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क्यूबा की क्रांति और फिदेल कास्त्रो

शॉर्टकट: मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ

क्यूबा की क्रांति और फिदेल कास्त्रो के बीच अंतर

क्यूबा की क्रांति vs. फिदेल कास्त्रो

300px फिदेल कास्त्रो द्वारा २६ जुलाई को क्यूबा के राष्ट्रपति फल्गेंसियो बतिस्ता (Fulgencio Batista) के विरुद्ध किया गया सशस्त्र विद्रोह क्यूबा की क्रान्ति (1953–1959) कहलाता है। जुलाई १९५३ में आरम्भ हुआ यह विप्लव १ जनवरी १९५९ को समाप्त हुआ जब क्यूबा की सरकार अपदस्थ करके क्रान्तिकारी समाजवादी राज्य की स्थापना हुई। यह आन्दोलन बाद के वर्षों में साम्यवादी रास्ते पर चल पड़ा और अक्टूबर १९६५ में कम्युनिस्ट पार्टी बनी। वर्तमान समय में साम्यवादी दल के नेता केस्त्रो के भाई राउल (Raúl) हैं। पचास के दशक के अन्तिम वर्ष में घटित हुई क्यूबा की सशस्त्र क्रांति अमेरिकी साम्राज्यवाद पर राष्ट्रवाद और मार्क्सवाद के गठजोड़ की विजय के तौर पर जानी जाती है। इस क्रांति का नेतृत्व फ़िदेल कास्त्रो के संगठन ‘26 जुलाई मूवमेंट’ के हाथों में था। सारे विश्व के वामपंथी युवाओं को अनुप्राणित करने वाली चे गुएवारा जैसी हस्ती इसी क्रांति की देन थी। 1 जनवरी, 1959 को क्रांति की सफलता के कारण क्यूबा के तानाशाह फुलगेनसियों बतिस्ता को देश छोड़ कर भाग जाना पड़ा, और युवा छापामार योद्धाओं ने सत्ता पर अधिकार कर लिया। क्रांति की यह प्रक्रिया अपने अनूठेपन के कारण हथियारबंद तरीकों से सत्ता पर कब्ज़ा करने की एक विशिष्ट विधि के रूप में चर्चित हुई। इसके पैरोकारों ने दावा किया कि प्रतिबद्ध छापामारों का दल क्रांति सम्पन्न कर सकता है और उसके लिए व्यापक जनता को गोलबंद करने या उनकी राजनीतिक चेतना उन्नत करने के लिए दीर्घकालीन प्रयास करना एक पूर्व-शर्त नहीं है। संयुक्त राज्य अमेरिका ने क्यूबा में फ़िदेल कास्त्रो के शासन को अपदस्थ करने की कई कोशिशें कीं, लेकिन वह नाकाम रहा। धीरे-धीरे क्यूबा न केवल उत्तरी अमेरिका में बल्कि सारी दुनिया में अमेरिका विरोध का ध्रुव बनता चला गया। नब्बे के दशक में सारी दुनिया में समाजवादी खेमा ढह जाने के बावजूद क्यूबा में कम्युनिस्ट शासन आज तक जारी है। क्यूबा की क्रांति का मूल उसके औपनिवेशिक अतीत में निहित है। लातीनी अमेरिका के अधिकतर देशों ने 1810- 25 के बीच स्पेनी (और पुर्तगाली) उपनिवेशवाद से आजादी हासिल कर ली थी। लेकिन क्यूबा 1898 तक स्पेनी उपनिवेश बना रहा। इस तरह यह अमेरिकी महाद्वीप में सबसे अंत में आज़ाद होने वाला देश था। अंततः इसे जोसे मार्ती के नेतृत्व में हुए दूसरे स्वतंत्रता संग्राम (1895-98) में आज़ादी तो हासिल हुई, लेकिन स्वतंत्रता सेनानियों का सत्ता पर कब्ज़ा नहीं हुआ। क्यूबा रणनीतिक दृष्टि से संयुक्त राज्य अमेरिका के लिए बहुत ही महत्त्वपूर्ण था। इसके अलावा यहाँ होने वाली गन्ने की खेती पर भी अमेरिका की नजर थी। इसलिए अमेरिका ने यहाँ की राजनीति में खुल कर दिलचस्पी ली और अपने हित साधने के लिए तैयार शासकों को समर्थन दिया। इस प्रक्रिया में क्यूबा की स्थिति ऐसी हो गयी जैसे एक औपनिवेशिक शासक की जगह दूसरा औपनिवेशिक शासक आ गया हो। इस घटनाक्रम का परिणाम यह निकला कि क्यूबा का राष्ट्रीय मुक्ति आंदोलन अमेरिका के प्रभाव और नियंत्रण के विरुद्ध संघर्ष बन गया। 