिन्दु एवं एक निर्धारित रेखा से दूरियोँ का अनुपात हमेशा स्थिर (अच‍र) रहता है। इस परिभाषा का प्रयोग कर किसी भी निर्देशांक पद्धति‎ मे शांकव को एक गणितीय समीकरण के रूप मे प्राप्त कर सकते हैं .

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श्रेणी (गणित)

गणित में किसी अनुक्रम के जोड़ को सीरीज कहा जाता है। उदाहरण के लिए, कोई श्रेणी सीमित (लिमिटेड) हो सकती है या अनन्त (इनफाइनाइट)। .

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श्रीनिवास रामानुजन्

श्रीनिवास रामानुजन् इयंगर (तमिल ஸ்ரீனிவாஸ ராமானுஜன் ஐயங்கார்) (22 दिसम्बर 1887 – 26 अप्रैल 1920) एक महान भारतीय गणितज्ञ थे। इन्हें आधुनिक काल के महानतम गणित विचारकों में गिना जाता है। इन्हें गणित में कोई विशेष प्रशिक्षण नहीं मिला, फिर भी इन्होंने विश्लेषण एवं संख्या सिद्धांत के क्षेत्रों में गहन योगदान दिए। इन्होंने अपने प्रतिभा और लगन से न केवल गणित के क्षेत्र में अद्भुत अविष्कार किए वरन भारत को अतुलनीय गौरव भी प्रदान किया। ये बचपन से ही विलक्षण प्रतिभावान थे। इन्होंने खुद से गणित सीखा और अपने जीवनभर में गणित के 3,884 प्रमेयों का संकलन किया। इनमें से अधिकांश प्रमेय सही सिद्ध किये जा चुके हैं। इन्होंने गणित के सहज ज्ञान और बीजगणित प्रकलन की अद्वितीय प्रतिभा के बल पर बहुत से मौलिक और अपारम्परिक परिणाम निकाले जिनसे प्रेरित शोध आज तक हो रहा है, यद्यपि इनकी कुछ खोजों को गणित मुख्यधारा में अब तक नहीं अपनाया गया है। हाल में इनके सूत्रों को क्रिस्टल-विज्ञान में प्रयुक्त किया गया है। इनके कार्य से प्रभावित गणित के क्षेत्रों में हो रहे काम के लिये रामानुजन जर्नल की स्थापना की गई है। .

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शून्य

शून्य (0) एक अंक है जो संख्याओं के निरूपण के लिये प्रयुक्त आजकी सभी स्थानीय मान पद्धतियों का अपरिहार्य प्रतीक है। इसके अलावा यह एक संख्या भी है। दोनों रूपों में गणित में इसकी अत्यन्त महत्वपूर्ण भूमिका है। पूर्णांकों तथा वास्तविक संख्याओं के लिये यह योग का तत्समक अवयव (additive identity) है। .

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सममिति

250px Sphere symmetrical group o. लिओनार्दो दा विंची का 'आभासी मानव'(1487 ई) को प्राय: मानव शरीर में सममिति के प्रदर्शन के लिये प्रयोग किया जाता है। सममिति (Symmetry) का अर्थ है कि किसी पैटर्न का किसी बिन्दु या रेखा या तल के सापेक्ष हूबहू पुनरावृत्ति। .

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समस्या

बाधा, कठिनाई या चुनौती को समस्या कहते हैं। या ऐसी स्थिति जिसमें व्यक्ति सुल्झाने का प्रयत्न करता है।.

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समाकलन

किसी फलन का निश्चित समाकल (definite integral) उस फलन के ग्राफ से घिरे क्षेत्र का चिह्नसहित क्षेत्रफल द्वारा निरूपित किया जा सकता है। समाकलन (जर्मन; अंग्रेज़ी; स्पेनिश; पुर्तगाली: Integral) यह एक विशेष प्रकार की योग क्रिया है जिसमें अत्यणु (infinitesimal) मान वाली किन्तु गिनती में अत्यधिक चर राशियों को जोड़ा जाता है। इसका एक प्रमुख उपयोग वक्राकार क्षेत्रों का क्षेत्रफल निकालने में होता है। समाकलन को अवकलन की व्युत्क्रम संक्रिया की तरह भी समझा जा सकता है। .

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समिश्र संख्या

किसी समिश्र संख्या का अर्गेन्ड आरेख पर प्रदर्शन गणित में समिश्र संख्याएँ (complex number) वास्तविक संख्याओं का विस्तार है। किसी वास्तविक संख्या में एक काल्पनिक भाग जोड़ देने से समिश्र संख्या बनती है। समिश्र संख्या के काल्पनिक भाग के साथ i जुड़ा होता है जो निम्नलिखित सम्बन्ध को संतुष्ट करती है: किसी भी समिश्र संख्या को a + bi, के रूप में व्यक्त किया जा सकता है जिसमें a और b दोनो ही वास्तविक संख्याएं हैं। a + bi में a को वास्तविक भाग तथा b को काल्पनिक भाग कहते हैं। उदाहरण: 3 + 4i एक समिश्र संख्या है। .

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समुच्चय सिद्धान्त

वेन-आरेख द्वारा दो समुच्चयों के सर्वनिष्‍ठ का सरल प्रदर्शन समुच्चय सिद्धान्त (set theory), गणित की एक शाखा है जो समुच्चयों का अध्ययन करती है। वस्तुओं के संग्रह (collection) को समुच्चय कहते हैं। यद्यपि समुच्चय के अन्तर्गत किसी भी प्रकार की वस्तुओं का संग्रह सम्भव है, किन्तु समुच्चय सिद्धान्त मुख्यतः गणित से सम्बन्धित समुच्चयों का ही अध्ययन करता है। स्थूल रूप से अंग्रेजी समुच्चय के पर्याय 'सेट' (set), ऐग्रिगेट (aggregate), क्लास (class), डोमेन (domain) तथा टोटैलिटी (totality) हैं। समुच्चय में अवयवों का विभिन्न होना आवश्यक है। प्रथम श्रेणी के तर्क (first-order logic) से सुव्यवस्थित (formalized) किया हुआ समुच्चय सिद्धान्त आज गणित का सर्वाधिक प्रयुक्त आधारभूत तन्त्र है। समुच्चय सिद्धान्त की भाषा गणित के लगभग सभी वस्तुओं (यथा- फलन) को परिभाषित करने के काम आती है। समुच्चय सिद्धान्त के आरम्भिक कांसेप्ट इतने सरल हैं कि इन्हें प्राथमिक विद्यालयों के पाठ्यक्रम में भी पढाया जा सकता है। .

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समूह सिद्धांत

कभी-कभी गणित में ऐसी क्रियाएँ भी दृष्टिगोचर होती है जब उनमें से एक एक करके दो क्रियाएँ की जाएँ तो फल वही निकलता है, जो उसी प्रकार की एक ही क्रिया से निकल आता है। तनिक इन चार संख्याओं पर विचार करें: जिन्हें इस प्रकार भी लिख सकते हैं: यदि किसी राशि को इनमें से दूसरी और तीसरी संख्याओं से गुणा करें, तो वही फल निकलेगा तो जो अकेल चौथी संख्या से गुणा करने से निकलता है। इसी प्रकार, यदि उपर्युक्त संख्याओं में से किन्हीं दो से किसी राशि को गुणा करें, तो वही फल निकलता है जो उक्त संख्याओं में से एक ही संख्या से गुणा करने से निकल सकता है। इस प्रकार की क्रियाओं के समुच्चय को बंद समुच्चय कहते हैं और क्रियाओं के इस गुण को समूह गुण कहते हैं।.

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सरस्वती लिपि

सिंधु घाटी की सभ्यता से सम्बन्धित छोटे-छोटे संकेतों के समूह को सिन्धु लिपि (Indus script) कहते हैं। इसे सिन्धु-सरस्वती लिपि और हड़प्पा लिपि भी कहते हैं। यह लिपि सिन्धु सभ्यता के समय (२६वीं शताब्दी ईसापूर्व से २०वीं शताब्दी ईसापूर्व तक) परिपक्व रूप धारण कर चुकी थी। इसको अभी तक समझा नहीं जा पाया है (यद्यपि बहुत से दावे किये जाते रहे हैं।) उससे सम्बन्धित भाषा अज्ञात है इसलिये इस लिपि को समझने में विशेष कठिनाई आ रही है। भारत में लेखन ३३०० ईपू का है। सबसे पहले की लिपि सरस्वती लिपि थी, उसके पश्चात ब्राह्मी आई। सिन्धु घाटी से प्राप्त मुहरें .

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सर्वेक्षण

सर्वेक्षण उपकरणो की तालिका सर्वेक्षण (Surveying) उस कलात्मक विज्ञान को कहते हैं जिससे पृथ्वी की सतह पर स्थित बिंदुओं की समुचित माप लेकर, किसी पैमाने पर आलेखन (plotting) करके, उनकी सापेक्ष क्षैतिज और ऊर्ध्व दूरियों का कागज या, दूसरे माध्यम पर सही-सही ज्ञान कराया जा सके। इस प्रकार का अंकित माध्यम लेखाचित्र या मानचित्र कहलाता है। ऐसी आलेखन क्रिया की संपन्नता और सफलता के लिए रैखिक और कोणीय, दोनों ही माप लेना आवश्यक होता है। सिद्धांतत: आलेखन क्रिया के लिए रेखिक माप का होना ही पर्याप्त है। मगर बहुधा ऊँची नीची भग्न भूमि पर सीधे रैखिक माप प्राप्त करना या तो असंभव होता है, या इतना जटिल होता है कि उसकी यथार्थता संदिग्ध हो जाती है। ऐसे क्षेत्रों में कोणीय माप रैखिक माप के सहायक अंग बन जाते हैं और गणितीय विधियों से अज्ञात रैखिक माप ज्ञात करना संभव कर देते हैं। इस प्रकार सर्वेक्षण में तीन कार्य सम्मिलित होते हैं -.

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सांख्यिकी

एक ग्राफ जिसमें सामान्य वितरण (Normal distribution) प्रदर्शित है। सांख्यिकी, गणित की वह शाखा है जिसमें आँकड़ों का संग्रहण, प्रदर्शन, वर्गीकरण और उसके गुणों का आकलन का अध्ययन किया जाता है। सांख्यिकी एक गणितीय विज्ञान है जिसमें किसी वस्तु/अवयव/तंत्र/समुदाय से सम्बन्धित आकड़ों का संग्रह, विश्लेषण, व्याख्या या स्पष्टीकरण और प्रस्तुति की जाती है। यह विभिन्न क्षेत्रों में लागू है - अकादमिक अनुशासन (academic disciplines), इस से प्राकृतिक विज्ञान, सामाजिक विज्ञान, मानविकी, सरकार और व्यापार आदि। सांख्यिकीय तरीकों को डेटा के संग्रह के संग्रहण अथवा वर्णन के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। इसे वर्णनात्मक सांख्यिकी (descriptive statistics) कहा जाता है। इसके अतिरिक्त, डेटा में पैटर्न को इस तरह से मॉडल किया जा सकता है कि वह निष्कर्षों की यादृच्छिकता और अनिश्चितता का कारण बने और फिर इस प्रक्रिया को उस विधि, या जिस जनसंख्या का अध्ययन किया जा रहा हो, उसके बारे में अनुमान लगाने के लिए किया जाता है। इसे अनुमानित सांख्यिकी (inferential statistics) कहा जाता है। वर्णनात्मक तथा अनुमानित सांख्यिकी, दोनों में व्यावहारिक सांख्यिकी सम्मिलित है। एक और विद्या है - गणितीय सांख्यिकी (mathematical statistics), जो विषय के सैद्धान्तिक आधार से सम्बन्ध रखती है। आप किरण किसी श्रेणी में पदों के बेकरार को प्रदर्शित करता है जबकि विषमता का संबंध उसकी आकृति की विशिष्टताओं से होता है अन्य शब्दों में अवकरण हमें श्रेणी की संरचना के बारे में बताता है जबकि विषमता हमें वक्र की आकृति के बारे में बताता है अपकिरण हमें श्रेणी के पदों के मानक रूप में स्वीकृत अन्य किसी पद के व्यक्तिगत अंतरों की ओर संकेत करता है विषमता विचलनों की दशा की ओर संकेत करता है अब करण द्वितीय श्रेणी के माध्यम पर आधारित है .

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सिद्धांत (थिअरी)

सिद्धांत, सिद्धि का अंत है। यह वह धारणा है जिसे सिद्ध करने के लिए, जो कुछ हमें करना था वह हो चुका है और अब स्थिर मत अपनाने का समय आ गया है। धर्म, विज्ञान, दर्शन, नीति, राजनीति सभी सिद्धांत की अपेक्षा करते हैं। .

