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ख़ालसा और जम्मू

शॉर्टकट: मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ

ख़ालसा और जम्मू के बीच अंतर

ख़ालसा vs. जम्मू

खालसा सिख धर्म के विधिवत् दीक्षाप्राप्त अनुयायियों सामूहिक रूप है। खालसा पंथ की स्थापना गुरु गोबिन्द सिंह जी ने १६९९ को बैसाखी वाले दिन आनंदपुर साहिब में की। इस दिन उन्होंने सर्वप्रथम पाँच प्यारों को अमृतपान करवा कर खालसा बनाया तथा तत्पश्चात् उन पाँच प्यारों के हाथों से स्वयं भी अमृतपान किया। सतगुरु गोबिंद सिंह ने खालसा महिमा में खालसा को "काल पुरख की फ़ौज" पद से निवाजा है। तलवार और केश तो पहले ही सिखों के पास थे, गुरु गोबिंद सिंह ने "खंडे बाटे की पाहुल" तयार कर कछा, कड़ा और कंघा भी दिया। इसी दिन खालसे के नाम के पीछे "सिंह" लग गया। शारीरिक देख में खालसे की भिन्ता नजर आने लगी। पर खालसे ने आत्म ज्ञान नहीं छोड़ा, उस का प्रचार चलता रहा और आवश्यकता पड़ने पर तलवार भी चलती रही। . जम्मू (جموں, पंजाबी: ਜੰਮੂ), भारत के उत्तरतम राज्य जम्मू एवं कश्मीर में तीन में से एक प्रशासनिक खण्ड है। यह क्षेत्र अपने आप में एक राज्य नहीं वरन जम्मू एवं कश्मीर राज्य का एक भाग है। क्षेत्र के प्रमुख जिलों में डोडा, कठुआ, उधमपुर, राजौरी, रामबन, रियासी, सांबा, किश्तवार एवं पुंछ आते हैं। क्षेत्र की अधिकांश भूमि पहाड़ी या पथरीली है। इसमें ही पीर पंजाल रेंज भी आता है जो कश्मीर घाटी को वृहत हिमालय से पूर्वी जिलों डोडा और किश्तवार में पृथक करता है। यहाम की प्रधान नदी चेनाब (चंद्रभागा) है। जम्मू शहर, जिसे आधिकारिक रूप से जम्मू-तवी भी कहते हैं, इस प्रभाग का सबसे बड़ा नगर है और जम्मू एवं कश्मीर राज्य की शीतकालीन राजधानी भी है। नगर के बीच से तवी नदी निकलती है, जिसके कारण इस नगर को यह आधिकारिक नाम मिला है। जम्मू नगर को "मन्दिरों का शहर" भी कहा जाता है, क्योंकि यहां ढेरों मन्दिर एवं तीर्थ हैं जिनके चमकते शिखर एवं दमकते कलश नगर की क्षितिजरेखा पर सुवर्ण बिन्दुओं जैसे दिखाई देते हैं और एक पवित्र एवं शांतिपूर्ण हिन्दू नगर का वातावरण प्रस्तुत करते हैं। यहां कुछ प्रसिद्ध हिन्दू तीर्थ भी हैं, जैसे वैष्णो देवी, आदि जिनके कारण जम्मू हिन्दू तीर्थ नगरों में गिना जाता है। यहाम की अधिकांश जनसंख्या हिन्दू ही है। हालांकि दूसरे स्थान पर यहां सिख धर्म ही आता है। वृहत अवसंरचना के कारण जम्मू इस राज्य का प्रमुख आर्थिक केन्द्र बनकर उभरा है। .

ख़ालसा और जम्मू के बीच समानता

ख़ालसा और जम्मू आम में 2 बातें हैं (यूनियनपीडिया में): बैसाखी, गुरु गोबिन्द सिंह

बैसाखी

बैसाखी नाम वैशाख से बना है। पंजाब और हरियाणा के किसान सर्दियों की फसल काट लेने के बाद नए साल की खुशियाँ मनाते हैं। इसीलिए बैसाखी पंजाब और आसपास के प्रदेशों का सबसे बड़ा त्योहार है। यह रबी की फसल के पकने की खुशी का प्रतीक है। इसी दिन, 13 अप्रैल 1699 को दसवें गुरु गोविंद सिंहजी ने खालसा पंथ की स्थापना की थी। सिख इस त्योहार को सामूहिक जन्मदिवस के रूप में मनाते हैं। .