1933 के आंदोलन को क्यूबा की क्रांति के विकास के अगले अध्याय के रूप में देखा जाना चाहिए। इसने स्वतंत्रता के संघर्ष में एक नये चरण की ओर संकेत किया। सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि इस आंदोलन ने ख़ुद को श्रमिक वर्ग के संगठन और समाजवादी परम्परा के संदर्भ में परिभाषित किया। इस आंदोलन के कारण ही कुछ समय के लिए क्यूबा में प्रगतिशील सरकार बनी। लेकिन इसके थोड़े ही समय बाद सत्ता बतिस्ता के हाथ में आ गयी जिसने फिर से क्यूबा को अमेरिकी आर्थिक और राजनीतिक हितों से जोड़ दिया। दरअसल, बतिस्ता और उसके आंदोलन ने क्यूबा में जेराडो मकाडो की तानाशाही समाप्त करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी थी। 1933 में वह सेना का प्रमुख था। उस समय क्यूबा का शासन चलाने वाली पाँच सदस्यीय प्रेसीडेंसी पर उसका प्रभावकारी नियंत्रण था। 1940 तक दिखावटी राष्ट्रपतियों पर नियंत्रण रखने वाला बतिस्ता इसी वर्ष ख़ुद राष्ट्रपति बन गया। उसने क्यूबा में नया संविधान लागू किया। वह अपने समय के हिसाब से प्रगतिशील था। 1944 में राष्ट्रपति के रूप में अपना कार्यकाल पूरा करने के बाद वह अमेरिका गया और 1952 में वापस आ कर राष्ट्रपति का चुनाव लड़ा। चुनावों में हारने के बाद बतिस्ता ने सेना की मदद से तख्तापलट करके 1952 में अपनी तानाशाही कायम कर ली। बहरहाल, 1933 के घटनाक्रम के बाद राष्ट्रवादी राजनीति की धाराएँ उभरने लगी थीं। एक ओर आर्टोडॉक्स थे जो मार्ती की परम्परा पर जोर देते थे। दूसरी ओर, डायरेक्टोरियो रेवोल्यूशनेरियो थे जो 1933 में हुए आंदोलन के नेता आंटोनियो गुटेरस से प्रभावित थे। ये दमनकारी राज्य के खिलाफ हिंसक कार्रवाई पर जोर देते थे। फ़िदेल कास्त्रो भी इसी विचार से प्रभावित थे, लेकिन उन पर मार्ती के जुझारू व्यक्तित्व का भी काफी प्रभाव था। 1933 के बाद के दौर में क्यूबा की कम्युनिस्ट पार्टी, जिसकी स्थापना 1925 में हुई थी, सोवियत संघ के प्रभाव में अपनी कार्यदिशा बदलती रही। 1935 के बाद वह बतिस्ता के साथ सहयोग करने लगी। इसलिए क्रांतिकारी राष्ट्रवाद पर विश्वास करने वाले फ़िदेल कास्त्रो जैसे युवक कम्युनिस्टों को संदेह की निगाह से देखने लगे। दूसरी ओर कम्युनिस्टों ने भी रैडिकल राष्ट्रवादियों की इस आधार पर आलोचना की कि वे वर्ग आधारित विश्लेषण के बजाय राष्ट्रवाद के नाम पर लोगों को संगठित करने की कोशिश कर रहे हैं। बायें से दांये: फिदेल कास्त्रो, Osvaldo Dorticós, चे गुएरा, Regino Boti, Augusto Martínez तथा Antonio Núñez. ०५ मार्च १९६० को हवाना के में क्युब्रे (Coubre) विस्फोट के शिकार लोगों की याद में मार्च 1952 के बाद क्रांति की अगुआयी के लिए डायरेक्टोरियो और कास्त्रो के बीच नेतृत्व के लिए होड़ शुरू हो गयी जो आगे भी चलती रही। लेकिन इन दोनों में समानता यह थी कि ये दोनों ही 1933 के संघर्षों को अपनी बुनियाद मानते थे। 