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सिंधु घाटी सभ्यता

सिंधु घाटी सभ्यता अपने शुरुआती काल में, 3250-2750 ईसापूर्व सिंधु घाटी सभ्यता (3300 ईसापूर्व से 1700 ईसापूर्व तक,परिपक्व काल: 2600 ई.पू. से 1900 ई.पू.) विश्व की प्राचीन नदी घाटी सभ्यताओं में से एक प्रमुख सभ्यता है। जो मुख्य रूप से दक्षिण एशिया के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्रों में, जो आज तक उत्तर पूर्व अफगानिस्तान,पाकिस्तान के उत्तर-पश्चिम और उत्तर भारत में फैली है। प्राचीन मिस्र और मेसोपोटामिया की प्राचीन सभ्यता के साथ, यह प्राचीन दुनिया की सभ्यताओं के तीन शुरुआती कालक्रमों में से एक थी, और इन तीन में से, सबसे व्यापक तथा सबसे चर्चित। सम्मानित पत्रिका नेचर में प्रकाशित शोध के अनुसार यह सभ्यता कम से कम 8000 वर्ष पुरानी है। यह हड़प्पा सभ्यता और 'सिंधु-सरस्वती सभ्यता' के नाम से भी जानी जाती है। इसका विकास सिंधु और घघ्घर/हकड़ा (प्राचीन सरस्वती) के किनारे हुआ। मोहनजोदड़ो, कालीबंगा, लोथल, धोलावीरा, राखीगढ़ी और हड़प्पा इसके प्रमुख केन्द्र थे। दिसम्बर २०१४ में भिर्दाना को सिंधु घाटी सभ्यता का अब तक का खोजा गया सबसे प्राचीन नगर माना गया है। ब्रिटिश काल में हुई खुदाइयों के आधार पर पुरातत्ववेत्ता और इतिहासकारों का अनुमान है कि यह अत्यंत विकसित सभ्यता थी और ये शहर अनेक बार बसे और उजड़े हैं। 7वी शताब्दी में पहली बार जब लोगो ने पंजाब प्रांत में ईटो के लिए मिट्टी की खुदाई की तब उन्हें वहां से बनी बनाई इटे मिली जिसे लोगो ने भगवान का चमत्कार माना और उनका उपयोग घर बनाने में किया उसके बाद 1826 में चार्ल्स मैसेन ने पहली बार इस पुरानी सभ्यता को खोजा। कनिंघम ने 1856 में इस सभ्यता के बारे में सर्वेक्षण किया। 1856 में कराची से लाहौर के मध्य रेलवे लाइन के निर्माण के दौरान बर्टन बंधुओं द्वारा हड़प्पा स्थल की सूचना सरकार को दी। इसी क्रम में 1861 में एलेक्जेंडर कनिंघम के निर्देशन में भारतीय पुरातत्व विभाग की स्थापना की। 1904 में लार्ड कर्जन द्वारा जॉन मार्शल को भारतीय पुरातात्विक विभाग (ASI) का महानिदेशक बनाया गया। फ्लीट ने इस पुरानी सभ्यता के बारे में एक लेख लिखा। १९२१ में दयाराम साहनी ने हड़प्पा का उत्खनन किया। इस प्रकार इस सभ्यता का नाम हड़प्पा सभ्यता रखा गया व दयाराम साहनी को इसका खोजकर्ता माना गया। यह सभ्यता सिन्धु नदी घाटी में फैली हुई थी इसलिए इसका नाम सिन्धु घाटी सभ्यता रखा गया। प्रथम बार नगरों के उदय के कारण इसे प्रथम नगरीकरण भी कहा जाता है। प्रथम बार कांस्य के प्रयोग के कारण इसे कांस्य सभ्यता भी कहा जाता है। सिन्धु घाटी सभ्यता के १४०० केन्द्रों को खोजा जा सका है जिसमें से ९२५ केन्द्र भारत में है। ८० प्रतिशत स्थल सरस्वती नदी और उसकी सहायक नदियों के आस-पास है। अभी तक कुल खोजों में से ३ प्रतिशत स्थलों का ही उत्खनन हो पाया है। .

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सिकंदर

सिकंदर (Alexander) (356 ईपू से 323 ईपू) मकदूनियाँ, (मेसेडोनिया) का ग्रीक प्रशासक था। वह एलेक्ज़ेंडर तृतीय तथा एलेक्ज़ेंडर मेसेडोनियन नाम से भी जाना जाता है। इतिहास में वह कुशल और यशस्वी सेनापतियों में से एक माना गया है। अपनी मृत्यु तक वह उन सभी भूमि मे से लगभग आधी भूमि जीत चुका था, जिसकी जानकारी प्राचीन ग्रीक लोगों को थी(सत्य ये है की वह पृथ्वी के मात्र 5 प्रतीशत हिस्से को ही जीत पाया था) और उसके विजय रथ को रोकने में सबसे मुख्य भूमिका भारत के महान राजा पुरु (जिन्हे युनानी इतिहासकारों नें पोरस से सम्बोधित किया है।)और भारत के क्षेत्रीय सरदारो की थी, जिन्होंने सिकंदर की सेना में अपने पराक्रम के दम पर भारत के प्रति खौफ पैदा कर उसके हौसले पस्त कर दिये और उसे भारत से लौटने पर मजबूर कर दिया।। उसने अपने कार्यकाल में इरान, सीरिया, मिस्र, मसोपोटेमिया, फिनीशिया, जुदेआ, गाझा, बॅक्ट्रिया और भारत में पंजाब(जिसके राजा पुरु थे।) तक के प्रदेश पर विजय हासिल की थी परन्तु बाद में वो मगध की विशाल सेना से डर कर लौट गया ।।उल्लेखनीय है कि उपरोक्त क्षेत्र उस समय फ़ारसी साम्राज्य के अंग थे और फ़ारसी साम्राज्य सिकन्दर के अपने साम्राज्य से कोई 40 गुना बड़ा था। फारसी में उसे एस्कंदर-ए-मक्दुनी (मॅसेडोनिया का अलेक्ज़ेंडर, एस्कन्दर का अपभ्रंश सिकन्दर है) औऱ हिंदी में अलक्षेन्द्र कहा गया है। .

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संस्थितिविज्ञान

मोबियस स्ट्रिप (Möbius strip) एक ऐसी वस्तु है जिसमें केवल एक तल एवं एक ही कोर (one surface and one edge) है। ऐसे आकारों का अध्ययन 'टोपोलॉजी' के अन्तर्गत किया जाता है। एक कप से बदललते हुए टोरस का सृजन संस्थितिविज्ञान या टोपोलॉजी गणित का बड़ा क्षेत्र है। इसे ज्यामिति के विस्तार के रूप में देखा जाता है। इसमें उन गुणों का अध्ययन किया जाता है जो वस्तुओं को सतत रूप से विकृत करने पर उनमें बने रहे हैं। उदाहरण के लिये किसी चीज को बिना फाड़े या साटे हुए तानने पर आने वाली विकृतियाँ। संस्थिति का विकास ज्यामिति तथा समुच्चय सिद्धान्त से हुआ है। 'टोपोलॉजी' शब्द से दो चीजों का बोध होता है: संस्थितिविज्ञान एक विस्तृत क्षेत्र वाला विषय है। इसके कई उपक्षेत्र हैं। इसके कुछ प्रमुख क्षेत्र निम्नांकित हैं.

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संस्कृत भाषा

संस्कृत (संस्कृतम्) भारतीय उपमहाद्वीप की एक शास्त्रीय भाषा है। इसे देववाणी अथवा सुरभारती भी कहा जाता है। यह विश्व की सबसे प्राचीन भाषा है। संस्कृत एक हिंद-आर्य भाषा हैं जो हिंद-यूरोपीय भाषा परिवार का एक शाखा हैं। आधुनिक भारतीय भाषाएँ जैसे, हिंदी, मराठी, सिन्धी, पंजाबी, नेपाली, आदि इसी से उत्पन्न हुई हैं। इन सभी भाषाओं में यूरोपीय बंजारों की रोमानी भाषा भी शामिल है। संस्कृत में वैदिक धर्म से संबंधित लगभग सभी धर्मग्रंथ लिखे गये हैं। बौद्ध धर्म (विशेषकर महायान) तथा जैन मत के भी कई महत्त्वपूर्ण ग्रंथ संस्कृत में लिखे गये हैं। आज भी हिंदू धर्म के अधिकतर यज्ञ और पूजा संस्कृत में ही होती हैं। .

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संस्कृत व्याकरण

संस्कृत में व्याकरण की परम्परा बहुत प्राचीन है। संस्कृत भाषा को शुद्ध रूप में जानने के लिए व्याकरण शास्त्र किया जाता है। अपनी इस विशेषता के कारण ही यह वेद का सर्वप्रमुख अंग माना जाता है ('वेदांग' देखें)। व्याकरण के मूलतः पाँच प्रयोजन हैं - रक्षा, ऊह, आगम, लघु और असंदेह। व्याकरण के बारे में निम्नलिखित श्लोक बहुत प्रसिद्ध है।- - जिसके लिए "विहस्य" छठी विभक्ति का है और "विहाय" चौथी विभक्ति का है; "अहम् और कथम्"(शब्द) द्वितीया विभक्ति हो सकता है। मैं ऐसे व्यक्ति की पत्नी (द्वितीया) कैसे हो सकती हूँ ? .

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संख्या पद्धतियाँ

संख्याओं को लिखने एवं उनके नामकरण के सुव्यवस्थित नियमों को संख्या पद्धति (Number system) कहते हैं। इसके लिये निर्धारित प्रतीकों का प्रयोग किया जाता है जिनकी संख्या निश्चित एवं सीमित होती है। इन प्रतीकों को विविध प्रकार से व्यस्थित करके भिन्न-भिन्न संख्याएँ निरूपित की जाती हैं। दशमलव पद्धति, द्वयाधारी संख्या पद्धति, अष्टाधारी संख्या पद्धति तथा षोडषाधारी संख्या पद्धति आदि कुछ प्रमुख प्रचलित संख्या पद्धतियाँ हैं। .

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संख्या सिद्धान्त

यह लेख संख्या पद्धति (number system) के बारे में नहीं है। ---- लेमर चलनी (A Lehmer sieve), जो 'आदिम कम्प्यूटर' कही जा सकती है। किसी समय इसी का उपयोग करके अभाज्य संख्याएँ प्राप्त की जातीं थीं तथा सरल डायोफैण्टीय समीकरण हल किए जाते थे। संख्या सिद्धांत (Number theory) सामान्यत: सभी प्रकार की संख्याओं के गुणधर्म का अध्ययन करता है किन्तु विशेषत: यह प्राकृतिक संख्याओं 1, 2, 3....के गुणधर्मों का अध्ययन करता है। पूर्णता के विचार से इन संख्याओं में हम ऋण संख्याओं तथा शून्य को भी सम्मिलित कर लेते हैं। जब तक निश्चित रूप से न कहा जाए, तब तक संख्या से कोई प्राकृतिक संख्या, धन, या ऋण पूर्ण संख्या या शून्य समझना चाहिए। संख्यासिद्धांत को गाउस (Gauss) 'गणित की रानी' कहता था। संख्या सिद्धान्त, शुद्ध गणित की शाखा है। 'संख्या सिद्धान्त' के लिये "अंकगणित" या "उच्च अंकगणित" शब्दों का भी प्रयोग किया जता है। ये शब्द अपेक्षाकृत पुराने हैं और अब बहुत कम प्रयोग किये जाते हैं। .

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संगमग्राम के माधव

संगमग्राम के माधव (सी. 1350 - सी. 1425) एक प्रसिद्ध केरल गणितज्ञ-खगोलज्ञ थे, ये भारत के केरल राज्य के कोचीन जिले के निकट स्थित एक कस्बे इरन्नलक्कुता से थे। इन्हें केरलीय गणित सम्प्रदाय (केरल स्कूल ऑफ एस्ट्रोनॉमी एंड मैथेमैटिक्स) का संस्थापक माना जाता है। वे पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने अनेक अनंत श्रेणियों वाले निकटागमन का विकास किया था, जिसे "सीमा-परिवर्तन को अनंत तक ले जाने में प्राचीन गणित की अनंत पद्धति से आगे एक निर्णायक कदम" कहा जाता है। उनकी खोज ने वे रास्ते खोल दिए, जिन्हें आज गणितीय विश्लेषण (मैथेमैटिकल एनालिसि) के नाम से जाना जाता है। माधवन ने अनंत श्रेणियों, कलन (कैलकुलस), त्रिकोणमिति, ज्यामिति और बीजगणित के अध्ययन में अग्रणी योगदान किया। वे मध्य काल के महानतम गणितज्ञों-खगोलज्ञों में से एक थे। कुछ विद्वानों ने यह विचार भी दिया है कि माधव के कार्य केरल स्कूल के माध्यम से, जेसूट मिशनरियों और व्यापारियों द्वारा, जो उस समय कोच्ची के प्राचीन पत्तन के आसपास काफी सक्रिय रहते थे, यूरोप तक भी प्रसारित हुए हैं। जिसके परिणामस्वरूप, इसका प्रभाव विश्लेषण और कलन में हुए बाद के यूरोपीय विकास क्रम पर भी पड़ा होगा.

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सुमेर

first farmers from Samara arrive in Sumer, and build shrine and settlement at Eridu आजकल के ईराक क्षेत्र यानि प्राचीन मेसोपोटामिया की सबसे पहली मानव सभ्यता। इसका काल ईसा के पूर्व ४५०० से १९०० के साल तक माना जाता है। बीच में २३००-२१०० ईसापूर्व के दौरान अक्कद ने सुमेर पर प्रभुता हासिल की, लेकिन अक्कद के पतन के बाद सुमेर फिर से मजबूत हुआ। माना जाता है सुमेर के शासक सेमेटिक नहीं थे - यानि आज के यहूदियों या अरब मुसलमानों के पूर्वज नहीं थे। सुमेरी तथा अक्कदी (सेमेटिक) भाषाओं के बीच आदान प्रदान हुआ लगता है। .

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स्कॉट्लैण्ड

स्काटलैंड यूनाइटेड किंगडम का एक देश है। यह ग्रेट ब्रिटेन का उत्तरी भाग है। यह पहाड़ी देश है जिसका क्षेत्रफल ७८,८५० वर्ग किमी है। यह इंगलैंड के उत्तर में स्थित है। यहां की राजधानी एडिनबरा है। ग्लासगो यहाँ का सबसे बड़ा शहर है। स्कॉटलैण्ड की सीमा दक्षिण में इंग्लैंड से सटी है। इसके पूरब में उत्तरी सागर तथा दक्षिण-पश्चिम में नॉर्थ चैनेल और आयरिश सागर हैं। मुख्य भूमि के अलावा स्कॉटलैण्ड के अन्तर्गत ७९० से भी अधिक द्वीप हैं। यूँ तो स्कॉटलैंड यूनाइटेड किंगडम के अधीन एक राज्य है लेकिन यहाँ का अपना मंत्रिमंडल है। यहाँ की मुद्रा का रंग और उस पर बने चित्र भी लंदन के पौंड से कुछ अलग है। लेकिन उनकी मान्यता और मूल्य दोनों ही पौंड के समान है। यहाँ घूमने और लोगों से बात करने पर पता चलता है कि यहाँ के लोग इंग्लैंड सरकार से थोड़े से खफा रहते हैं। .

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सूर्यसिद्धान्त

सूर्यसिद्धान्त भारतीय खगोलशास्त्र का प्रसिद्ध ग्रन्थ है। कई सिद्धान्त-ग्रन्थों के समूह का नाम है। वर्तमान समय में उपलब्ध ग्रन्थ मध्ययुग में रचित ग्रन्थ लगता है किन्तु अवश्य ही यह ग्रन्थ पुराने संस्क्रणों पर आधारित है जो ६ठी शताब्दी के आरम्भिक चरण में रचित हुए माने जाते हैं। भारतीय गणितज्ञ और खगोलशास्त्रियों ने इसका सन्दर्भ भी लिया है, जैसे आर्यभट्ट और वाराहमिहिर, आदि.

