क्रिया योग और परमहंस योगानन्द
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क्रिया योग और परमहंस योगानन्द के बीच अंतर
क्रिया योग vs. परमहंस योगानन्द
क्रिया योग की साधना करने वालों के द्वारा इसे एक प्राचीन योग पद्धति के रूप में वर्णित किया जाता है, जिसे आधुनिक समय में महावतार बाबाजी के शिष्य लाहिरी महाशय के द्वारा 1861 के आसपास पुनर्जीवित किया गया और परमहंस योगानन्द की पुस्तक ऑटोबायोग्राफी ऑफ़ ए योगी (एक योगी की आत्मकथा) के माध्यम से जन सामान्य में प्रसारित हुआ। इस पद्धति में प्राणायाम के कई स्तर होते है जो ऐसी तकनीकों पर आधारित होते हैं जिनका उद्देश्य आध्यात्मिक विकास की प्रक्रिया को तेज़ करना और प्रशान्ति और ईश्वर के साथ जुड़ाव की एक परम स्थिति को उत्पन्न करना होता है। इस प्रकार क्रिया योग ईश्वर-बोध, यथार्थ-ज्ञान एवं आत्म-साक्षात्कार प्राप्त करने की एक वैज्ञानिक प्रणाली है। परमहंस योगानन्द के अनुसार क्रियायोग एक सरल मनःकायिक प्रणाली है, जिसके द्वारा मानव-रक्त कार्बन से रहित तथा ऑक्सीजन से प्रपूरित हो जाता है। इसके अतिरिक्त ऑक्सीजन के अणु जीवन प्रवाह में रूपान्तरित होकर मस्तिष्क और मेरूदण्ड के चक्रों को नवशक्ति से पुनः पूरित कर देते है। प्रत्यक्छ प्राणशक्तिके द्वारा मन को नियन्त्रित करनेवाला क्रियायोग अनन्त तक पहुँचने के लिये सबसे सरल प्रभावकारी और अत्यन्त वैज्ञानिक मार्ग है। बैलगाड़ी के समान धीमी और अनिश्चित गति वाले धार्मिक मार्गों की तुलना में क्रियायोग द्वारा ईश्वर तक पहुँचने के मार्ग को विमान मार्ग कहना उचित होगा। क्रियायोग की प्रक्रिया का आगे विश्लेषण करते हुये वे कहते हैं कि मनुष्य की श्वशन गति और उसकी चेतना की भिन्न भिन्न स्थिति के बीत गणितानुसारी सम्बन्ध होने के अनेक उदाहरण दिये जा सकते हैं। मन की एकाग्रता धीमे श्वसन पर निर्भर है। तेज या विषम श्वास भय, काम क्रोध आदि हानिकर भावावेगों की अवस्था का सहचर है। . परमहंस योगानन्द (5 जनवरी 1893 – 7 मार्च 1952), बीसवीं सदी के एक आध्यात्मिक गुरू, योगी और संत थे। उन्होंने अपने अनुयायियों को क्रिया योग उपदेश दिया तथा पूरे विश्व में उसका प्रचार तथा प्रसार किया। योगानंद के अनुसार क्रिया योग ईश्वर से साक्षात्कार की एक प्रभावी विधि है, जिसके पालन से अपने जीवन को संवारा और ईश्वर की ओर अग्रसर हुआ जा सकता है। योगानन्द प्रथम भारतीय गुरु थे जिन्होने अपने जीवन के कार्य को पश्चिम में किया। योगानन्द ने १९२० में अमेरिका के लिए प्रस्थान किया। संपूर्ण अमेरिका में उन्होंने अनेक यात्रायें की। उन्होंने अपना जीवन व्याख्यान देने, लेखन तथा निरन्तर विश्व व्यापी कार्य को दिशा देने में लगाया। उनकी उत्कृष्ट आध्यात्मिक कृति योगी कथामृत (An Autobiography of a Yogi) की लाखों प्रतिया बिकीं और सर्वदा बिकने वाली आध्यात्मिक आत्मकथा रही हँ। .
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