26 जुलाई, 1953 में आर्टोडॉक्सो समूह के युवकों ने सेना पर हमला किया। इस समूह में फ़िदेल कास्त्रो भी शामिल थे। यह हमला बेहद प्रभावशाली था और इसमें बतिस्ता की सेना के बहुत से जवान मारे गये। लेकिन इसके परिणामस्वरूप कास्त्रो और बाकी विद्रोहियों को गिरक्रतार भी होना पड़ा। बतिस्ता ने पकड़े गये विद्रोहियों में से कई को बहुत प्रताड़ित किया और बहुतों को मौत की सजा भी सुनायी गयी। ख़ुद कास्त्रो पर भी मुकदमा चलाया गया और उन्हें 15 साल की सजा दी गयी। मुकदमे के दौरान कास्त्रो द्वारा अपने बचाव में दी गयी दलीलों का ऐतिहासिक महत्त्व है। उन्होंने देश में फैले भ्रष्टाचार पर हमला किया और 1940 के उदारतावादी संविधान को फिर से लागू करने पर बल दिया। कास्त्रो ने छोटे किसानों को जमीन का पट्टा देने, विदेशी स्वामित्व वाली बड़ी सम्पत्तियों के राष्ट्रीयकरण और दूसरे देशों के लोगों के स्वामित्व वाले कारख़ानों में मजदूरों को फायदा देने जैसे कार्यक्रमों की माँग की। इसके अलावा कास्त्रो ने सार्वजनिक सेवाओं के राष्ट्रीयकरण, लगान में कटौती और शिक्षा में सुधार पर भी बल दिया। इस तरह कास्त्रो ने क्रांति के बाद के क्यूबा की तस्वीर पेश की। फ़िदेल कास्त्रो और दूसरे बागी नेताओं के साथ हुए बरताव ने जन-आक्रोश को भी बढ़ाया। इसके विरोध में हुए विरोध प्रदर्शनों के कारण जुलाई, 1955 में एमनेस्टी लॉ का इस्तेमाल करके कास्त्रो को जेल से रिहा कर दिया गया। कास्त्रो इसके छह हक्रते बाद देश छोड़ कर मैक्सिको चले गये लेकिन उन्होंने वायदा किया वे अपने संघर्ष को आगे बढ़ाने के लिए वापस आयेंगे। कास्त्रो के विदेश जाने के बाद भी उनके द्वारा बनाया गया संगठन सक्रिय रहा जिसे 26 जुलाई मूवमेंट (जे- 26-एम) के नाम से जाना गया। कास्त्रो का लक्ष्य बिल्कुल स्पष्ट था। वे नये सशस्त्र विद्रोहियों की सेना तैयार करना चाहते थे। उन्हें भरोसा था कि क्रांतिकारियों की कार्रवाई से जन-विद्रोह पैदा होगा। इसी नजरिये के तहत मैक्सिको में फ़िदेल कास्त्रो ने अपने हथियारबंद गुरिल्ला दस्ते तैयार करने की कोशिश की। इसके अलावा वे राजनीतिक गठजोड़ बनाने की कोशिश भी करते रहे। यहीं उनकी मुलाकात एक युवा दंत-चिकित्सक अर्नेस्टो चे गुएवारा से हुई। दोनों ही गुरिल्ला युद्ध द्वारा क्रांति करने की संकल्पना पर सहमत थे। दोनों को ही स्पेनिश युद्ध के वरिष्ठ योद्धा अलबर्टो बायो ने मैक्सिको में चाल्को के एक फार्म में प्रशिक्षित किया। कास्त्रो और चे ने दिसम्बर, 1956 में मोटर विसेज ग्रेनमा से 82 गुरिल्ला लड़ाकों के साथ क्यूबा वापस आने की योजना बनायी। लेकिन जब 3 दिसम्बर, 1956 को वे क्यूबा के तट