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सीमा (गणित)

गणित में सीमा (limit) की संकल्पना (कांसेप्ट) एक अत्यन्त मौलिक संकलपना है। सीमा की संकल्पना के विकास के परिणामस्वरूप ही कैलकुलस का जन्म सम्भव हुआ। सीमा का उपयोग किसी फलन का अवकलन निकालने तथा किसी फलन के किसी बिन्दु पर सातत्य (continuity) के परीक्षण में होता है। गणित में सीमा के दो अर्थ हैं -.

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हान राजवंश

चीन में हान साम्राज्य का नक़्शा एक मकबरे में मिला हानवंश के शासनकाल में निर्मित लैम्प हान काल में जारी किया गया एक वुशु (五銖) नाम का सिक्का हान काल में बना कांसे के गियर (दांतदार पहिये) बनाने का एक साँचा हान राजवंश (चीनी: 漢朝, हान चाओ; अंग्रेज़ी: Han Dynasty) प्राचीन चीन का एक राजवंश था जिसने चीन में २०६ ईसापूर्व से २२० ईसवी तक राज किया। हान राजवंश अपने से पहले आने वाले चिन राजवंश (राजकाल २२१-२०७ ईसापूर्व) को सत्ता से बेदख़ल करके चीन के सिंहासन पर विराजमान हुआ और उसके शासनकाल के बाद तीन राजशाहियों (२२०-२८० ईसवी) का दौर आया। हान राजवंश की नीव लिऊ बांग नाम के विद्रोही नेता ने रखी थी, जिसका मृत्यु के बाद औपचारिक नाम बदलकर सम्राट गाओज़ू रखा गया। हान काल के बीच में, ९ ईसवी से २३ ईसवी तक, शीन राजवंश ने सत्ता हथिया ली थी, लेकिन उसके बाद हान वंश फिर से सत्ता पकड़ने में सफल रहा। शीन राजवंश से पहले के हान काल को पश्चिमी हान राजवंश कहा जाता है और इसके बाद के हान काल को पूर्वी हान राजवंश कहा जाता है। ४०० से अधिक वर्षों का हान काल चीनी सभ्यता का सुनहरा दौर माना जाता है। आज तक भी चीनी नसल अपने आप को 'हान के लोग' या 'हान के बेटे' बुलाती है और हान चीनी के नाम से जानी जाती है। इसी तरह चीनी लिपि के भावचित्रों को 'हानज़ी' (यानि 'हान के भावचित्र') बुलाया जाता है।, Xiaoxiang Li, LiPing Yang, Asiapac Books Pte Ltd, 2005, ISBN 978-981-229-394-7,...

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हेमचन्द्र श्रेणी

वर्गों सहित खपरैल, जिसकी भुजाएं लंबाई में क्रमिक फाइबोनैचि संख्याएं हैं युपाना ("गणन यंत्र" के लिए क्वेचुआ) एक कैलकुलेटर है, जिसका उपयोग इन्कास ने किया. शोधकर्ताओं का मानना है कि प्रति क्षेत्र आवश्यक कणों की संख्या को कम करने के लिए परिकलन फाइबोनैचि संख्याओं पर आधारित थे.0 फाइबोनैचि खपरैल में वर्गों के विपरीत कोनों को जोड़ने के लिए चाप के चित्रण द्वारा तैयार फाइबोनैचि सर्पिल घुमाव; इसमें 1, 1, 2, 3, 5, 8, 13, 21 और 34 आकार के वर्गों का उपयोग हुआ है; देखें स्वर्णिम सर्पिल गणित में संख्याओं का निम्नलिखित अनुक्रम हेमचंद्र श्रेणी या फिबोनाची श्रेणी (Fibonacci number) कहलाता हैं: परिभाषा के अनुसार, पहली दो हेमचंद्र संख्याएँ 0 और 1 हैं। इसके बाद आने वाली प्रत्येक संख्या पिछले दो संख्याओं का योग है। कुछ लोग आरंभिक 0 को छोड़ देते हैं, जिसकी जगह दो 1 के साथ अनुक्रम की शुरूआत की जाती है। गणितीय सन्दर्भ में, फिबोनाची संख्या के F n अनुक्रम को आवर्तन संबंध द्वारा दर्शाया जा सकता है- तथा, अंगूठाकार फिबोनाची अनुक्रम का नाम पीसा के लियोनार्डो फिबोनाची के नाम पर रखा गया, जो फाइबोनैचि (फिलियस बोनैचियो का संक्षिप्त रूप, "बोनैचियो के बेटे") के नाम से जाने जाते थे। फाइबोनैचि द्वारा लिखित 1202 की पुस्तक लिबर अबेकी ने पश्चिम यूरोपीय गणित में इस अनुक्रम को प्रवर्तित किया, हालांकि पहले ही भारतीय गणित में इस अनुक्रम का वर्णन किया गया है.

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जुआ

Men Playing Board Games जुआ (gambling) एक अति प्राचीन खेल है। भारत में जुए का खेल अक्षक्रीड़ा या अक्षद्यूत के नाम से विख्यात है। वेद के समय से लेकर आज तक यह भारतीयों का अत्यंत लोकप्रिय खेल रहा है। ऋग्वेद के एक प्रख्यात सूक्त (10। 34) में कितव (जुआड़ी) अपनी दुर्दशा का रोचक चित्र खींचता है कि जुए में हार जाने के कारण उसकी भार्या तक उसे नहीं पूछती, दूसरों की बात ही क्या? वह स्वयं शिक्षा देता है- अक्षैर्मा दीव्यः कृषिमित् कृषस्व (ऋ. 10। 34। 13)। महाभारत जैसा प्रलयंकारी युद्ध भी अक्षक्रीड़ा के परिणामस्वरूप ही हुआ। पाणिनि की अष्टाध्यायी तथा काशिका के अनुशीलन से अक्षक्रीड़ा के स्वरूप का पूरा परिचय मिलता है। पाणिनि उसे आक्षिक कहते हैं। (अष्टा. 4। 4। 2)। पतंजलि ने सिद्धहस्त द्यूतकर के लिए अक्षकितव या अक्षधूर्त शब्दों का प्रयोग किया है। वैदिक काल में द्यूत की साधन सामग्री का निश्चित परिचय नहीं मिलता, परंतु पाणिनी के समय (पंचम शती ई. पू.) में यह खेल अक्ष तथा शलाका से खेला जाता था। कौटिल्य के अर्थशास्त्र का कथन है कि द्यूताध्यक्ष का यह काम है कि वह जुआड़ियों को राज्य की ओर से खेलने के लिए अक्ष और शलाका दिया करे (3। 20)। किसी प्राचीन काल में अक्ष से तात्पर्य बहेड़ा (बिभीतक) के बीज से था। परंतु पाणिनि काल में अक्ष चौकनी गोटी और शलाका आयताकार गोटी होती थी। इन गोटियों की संख्या पाँच होती थी, ऐसा अनुमान तैत्तिरीय ब्राह्मण (1। 7। 10) तथा अष्टाध्यायी से भलीभाँति लगाया जा सकता है। ब्राह्मणों के ग्रंथों में इनके नाम भी पाँच थे- अक्षराज, कृत, त्रेता, द्वापर तथा कलि। काशिका इसी कारण इस खेल को पंचिका द्यूत के नाम से पुकारती है (अष्टा. 2। 1। 10 पर वृत्ति)। पाणिनि के अक्षशलाका संख्याः परिणा (2। 1। 10) सूत्र में उन दशाओं का उल्लेख है जिनमें गोटी फेंकने वाले की हार होती थी और इस स्थिति की सूचना के लिए अक्षपरि, शलाकापरि, एकपरि, द्विपरि, त्रिपरि तथा चतुष्परि पदों का प्रयोग संस्कृत में किया जाता था। काशिका के वर्णन में स्पष्ट है कि यदि उपर्युक्त पाँचों गोटियाँ चित्त गिरें या पट्ट गिरें, तो दोनों अवस्थाओं में गोटी फेंकने वाले की जीत होती थी (यत्र यदा सर्वे उत्तान पतन्ति अवाच्यो वा, तदा पातयिता जयति। तस्यैवास्य विद्यातोन्यथा पाते जायते- काशिका 2। 1। 10 पर)। अर्थात् यदि एक गोटी अन्य गोटियों की अवस्था से भिन्न होकर चित्त या पट्ट पड़े, तो हार होती थी और इसके लिए एकपरि शब्द प्रयुक्त होते थे। इसी प्रकार दो गोटियों से होने वाली हार को द्विपरि तीन से त्रिपरि तथा चार की हार को चतुष्परि कहते थे। जीतने का दाँव कृत और हारने का दाँव कलि कहलाता था। बौद्ध ग्रंथों में भी कृत तथा कलि का यह विरोध संकेतित किया गया है (कलि हि धीरानं, कटं मुगानं)। जुए में बाजी भी लगाई जाती है और इस द्रव्य के लिए पाणिनि ने ग्लह शब्द की सिद्धि मानी है (अक्षे षु ग्लहः, अष्टा. 3। 3। 70)। महाभारत के प्रख्यात जुआड़ी शकुनि का यह कहना ठीक ही है कि बाजी लगाने के कारण ही जुआ लोगों में इतना बदनाम है। महाभारत, अर्थशास्त्र आदि ग्रंथों से पता चलता है कि जुआ सभा में खेला जाता था। स्मृति ग्रंथों में जुआ खेलने के नियमों का पूरा परिचय दिया गया है। अर्थशास्त्र के अनुसार जुआड़ी को अपने खेल के लिए राज्य को द्रव्य देना पड़ता था। बाजी लगाए गए धन का पाँच प्रतिशत राज्य को कर के रूप में प्राप्त होता था। पंचम शती में उज्जयिनी में इसके विपुल प्रचार की सूचना मृच्छकटिक नाटक से हमें उपलब्ध होती है। .

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ज्या

समकोण त्रिभुज में किसी कोण की ज्या उस कोण के सामने की भुजा और कर्ण के अनुपात के बराबर होती है। गणित में ज्या (Sine), एक त्रिकोणमितीय फलन का नाम है। समकोण त्रिभुज में का समकोण के अलावा एक कोण x है तो, उदाहरण के लिये, यदि कोण का मान डिग्री में हो तो, .

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ज्यामिति

ब्रह्मगुप्त ब्रह्मगुप्त का प्रमेय, इसके अनुसार ''AF'' .

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ज्यामिति का इतिहास

1728 साइक्लोपीडिया से ज्यामिति की तालिका. ज्यामिति (यूनानी भाषा γεωμετρία; जियो .

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ज्येष्ठदेव

ज्येष्ठदेव (मलयालम: ജ്യേഷ്ഠദേവന്; 1500 ई -- 1575) भारत के एक खगोलशास्त्री एवं गणितज्ञ थे। वे केरलीय गणित सम्प्रदाय से सम्बन्धित थे जिसकी स्थापना संगमग्राम के माधव (1350 -- 1425) ने की थी। युक्तिभाषा उनकी प्रसिद्ध रचना है जो नीलकण्ठ सोमयाजि द्वारा रचित तन्त्रसंग्रह की मलयालम भाषा में टीका है। युक्तिभाषा में ज्येष्ठदेव ने तन्त्रसंग्रह में दिये गये गणितीय कथनों का सम्पूर्ण उपपत्ति दिया है तथा उनके औचित्य के बारे में लिखा है। युक्तिभाषा में वर्णित विषयों को देखते हुए कई विद्वान इसे 'कैलकुलस का प्रथम ग्रन्थ' कहते हैं। ज्येष्ठदेव ने 'दृक्करण' नामक ग्रन्थ भी रचा जिसमें उनके खगोलीय प्रेक्षणों का संग्रह है। ज्येष्ठदेव ने समाकलन का विचार दिया है, जिसे उन्होने संकलितम कहा है, (हिंदी अर्थ, संग्रह), जैसा कि इस कथन में है: जो समाकलन को एक ऐसे चर (पद) के रूप में बदल देता है जो चर के वर्ग के आधे के बराबर होगा; अर्थात x dx का समाकलन x2 / 2 के बराबर होगा। यह स्पष्ट रूप से समाकलन की शुरुआत है। इससे सम्बंधित एक अन्य परिणाम कहता है कि किसी वक्र के अन्दर का क्षेत्रफल उसके समाकल के बराबर होता है। इसमें दिये हुए अधिकांश परिणाम ऐसे हैं जो यूरोप में कई शताब्दियों बाद देखने को मिलते हैं। अनेक प्रकार से, ज्येष्ठदेव की युक्तिभाषा कलन पर विश्व की पहली पुस्तक मानी जा सकती है। .

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जॉन नेपियर

जॉन नेपियर (John Napier) (१५५०-१६१७) एक स्कॉटिस गणितज्ञ थे। उन्होने संख्याओं से संबंधित कई महत्वपूर्ण खोजे की थी। नेपियर लघुगणक की खोज के कारण बहुत प्रसिध्द थे। लघुगणक ने जटिल गणनाओं को बहुत आसान बना दिया था। कई गणितज्ञ एवं वैज्ञानिक लघुगणक का उपयोग समस्याओ को हल करने और नये सिध्दांत बनाने में करते हैं। श्रेणी:गणितज्ञ श्रेणी:भौतिक विज्ञानी श्रेणी:स्कॉटलैण्ड के लोग.

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जॉर्ज बूल

जॉर्ज बूल (George Boole) (०२ नवम्बर १८१५ - ०८ दिसम्बर १८६४) ब्रिटेन के एक गणितज्ञ एवं दार्शनिक थे। वे तर्कशास्त्र को एक बीजगणितीय रूप देने के लिये प्रसिद्ध हैं। बूल का बीजगणित, आधुनिक संगणक-गणित का आधार सिद्ध हुआ है। आज उनका यह योगदान इतना महान और महत्वपूर्ण दिखता है कि संगणक विज्ञान के जन्मदाताओं में उनकी गणना की जाती है। (जबकि उनके युग में कम्प्यूटर का कहीं अता-पता नहीं था) .

