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कैलाश आश्रम

सूची कैलाश आश्रम

ब्रहमविदंयापीठ श्री कैलाश आश्रम की स्थापना वर्ष 1880 में श्रीमत्स्यास्वामी धनराज गिरीजी महाराज ने की। आज भी वे आदरपूर्वक आदि महाराज जी के नाम से पुकारे जाते हैं। आम विश्वास है कि उन्हें स्वप्न में भगवान शिव ने आश्रम में एक शिवलिंग की स्थापना का आदेश दिया था। इसके अतिरिक्त टिहरी के राजा के अनुरोध पर उन्होंने ग्रंथों को सुरक्षित रखने के लिए एक भवन खंड का निर्माण महामंडलेश्वर श्रीमत्स्यास्वामी विदयानन्द गिरीजी महाराज का आवास है। यही शिवलिंग आज भी श्री अभिनव चंद्रेश्वर भगवान (शिव) का रूप धारण करता है। .

3 संबंधों: स्वामी शिवानन्द, स्वामी विवेकानन्द, आचार्य महामण्डलेश्वर विद्यानन्द गिरि

स्वामी शिवानन्द

स्वामी शिवानन्द स्वामी शिवानन्द (1854-1934) रामकृष्ण मिशन के द्वितीय संघाध्यक्ष थे। उनका पूर्व नाम 'तारकनाथ घोषाल' था। उनके शिष्य उन्हें 'महापुरुष महाराज' के नाम से पुकारते थे। .

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स्वामी विवेकानन्द

स्वामी विवेकानन्द(স্বামী বিবেকানন্দ) (जन्म: १२ जनवरी,१८६३ - मृत्यु: ४ जुलाई,१९०२) वेदान्त के विख्यात और प्रभावशाली आध्यात्मिक गुरु थे। उनका वास्तविक नाम नरेन्द्र नाथ दत्त था। उन्होंने अमेरिका स्थित शिकागो में सन् १८९३ में आयोजित विश्व धर्म महासभा में भारत की ओर से सनातन धर्म का प्रतिनिधित्व किया था। भारत का आध्यात्मिकता से परिपूर्ण वेदान्त दर्शन अमेरिका और यूरोप के हर एक देश में स्वामी विवेकानन्द की वक्तृता के कारण ही पहुँचा। उन्होंने रामकृष्ण मिशन की स्थापना की थी जो आज भी अपना काम कर रहा है। वे रामकृष्ण परमहंस के सुयोग्य शिष्य थे। उन्हें प्रमुख रूप से उनके भाषण की शुरुआत "मेरे अमरीकी भाइयो एवं बहनों" के साथ करने के लिये जाना जाता है। उनके संबोधन के इस प्रथम वाक्य ने सबका दिल जीत लिया था। कलकत्ता के एक कुलीन बंगाली परिवार में जन्मे विवेकानंद आध्यात्मिकता की ओर झुके हुए थे। वे अपने गुरु रामकृष्ण देव से काफी प्रभावित थे जिनसे उन्होंने सीखा कि सारे जीव स्वयं परमात्मा का ही एक अवतार हैं; इसलिए मानव जाति की सेवा द्वारा परमात्मा की भी सेवा की जा सकती है। रामकृष्ण की मृत्यु के बाद विवेकानंद ने बड़े पैमाने पर भारतीय उपमहाद्वीप का दौरा किया और ब्रिटिश भारत में मौजूदा स्थितियों का पहले हाथ ज्ञान हासिल किया। बाद में विश्व धर्म संसद 1893 में भारत का प्रतिनिधित्व करने, संयुक्त राज्य अमेरिका के लिए कूच की। विवेकानंद के संयुक्त राज्य अमेरिका, इंग्लैंड और यूरोप में हिंदू दर्शन के सिद्धांतों का प्रसार किया, सैकड़ों सार्वजनिक और निजी व्याख्यानों का आयोजन किया। भारत में, विवेकानंद को एक देशभक्त संत के रूप में माना जाता है और इनके जन्मदिन को राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है। .

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आचार्य महामण्डलेश्वर विद्यानन्द गिरि

कैलास दशम पीठाधीश्वर परमादर्श आचार्य महामण्डलेश्वर श्रीमत्स्वामी विद्यानन्द गिरि जी महाराज का जन्म २९ नवम्बर सन् १९२१ सो जिला पटना बिहार के गाजीपुर ग्राम में हुआ। आपके पिता जवाहर शर्मा जी और माता ललिता देवी थी। आप बाल्यकाल से ही भगवान् की उपासना में रुचि रखते थे। २० वर्ष की आयु में घर गृहस्थी को त्याग कर साधु जीवन अपनाया। आपके गुरुदेव परमहंस स्वामी विज्ञानानन्द गिरि जी महाराज एवं परमगुरुदेव योगीराज स्वामी नित्यानन्द गिरि जी महाराज से आपने परमार्थ पथ की दीक्षा ली। अपनी सारस्वत साधना में आपने काशी में वेदान्त-सर्वदर्शनाचार्य तक अध्ययन की। तत्पश्चात् आप अध्यापन कार्य में संलग्न हुये। दस वर्षों तक दिल्लीस्थ विश्वनाथ संस्कृत महाविद्यालय के प्रधानाचार्य रहे। वहीं पर निरंजनपीठाधीश्वर आचार्य महामण्डलेश्वर श्रीमत्स्वामी नृसिंह गिरि जी महाराज एवं निरंजनपीठाधीश्वर आचार्य महामण्डलेश्वर स्वामी महेशानन्द जी महाराज की छत्रछाया में संन्यास दीक्षा ली। २१ जुलाई सन् १९६९ को आप कैलास ब्रह्मविद्यापीठ ऋषिकेश के महामण्डलेश्वर पद पर आसीन हुये। आपके कार्यकलापों से विद्यमान कैलास आश्रम के दो पूर्वाचार्य महामण्डलेश्वर स्वामी विष्णुदेवानन्द गिरि जी महाराज एवं महामण्डलेश्वर स्वामी चैतन्य गिरि जी महाराज अत्यन्त संन्तुष्ट हुये। आपने ग्रन्थ रचना एवं प्रकाशन में विशेष रुचि ली और अनेकों ग्रन्थों का लोककल्याणार्थ प्रकाशन बड़े धैर्यपूर्वक करवाया। आप भारत के आध्यात्मिक एवं धार्मिक क्षेत्र के आचार्यों मे अग्रगण्य हैं। समाज की दृष्टि में आप की क्षमता शक्ति लगन तत्परता विद्वत्ता तपश्चर्या सहिष्णुता एवं उदारता सभी गगनचुम्बी और अलौकिक हैं। आध्यात्मिक संस्कृति के सर्वांगीण विकास और जनजीवन को दिव्यालोक प्रदान करने में आपने युगपुरुष की भूमिका निभाई है। आपने शांकरी परम्परा को पुष्ट करने का स्तुत्य सफल प्रयास किया है। शांकरभाष्य नित्य पारायण के आप प्रवर्तक हैं और तदनुरूप ग्रन्थों के पारायण संस्करणों को आप ने प्रकाशित करवाया हैं। आपकी इन सभी प्रवृत्तियों को देखकर सन्तों एवं भक्तों ने आपको शांकरी-परम्परा-संपोषकाचार्य उपाधि से समलंकृत किया है। श्रेणी:व्यक्तिगत जीवन.

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