पर पहुँचे तो इन्हें बतिस्ता के सैनिकों का सामना करना पड़ा। उनकी मदद के लिए जे-26-एम के शहरी इलाकों के सदस्य आये थे, लेकिन वे इंतज़ार करके चले गये क्योंकि कास्त्रो के छापामार निश्चित तारीख (30 नवंबर) के बजाय काफ़ी देर से पहुँचे थे। बतिस्ता के सैनिकों के हमले में अधिकांश गुरिल्ला लड़ाके मारे गये। लेकिन फ़िदेल, चे और फ़िदेल के छोटे भाई राउल कास्त्रो इस हमले में बच गये। तकरीबन 15 दिनों के बाद घायल अवस्था में ये लोग सियेरा मेस्तरा के जंगलों में एक-दूसरे से मिले। उन्होंने शहर में जे-26-एम से सम्पर्क कायम किया और जंगलों में ही गुरिल्ला लड़ाकों को इकट्ठा करना शुरू कर दिया। लेकिन यहाँ के ग़रीब किसानों को प्रशिक्षित क्रांतिकारी बनाना बहुत मुश्किल था। किसान कभी भी क्रांति का काम छोड़ कर खेती करने के लिए वापस जाने को तैयार रहते थे। या विरोधी ख़ेमा उन्हें पैसे आदि का लालच देकर अपने पक्ष में खींच सकता थे। चे गुएवारा के लिए यह ज़्यादा चिंता की बात थी। इसलिए उन्होंने सख्त अनुशासन तथा अनुशासन तोड़ने वाले को सख्त सजा देने पर बल दिया। दूसरी तरफ़ एक समस्या यह भी थी कि क्यूबा में काम करने वाले दूसरे क्रांतिकारी संगठन, मसलन डायरेक्टोरियो और 26 जुलाई मूवमेंट, का शहरी नेतृत्व कास्त्रो और चे की गुरिल्ला योजनाओं से पूरी तरह सहमत नहीं था। क्यूबा कम्युनिस्ट पार्टी भी इनकी आलोचक थी। ख़ुद चे और फ़िदेल के बीच भी कम्युनिस्ट लक्ष्यों को लेकर मतभेद था। चे का ज्यादा जोर मार्क्सवाद की ओर था, जबकि कास्त्रो पर क्यूबाई राष्ट्रवाद का गहरा प्रभाव था। बहरहाल, धीरे-धीरे जे-26-एम पर कास्त्रो ख़ेमे का प्रभाव हो गया और इस दल के शहरी ख़ेमे के नेता फ्रैंक पायस की 30 जुलाई, 1957 को हत्या कर दी गयी। अप्रैल 1958 में कास्त्रो ने अपने दल की ओर से पूर्ण युद्ध घोषणा-पत्र जारी किया। इसमें उन्होंने लोगों से अप्रैल, 1958 में आम हड़ताल करने का आह्वान किया। यद्यपि यह हड़ताल बहुत सफल नहीं रही, लेकिन इसने बतिस्ता के ख़िलाफ़ विरोध को और ज़्यादा बढ़ाया। इसके कारण कास्त्रो अन्य समूहों से अधिक नजदीकी सहयोग कायम करने के लिए प्रेरित हुए। 20 जुलाई को उन्होंने एकता घोषणा-पत्र जारी किया। इस पर डयरेक्टेरियो और जे-एम-26 सहित आठ संगठनों ने अपने हस्ताक्षर किये। लेकिन क्यूबा की कम्युनिस्ट पार्टी ने इसमें शामिल नहीं हुई। बहरहाल, यह घोषणा-पत्र बतिस्ता के विरोधियों के एकजुट होने का भी प्रमाण था। इसमें लोकतांत्रिक और संवैधानिक अधिकारों को कायम करने की पूरी योजना पेश की गयी। यह घोषणा-पत्र एक तरह से इस बात का भी प्रमाण था कि बाकी विद्रोही समूह भी फ़िदेल कास्त्रो के नेतृत्व को स्वीकार करने लगे थे। धीरे-धीरे बतिस्ता की सत्ता पर पकड़ भी कमज़ोर होती गयी। नवम्बर में वैधता हासिल करने के लिए बतिस्ता शासन ने दिखावे के लिए चुनाव कराये। इन चुनावों में बड़े पैमाने पर धाँधली हुई, इसलिए इसके नतीजों को कोई वैधता नहीं मिली। बतिस्ता और