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जोसेफ फ़ूर्ये

जोसेफ फूर्ये जोसेफ फ़ूर्ये (Fourier, Joseph, 1768-1830 ई.) फ्रांसीसी गणितज्ञ थे। उनका जन्म ओक्सैर में हुआ। आठ वर्ष की उम्र में ही ये अनाथ हो गए थे, परंतु सौभाग्यवश अपने हितैषियों की सहायता से इन्हें एक सैनिक स्कूल में प्रवेश मिल गया, जहाँ इन्होंने गणित के अध्ययन में आशातीत सफलता प्राप्त की और शीघ्र ही एक सैनिक स्कूल में गणित के प्रोफेसर हो गए। फ्रांस की क्रांति में इन्होंने सक्रिय भाग लिया और मिस्र पर आक्रमण में भी नेपोलियन के साथ गए। तदुपरांत इन्होंने पिंडों में ताप के विस्तार पर सफल शोथ किए, जिनका वर्णन इनकी प्रसिद्ध पुस्तक 'ला थेओरि अनालितिक द ला शालर' (La Theorie Analytique de la Chaleur) में है।गणितीय भौतिक शास्त्र के निर्धारित सीमांत के मानवाले निर्मेयों के (जिनमें आंशिक अवकल समीकरण के अनुकलन की आवश्यकता हो) हल की आधुनिक विधियों के लिए, यह मूल पुस्तक है। इसमें प्रसिद्ध 'फूर्ये श्रेणी' (Fourier series) का भी वर्णन है। 'संख्यात्मक समीकरण के विश्लेषण' पर भी इन्होंने महत्वपूर्ण शोध किए। .

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जीवाश्मविज्ञान

जीवाश्मिकी या जीवाश्म विज्ञान या पैलेन्टोलॉजी (Paleontology), भौमिकी की वह शाखा है जिसका संबंध भौमिकीय युगों के उन प्राणियों और पादपों के अवशेषों से है जो अब भूपर्पटी के शैलों में ही पाए जाते हैं। जीवाश्मिकी की परिभाषा देते हुए ट्वेब होफ़ेल और आक ने लिखा है: जीवाश्मिकी वह विज्ञान है, जो आदिम पौधें तथा जंतुओं के अश्मीभूत अवशेषों द्वारा प्रकट भूतकालीन भूगर्भिक युगों के जीवनकी व्याख्या करता है। इस प्रकार यह स्पष्ट है कि जीवाश्म विज्ञान आदिकालीन जीवजंतुओं का, उने अश्मीभूत अवशेषों के आधार पर अध्ययन करता है। जीवाश्म शब्द से ही यह इंगित होता है कि जीव + अश्म (अश्मीभूत जीव) का अध्ययन है। अँग्रेजी का Palaentology शब्द भी Palaios .

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ईंट

शीर्षों और चौखटों के वैकल्‍पिक विधियों के साथ रखा गया अंग्रेजी बंध पत्र में पुरानी ईंट की दीवार ऐतिहासिक नत्चितोचेस, लुइसियाना में ईंट से निर्मिति केन नदी के साथ सामने की गली चिनाई के कार्य में उपयोग किया जाने वाला ईंट मिट्टी का ब्लॉक है, जिन्हें सामान्‍यत: विभिन्‍न प्रकार के गारे का उपयोग कर चिना जाता है। .

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घन फलन

किसी घन फलन (जिसके तीनों मूल वास्तविक हैं) का आरेख गणित में निम्नलिखित स्वरूप वाले फलन को घन फलन (cubic function) या "त्रिघाती बहुपद" कहते हैं: यहाँ a अशून्य संख्या है। यह मानते हुए कि a ≠ 0 तथा ƒ(x) .

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घनाभ

घनाभ घनाभ त्रिबीमीय आकार की एक ज्यामितीय वस्तु है जिसकी तीनों बीमाएं बराबर नहीं होती हैं। इसकी लंबाई, चौड़ाई या ऊँचाई में से किसी एक का शेष की तुलना में असमान होना एक आवश्यक शर्त है। जब तीनों बीमा बराबर हों तो वह आकार घन कहलाता है। इससे संबंधित अध्ययन गणित की ज्यामिति एवं क्षेत्रमिति शाखा के अंतर्गत किया जाता है। .

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वर्ग समीकरण

गणित में दो घात वाले समीकरण को वर्ग समीकरण (quadratic equation) या द्विघात समीकरण कहते हैं। विज्ञान, तकनीकी एवं अन्य अनेक स्थितियों में किसी समस्या के समाधान के समय वर्ग समीकरण से अक्सर सामना पडता रहता है। इसलिये वर्ग समीकरण का हल बहुत महत्व रखता है। वर्ग समीकरण का सामान्य समीकरण(General Equation) इस प्रकार का होता है: यहाँ a ≠ 0.

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वर्गमूल

संख्या के साथ उसके वर्गमूल का आलेख गणित में किसी संख्या x का वर्गमूल (square root (\sqrt) या x^) वह संख्या (r) होती है जिसका वर्ग करने पर x प्राप्त होता है; अर्थात् यदि r‍‍2 .

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विभाजन (गणित)

'''20 ÷ 4 .

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वक्र

बन्द वक्र का एक उदाहरण बोलचाल की भाषा में कोई भी टेढ़ी-मेढ़ी रेखा वक्र (Curve) कहलाती है। किन्तु गणित में, सामान्यतः, वक्र ऐसी रेखा है जिसके प्रत्येक बिंदु पर उसकी दिशा में किसी विशेष नियम से ही परिवर्तन होता हो। यह ऐसे बिंदु का पथ है जो किसी विशेष नियम से ही विचरण करता हो। उदाहरण के लिए, यदि किसी बिंदु की दूरी एक नियत बिंदु से सदा समान रहती हो, तो बिंदुपथ एक वक्र होता है जिसे वृत्त कहते हैं। नियत बिंदु इस वृत्त का केंद्र होता है। यदि वक्र के समस्त बिंदु एक समतल में हो तो उसे समतल वक्र (Plane curve) कहते हैं, अन्यथा उसे विषमतलीय (Skew) या आकाशीय (Space) वक्र कहा जाता है। .

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व्यास

कोई विवरण नहीं।

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व्रत और उपवास

* किसी उद्देश्य की प्राप्ति के लिए दिनभर के लिए अन्न या जल या अन्य भोजन या इन सबका त्याग व्रत कहलाता है।.

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खगोल शास्त्र

चन्द्र संबंधी खगोल शास्त्र: यह बडा क्रेटर है डेडलस। १९६९ में चन्द्रमा की प्रदक्षिणा करते समय अपोलो ११ के चालक-दल (क्रू) ने यह चित्र लिया था। यह क्रेटर पृथ्वी के चन्द्रमा के मध्य के नज़दीक है और इसका व्यास (diameter) लगभग ९३ किलोमीटर या ५८ मील है। खगोल शास्त्र, एक ऐसा शास्त्र है जिसके अंतर्गत पृथ्वी और उसके वायुमण्डल के बाहर होने वाली घटनाओं का अवलोकन, विश्लेषण तथा उसकी व्याख्या (explanation) की जाती है। यह वह अनुशासन है जो आकाश में अवलोकित की जा सकने वाली तथा उनका समावेश करने वाली क्रियाओं के आरंभ, बदलाव और भौतिक तथा रासायनिक गुणों का अध्ययन करता है। बीसवीं शताब्दी के दौरान, व्यावसायिक खगोल शास्त्र को अवलोकिक खगोल शास्त्र तथा काल्पनिक खगोल तथा भौतिक शास्त्र में बाँटने की कोशिश की गई है। बहुत कम ऐसे खगोल शास्त्री है जो दोनो करते है क्योंकि दोनो क्षेत्रों में अलग अलग प्रवीणताओं की आवश्यकता होती है, पर ज़्यादातर व्यावसायिक खगोलशास्त्री अपने आप को दोनो में से एक पक्ष में पाते है। खगोल शास्त्र ज्योतिष शास्त्र से अलग है। ज्योतिष शास्त्र एक छद्म-विज्ञान (Pseudoscience) है जो किसी का भविष्य ग्रहों के चाल से जोड़कर बताने कि कोशिश करता है। हालाँकि दोनों शास्त्रों का आरंभ बिंदु एक है फिर भी वे काफ़ी अलग है। खगोल शास्त्री जहाँ वैज्ञानिक पद्धति का उपयोग करते हैं जबकि ज्योतिषी केवल अनुमान आधारित गणनाओं का सहारा लेते हैं। .

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खगोलीय यांत्रिकी

खगोलीय यांत्रिकी (Celestial mechanics) में आकाशीय पिंडों (heavenly bodies) की गतियों के गणितीय सिद्धांतों का विवेचन किया जाता है। न्यूटन द्वारा प्रिंसिपिया में उपस्थापित गुरुत्वाकर्षण नियम तथा तीन गतिनियम खगोलीय यांत्रिकी के मूल आधार हैं। इस प्रकार इसमें विचारणीय समस्या द्वितीय वर्ण के सामान्य अवकल समीकरणों के एक वर्ग के हल करने तक सीमित हो जाती है। .

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खेल सिद्धांत

खेल सिद्धांत या गेम थ्योरी (game theory) व्यवहारिक गणित की एक शाखा है जिसका प्रयोग समाज विज्ञान, अर्थशास्त्र, जीव विज्ञान, इंजीनियरिंग, राजनीति विज्ञान, अंतर्राष्ट्रीय संबंध, कम्प्यूटर साइंस और दर्शन में किया जाता है। खेल सिद्धांत कूटनीतिक परिस्थितियों में (जिसमें किसी के द्वारा विकल्प चुनने की सफलता दूसरों के चयन पर निर्भर करती है) व्यवहार को बूझने का प्रयास करता है। यूँ तो शुरू में इसे उन प्रतियोगिताओं को समझने के लिए विकसित किया गया था जिनमें एक व्यक्ति का दूसरे की गलतियों से फायदा होता है (ज़ीरो सम गेम्स), लेकिन इसका विस्तार ऐसी कई परिस्थितियों के लिए करा गया है जहाँ अलग-अलग क्रियाओं का एक-दूसरे पर असर पड़ता हो। आज, "गेम थ्योरी" समाज विज्ञान के तार्किक पक्ष के लिए एक छतरी या 'यूनीफाइड फील्ड' थ्योरी की तरह है जिसमें 'सामाजिक' की व्याख्या मानव के साथ-साथ दूसरे खिलाड़ियों (कम्प्युटर, जानवर, पौधे) को सम्मिलित कर की जाती है। गेम थ्योरी के पारंपरिक अनुप्रयोगों में इन गेमों में साम्यावस्थाएं खोजने का प्रयास किया जाता है। साम्यावस्था में गेम का प्रत्येक खिलाड़ी एक नीति अपनाता है जो वह संभवतः नहीं बदलता है। इस विचार को समझने के लिए साम्यावस्था की कई सारी अवधारणाएं विकसित की गई हैं (सबसे प्रसिद्ध नैश इक्विलिब्रियम)। साम्यावस्था के इन अवधारणाओं की अभिप्रेरणा अलग-अलग होती है और इस बात पर निर्भर करती है कि वे किस क्षेत्र में प्रयोग की जा रहीं हैं, हालाँकि उनके मायने कुछ हद तक एक दूसरे में मिले-जुले होते हैं और मेल खाते हैं। यह पद्धति आलोचना रहित नहीं है और साम्यावस्था की विशेष अवधारणाओं की उपयुक्तता पर, साम्यवास्थाओं की उपयुक्तता पर और आमतौर पर गणितीय मॉडलों की उपयोगिता पर वाद-विवाद जारी रहते हैं। हालाँकि इसके पहले ही इस क्षेत्र में कुछ विकास चुके थे, गेम थ्योरी का क्षेत्र जॉन वॉन न्युमन्न और ऑस्कर मॉर्गनस्टर्न की 1944 की पुस्तक थ्योरी ऑफ गेम्स ऐंड इकोनोमिक बिहेविअर के साथ आस्तित्व में आया। इस सिद्धांत का विकास बड़े पैमाने पर 1950 के दशक में कई विद्वानों द्वारा किया गया। बाद में गेम थ्योरी स्पष्टतया 1970 के दशक में जीव विज्ञान में प्रयुक्त किया गया, हालाँकि ऐसा 1930 के दशक में ही शुरू हो चुका था। गेम थ्योरी की पहचान व्यापक रूप से कई क्षेत्रों में एक महत्वपूर्ण उपकरण के रूप में की गई है। आठ गेम थ्योरिस्ट्स अर्थशास्त्र में नोबेल पुरस्कार जीत चुके हैं और जॉन मेनार्ड स्मिथ को गेम थ्योरी के जीव विज्ञान में प्रयोग के लिए क्रफूर्ड पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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गणित

पुणे में आर्यभट की मूर्ति ४७६-५५० गणित ऐसी विद्याओं का समूह है जो संख्याओं, मात्राओं, परिमाणों, रूपों और उनके आपसी रिश्तों, गुण, स्वभाव इत्यादि का अध्ययन करती हैं। गणित एक अमूर्त या निराकार (abstract) और निगमनात्मक प्रणाली है। गणित की कई शाखाएँ हैं: अंकगणित, रेखागणित, त्रिकोणमिति, सांख्यिकी, बीजगणित, कलन, इत्यादि। गणित में अभ्यस्त व्यक्ति या खोज करने वाले वैज्ञानिक को गणितज्ञ कहते हैं। बीसवीं शताब्दी के प्रख्यात ब्रिटिश गणितज्ञ और दार्शनिक बर्टेंड रसेल के अनुसार ‘‘गणित को एक ऐसे विषय के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जिसमें हम जानते ही नहीं कि हम क्या कह रहे हैं, न ही हमें यह पता होता है कि जो हम कह रहे हैं वह सत्य भी है या नहीं।’’ गणित कुछ अमूर्त धारणाओं एवं नियमों का संकलन मात्र ही नहीं है, बल्कि दैनंदिन जीवन का मूलाधार है। .

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गणित का कालक्रम

यहाँ शुद्ध एवं अनुप्रयुक्त गणित के इतिहास की प्रमुख घटनाएँ कालक्रम में दी गई हैं। .

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गणितीय तर्कशास्त्र

गणितीय तर्कशास्त्र (Mathematical logic) गणित की शाखा है किसका संगणक विज्ञान एवं दार्शनिक तर्कशास्त्र से निकट का सम्बन्ध है। तर्कशास्त्र का गणितीय अध्ययन तथा गणित के अन्य विधाओं में तर्कशास्त्र (formal logic) के अनुप्रयोग दोनो ही इसके अंतर्गत आते हैं। प्राय: गणितीय तर्कशास्त्र को समुच्चय सिद्धान्त, मॉडल सिद्धान्त (model theory), रिकर्सन सिद्धान्त (recursion theory) तथा सिद्धि सिद्धान्त (proof theory) नामक क्षेत्रों में विभक्त किया जाता है। .

