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कोशिका और माइसेटोजोआ

शॉर्टकट: मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ

कोशिका और माइसेटोजोआ के बीच अंतर

कोशिका vs. माइसेटोजोआ

कोशिका कोशिका (Cell) सजीवों के शरीर की रचनात्मक और क्रियात्मक इकाई है और प्राय: स्वत: जनन की सामर्थ्य रखती है। यह विभिन्न पदार्थों का वह छोटे-से-छोटा संगठित रूप है जिसमें वे सभी क्रियाएँ होती हैं जिन्हें सामूहिक रूप से हम जीवन कहतें हैं। 'कोशिका' का अंग्रेजी शब्द सेल (Cell) लैटिन भाषा के 'शेलुला' शब्द से लिया गया है जिसका अर्थ 'एक छोटा कमरा' है। कुछ सजीव जैसे जीवाणुओं के शरीर एक ही कोशिका से बने होते हैं, उन्हें एककोशकीय जीव कहते हैं जबकि कुछ सजीव जैसे मनुष्य का शरीर अनेक कोशिकाओं से मिलकर बना होता है उन्हें बहुकोशकीय सजीव कहते हैं। कोशिका की खोज रॉबर्ट हूक ने १६६५ ई० में किया।"... कवकजीव या माइसेटोज़ोआ (Mycetozoa) अत्यंत सूक्ष्म एककोशीय जंतुओं का वर्ग है जो प्रोटोज़ोआ (Protozoa) समुदाय के अंतर्गत आता है। साधारणतया कवकजीव स्थलीय होता है और इस प्रकार वह अन्य प्रोटोज़ोआ से भिन्न होता है। प्रोटोज़ोआ समुदाय के अधिकांश जीवों की भाँति न तो पूर्ण जलीय होता है और न पूर्ण परजीवी ही, किंतु स्वभावत: यह अर्धवायवीय जीवन व्यतीत करता है और सड़े-गले जीवपदार्थों पर ही निर्भर रहता है। बीजाणुधानी (स्पोरैंजिया, Sporangia) तथा बीजाणु (स्पोर, spore) की रचना की दृष्टि से यह कुछ परोपजीवी पौधों (कवकों, फ़ंजाइ, Fungii) से मिलता जुलता है। यही कारण है कि वनस्पतिविज्ञानवेत्ता जब मिक्सोमाइसिटिज़ (Myxomyvcetes) अथवा श्लेष्म कवक (स्लाइम फ़ंजाइ, Slime fungi) का वर्णन करते हैं तो इसे भी उसी अध्याय में सम्मिलित कर लेते हैं। किंतु जंतु-विज्ञान-वेत्ता इसकी अमीबा सदृश आकृति, कशाभों (फ़्लैजेला, flagella) की रचना, स्वचालन की शक्ति एवं ठोस पदार्थो के भोजन के कारण इसकी गिनती जंतुओं की श्रेणी में करते हैं और इसे प्रोटोज़ोआ के एक वर्ग राइज़ोपोडा (rhizopoda) के अंतर्गत रखते हैं, किंतु राइज़ोपोडा के जनन के विचिन्न ढंग के कारण इसे उसके अंतर्गत रखना ठीक नहीं प्रतीत होता। अब वास्तविक कवकों और इसके दो अन्य मित्रों बैक्टीरिया तथा कवकजीवों की पहचान निश्चित रूप से हो चुकी है। कवकजीव को अमरीका में 'स्लाइम मोल्ड' (Slime mould, लसलस फफूँद) कहते हैं। नाटकीय ढंग से मानव रोगों के साथ अपना अद्भतु संबंध स्थापित कर लेने के कारण कवकजीव कदाचित् बैक्टीरिया से अधिक महत्वपूर्ण है और वनस्पति की अपेक्षा जंतुओं के अधिक समीप हैं। कवकों की भाँति इनमें पर्णहरिम (क्लोरोफ़िल, chlorophyll) का अभाव रहता है। प्रत्येक कवकजीव के जीवन की दो अवस्थाएँ की दो अवस्थाएँ होती हैं जो क्रमश: एक के बाद दूसरी आती हैं। पहली अवस्था (क) वर्धन अवस्था (वैंजिटेटिव फ़ेज़, vegetative phase) होती हैं। इस अवस्था में वह केवल जीवद्रव्य (प्रोटोप्लाज्म, Protoplasm) का पिंड होता है और उसमें केवल प्रवाह गति होती है। वर्धन अवस्था के उपरांत इसकी दूसरी अवस्था (ख) जनन अवस्था (रिप्रोडक्शन फ़ेज़, reproduction phase) अथवा बीजाणु (स्पोर, spore) अवस्था आती है। जब यह अवस्था आती है तब जीवद्रव्य-पिंड टुकड़ों में बँट जाता है और विशेष बीजाणु की डिब्बियाँ (स्पोर कंटेनर्स, spore containers) प्रकट हो जाती हैं। जब बीजाणु अंकुरित होते हैं तब वे या तो सीधे जीवद्रव्यीय ढेर बन जाते हैं अथवा उनकी एक माध्यमिक अवस्था होती है जिसमें अंकुरित बीजाणु तब तक स्वच्छंदतापूर्वक तैरते रहते हैं जब तक वे सभी मिलकर सामान्य जेली जैसा ढेर अथवा प्लाज्म़ोडियम (Plasmodium) नहीं बन जाते। (टिप्पणी जब कभी बहुत से कोष्ठसार आपस में मिलकर एक हो जाते हैं और उसमें बहुत से नाभिक उपस्थित रहते हैं, तब यह बहुनाभिक जीवद्रव्य का पिंड प्लाज्म़ोडियम कहलाता है)। किसी नगर के निवासियों की उन्नति तथा स्वास्थ्य इस बात पर निर्भर है कि उनका मलमूत्रादि शीघ्र नष्ट कर दिया जाए, अन्यथा रोग फैलने लगते हैं। मलमूत्रादि नष्ट करने में कवकजीव, बैक्टीरिया और कवक सहायता करते हैं। कभी-कभी कवक वर्ग के सदस्य अनुशासनभंग भी कर देते हैं और वनस्पतियों पर उसी प्रकार परजीवी बन जाते हैं जैसे, मानव शरीर में मलेरिया ज्वर के कीटाणु। इस प्रकार पोषक (होस्ट ण्दृद्मद्य) का सामान्य जीवन अव्यवस्थित हो जाता है और उसमें रोग उत्पन्न हो जाता है। पातगोभी का प्रसिद्ध रोग गदामूल (क्लब रूट, club root) प्लाज्म़ोडिओफ़ोरा ब्रासिकी (plasmodiophora brassicae) नामक कवकजीव द्वारा फैलता है जो पातगोभी की जड़ में होता है। .

कोशिका और माइसेटोजोआ के बीच समानता

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कोशिका और माइसेटोजोआ के बीच तुलना

कोशिका 25 संबंध है और माइसेटोजोआ 1 है। वे आम 0 में है, समानता सूचकांक 0.00% है = 0 / (25 + 1)।

संदर्भ

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