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कोसोवो गणराज्य और धर्म (पंथ)

शॉर्टकट: मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ

कोसोवो गणराज्य और धर्म (पंथ) के बीच अंतर

कोसोवो गणराज्य vs. धर्म (पंथ)

कोसोवो बाल्कन क्षेत्र में स्थित एक विवादास्पद क्षेत्र है। यह स्वघोषित राज्य कोसोवो गणराज्य द्वारा नियंत्रित है, जिसका कमोबेश पूरे क्षेत्र पर नियंत्रण है, केवल कुछ सर्ब क्षेत्र को छोड़कर। सर्बिया संविधान (2006) के अंतर्गत सर्बिया कोसोवो को स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में मान्यता नहीं देता, बल्कि उसे अपने संप्रभु क्षेत्र के अंतर्गत संयुक्त राष्ट्र शासित क्षेत्र, कोसोवो और मेतोहिजा स्वशासी प्रान्त मानता है। इस विवाद के बावजूद कोसोवो एक लैंडलॉक (चारो ओर जमीन से घिरा) देश है, जिसके उत्तर और पूर्व में सर्बिया स्थित है, दक्षिण में मेसाडोनिया गणराज्य, पश्चिम में अल्बानिया और उत्तरपश्चिम में मोन्टेग्रो स्थित है। कोसोवो की राजधानी और सबसे बड़ा शहर प्रिस्टिना है। अन्य बड़े शहरों में पेक, प्रेजरन, जाकोवा और मित्रोविका शामिल हैं। . अनेक धर्म का चिह्न प्रमुख धर्मों के अनुयायियों का प्रतिशत धर्म (या मज़हब) किसी एक या अधिक परलौकिक शक्ति में विश्वास और इसके साथ-साथ उसके साथ जुड़ी रीति, रिवाज, परम्परा, पूजा-पद्धति और दर्शन का समूह है। इस संबंध में प्रोफ़ेसर महावीर सरन जैन का अभिमत है कि आज धर्म के जिस रूप को प्रचारित एवं व्याख्यायित किया जा रहा है उससे बचने की जरूरत है। वास्तव में धर्म संप्रदाय नहीं है। ज़िंदगी में हमें जो धारण करना चाहिए, वही धर्म है। नैतिक मूल्यों का आचरण ही धर्म है। धर्म वह पवित्र अनुष्ठान है जिससे चेतना का शुद्धिकरण होता है। धर्म वह तत्व है जिसके आचरण से व्यक्ति अपने जीवन को चरितार्थ कर पाता है। यह मनुष्य में मानवीय गुणों के विकास की प्रभावना है, सार्वभौम चेतना का सत्संकल्प है। मध्ययुग में विकसित धर्म एवं दर्शन के परम्परागत स्वरूप एवं धारणाओं के प्रति आज के व्यक्ति की आस्था कम होती जा रही है। मध्ययुगीन धर्म एवं दर्शन के प्रमुख प्रतिमान थे- स्वर्ग की कल्पना, सृष्टि एवं जीवों के कर्ता रूप में ईश्वर की कल्पना, वर्तमान जीवन की निरर्थकता का बोध, अपने देश एवं काल की माया एवं प्रपंचों से परिपूर्ण अवधारणा। उस युग में व्यक्ति का ध्यान अपने श्रेष्ठ आचरण, श्रम एवं पुरुषार्थ द्वारा अपने वर्तमान जीवन की समस्याओं का समाधान करने की ओर कम था, अपने आराध्य की स्तुति एवं जय गान करने में अधिक था। धर्म के व्याख्याताओं ने संसार के प्रत्येक क्रियाकलाप को ईश्वर की इच्छा माना तथा मनुष्य को ईश्वर के हाथों की कठपुतली के रूप में स्वीकार किया। दार्शनिकों ने व्यक्ति के वर्तमान जीवन की विपन्नता का हेतु 'कर्म-सिद्धान्त' के सूत्र में प्रतिपादित किया। इसकी परिणति मध्ययुग में यह हुई कि वर्तमान की सारी मुसीबतों का कारण 'भाग्य' अथवा ईश्वर की मर्जी को मान लिया गया। धर्म के ठेकेदारों ने पुरुषार्थवादी-मार्ग के मुख्य-द्वार पर ताला लगा दिया। समाज या देश की विपन्नता को उसकी नियति मान लिया गया। समाज स्वयं भी भाग्यवादी बनकर अपनी सुख-दुःखात्मक स्थितियों से सन्तोष करता रहा। आज के युग ने यह चेतना प्रदान की है कि विकास का रास्ता हमें स्वयं बनाना है। किसी समाज या देश की समस्याओं का समाधान कर्म-कौशल, व्यवस्था-परिवर्तन, वैज्ञानिक तथा तकनीकी विकास, परिश्रम तथा निष्ठा से सम्भव है। आज के मनुष्य की रुचि अपने वर्तमान जीवन को सँवारने में अधिक है। उसका ध्यान 'भविष्योन्मुखी' न होकर वर्तमान में है। वह दिव्यताओं को अपनी ही धरती पर उतार लाने के प्रयास में लगा हुआ है। वह पृथ्वी को ही स्वर्ग बना देने के लिए बेताब है। .

कोसोवो गणराज्य और धर्म (पंथ) के बीच समानता

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संदर्भ

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