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गणितीय संकेतन

गणितयीय संकेतन (Mathematical Notations) वे चिन्ह अथवा संकेत हैं जो किसी गणितीय क्रिया अथवा संबंध को व्यक्त करने में, किसी गणितयी राशि की प्रकृति अथवा गुण को दर्शाने में, अथवागणित में प्राय: प्रयुक्त होनेवाले वाक्यांश, विशिष्ट संख्या या गणितीय राशि को निर्दिष्ट करने के लिए प्रयुक्त किए जाते हैं। इस प्रकार अ + ब में धन का चिन्ह निर्दिष्ट करता है कि अ में ब जोड़ना है; अ.

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गणितीय विश्लेषण

गणितीय विश्लेषण (Mathematical analysis) शुद्ध गणित की एक शाखा है। इसके अन्तर्गत अवकलन, समाकलन, सीमा, अनन्त श्रेणी तथा वैश्लेषिक फलनों (analytic functions) के सिद्धान्त आदि आते हैं। ये सिद्धान्त प्रायः वास्तविक संख्याओं, समिश्र संख्याओं तथा वास्तविक एवं समिश्र फलनों के सन्दर्भ में अध्ययन किए जाते हैं। विश्लेषण को परम्परागत रूप से ज्यामिति से अलग गणित की श्रेणी में रखा जाता रहा है। .

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गाटफ्रीड लैबनिट्ज़

गाटफ्रीड विलहेल्म लाइबनिज (Gottfried Wilhelm von Leibniz / १ जुलाई १६४६ - १४ नवम्बर १७१६) जर्मनी के दार्शनिक, वैज्ञानिक, गणितज्ञ, राजनयिक, भौतिकविद्, इतिहासकार, राजनेता, विधिकार थे। उनका पूरा नाम 'गोतफ्रीत विल्हेल्म फोन लाइब्नित्स' था। गणित के इतिहास तथा दर्शन के इतिहास में उनका प्रमुख स्थान है। .

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गामा फलन

कुछ वास्तविक मानों के लिये गामा फलन का ग्राफ गणित में गामा फलन (gamma function) वास्तव में फैक्टोरियल फलन का ही व्यापक या विस्तारित रूप है। इसे ग्रीक वर्ण 'कैपिटल गामा' (Γ) द्वारा निरूपित करते हैं। यदि n धनात्मक पूर्णांक हो तो: गामा फलन शून्य तथा ऋणात्मक पूर्णांकों को छोड़कर शेष सभी समिश्र संख्याओं के लिये परिभाषित है। इसे निम्नलिखित इम्प्रॉपर समाकल (improper integral) के रूप में परिभाषित किया गया है- इस समाकल का मान केवल धनात्मक वास्तविक भाग वाले समिश्र संख्याओं के लिये ही अभिसरित (converge) होता है। गामा फलन अनेकों प्रायिकता-वितरण फलनों (probability-distribution functions) में आता है। यह प्रायिकता, सांख्यिकी और क्रमचय-संचय में उपयोग में आता है। .

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गुणोत्तर माध्य

गणित में गुणोत्तर माध्य (Geometric mean) जो आंकड़ो के किसी समुच्चय की केंद्रीय प्रवृत्ति की ओर इशारा करता है। n संख्याओं का गुणोत्तर माध्य उनके गुणनफल के nवें मूल के बराबर होता है। उदाहरण के लिये १, २, ४ का गुणोत्तर माध्य .

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गुरुत्वाकर्षण

गुरुत्वाकर्षण के कारण ही ग्रह, सूर्य के चारों ओर चक्कर लगा पाते हैं और यही उन्हें रोके रखती है। गुरुत्वाकर्षण (ग्रैविटेशन) एक पदार्थ द्वारा एक दूसरे की ओर आकृष्ट होने की प्रवृति है। गुरुत्वाकर्षण के बारे में पहली बार कोई गणितीय सूत्र देने की कोशिश आइजक न्यूटन द्वारा की गयी जो आश्चर्यजनक रूप से सही था। उन्होंने गुरुत्वाकर्षण सिद्धांत का प्रतिपादन किया। न्यूटन के सिद्धान्त को बाद में अलबर्ट आइंस्टाइन द्वारा सापेक्षता सिद्धांत से बदला गया। इससे पूर्व वराह मिहिर ने कहा था कि किसी प्रकार की शक्ति ही वस्तुओं को पृथिवी पर चिपकाए रखती है। .

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ग्राफ़ सिद्धान्त

एक ग्राफ जिसमें छः नोड और सात कोर हैं। गणित तथा संगणक विज्ञान में ग्राफ सिद्धांत (graph theory) में वस्तुओं से जुड़ी वस्तुओं और उनकी आपसी दूरी का अध्ययन किया जाता है। इस संदर्भ में ग्राफ उन गणितीय संरचनाओं को कहते हैं जो वस्तुओं के बीच जुड़े या युग्मित संबन्धों (pairwise relations) को मॉडल करने के काम आती हैं। इसकी तुलना किसी मानचित्र में शहरों के बीच बने सड़कों के जाल से कर सकते हैं। दो शहरों के बीच की दूरी उनके बीच बनी सड़क की लंबाई बताती है। यदि उन शहरों से बीच सीधी सड़क न हो, तो किसी अन्य शहर द्वारा वहाँ तक पहुँचने की दूरी निकाली जा सकती है। इसके आरेखों और चित्रों में दर्शाने के लिए वस्तुओं को बिन्दु या गोले (node, vertex) से दर्शाया जाता है। इनके बीच के जुड़ाव को एक रेख द्वारा जिसे कोर (edges) कहते हैं। अतः ग्राफ शीर्षों (vertices or nodes) तथा उनको जोड़ने वाली कोरों (edges) का समुच्चय है। विविक्त गणित (discrete mathematics) में ग्राफ का अध्ययन एक महत्वपूर्ण विषय है। ध्यान रहे कि 'ग्राफ सिद्धान्त' का 'ग्राफ', फलनों के आलेख (ग्राफ) यानि वक्र रेखा द्वारा किसी संबंध को दिखाने से बिलकुल भिन्न चीज है। ग्राफ़ सिद्धांत का प्रयोग वस्तुओं के विशाल समूह में एक दूसरे से दूरी (या अन्तर) निकालने के लिए किया जाता है। ग्राफ़ सिद्धांत के अनुसार, इसी प्रकार आकड़ों के पुंजीकरण, वस्तुओं की समरूपता इत्यादि जैसे कार्यों का हल निकाला जा सकता है। सामान्यतया ग्राफ़ को G.

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गैलीलियो गैलिली

गैलीलियो गैलिली (१५ फरवरी, १५६५ - ८ जनवरी, १६४२) इटली के वैज्ञानिक थे। वे एक महान आविष्कारक थे तथा दूरदर्शी के विकास में उनका अतुलनीय सहयोग था। .

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गोलीय त्रिकोणमिति

गोलीय त्रिकोणमिति (Spherical trigonometry), गोलीय ज्यामिति की शाखा है जिसमें गोलीय बहुभुजों (मुख्यतः गोलीय त्रिभुज) के कोणों एवं भुजाओं में सम्बन्ध बताने वाले त्रिकोणमितीय फलनों का अध्ययन किया जाता है। खगोलविज्ञान, भूगणित (geodesy) और नौचालन से सम्बन्धित गणनाओं में इसका बहुत महत्व है। श्रेणी:ज्यामिति की शाखाएँ.

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आयतन

सभी पदार्थ स्थान (त्रि-बीमीय स्थान) घेरते हैं। इसी त्रि-बीमीय स्थान की मात्रा की माप को आयतन कहते हैं। एक-बीमीय आकृतियाँ (जैसे रेखा) एवं द्वि-बीमीय आकृतियाँ (जैसे त्रिभुज, चतुर्भुज, वर्ग आदि) का आयतन शून्य होता है। .

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आर्यभट

आर्यभट (४७६-५५०) प्राचीन भारत के एक महान ज्योतिषविद् और गणितज्ञ थे। इन्होंने आर्यभटीय ग्रंथ की रचना की जिसमें ज्योतिषशास्त्र के अनेक सिद्धांतों का प्रतिपादन है। इसी ग्रंथ में इन्होंने अपना जन्मस्थान कुसुमपुर और जन्मकाल शक संवत् 398 लिखा है। बिहार में वर्तमान पटना का प्राचीन नाम कुसुमपुर था लेकिन आर्यभट का कुसुमपुर दक्षिण में था, यह अब लगभग सिद्ध हो चुका है। एक अन्य मान्यता के अनुसार उनका जन्म महाराष्ट्र के अश्मक देश में हुआ था। उनके वैज्ञानिक कार्यों का समादर राजधानी में ही हो सकता था। अतः उन्होंने लम्बी यात्रा करके आधुनिक पटना के समीप कुसुमपुर में अवस्थित होकर राजसान्निध्य में अपनी रचनाएँ पूर्ण की। .

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आर्किमिडिज़

आर्किमिडिज़ (यूनानी: Ἀρχιμήδης; लगभग २८७ – २१२ ई.पू.) प्राचीन यूनान में रहने वाले गणितज्ञ, भौतिकज्ञ, इंजीनियर, आविष्कारक और खगोलशास्त्री थे। इनके जीवन के बारे में बहुत कुछ मालूम नहीं है, लेकिन इन्हें प्राचीन पाश्चात्य सभ्यता के महानतम वैज्ञानिकों में से एक माना जाता है। भौतिकी को इन्होंने स्थिति-विज्ञान, द्रव्य स्थिति-विज्ञान और लीवर के सिद्धान्त प्रदान किए। इन्होंने कई नई मशीनें भी ईजाद कीं, जिनमें शामिल हैं घेराबंदी तोड़ने के लिए यंत्र और आर्किमिडिज़ पेच। इसके अलावा इन्होंने ऐसी मशीनों की परिकल्पना की जो पानी से जहाजों को उठा सकती थीं और दर्पणों के प्रयोग से नावों पर आग लगा सकती थीं; आधुनिक प्रयोगों से इन मशीनों की वास्तविकता सामने आई है। आर्किमिडिज़ को प्राचीन संसार का महानतम गणितज्ञ माना जाता है और आजतक के महानतम गणितज्ञों में गिना जाता है। इन्होंने शून्यीकरण विधि का प्रयोग करके परवलय की चाप के नीचे का क्षेत्रफल निकाला और पाइ का अत्यंत सटीक परिमाण निकाला। इन्होंने आर्किमिडिज़ कुण्डली, परिक्रमण की सतह का घनफल और बहुत बड़ी संख्याओं को लिखने के नए तरीके निकाले। इनके बारे में प्रसिद्ध है कि स्नान करते हुए इन्हें अकस्माक विचार आया कि सोने में मिलावट कैसे पकड़ी जाए और ये नग्न ही "यूरेका! यूरेका!" (यूनानी: "εὕρηκα! εὕρηκα!," "मिल गया! मिल गया!") चिल्लाते हुए सिराक्यूज़ की सड़कों पर दौड़ने लगे। इनका यह भी कथन प्रसिद्ध है, "मुझे यदि खड़े होने की जगह मिल जाए तो मैं (लीवर की मदद से) पृथ्वी को हिला सकता हूँ।" सिराक्यूज़ की घेराबंदी में एक रोमन सैनिक ने आर्किमिडिज़ को मार डाला, जबकि सेना को आदेश थे कि इन्हें कोई क्षति नहीं पहुँचनी चाहिए। कहा जाता है कि इनके अंतिम शब्द थे, "मेरे वृत्तों को खराब मत करो" (यूनानी: "μή μου τούς κύκλους τάραττε"), जो इन्होंने उस रोमन सैनिक को कहे। सिसरो ने इनके मकबरे का वर्णन करते हुए बताया है कि उसपर एक वेलनाकार और उसके मध्य में समानाकार गेंद बने हुए थे। आर्किमिडीज़ ने प्रमाणित किया था कि गेंद का क्षेत्रफल और घनफल वेलनाकार का दो-तिहाई होता है और ये इसे अपनी सबसे बड़ी उपलब्धि मानते थे। इनके आविष्कार तो बहुत प्रसिद्ध हुए, लेकिन इनके गणितीय रचनाओं को प्राचीन काल में अधिक महत्त्व नहीं मिला। अलेक्सेंड्रिया के गणितज्ञ इन्हें पढ़ते और उद्धृत भी करते थे, लेकिन इनकी कृतियों को सबसे पहले ५३० ईस्वी के लगभग ही एकत्रित किया जा सका। यह काम मिलेटस के इसीडोर ने किया और फिर छठी शताब्दी ईस्वी में ही यूटोसियस की टीकाओं के माध्यम से सारा संसार आर्किमिडिज़ की कृतियों से अवगत हुआ। इनकी कृतियों की कुछ पाण्डुलिपियाँ मध्ययुग तक बची रहीं और पुनर्जागरण के दौरान कई वैज्ञानिकों और दार्शनिकों की प्रेरणा का स्रोत बनीं। १९०६ में आर्किमिडिज़ पालिम्पसेस्ट के नाम से मिली अन्य कृतियों से पता लगा कि इन्होंने गणितीय फार्मूले कैसे निकाले। .