ख़ालसा और बैसाखी · जम्मू और बैसाखी · और देखें »

गुरु गोबिन्द सिंह

गुरु गोबिन्द सिंह (जन्म: २२ दिसम्बर १६६६, मृत्यु: ७ अक्टूबर १७०८) सिखों के दसवें गुरु थे। उनके पिता गुरू तेग बहादुर की मृत्यु के उपरान्त ११ नवम्बर सन १६७५ को वे गुरू बने। वह एक महान योद्धा, कवि, भक्त एवं आध्यात्मिक नेता थे। सन १६९९ में बैसाखी के दिन उन्होने खालसा पन्थ की स्थापना की जो सिखों के इतिहास की सबसे महत्वपूर्ण घटना मानी जाती है। गुरू गोबिन्द सिंह ने सिखों की पवित्र ग्रन्थ गुरु ग्रंथ साहिब को पूरा किया तथा उन्हें गुरु रूप में सुशोभित किया। बिचित्र नाटक को उनकी आत्मकथा माना जाता है। यही उनके जीवन के विषय में जानकारी का सबसे महत्वपूर्ण स्रोत है। यह दसम ग्रन्थ का एक भाग है। दसम ग्रन्थ, गुरू गोबिन्द सिंह की कृतियों के संकलन का नाम है। उन्होने मुगलों या उनके सहयोगियों (जैसे, शिवालिक पहाडियों के राजा) के साथ १४ युद्ध लड़े। धर्म के लिए समस्त परिवार का बलिदान उन्होंने किया, जिसके लिए उन्हें 'सर्वस्वदानी' भी कहा जाता है। इसके अतिरिक्त जनसाधारण में वे कलगीधर, दशमेश, बाजांवाले आदि कई नाम, उपनाम व उपाधियों से भी जाने जाते हैं। गुरु गोविंद सिंह जहां विश्व की बलिदानी परम्परा में अद्वितीय थे, वहीं वे स्वयं एक महान लेखक, मौलिक चिंतक तथा संस्कृत सहित कई भाषाओं के ज्ञाता भी थे। उन्होंने स्वयं कई ग्रंथों की रचना की। वे विद्वानों के संरक्षक थे। उनके दरबार में ५२ कवियों तथा लेखकों की उपस्थिति रहती थी, इसीलिए उन्हें 'संत सिपाही' भी कहा जाता था। वे भक्ति तथा शक्ति के अद्वितीय संगम थे। उन्होंने सदा प्रेम, एकता, भाईचारे का संदेश दिया। किसी ने गुरुजी का अहित करने की कोशिश भी की तो उन्होंने अपनी सहनशीलता, मधुरता, सौम्यता से उसे परास्त कर दिया। गुरुजी की मान्यता थी कि मनुष्य को किसी को डराना भी नहीं चाहिए और न किसी से डरना चाहिए। वे अपनी वाणी में उपदेश देते हैं भै काहू को देत नहि, नहि भय मानत आन। वे बाल्यकाल से ही सरल, सहज, भक्ति-भाव वाले कर्मयोगी थे। उनकी वाणी में मधुरता, सादगी, सौजन्यता एवं वैराग्य की भावना कूट-कूटकर भरी थी। उनके जीवन का प्रथम दर्शन ही था कि धर्म का मार्ग सत्य का मार्ग है और सत्य की सदैव विजय होती है। .

ख़ालसा और गुरु गोबिन्द सिंह · गुरु गोबिन्द सिंह और जम्मू · और देखें »

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ख़ालसा और जम्मू के बीच तुलना

ख़ालसा 13 संबंध है और जम्मू 171 है। वे आम 2 में है, समानता सूचकांक 1.09% है = 2 / (13 + 171)।

संदर्भ

यह लेख ख़ालसा और जम्मू के बीच संबंध को दर्शाता है। जानकारी निकाला गया था, जिसमें से एक लेख का उपयोग करने के लिए, कृपया देखें:

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