विद्रोही समूहों के बीच बढ़ता टकराव दिसम्बर में चरम पर पहुँच गया। दिसम्बर, 1958 में कास्त्रो के सहयोगी चे ने सेंटा कालरा शहर में 350 छापामारों के साथ बतिस्ता के चार हज़ार गार्डों को तीन दिन की लड़ाई के बाद हरा दिया। इसमें चे ने रणनीतिक कुशलता का परिचय देते हुए उस ट्रेन को शहर में आने से रोक दिया जिसमें रक्षक दल के लिए हथियार आ रहे थे। सरकारी सेना हार गयी। इसके तीन दिन बाद 31 दिसम्बर, 1958 को बतिस्ता देश छोड़कर भाग गया। बीसवीं सदी के इतिहास में क्यूबा की क्रांति का महत्त्वपूर्ण स्थान है। इसने यह दिखाया कि किस तरह युवा लड़ाके गुरिल्ला छापामार युद्ध के द्वारा सत्ता में बदलाव कर सकते हैं। अमेरिका के विरोध के बावजूद क्रांतिकारी सफल हुए। अमेरिका ने क्रांति के बाद काफ़ी कोशिशें कीं लेकिन वह क्यूबा में फ़िदेल के शासन और प्रभाव को ख़त्म नहीं कर पाया। अमूमन क्यूबा की क्रांति में फ़िदेल, चे और उनके दल 26-एम जुलाई के योगदान पर ही बल दिया जाता है। लेकिन क्यूबा के भीतर के दूसरे समूहों, उदाहरण के लिये, डायरेक्टोरियो ने भी इसमें महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी थी। फ़िदेल कास्त्रो और उनका दल क्रांतिकारी राष्ट्रवाद द्वारा प्रगतिशील समाजवादी लक्ष्यों को हासिल करना चाहता था। लेकिन इस क्रांति और इसके बाद सामने आयी व्यवस्था में लोकतांत्रिक स्वतंत्रताओं और मूल्यों को कोई तरजीह नहीं दी गयी। चे ग्वेवारा ने बाद में क्यूबाई क्रांति के मॉडल को दूसरी जगहों पर भी लागू करने की कोशिश की लेकिन उन्हें नाकामी हाथ लगी। . फिदेल ऐलेजैंड्रो कास्त्रो रूज़ (जन्म: 13 अगस्त 1926 - मृत्यु: 25 नवंबर 2016) क्यूबा के एक राजनीतिज्ञ और क्यूबा की क्रांति के प्राथमिक नेताओं में से एक थे, जो फ़रवरी 1959 से दिसम्बर 1976 तक क्यूबा के प्रधानमंत्री और फिर क्यूबा की राज्य परिषद के अध्यक्ष (राष्ट्रपति) रहे, उन्होंने फरवरी 2008 में अपने पद से इस्तीफा दिया। फ़िलहाल वे क्यूबा की कम्युनिस्ट पार्टी के प्रथम सचिव थे। 25 नवंबर 2016 को उनका निधन हो गया। वे एक अमीर परिवार में पैदा हुए और कानून की डिग्री प्राप्त की। जबकि हवाना विश्वविद्यालय में अध्ययन करते हुए उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन की शुरूआत की और क्यूबा की राजनीति में एक मान्यता प्राप्त व्यक्ति बन गए। उनका राजनीतिक जीवन फुल्गेंकियो बतिस्ता शासन और संयुक्त राज्य अमेरिका का क्यूबा के राष्ट्रहित में राजनीतिक और कारपोरेट कंपनियों के प्रभाव के आलोचक रहा है। उन्हें एक उत्साही, लेकिन सीमित, समर्थक मिले और उन्होंने अधिकारियों का ध्यान आकर्षित किया। उन्होंने मोंकाडा बैरकों पर 1953 में असफल हमले का नेतृत्व किया जिसके बाद वे गिरफ्तार हो गए, उन पर मुकदमा चला, वे जेल में रहे और बाद में रिहा कर दिए गए। इसके बाद बतिस्ता के क्यूबा पर हमले के लिए लोगों को संगठित और प्रशिक्षित करने के लिए वे मैक्सिको के लिए रवाना हुए.