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आइज़क न्यूटन

सर आइज़ैक न्यूटन इंग्लैंड के एक वैज्ञानिक थे। जिन्होंने गुरुत्वाकर्षण का नियम और गति के सिद्धांत की खोज की। वे एक महान गणितज्ञ, भौतिक वैज्ञानिक, ज्योतिष एवं दार्शनिक थे। इनका शोध प्रपत्र "प्राकृतिक दर्शन के गणितीय सिद्धांतों "" सन् १६८७ में प्रकाशित हुआ, जिसमें सार्वत्रिक गुर्त्वाकर्षण एवं गति के नियमों की व्याख्या की गई थी और इस प्रकार चिरसम्मत भौतिकी (क्लासिकल भौतिकी) की नींव रखी। उनकी फिलोसोफी नेचुरेलिस प्रिन्सिपिया मेथेमेटिका, 1687 में प्रकाशित हुई, यह विज्ञान के इतिहास में अपने आप में सबसे प्रभावशाली पुस्तक है, जो अधिकांश साहित्यिक यांत्रिकी के लिए आधारभूत कार्य की भूमिका निभाती है। इस कार्य में, न्यूटन ने सार्वत्रिक गुरुत्व और गति के तीन नियमों का वर्णन किया जिसने अगली तीन शताब्दियों के लिए भौतिक ब्रह्मांड के वैज्ञानिक दृष्टिकोण पर अपना वर्चस्व स्थापित कर लिया। न्यूटन ने दर्शाया कि पृथ्वी पर वस्तुओं की गति और आकाशीय पिंडों की गति का नियंत्रण प्राकृतिक नियमों के समान समुच्चय के द्वारा होता है, इसे दर्शाने के लिए उन्होंने ग्रहीय गति के केपलर के नियमों तथा अपने गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत के बीच निरंतरता स्थापित की, इस प्रकार से सूर्य केन्द्रीयता और वैज्ञानिक क्रांति के आधुनिकीकरण के बारे में पिछले संदेह को दूर किया। यांत्रिकी में, न्यूटन ने संवेग तथा कोणीय संवेग दोनों के संरक्षण के सिद्धांतों को स्थापित किया। प्रकाशिकी में, उन्होंने पहला व्यवहारिक परावर्ती दूरदर्शी बनाया और इस आधार पर रंग का सिद्धांत विकसित किया कि एक प्रिज्म श्वेत प्रकाश को कई रंगों में अपघटित कर देता है जो दृश्य स्पेक्ट्रम बनाते हैं। उन्होंने शीतलन का नियम दिया और ध्वनि की गति का अध्ययन किया। गणित में, अवकलन और समाकलन कलन के विकास का श्रेय गोटफ्राइड लीबनीज के साथ न्यूटन को जाता है। उन्होंने सामान्यीकृत द्विपद प्रमेय का भी प्रदर्शन किया और एक फलन के शून्यों के सन्निकटन के लिए तथाकथित "न्यूटन की विधि" का विकास किया और घात श्रृंखला के अध्ययन में योगदान दिया। वैज्ञानिकों के बीच न्यूटन की स्थिति बहुत शीर्ष पद पर है, ऐसा ब्रिटेन की रोयल सोसाइटी में 2005 में हुए वैज्ञानिकों के एक सर्वेक्षण के द्वारा प्रदर्शित होता है, जिसमें पूछा गया कि विज्ञान के इतिहास पर किसका प्रभाव अधिक गहरा है, न्यूटन का या एल्बर्ट आइंस्टीन का। इस सर्वेक्षण में न्यूटन को अधिक प्रभावी पाया गया।.

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इटली

इटली यूरोप महाद्वीप के दक्षिण में स्थित एक देश है जिसकी मुख्यभूमि एक प्रायद्वीप है। इटली के उत्तर में आल्प्स पर्वतमाला है जिसमें फ्रांस, स्विट्ज़रलैंड, ऑस्ट्रिया तथा स्लोवेनिया की सीमाएँ आकर लगती हैं। सिसली तथा सार्डिनिया, जो भूमध्य सागर के दो सबसे बड़े द्वीप हैं, इटली के ही अंग हैं। वेटिकन सिटी तथा सैन मरीनो इटली के अंतर्गत समाहित दो स्वतंत्र देश हैं। इटली, यूनान के बाद यूरोप का दूसरा का दूसरा प्राचीनतम राष्ट्र है। रोम की सभ्यता तथा इटली का इतिहास देश के प्राचीन वैभव तथा विकास का प्रतीक है। आधुनिक इटली 1861 ई. में राज्य के रूप में गठित हुआ था। देश की धीमी प्रगति, सामाजिक संगठन तथा राजनितिक उथल-पुथल इटली के 2,500 वर्ष के इतिहास से संबद्ध है। देश में पूर्वकाल में राजतंत्र था जिसका अंतिम राजघराना सेवाय था। जून, सन् 1946 से देश एक जनतांत्रिक राज्य में परिवर्तित हो गया। इटली की राजधानी रोम प्राचीन काल के एक शक्ति और प्रभाव से संपन्न रोमन साम्राज्य की राजधानी रहा है। ईसा के आसपास और उसके बाद रोमन साम्राज्य ने भूमध्य सागर के क्षेत्र में अपनी प्रभुता स्थापित की थी जिसके कारण यह संस्कृति और अन्य क्षेत्रों में आधुनिक यूरोप की आधारशिला के तौर पर माना जाता है। तथा मध्यपूर्व (जिसे भारतीय परिप्रेक्ष्य में मध्य-पश्च भी कह सकते हैं) के इतिहास में भी रोमन साम्राज्य ने अपना प्रभाव डाला था और उनसे प्रभावित भी हुआ था। आज के इटली की संस्कृति पर यवनों (ग्रीक) का भी प्रभाव पड़ा है। इटली की जनसंख्या २००८ में ५ करोड़ ९० लाख थी। देश का क्षेत्रफल ३लाख वर्ग किलोमीटर के आसपास है। १९९१ में यहाँ की सरकार के शीर्ष पदस्थ अधिकारियों में व्याप्त भ्रष्टाचार का पर्दाफाश हुआ जिसके बाद यहाँ की राजनैतिक सत्ता और प्रशासन में कई बदलाव आए हैं। रोम यहाँ की राजधानी है और अन्य प्रमुख नगरों में वेनिस, मिलान इत्यादि का नाम लिया जा सकता है। .

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इतिहासकार

इतिहासकार वह है जो इतिहास लिखे।एक इतिहासकार एक ऐसा व्यक्ति है जो अतीत के बारे में अध्ययन और लिखता है, और इसे उस पर एक अधिकार के रूप में माना जाता है। इतिहासकार, मानव जाति से संबंधित पिछले घटनाओं की निरंतर, व्यवस्थित कथा और अनुसंधान से चिंतित हैं; साथ ही समय में सभी इतिहास का अध्ययन। .

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इबेरिया प्रायद्वीप

इबेरियाई प्रायद्वीप इबेरियाई प्रायद्वीप या इबेरिया, यूरोप के दक्षिणपश्चिम भाग में स्थित एक प्रायद्वीप है। इस प्रायद्वीप के दक्षिण और पूर्व में भूमध्य सागर है और उत्तर और पश्चिम में अन्ध महासागर। यह ५,८२,८६० वर्ग किमी क्षेत्रफल के साथ यूरोप का तीसरा सबसे बड़ा प्रायद्वीप है। इबेरिया इस क्षेत्र के लिए एक प्राचीन यूनानी नाम है जिसे रोमन "हिस्पैनिया" कहते थे। हिस्पैनिया शब्द अब केवल स्पेन के लिए प्रयुक्त होता है, जबकि इबेरिया नाम इस पूरे प्रायद्वीप के लिए जिसपर अन्य देश भी स्थित हैं। .

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इराक़

इराक़ पश्चिमी एशिया में स्थित एक जनतांत्रिक देश है जहाँ के लोग मुख्यतः मुस्लिम हैं। इसके दक्षिण में सउदी अरब और कुवैत, पश्चिम में जोर्डन और सीरिया, उत्तर में तुर्की और पूर्व में ईरान अवस्थित है। दक्षिण पश्चिम की दिशा में यह फ़ारस की खाड़ी से भी जुड़ा है। दजला नदी और फरात इसकी दो प्रमुख नदियाँ हैं जो इसके इतिहास को ५००० साल पीछे ले जाती हैं। इसके दोआबे में ही मेसोपोटामिया की सभ्यता का उदय हुआ था। इराक़ के इतिहास में असीरिया के पतन के बाद विदेशी शक्तियों का प्रभुत्व रहा है। ईसापूर्व छठी सदी के बाद से फ़ारसी शासन में रहने के बाद (सातवीं सदी तक) इसपर अरबों का प्रभुत्व बना। अरब शासन के समय यहाँ इस्लाम धर्म आया और बगदाद अब्बासी खिलाफत की राजधानी रहा। तेरहवीं सदी में मंगोल आक्रमण से बगदाद का पतन हो गया और उसके बाद की अराजकता के सालों बाद तुर्कों (उस्मानी साम्राज्य) का प्रभुत्व यहाँ पर बन गया २००३ से दिसम्बर २०११ तक अमेरिका के नेतृत्व में नैटो की सेना की यहाँ उपस्थिति बनी हुई थी जिसके बाद से यहाँ एक जनतांत्रिक सरकार का शासन है। राजधानी बगदाद के अलावा करबला, बसरा, किर्कुक तथा नजफ़ अन्य प्रमुख शहर हैं। यहाँ की मुख्य बोलचाल की भाषा अरबी और कुर्दी भाषा है और दोनों को सांवैधानिक दर्जा मिला है। .

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इरैटोस्थनिज़

इरैटोस्थनिज़ द्वारा बनाया संसार का मानचित्र इरैटोस्थनिज़ (Eratosthenes; 276 इसापूर्व – c. 195/194 इसापूर्व) यूनान का गणितज्ञ, भूगोलविद, कवि, खगोलविद एवं संगीत सिद्धानतकार था। .

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इस्लाम

इस्लाम (अरबी: الإسلام) एक एकेश्वरवादी धर्म है, जो इसके अनुयायियों के अनुसार, अल्लाह के अंतिम रसूल और नबी, मुहम्मद द्वारा मनुष्यों तक पहुंचाई गई अंतिम ईश्वरीय पुस्तक क़ुरआन की शिक्षा पर आधारित है। कुरान अरबी भाषा में रची गई और इसी भाषा में विश्व की कुल जनसंख्या के 25% हिस्से, यानी लगभग 1.6 से 1.8 अरब लोगों, द्वारा पढ़ी जाती है; इनमें से (स्रोतों के अनुसार) लगभग 20 से 30 करोड़ लोगों की यह मातृभाषा है। हजरत मुहम्मद साहब के मुँह से कथित होकर लिखी जाने वाली पुस्तक और पुस्तक का पालन करने के निर्देश प्रदान करने वाली शरीयत ही दो ऐसे संसाधन हैं जो इस्लाम की जानकारी स्रोत को सही करार दिये जाते हैं। .

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इंग्लैण्ड

इंग्लैण्ड (अंग्रेज़ी: England), ग्रेट ब्रिटेन नामक टापू के दक्षिणी भाग में स्थित एक देश है। इसका क्षेत्रफल 50,331 वर्ग मील है। यह यूनाइटेड किंगडम का सबसे बड़ा निर्वाचक देश है। इंग्लैंड के अलावा स्कॉटलैंड, वेल्स और उत्तर आयरलैंड भी यूनाइटेड किंगडम में शामिल हैं। यह यूरोप के उत्तर पश्चिम में अवस्थित है जो मुख्य भूमि से इंग्लिश चैनल द्वारा पृथकीकृत द्वीप का अंग है। इसकी राजभाषा अंग्रेज़ी है और यह विश्व के सबसे संपन्न तथा शक्तिशाली देशों में से एक है। इंग्लैंड के इतिहास में सबसे स्वर्णिम काल उसका औपनिवेशिक युग है। अठारहवीं सदी से लेकर बीसवीं सदी के मध्य तक ब्रिटिश साम्राज्य विश्व का सबसे बड़ा और शकितशाली साम्राज्य हुआ करता था जो कई महाद्वीपों में फैला हुआ था और कहा जाता था कि ब्रिटिश साम्राज्य में सूर्य कभी अस्त नहीं होता। उसी समय पूरे विश्व में अंग्रेज़ी भाषा ने अपनी छाप छोड़ी जिसकी वज़ह से यह आज भी विश्व के सबसे अधिक लोगों द्वारा बोले व समझे जाने वाली भाषा है। .

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कम्प्यूटर विज्ञान

कम्प्यूटर विज्ञान संगणन और उसके उपयोग की ओर वैज्ञानिक और व्यवहारिक दृष्टिकोण है। यह जानकारी के पहुँच, सम्प्रेषण, संचय, प्रसंस्करण, प्रतिनिधित्व और अर्जन हेतु उपयोग में लाये जाने वाले व्यवस्थित प्रक्रियाओं (या कलन विधियों) के मशीनीकरण, अभिव्यक्ति, संरचना, और साध्यता का व्यवस्थित अध्ययन है। संगणक विज्ञान एक वैकल्पिक, संक्षिप्त परिभाषा के अनुसार यह मापने योग्य स्वचालित कलन विधियों का अध्ययन है। संगणक वैज्ञानिक संगणन के सिद्धांत और गणना योग्य प्रणालियों की योजना में विशेषज्ञता प्राप्त करते हैं। कंप्यूटर विज्ञान (कम्प्यूटर विज्ञान) के अन्तर्गत सूचना तथा संगणन (computation) के सैद्धान्तिक आधारों अध्ययन किया जाता है और साथ में इन सिद्धान्तों को कंप्यूटर प्रणालियों में व्यवहार में लाने की विधियों का अध्ययन किया जाता है। कंप्यूटर विज्ञान को प्राय: कलन विधियों के विधिवत (systematic) अध्ययन के रूप में देखा जाता है और कंप्यूटर विज्ञान का मूल प्रश्न यही है - कौन सा काम (दक्षतापूर्वक) स्वत: किया जा सकता है? (What can be (efficiently) automated?) .

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कलन

कलन (Calculus) गणित का प्रमुख क्षेत्र है जिसमें राशियों के परिवर्तन का गणितीय अध्ययन किया जाता है। इसकी दो मुख्य शाखाएँ हैं- अवकल गणित (डिफरेंशियल कैल्कुलस) तथा समाकलन गणित (इटीग्रल कैलकुलस)। कैलकुलस के ये दोनों शाखाएँ कलन के मूलभूत प्रमेय द्वारा परस्पर सम्बन्धित हैं। वर्तमान समय में विज्ञान, इंजीनियरी, अर्थशास्त्र आदि के क्षेत्र में कैल्कुलस का उपयोग किया जाता है। भारत में कैल्कुलस से सम्बन्धित कई कॉन्सेप्ट १४वीं शताब्दी में ही विकसित हो गये थे। किन्तु परम्परागत रूप से यही मान्यता है कि कैलकुलस का प्रयोग 17वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में आरंभ हुआ तथा आइजक न्यूटन तथा लैब्नीज इसके जनक थे। .

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कसदी

हाम्मुरबी (1728 ईसापुर्व 1683 ईसापुर्व) बेबीलोनिया का प्रसिध्द शासक जो एमोराइट राजवंश का था। तथा हम्बुराबी की सबसे बड़ी देन कानूनो की संहिता है हम्बुराबी विश्व का प्रथम शासक था जिसने सर्बप्रथम कानूनो का संग्रह कराया। श्रेणी:इराक़ का इतिहास श्रेणी:मेसोपोटामिया श्रेणी:कसदी.

