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क्षपणक और संख्यावाची विशिष्ट गूढ़ार्थक शब्द

शॉर्टकट: मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ

क्षपणक और संख्यावाची विशिष्ट गूढ़ार्थक शब्द के बीच अंतर

क्षपणक vs. संख्यावाची विशिष्ट गूढ़ार्थक शब्द

तपस्वी जैन श्रमणों को जैन ग्रंथों में क्षपणक, क्षपण, क्षमण अथवा खबण कहा गया है। क्षपणक अर्थात कर्मों का क्षय करने वाला। महाभारत में नग्न जैन मूर्ति को क्षपणक कहा है। चाणक्यशतक में उल्लेख है कि जिस देश में नग्न क्षपणक रहते हो वहाँ धोबी का क्या काम ? (नग्नक्षपणके देशे रजक किं करिष्यति ?) राजा विक्रमादित्य की सभा में क्षपणक को एक रत्न बताया गया है। यह संकेत सिद्धसेन दिवाकर की ओर जान पड़ता है। मुद्राराक्षस नाटक में जीवसिद्धि क्षपणक को अर्हतों का अनुयायी बताया गया है। यह चाणक्य का अंतरंग मित्र था और ज्योतिषशास्त्र के अनुसार शुभ-अशुभ नक्षत्रों का बखान करता था। बौद्ध भिक्षु को 'भई क्षपणक' कहा गया है। संस्कृत के आर्वाचीन कोशकारों ने मागध अथवा स्तुतिपाठक के अर्थ में इस शब्द का प्रयोग किया है। . हिन्दी भाषी क्षेत्र में कतिपय संख्यावाची विशिष्ट गूढ़ार्थक शब्द प्रचलित हैं। जैसे- सप्तऋषि, सप्तसिन्धु, पंच पीर, द्वादश वन, सत्ताईस नक्षत्र आदि। इनका प्रयोग भाषा में भी होता है। इन शब्दों के गूढ़ अर्थ जानना बहुत जरूरी हो जाता है। इनमें अनेक शब्द ऐसे हैं जिनका सम्बंध भारतीय संस्कृति से है। जब तक इनकी जानकारी नहीं होती तब तक इनके निहितार्थ को नहीं समझा जा सकता। यह लेख अभी निर्माणाधीन हॅ .

क्षपणक और संख्यावाची विशिष्ट गूढ़ार्थक शब्द के बीच समानता

क्षपणक और संख्यावाची विशिष्ट गूढ़ार्थक शब्द आम में एक बात है (यूनियनपीडिया में): महाभारत

महाभारत

महाभारत हिन्दुओं का एक प्रमुख काव्य ग्रंथ है, जो स्मृति वर्ग में आता है। कभी कभी केवल "भारत" कहा जाने वाला यह काव्यग्रंथ भारत का अनुपम धार्मिक, पौराणिक, ऐतिहासिक और दार्शनिक ग्रंथ हैं। विश्व का सबसे लंबा यह साहित्यिक ग्रंथ और महाकाव्य, हिन्दू धर्म के मुख्यतम ग्रंथों में से एक है। इस ग्रन्थ को हिन्दू धर्म में पंचम वेद माना जाता है। यद्यपि इसे साहित्य की सबसे अनुपम कृतियों में से एक माना जाता है, किन्तु आज भी यह ग्रंथ प्रत्येक भारतीय के लिये एक अनुकरणीय स्रोत है। यह कृति प्राचीन भारत के इतिहास की एक गाथा है। इसी में हिन्दू धर्म का पवित्रतम ग्रंथ भगवद्गीता सन्निहित है। पूरे महाभारत में लगभग १,१०,००० श्लोक हैं, जो यूनानी काव्यों इलियड और ओडिसी से परिमाण में दस गुणा अधिक हैं। हिन्दू मान्यताओं, पौराणिक संदर्भो एवं स्वयं महाभारत के अनुसार इस काव्य का रचनाकार वेदव्यास जी को माना जाता है। इस काव्य के रचयिता वेदव्यास जी ने अपने इस अनुपम काव्य में वेदों, वेदांगों और उपनिषदों के गुह्यतम रहस्यों का निरुपण किया हैं। इसके अतिरिक्त इस काव्य में न्याय, शिक्षा, चिकित्सा, ज्योतिष, युद्धनीति, योगशास्त्र, अर्थशास्त्र, वास्तुशास्त्र, शिल्पशास्त्र, कामशास्त्र, खगोलविद्या तथा धर्मशास्त्र का भी विस्तार से वर्णन किया गया हैं। .

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संदर्भ

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