क्यूबा की क्रांति और फिदेल कास्त्रो के बीच समानता

क्यूबा की क्रांति और फिदेल कास्त्रो आम में 7 बातें हैं (यूनियनपीडिया में): चे ग्वेरा, मेक्सिको, साम्यवाद, स्पेन, सोवियत संघ, गोरिल्ला युद्ध, क्यूबा

चे ग्वेरा

अर्नेस्तो "चे" गेवारा (स्पेनी: Ernesto Che Guevara; १४ जून १९२८ – ९ अक्टूबर १९६७), अर्जेन्टीना के मार्क्सवादी क्रांतिकारी थे जिन्होंने क्यूबा की क्रांति में मुख्य भूमिका निभाई। इन्हें एल चे या सिर्फ चे भी बुलाया जाता है। ये डॉक्टर, लेखक, गुरिल्ला नेता, सामरिक सिद्धांतकार और कूटनीतिज्ञ भी थे, जिन्होंने दक्षिणी अमरीका के कई राष्ट्रों में क्रांति लाकर उन्हें स्वतंत्र बनाने का प्रयास किया। इनकी मृत्यु के बाद से इनका चेहरा सारे संसार में सांस्कृतिक विरोध एवं वामपंथी गतिविधियों का प्रतीक बन गया है। चिकित्सीय शिक्षा के दौरान चे पूरे लातिनी अमरीका में काफी घूमे। इस दौरान पूरे महाद्वीप में व्याप्त गरीबी ने इन्हें हिला कर रख दिया। Speech by Che Guevara to the Cuban Militia on August 19, 1960 इन्होंने निष्कर्ष निकाला कि इस गरीबी और आर्थिक विषमता के मुख्य कारण थे एकाधिप्तय पूंजीवाद, नवउपनिवेशवाद और साम्राज्यवाद, जिनसे छुटकारा पाने का एकमात्र तरीका था - विश्व क्रांति। A speech by Che Guevara to the Second Economic Seminar of Afro-Asian Solidarity in Algiers, Algeria on February 24, 1965 इसी निष्कर्ष का अनुसरण करते हुए इन्होंने गुआटेमाला के राष्ट्रपति याकोबो आरबेंज़ गुज़मान के द्वारा किए जा रहे समाज सुधारों में भाग लिया। उनकी क्रांतिकारी सोच और मजबूत हो गई जब १९५४ में गुज़मान को अमरीका की मदद से हटा दिया गया। इसके कुछ ही समय बाद मेक्सिको सिटी में इन्हें राऊल कास्त्रो और फिदेल कास्त्रो मिले और ये क्यूबा की २६ जुलाई क्रांति में शामिल हो गए। चे शीघ्र ही क्रांतिकारियों की कमान में दूसरे स्थान तक पहुँच गए और बातिस्ता के राज्य के विरुद्ध दो साल तक चले अभियान में इन्होंने मुख्य भूमिका निभाई।"Castro's Brain" 1960.

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मेक्सिको

संयुक्त राज्य मेक्सिको, सामान्यतः मेक्सिको के रूप में जाना जाता एक देश है जो की उत्तर अमेरिका में स्थित है। यह एक संघीय संवैधानिक गणतंत्र है। यह संयुक्त राज्य अमेरिका के उत्तर पर सीमा से लगा हुआ हैं। दक्षिण प्रशांत महासागर इसके पश्चिम में, ग्वाटेमाला, बेलीज और कैरेबियन सागर इसके दक्षिण में और मेक्सिको की खाड़ी इसके पूर्व की ओर हैं। मेक्सिको लगभग 2 मिलियन वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ हैं, मेक्सिको अमेरिका में पांचवा और दुनिया में 14 वा सबसे बड़ा स्वतंत्र राष्ट्र है। 11 करोड़ की अनुमानित जनसंख्या के साथ, यह 11 वीं सबसे अधिक आबादी वाला देश है। मेक्सिको एक इकतीस राज्यों और एक संघीय जिला, राजधानी शामिल फेडरेशन है। .