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कार्तीय निर्देशांक पद्धति

Fig. 1 - कार्तीय निर्देशांक पद्धति. चार बिन्दु प्रकट हैं: (2,3) हरे मै, (-3,1) लाल मै, (-1.5,-2.5) नीले मै और (0,0), मूल बिन्दु, पीले में. गणित में कार्तीय निर्देशांक पद्धति (cartesian coordinate system), समतल मे किसी बिन्दु की स्थिति को दो अंको के द्वारा अद्वितीय रूप से दर्शाने के लिए प्रयुक्त होती है। इन दो अंको को उस बिन्दु के क्रमशः X-निर्देशांक व Y-निर्देशांक कहा जाता है। इसके लिये दो लंबवत रेखाएं निर्धारित की जाती हैं जिन्हे X-अक्ष और Y-अक्ष कहते हैं। इनके कटान बिन्दु को मूल बिन्दु (origin) कहते हैं। जिस बिन्दु की स्थिति दर्शानी होती है, उस बिन्दु से इन अक्षों पर लम्ब डाले जाते हैं। इस बिन्दु से Y-अक्ष की दूरी को उस बिन्दु का X-निर्देशांक या भुज कहते हैं। इसी प्रकार इस बिन्दु की X-अक्ष से दूरी को उस बिन्दु का Y-निर्देशांक या कोटि कहते है। उदाहरण के लिये यदि किसी बिन्दु की Y-अक्ष से (लम्बवत) दूरी a तथा X-अक्ष से दूरी b हो तो क्रमित-युग्म (a,b) को उस बिन्दु का कार्तीय निर्देशांक कहते हैं। .

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कार्ल फ्रेडरिक गाउस

कार्ल फ्रेडरिक गॉस अथवा कार्ल फ्रेडरिक गाउस (Gauß,; Carolus Fridericus Gauss) (30 अप्रैल 177723 फ़रवरी 1855) एक जर्मन गणितज्ञ और भौतिक विज्ञानी थे जिन्होंने संख्या सिद्धान्त, बीजगणित, सांख्यिकी, गणितीय विश्लेषण, अवकल ज्यामिति, भूगणित, भूभौतिकी, वैद्युत स्थैतिकी, खगोल शास्त्र और प्रकाशिकी सहित कई क्षेत्रों में सार्थक रूप से योगदान दिया। गाउस को विद्युत के गणितीय सिद्धांत का संस्थापक कहा जाता है। विद्युत की चुंबकीय इकाई का 'गाउस' नाम उसी के नाम पर रखा गया है। कभी-कभी गाउस को गणित का राजकुमार भी कहा जाता है। गॉस का गणित और विज्ञान के विभिन्न क्षेत्रों में विभिन्न क्षेत्रों में योगदान है और उनका योगदान इतिहास का सबसे प्रभावशाली योगदान रहा है। उन्होंने गणित को "विज्ञान की रानी" कहा है। जर्मनी के ब्रुंसविक नाम स्थान में एक ईंट चुननेवाले मेमार के घर उसका जन्म हुआ था। जन्म से ही उसमें गणति के प्रश्नों को तत्काल हल कर देने की क्षमता थी। उसकी इस प्रतिभा का पता जब ब्रुंसविक के ड्यूक को लगा तो उन्होंने उसे गटिंगन विश्वविद्यालय में अध्ययन करने की व्यवस्था कर दी। वहाँ विद्यार्थी जीवन में ही उसने अनेक गणितीय आविष्कार किए। जयामिति के माध्यम से उसने सिद्ध किया कि एक वृत्त सत्तरह समान आर्क में विभाजित हो सकता है। सिरेस नामक ग्रह के संबंध में उसने जो गणना की उसके कारण उसकी गणना खगोलशास्त्रियों में की जाती है। १८०७ ई० से मृत्यु पर्यंत वह गर्टिगन वेधशाला का निदेशक रहा। .

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क्रमचय-संचय

दोहराव के साथ क्रमपरिवर्तन। क्रमचय-संचय (Combinatorics) गणित की शाखा है जिसमें गिनने योग्य विवर्त (discrete) संरचनाओं (structures) का अध्ययन किया जाता है। शुद्ध गणित, बीजगणित, प्रायिकता सिद्धांत, टोपोलोजी तथा ज्यामिति आदि गणित के विभिन्न क्षेत्रों में क्रमचय-संचय से संबन्धित समस्याये पैदा होतीं हैं। इसके अलावा क्रमचय-संचय का उपयोग इष्टतमीकरण (आप्टिमाइजेशन), संगणक विज्ञान, एर्गोडिक सिद्धांत (ergodic theory) तथा सांख्यिकीय भौतिकी में भी होता है। ग्राफ सिद्धांत, क्रमचय-संचय के सबसे पुराने एवं सर्वाधिक प्रयुक्त भागों में से है। ऐतिहासिक रूप से क्रमचय-संचय के बहुत से प्रश्न विलगित रूप में उठते रहे थे और उनके तदर्थ हल प्रस्तुत किये जाते रहे। किन्तु बीसवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में शक्तिशाली एवं सामान्य सैद्धांतिक विधियाँ विकसित हुईं और क्रमचय-संचय गणित की स्वतंत्र शाखा बनकर उभरा। .

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क्षेत्रफल

किसी तल (समतल या वक्रतल) के द्वि-बीमीय (द्वि-आयामी) आकार के परिमाण (माप) को क्षेत्रफल कहते हैं। जिस क्षेत्र के क्षेत्रफल की बात की जाती है वह क्षेत्र प्रायः किसी बन्द वक्र (closed curve) से घिरा होता है। इसे प्राय: m2 (वर्ग मीटर) में मापा जाता है। .

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अधिकल्पित एकक

अधिकल्पित एकक (इमैजिनरी यूनिट), जिसे i द्वारा निरूपित किया जाता है, एक गणितीय अवधारणा है जो वास्तविक संख्या निकाय ℝ को सम्मिश्र संख्या निकाय ℂ तक विस्तारित करने के लिए इकाई के नकारात्मक मान के वर्ग मूल से परिभाषित किया जाता है। .

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अनंत

अनंत (Infinity) का अर्थ होता है जिसका कोई अंत न हो। इसको ∞ से निरूपित करते हैं। यह गणित और दर्शन में एक कांसेप्ट है जो ऐसी राशि को कहते हैं जिसकी कोई सीमा न हो या अन्त न हो। भूतकाल में लोगों ने अनन्त के बारे में तरह-तरह के विचार व्यक्त किये हैं। अनंत शब्द का अंग्रेजी पर्याय "इनफिनिटी" लैटिन भाषा के 'इन्' (अन्) और 'फिनिस' (अंत) की संधि है। यह शब्द उन राशियों के लिए प्रयुक्त किया जाता है जिनकी भाप अथवा गणना उनके परिमित न रहने के कारण असंभव है। अपरिमित सरल रेखा की लंबाई सीमाविहीन और इसलिए अनंत होती है। .

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अनुपात

गणित में अनुपात (रेशियो) समान प्रकार की दो संख्याओं के बीच सम्बन्ध को कहते हैं। प्रायः इसे "a संबंध b" या a:b कहते हैं। उदाहरण के लिये यदि दो पेड़ों की उँचाइयों का अनुपात ३:५ है तो इसका अर्थ यह है कि यदि पहले पेड़ की ऊंचाई ३ मीटर है तो दूसरे की ऊंचाई ५ मीटर होगी। अथवा पहले की उँचाई ९ मीटर हो तो दूसरे की १५ मीटर होगी। श्रेणी:प्रारम्भिक गणित श्रेणी:बीजगणित श्रेणी:चित्र जोड़ें.

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अनुक्रम

वस्तुओं की किसी क्रमित सूची को अनुक्रम (sequence) कहते हैं। अनुक्रम में 'क्रम' का महत्व है जबकि समुच्चय में क्रम का महत्व नहीं होता। अनुक्रम में एक ही सदस्य अलग-अलग स्थानों पर भी आ सकते हैं। अनुक्रम के सदस्य 'कुछ भी' हो सकते हैं, जैसे संख्याएँ, शब्द, वर्ण, रंग, नाम आदि। अनुक्रम सीमित या असीमित दोनों प्रकार के होते हैं। अनुक्रम के कुछ उदाहरण: श्रेणी और अनुक्रम अलग-अलग हैं। श्रेणी, 'संख्याओं के योग' का नाम है। इस श्रेणी में जो संख्याएँ जोड़ी जा रहीं हैं उनका एक अनुक्रम है। अर्थात .

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अभाज्य संख्या

वे १ से बड़ी प्राकृतिक संख्याएँ, जो स्वयं और १ के अतिरिक्त और किसी प्राकृतिक संख्या से विभाजित नहीं होतीं, उन्हें अभाज्य संख्या कहते हैं। वे १ से बड़ी प्राकृतिक संख्याएँ जो अभाज्य संख्याँ (whole number) नहीं हैं उन्हें भाज्य संख्या कहते है। अभाज्य संख्याओं की संख्या अनन्त है जिसे ३०० ईसापूर्व यूक्लिड ने प्रदर्शित कर दिया था। १ को परिभाषा के अनुसार अभाज्य नहीं माना जाता है। प्रथम २५ अभाज्य संख्याएं नीचे दी गयीं हैं- 2, 3, 5, 7, 11, 13, 17, 19, 23, 29, 31, 37, 41, 43, 47, 53, 59, 61, 67, 71, 73, 79, 83, 89, 97 अभाजय संख्याओं का महत्व यह है कि किसी भी अशून्य प्राकृतिक संख्या के गुणनखण्ड को केवल अभाज्य संख्याओं के द्वारा व्यक्त किया जा सकता है और यह गुणनखण्ड एकमेव (unique) होता है। इसे अंकगणित का मौलिक प्रमेय कहा जाता है। .

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अभिकलन

रैण्डम ऐक्सेस स्मृति (RAM /Random Access Memory) संगणक तकनीक, कम्यूटर हार्डवेयर तथा कम्प्यूटर सॉफ्टवेयर के विकास करने से सम्बन्धित कार्यों या क्रियाओं को सम्मिलित रूप से अभिकलन कहा जाता है। यह सूचना तकनीक का वह भाग है जो कम्प्यूटर से सम्बन्ध रखता है। संगणक विज्ञान, सूचना एवं अभिकलन के सैद्धान्तिक पहलुओं के अध्ययन, उन्हें कार्य रूप में परिणित करने एवं उनको संगणक तंत्र में प्रयोग करने से सम्बधित है। .

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अरब

* अरब देश - मध्यपूर्व के देश जहाँ अरबी भाषा बोली जाती है।.

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अरब का इतिहास

अरबी प्रायद्वीप की सबसे बड़ी घटना है इस्लाम का जन्म। यह सातवीं सदी के पूर्वार्ध में हुआ था जिसके पहले का इतिहास तथाज्ञात नहीं है। .

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अरबी भाषा

अरबी भाषा सामी भाषा परिवार की एक भाषा है। ये हिन्द यूरोपीय परिवार की भाषाओं से मुख़्तलिफ़ है, यहाँ तक कि फ़ारसी से भी। ये इब्रानी भाषा से सम्बन्धित है। अरबी इस्लाम धर्म की धर्मभाषा है, जिसमें क़ुरान-ए-शरीफ़ लिखी गयी है। .

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अरस्तु

अरस्तु अरस्तु (384 ईपू – 322 ईपू) यूनानी दार्शनिक थे। वे प्लेटो के शिष्य व सिकंदर के गुरु थे। उनका जन्म स्टेगेरिया नामक नगर में हुआ था ।  अरस्तु ने भौतिकी, आध्यात्म, कविता, नाटक, संगीत, तर्कशास्त्र, राजनीति शास्त्र, नीतिशास्त्र, जीव विज्ञान सहित कई विषयों पर रचना की। अरस्तु ने अपने गुरु प्लेटो के कार्य को आगे बढ़ाया। प्लेटो, सुकरात और अरस्तु पश्चिमी दर्शनशास्त्र के सबसे महान दार्शनिकों में एक थे।  उन्होंने पश्चिमी दर्शनशास्त्र पर पहली व्यापक रचना की, जिसमें नीति, तर्क, विज्ञान, राजनीति और आध्यात्म का मेलजोल था।  भौतिक विज्ञान पर अरस्तु के विचार ने मध्ययुगीन शिक्षा पर व्यापक प्रभाव डाला और इसका प्रभाव पुनर्जागरण पर भी पड़ा।  अंतिम रूप से न्यूटन के भौतिकवाद ने इसकी जगह ले लिया। जीव विज्ञान उनके कुछ संकल्पनाओं की पुष्टि उन्नीसवीं सदी में हुई।  उनके तर्कशास्त्र आज भी प्रासांगिक हैं।  उनकी आध्यात्मिक रचनाओं ने मध्ययुग में इस्लामिक और यहूदी विचारधारा को प्रभावित किया और वे आज भी क्रिश्चियन, खासकर रोमन कैथोलिक चर्च को प्रभावित कर रही हैं।  उनके दर्शन आज भी उच्च कक्षाओं में पढ़ाये जाते हैं।  अरस्तु ने अनेक रचनाएं की थी, जिसमें कई नष्ट हो गई। अरस्तु का राजनीति पर प्रसिद्ध ग्रंथ पोलिटिक्स है। .

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अल्गोरिद्म

महत्तम समापवर्तक (HCF) निकालने के लिए यूक्लिड के अल्गोरिद्म का फ्लोचार्ट गणित, संगणन तथा अन्य विधाओं में किसी कार्य को करने के लिये आवश्यक चरणों के समूह को कलन विधि (अल्गोरिद्म) कहते है। कलन विधि को किसी स्पष्ट रूप से पारिभाषित गणनात्मक समस्या का समाधान करने के औजार (tool) के रूप में भी समझा जा सकता है। उस समस्या का इनपुट और आउटपुट सामान्य भाषा में वर्णित किये गये रहते हैं; इसके समाधान के रूप में कलन विधि, क्रमवार ढंग से बताता है कि यह इन्पुट/आउटपुट सम्बन्ध किस प्रकार से प्राप्त किया जा सकता है। कुछ उदाहरण: १) कुछ संख्यायें बिना किसी क्रम के दी हुई हैं; इन्हें आरोही क्रम (ascending order) में कैसे सजायेंगे? २) दो पूर्णांक संख्याएं दी हुई हैं; उनका महत्तम समापवर्तक (Highest Common Factor) कैसे निकालेंगे ? .

