क्लोरीन और सिस्टिक फाइब्रोसिस
शॉर्टकट: मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ।
क्लोरीन और सिस्टिक फाइब्रोसिस के बीच अंतर
क्लोरीन vs. सिस्टिक फाइब्रोसिस
क्लोरीन (यूनानी: χλωρóς (ख्लोरोस), 'फीका हरा') एक रासायनिक तत्व है, जिसकी परमाणु संख्या १७ तथा संकेत Cl है। ऋणात्मक आयन क्लोराइड के रूप में यह साधारण नमक में उपस्थित होती है और सागर के जल में घुले लवण में प्रचुर मात्रा में पाई जाती है।। हिन्दुस्तान लाइव। ३१ मई २०१० सामान्य तापमान और दाब पर क्लोरीन (Cl2 या "डाईक्लोरीन") गैस के रूप में पायी जाती है। इसका प्रयोग तरणतालों को कीटाणुरहित बनाने में किया जाता है। यह एक हैलोजन है और आवर्त सारणी में समूह १७ (पूर्व में समूह ७, ७ए या ७बी) में रखी गयी है। यह एक पीले और हरे रंग की हवा से हल्की प्राकृतिक गैस जो एक निश्चित दाब और तापमान पर द्रव में बदल जाती है। यह पृथ्वी के साथ ही समुद्र में भी पाई जाती है। क्लोरीन पौधों और मनुष्यों के लिए आवश्यक है। इसका प्रयोग कागज और कपड़े बनाने में किया जाता है। इसमें यह ब्लीचिंग एजेंट (धुलाई करने वाले/ रंग उड़ाने वाले द्रव्य) के रूप में काम में लाई जाती है। वायु की उपस्थिति में यह जल के साथ क्रिया कर हाइड्रोक्लोरिक अम्ल का निर्माण करती है। मूलत: गैस होने के कारण यह खाद्य श्रृंखला का भाग नहीं है। यह गैस स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होती है। तरणताल में इसका प्रयोग कीटाणुनाशक की तरह किया जाता है। साधारण धुलाई में इसे ब्लीचिंग एजेंट रूप में प्रयोग करते हैं। ब्लीच और कीटाणुनाशक बनाने के कारखाने में काम करने वाले लोगों में इससे प्रभावित होने की आशंका अधिक रहती है। यदि कोई लंबे समय तक इसके संपर्क में रहता है तो उसके स्वास्थ्य पर हानिकारक प्रभाव पड़ता है। इसकी तेज गंध आंखों, त्वचा और श्वसन तंत्र के लिए हानिकारक होती है। इससे गले में घाव, खांसी और आंखों व त्वचा में जलन हो सकती है, इससे सांस लेने में समस्या होती है। . सिस्टिक फाइब्रोसिस के लक्षण और उसके सिम्पटम्स। सिस्टिक फाय्ब्रोसिस (Cystic fibrosis) एक अनुवांशिक रोग है जो शरीर के कई भागों को प्रभावित करता है, जिनमें जिगर, अग्न्याशय (पेंक्रिआज), मूत्राशय के अंग, जननांग और पसीने की ग्रंथियां शामिल हैं। इन अंगों में पाए जाने वाली कुछ विशिष्ट कोशिकाएं प्रायः लार और जलीय स्राव उत्पन्न करते हैं, परन्तु सिस्टिक फाय्ब्रोसिस में ये कोशिकाएं सामान्य से अधिक गाढ़ा स्राव उत्पन्न करतीं हैं। इससे शरीर का जलीय संतुलन बिगड़ता है और लवण-प्रबन्धन की क्षमता प्रभावित होती है जिससे कई अन्य प्रकार की समस्याएं पैदा होती हैं। उदाहरण के लिए, फेफड़ों में ये गाढ़े स्राव कीटाणुओं को समाहित कर लेते हैं, जिससे बार-बार फेफड़ों के संक्रमण होते हैं। पेंक्रिआज में ये गाढ़े स्राव पेनक्रिएटिक जूस के सामान्य प्रवाह को अवरुद्ध कर देते हैं, जिससे शरीर के लिए वसा और वसा में घुलनशील विटामिनों को पचाना और अवशोषित करना अधिक जटिल हो जाता है। इससे मुख्य रूप से शिशुओं में पोषण सम्बन्धी समस्याएं हो सकती हैं। सिस्टिक फाय्ब्रोसिस से सम्बंधित अन्य समस्याओं में शामिल है साइन्एसाईटस, नेज़ल पोलिप्स, इसाफ्गाईटस, पैनक्रिएटाइटस, लीवर सिरोह्सिस, रेक्टल प्रोलैप्स, डायबिटीज और इनफर्टिलिटी, जो कि मुख्यतया पुरुषों में पाई जाती है। सिस्टिक फाय्ब्रोसिस को विकसित होने के लिए व्यक्ति में दो अनुवांशिक सिस्टिक फाय्ब्रोसिस ज़ीन आने चाहियें, जिसमें प्रत्येक मूल जनक से एक आना चाहिए। वे व्यक्ति जिनमें वंशानुक्रम से केवल एक सिस्टिक फाय्ब्रोसिस ज़ीन आता है उन्हें "सिस्टिक फाय्ब्रोसिस कैरियर्स" कहा जाता है। वे बच्चों में सिस्टिक फाय्ब्रोसिस ज़ीन स्थानांतरित तो कर सकते हैं पर वे स्वयं इस रोग से प्रभावित नहीं होते। .
क्लोरीन और सिस्टिक फाइब्रोसिस के बीच समानता
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संदर्भ
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