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साम्यवाद

साम्यवाद, कार्ल मार्क्स और फ्रेडरिक एंगेल्स द्वारा प्रतिपादित तथा साम्यवादी घोषणापत्र में वर्णित समाजवाद की चरम परिणति है। साम्यवाद, सामाजिक-राजनीतिक दर्शन के अंतर्गत एक ऐसी विचारधारा के रूप में वर्णित है, जिसमें संरचनात्मक स्तर पर एक समतामूलक वर्गविहीन समाज की स्थापना की जाएगी। ऐतिहासिक और आर्थिक वर्चस्व के प्रतिमान ध्वस्त कर उत्पादन के साधनों पर समूचे समाज का स्वामित्व होगा। अधिकार और कर्तव्य में आत्मार्पित सामुदायिक सामंजस्य स्थापित होगा। स्वतंत्रता और समानता के सामाजिक राजनीतिक आदर्श एक दूसरे के पूरक सिद्ध होंगे। न्याय से कोई वंचित नहीं होगा और मानवता एक मात्र जाति होगी। श्रम की संस्कृति सर्वश्रेष्ठ और तकनीक का स्तर सर्वोच्च होगा। साम्यवाद सिद्धांततः अराजकता का पोषक हैं जहाँ राज्य की आवश्यकता समाप्त हो जाती है। मूलतः यह विचार समाजवाद की उन्नत अवस्था को अभिव्यक्त करता है। जहाँ समाजवाद में कर्तव्य और अधिकार के वितरण को 'हरेक से अपनी क्षमतानुसार, हरेक को कार्यानुसार' (From each according to her/his ability, to each according to her/his work) के सूत्र से नियमित किया जाता है, वहीं साम्यवाद में 'हरेक से क्षमतानुसार, हरेक को आवश्यकतानुसार' (From each according to her/his ability, to each according to her/his need) सिद्धांत का लागू किया जाता है। साम्यवाद निजी संपत्ति का पूर्ण प्रतिषेध करता है। .

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स्पेन

स्पेन (स्पानी: España, एस्पाञा), आधिकारिक तौर पर स्पेन की राजशाही (स्पानी: Reino de España), एक यूरोपीय देश और यूरोपीय संघ का एक सदस्य राष्ट्र है। यह यूरोप के दक्षिणपश्चिम में इबेरियन प्रायद्वीप पर स्थित है, इसके दक्षिण और पूर्व में भूमध्य सागर सिवाय ब्रिटिश प्रवासी क्षेत्र, जिब्राल्टर की एक छोटी से सीमा के, उत्तर में फ्रांस, अण्डोरा और बिस्के की खाड़ी (Gulf of Biscay) तथा और पश्चिमोत्तर और पश्चिम में क्रमश: अटलांटिक महासागर और पुर्तगाल स्थित हैं। 674 किमी लंबे पिरेनीज़ (Pyrenees) पर्वत स्पेन को फ्रांस से अलग करते हैं। यहाँ की भाषा स्पानी (Spanish) है। स्पेनिश अधिकार क्षेत्र में भूमध्य सागर में स्थित बेलियरिक द्वीप समूह, अटलांटिक महासागर में अफ्रीका के तट पर कैनरी द्वीप समूह और उत्तरी अफ्रीका में स्थित दो स्वायत्त शहर सेउटा और मेलिला जो कि मोरक्को सीमा पर स्थित है, शामिल है। इसके अलावा लिविया नामक शहर जो कि फ्रांसीसी क्षेत्र के अंदर स्थित है स्पेन का एक ''बहि:क्षेत्र'' है। स्पेन का कुल क्षेत्रफल 504,030 किमी² का है जो पश्चिमी यूरोप में इसे यूरोपीय संघ में फ्रांस के बाद दूसरा सबसे बड़ा देश बनाता है। स्पेन एक संवैधानिक राजशाही के तहत एक संसदीय सरकार के रूप में गठित एक लोकतंत्र है। स्पेन एक विकसित देश है जिसका सांकेतिक सकल घरेलू उत्पाद इसे दुनिया में बारहवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनाता है, यहां जीवन स्तर बहुत ऊँचा है (20 वां उच्चतम मानव विकास सूचकांक), 2005 तक जीवन की गुणवत्ता सूचकांक की वरीयता के अनुसार इसका स्थान दसवां था। यह संयुक्त राष्ट्र, यूरोपीय संघ, नाटो, ओईसीडी और विश्व व्यापार संगठन का एक सदस्य है। .