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अष्टक

आठ का समूह ही अष्टक कहलाता है, जैसे गंगाष्टक जिसमें गंगा की स्तुति आठ श्लोकों में की गई है।- यथा गंगाष्टकं पठति य: प्रयत: प्रभाते, वाल्मीकिना विरचतिं सुखदं मनुष्य:" जो मनुष्य प्रभात समय में वाल्मीकि मुनि द्वारा रचित गंगाष्टक प्रएम पूर्वक पढता है, वह सुखी और प्रेम पूर्वक रहता है, इस प्रकार अनेक देवताओं की अष्टक स्तुतियाँ हैं। अष्टक.

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अवकल समीकरण

अवकल समीकरण (डिफरेंशियल ईक्वेशंस) उन संबंधों को कहते हैं जिनमें स्वतंत्र चर तथा अज्ञात परतंत्र चर के साथ-साथ उस परतंत्र चर के एक या अधिक अवकल गुणांक (डिफ़रेंशियल कोइफ़िशेंट्स) हों। यदि इसमें एक परतंत्र चर तथा एक ही स्वतंत्र चर भी हो तो संबंध को साधारण (ऑर्डिनरी) अवकल समीकरण कहते हैं। जब परतंत्र चल तो एक परंतु स्वतंत्र चर अनेक हों तो परतंत्र चर के खंडावकल गुणक (partial differentials) होते हैं। जब ये उपस्थित रहते हैं तब संबंध को आंशिक (पार्शियल) अवकल समीकरण कहते हैं। परतंत्र चर को स्वतंत्र चर के पर्दो में व्यंजित करने को अवकल समीकरण का हल करना कहा जाता है। यदि अवकल समीकरण में nवीं कक्षा (ऑर्डर) का अवकल गुणक हो और अधिक का नहीं, तो अवकल समीकरण nवीं कक्षा का कहलाता है। उच्चतम कक्षा के अवकल गुणक का घात (पॉवर) ही अवकल समीकरण का घात कहलाता है। घात ज्ञात करने के पहले समीकरण को भिन्न तथा करणी चिंहों से इस प्रकार मुक्त कर लेना चाहिए कि उसमें अवकल गुणकों पर कोई भिन्नात्मक घात न हो। अवकल समीकरण का अनुकलन सरल नहीं है। अभी तक प्रथम कक्षा के वे अवकल समीकरण भी पूर्ण रूप से हल नहीं हो पाए हैं। कुछ अवस्थाओं में अनुकलन संभव हैं, जिनका ज्ञान इस विषय की भिन्न-भिन्न पुस्तकों से प्राप्त हो सकता है। अनुकलन करने की विधियाँ सांकेतिक रूप में यहाँ दी जाती हैं। प्रयुक्त गणित, भौतिक विज्ञान तथा विज्ञान की अन्य शाखाओं में भौतिक राशियों को समय, स्थान, ताप इत्यादि स्वतंत्र चलों के फलनों में तुरंत प्रकट करना प्राय: कठिन हो जाता है। परंतु हम उनकी वृद्धि की दर तथा उसके अवकल गुणकों में कोई संबंध बहुधा बड़ी सुगमता से पा सकते हैं। इस प्रकार ऐसे अवकल समीकरण प्राप्त होते हैं जिन्हें पूर्वोक्त राशियाँ संतुष्ट करती हैं। इन्हें हल करना उन राशियों का ज्ञान प्राप्त करने के लिए आवश्यक होता है। इसलिए विज्ञान की उन्नति बहुत अंश तक अवकल समीकरण की प्रगति पर निर्भर है। .

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अवकलज

एक वक्र के विभिन्न बिन्दुओं पर प्रवणता (स्लोप) वास्तव में उस बिन्दु पर '''x''' के सापेक्ष '''y''' का मान बढ़ने की दर के बराबर होता है। किसी चर राशि के किसी अन्य चर राशि के सम्बन्ध में तात्कालिक बदलाव की दर की गणना को अवकलन (Differentiation) कहते हैं तथा इस क्रिया द्वारा प्राप्त दर को अवकलज (Derivative) कहते हैं। यह किसी फलन को किसी चर राशि के साथ बढ़ने की दर को मापता है। जैसे यदि कोई फलन y किसी चर राशि x पर निर्भर है और x का मान x1 से x2 करने पर y का मान y1 से y2 हो जाता है तो (y2-y1)/(x2-x1) को y का x के सन्दर्भ में अवकलज कहते हैं। इसे dy/dx से निरूपित किया जाता है। ध्यान रहे कि परिवर्तन (x2 - x1) सूक्ष्म से सूक्ष्मतम (tend to zero) होना चाहिये। इसीलिये सीमा (limit) का अवकलन में बहुत महत्वपूर्ण स्थान है। किसी वक्र (curve) का किसी बिन्दु पर प्रवणता (slope) जानने के लिये उस बिन्दु पर अवकलज की गणना करनी पड़ती है।; परिभाषा फलन ƒ का बिन्दु a पर अवकलज निम्नलिखित सीमा के बराबर होता है (बशर्ते सीमा का अस्तित्व हो) - यदि सीमा का अस्तित्व है तो ƒ बिन्दु a पर अवकलनीय कहलाता है।; उदाहरण d/dx (ज्या(x)) .

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अंतरिक्ष

किसी ब्रह्माण्डीय पिण्ड, जैसे पृथ्वी, से दूर जो शून्य (void) होता है उसे अंतरिक्ष (Outer space) कहते हैं। यह पूर्णतः शून्य (empty) तो नहीं होता किन्तु अत्यधिक निर्वात वाला क्षेत्र होता है जिसमें कणों का घनत्व अति अल्प होता है। इसमें हाइड्रोजन एवं हिलियम का प्लाज्मा, विद्युतचुम्बकीय विकिरण, चुम्बकीय क्षेत्र तथा न्युट्रिनो होते हैं। सैद्धान्तिक रूप से इसमें 'डार्क मैटर' dark matter) और 'डार्क ऊर्जा' (dark energy) भी होती है। .

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अंकगणित

पुणे में आर्यभट की मूर्ति ४७६-५५० अंकगणित (ग्रीक मेंΑριθμητική, जर्मन मेंArithmetik, अंग्रेजी मेंArithmetic) गणित की तीन बड़ी शाखाओं में से एक है। अंकों तथा संख्याओं की गणनाओं से सम्बंधित गणित की शाखा को अंकगणित कहा जाता हैं। यह गणित की मौलिक शाखा है तथा इसी से गणित की प्रारम्भिक शिक्षा का आरम्भ होता है। प्रत्येक मनुष्य अपने दैनिक जीवन में प्रायः अंकगणित का उपयोग करता है। अंकगणित के अन्तर्गत जोड़, घटाना, गुणा, भाग, भिन्न, दशमलव आदि प्रक्रियाएँ आती हैं। .

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उच्चिष्ठ और निम्निष्ठ

गणित में किसी फलन के सबसे अधिक और सबसे कम मान को उस फलन का उच्चिष्ट और निम्निष्ट (maximum and minimum; बहुवचन: maxima and minima) कहते हैं। उच्चिष्ट और निम्निष्ट को सम्मिलित रूप से चरम (extrema; एकवचन: extremum) कहते हैं। ये उच्चिष्ट और निम्निष्ट फलन के किसी सीमित क्षेत्र में हो सकते हैं अथवा उस फलन के सम्पूर्ण डोमेन में। फलन के किसी सीमित क्षेत्र में स्थित उच्चिष्ट और निम्निष्ट को 'स्थानीय चरम' (local or relative extremum) कहते हैं जबकि फलन के सम्पूर्ण डोमेन में फलन का जो सबसे अधिक/कम मान हो उसे 'ग्लोबल चरम' (global or absolute extremum) कहते हैं। पार्श्व चित्र में लोबल और लोकल चरम मान दिखाये गये हैं। इससे अधिक व्यापक रूप से कहें तो, किसी समुच्चय का उच्चिष्ट और निम्निष्ट, उस समुच्चय के सदस्यों में सबसे अधिक और सबसे कम मान वाले सदस्य होते हैं। फलनों के चरम मानों को निकालना ही इष्टतमकरण (optimization) का उद्देश्य है। .

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उत्तर भारत

उत्तरी भारत में अनेक भौगोलिक क्षेत्र आते हैं। इसमें मैदान, पर्वत, मरुस्थल आदि सभी मिलते हैं। यह भारत का उत्तरी क्षेत्र है। प्रधान भौगोलिक अंगों में गंगा के मैदान और हिमालय पर्वतमाला आती है। यही पर्वतमाला भारत को तिब्बत और मध्य एशिया के भागों से पृथक करती है। उत्तरी भारत मौर्य, गुप्त, मुगल एवं ब्रिटिश साम्राज्यों का ऐतिहासिक केन्द्र रहा है। यहां बहुत से हिन्दू तीर्थ जैसे पर्वतों में गंगोत्री से लेकर मैदानों में वाराणासी तक हैं, तो मुस्लिम तीर्थ जैसे अजमेर.

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उत्तर अफ़्रीका

उत्तर अफ़्रीका के देश (गहरे हरे रंग में) - हल्के हरे रंग के देश भी कभी-कभी उत्तर अफ़्रीका में माने जाते हैं तूनीशीया के सिदी बू सैद शहर की एक गली एटलस शृंखला के जबल तुबकल पहाड़ पर बर्फ़ तुनीसिया की एक बर्बर औरत (सन् 1900 के क़रीब ली गई तस्वीर) उत्तर अफ़्रीका (अरबी:, शुमाल अफ़्रीक़िया) अफ़्रीका के महाद्वीप का उत्तरी भाग है। इसके और उप-सहारा अफ़्रीका के दरमयान सहारा का विशाल रेगिस्तान आता है जो उत्तर अफ़्रीका और बाक़ी अफ़्रीका में इतना बड़ा फ़ासला बना देता है के उत्तर अफ़्रीका की जातियाँ, भाषाएँ, रीति-रिवाज, मौसम और जानवर बाक़ी अफ़्रीका के काफ़ी भिन्न हैं। संयुक्त राष्ट्र की परिभाषा के अनुसार उत्तर अफ़्रीका में सात राष्ट्र आते हैं: मोरक्को, अल्जीरिया, तूनीशीया, लीबिया, मिस्र, सूडान और पश्चिमी सहारा। इस भूभाग में कुछ छोटे-से स्पेन-नियंत्रित उत्तर अफ़्रीकी क्षेत्र भी आते हैं। उत्तर अफ़्रीका में अरबी, बर्बरी भाषाएँ और कुछ अन्य भाषाएँ बोली जाती हैं। मोरक्को, अल्जीरिया, तूनीशीया, लीबिया और मौरितानिया के समूह को "मग़रिब" भी कहा जाता है, जिसका अर्थ अरबी में (और हिन्दी-उर्दु में भी) "पश्चिमी" है। .

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उमर खय्याम

उमर खय्याम (1048–1131) फ़ारसी साहित्यकार, गणितज्ञ एवं ज्योतिर्विद थे। इनका जन्म उत्तर-पूर्वी फ़ारस के निशाबुर (निशापुर) में ग्यागरहीं सदी में एक ख़ेमा बनाने वाले परिवार में हुआ था। इन्होंने इस्लामी ज्योतिष को एक नई पहचान दी और इसके सुधारों के कारण सुल्तान मलिकशाह का पत्रा (तारीख़-ए-मलिकशाही), जलाली संवत या सेल्जुक संवत का आरंभ हुआ। इनकी रुबाईयों (चार पंक्तियों में लिखी एक प्रकार की कविता) को विश्व स्तरीय करने में अंग्रेज़ी कवि एडवर्ड फ़िज़्ज़ेराल्ड का बहुत योगदान रहा है। खय्याम ने ज्यामिति बीजगणित की स्थापना की, जिसमें उसने अल्जेब्रिक समीकरणों के ज्यामितीय हल प्रस्तुत किये। इसमें हाइपरबोला तथा वृत्त जैसी ज्यामितीय रचनाओं द्बारा क्यूबिक समीकरण का हल शामिल है। उसने अलजेब्रा में व्यापक द्विघात समीकरण का भी विचार दिया। खगोलशास्त्र में कार्य करते हुए उमर खय्याम ने एक सौर वर्ष की दूरी दशमलव के छः स्थानों तक शुद्ध प्राप्त की। इस आधार पर उसने एक नए कैलेंडर का आविष्कार किया। उस समय की ईरानी हुकूमत ने इसे जलाली कैलेंडर के नाम से लागू किया। वर्तमान ईरानी कैलंडर जलाली कैलेंडर का ही एक मानक रूप है। .

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उस्मानी साम्राज्य

उस्मानी सलतनत (१२९९ - १९२३) (या उस्मानी साम्राज्य या तुर्क साम्राज्य, उर्दू में सल्तनत-ए-उस्मानिया, उस्मानी तुर्कीयाई:دَوْلَتِ عَلِيّهٔ عُثمَانِیّه देव्लेत-इ-आलीय्ये-इ-ऑस्मानिय्ये) १२९९ में पश्चिमोत्तर अनातोलिया में स्थापित एक तुर्क राज्य था। महमद द्वितीय द्वारा १४९३ में क़ुस्तुंतुनिया जीतने के बाद यह एक साम्राज्य में बदल गया। प्रथम विश्वयुद्ध में १९१९ में पराजित होने पर इसका विभाजन करके इस पर अधिकार कर लिया गया। स्वतंत्रता के लिये संघर्ष के बाद २९ अक्तुबर सन् १९२३ में तुर्की गणराज्य की स्थापना पर इसे समाप्त माना जाता है। उस्मानी साम्राज्य सोलहवीं-सत्रहवीं शताब्दी में अपने चरम शक्ति पर था। अपनी शक्ति के चरमोत्कर्ष के समय यह एशिया, यूरोप तथा उत्तरी अफ़्रीका के हिस्सों में फैला हुआ था। यह साम्राज्य पश्चिमी तथा पूर्वी सभ्यताओं के लिए विचारों के आदान प्रदान के लिए एक सेतु की तरह था। इसने १४५३ में क़ुस्तुन्तुनिया (आधुनिक इस्ताम्बुल) को जीतकर बीज़ान्टिन साम्राज्य का अन्त कर दिया। इस्ताम्बुल बाद में इनकी राजधानी बनी रही। इस्ताम्बुल पर इसकी जीत ने यूरोप में पुनर्जागरण को प्रोत्साहित किया था। .

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