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सोवियत संघ

सोवियत संघ (रूसी भाषा: Сове́тский Сою́з, सोवेत्स्की सोयूज़; अंग्रेज़ी: Soviet Union), जिसका औपचारिक नाम सोवियत समाजवादी गणतंत्रों का संघ (Сою́з Сове́тских Социалисти́ческих Респу́блик, Union of Soviet Socialist Republics) था, यूरेशिया के बड़े भूभाग पर विस्तृत एक देश था जो १९२२ से १९९१ तक अस्तित्व में रहा। यह अपनी स्थापना से १९९० तक साम्यवादी पार्टी (कोम्युनिस्ट पार्टी) द्वारा शासित रहा। संवैधानिक रूप से सोवियत संघ १५ स्वशासित गणतंत्रों का संघ था लेकिन वास्तव में पूरे देश के प्रशासन और अर्थव्यवस्था पर केन्द्रीय सरकार का कड़ा नियंत्रण रहा। रूसी सोवियत संघीय समाजवादी गणतंत्र (Russian Soviet Federative Socialist Republic) इस देश का सबसे बड़ा गणतंत्र और राजनैतिक, सांस्कृतिक और आर्थिक केंद्र था, इसलिए पूरे देश का गहरा रूसीकरण हुआ। यही कारण रहा कि विदेश में भी सोवियत संघ को अक्सर गलती से 'रूस' बोल दिया जाता था। .

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गोरिल्ला युद्ध

गोरिल्ला या गेरिला (guerrilla) शब्द, जो छापामार के अर्थ में प्रयुक्त होता है, स्पैनिश भाषा का है। स्पैनिश भाषा में इसका अर्थ लघुयुद्ध है। मोटे तौर पर छापामार युद्ध अर्धसैनिकों की टुकड़ियों अथवा अनियमित सैनिकों द्वारा शत्रुसेना के पीछे या पार्श्व में आक्रमण करके लड़े जाते हैं। वास्तविक युद्ध के अतिरिक्त छापामार अंतर्ध्वंस का कार्य और शत्रुदल में आतंक फैलाने का कार्य भी करते हैं। छापामारों को पहचानना कठिन है। इनकी कोई विशेष वेशभूषा नहीं होती। दिन के समय ये साधारण नागरिकों की भाँति रहते और रात को छिपकर आतंक फैलाते हैं। छापामार नियमित सेना को धोखा देकर विध्वंस कार्य करते हैं। .

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क्यूबा

क्यूबा गणतंत्र कैरिबियाई सागर में स्थित एक द्वीपीय देश है। हवाना क्यूबा की राजधानी और सबसे बड़ा शहर है। क्यूबा दूसरा सबसे बड़ा शहर सेंटिआगो डे है। क्यूबा गणराज्य में क्यूबा द्वीप, इस्ला दी ला जुवेतुद आदि कई द्वीप समूह शामिल हैं। क्यूबा, कैरेबियाई समूह में सबसे ज्यादा आबादी वाला द्वीप है, जिसमें 11 लाख से ज्यादा लोग निवास करते हैं। वक्त के साथ अलग-अलग जगह से पहुंचे लोगों और उपनिवेश का असर यहां की संस्कृति पर स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ता है। .

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सूची के ऊपर निम्न सवालों के जवाब

क्यूबा की क्रांति और फिदेल कास्त्रो के बीच तुलना

क्यूबा की क्रांति 15 संबंध है और फिदेल कास्त्रो 78 है। वे आम 7 में है, समानता सूचकांक 7.53% है = 7 / (15 + 78)।

संदर्भ

यह लेख क्यूबा की क्रांति और फिदेल कास्त्रो के बीच संबंध को दर्शाता है। जानकारी निकाला गया था, जिसमें से एक लेख का उपयोग करने के लिए, कृपया देखें:

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