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केलाग-ब्रियाँ समझौता और न्यूज़ीलैण्ड

शॉर्टकट: मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ

केलाग-ब्रियाँ समझौता और न्यूज़ीलैण्ड के बीच अंतर

केलाग-ब्रियाँ समझौता vs. न्यूज़ीलैण्ड

केलाग-ब्रियाँ समझौता (Kellogg–Briand Pact) पारस्परिक विवादों को शांतिपूर्ण ढंग से सुलझाने के लिये किया गया एक अंतरराष्ट्रीय समझौता था जिसपर पेरिस में 27 अगस्त 1928 को 15 देशों के प्रतिनिधियों ने हस्ताक्षर किए थे। इस समझौते के पूर्व, अंतरराष्ट्रीय विधि में, युद्ध विधानत: ग्राह्य साधन था, जिसके द्वारा राष्ट्र अपने वास्तविक या काल्पनिक अधिकारों की रक्षा करते थे। इस अधिकार को सीमित करने का प्रयास 1899 तथा 1907 की हेग कानफरेंसों तथा सन् 1914 की ब्रायन संधियों द्वारा किया गया था। 1924 में स्वीकृत जिनीवा प्रोटोकल के दूसरे अनुच्छेद में यह किया गया कि उन अवस्थाओं को छोड़कर जो उसमें परिगणित थीं, किसी भी अवस्था में युद्ध का आश्रय न लिया जाए। सितंबर 1927 में लीग ऑव नेशंस की सभा ने अपनी आठवीं बैठक में पोलैंड का यह प्रस्ताव स्वीकार किया कि: (1) सभी अभिधावनात्मक युद्धों (आल वार ऑव ऐग्रेशन) का निषेध होना चाहिए। (2) हर प्रकार के विवाद, जो देशों के बीच उत्पन्न हों, शांतिपूर्ण उपायों से हल किए जाएँ। फरवरी, सन् 1928 में छठी पैन-अमरीकन कानफरेंस ने एक प्रस्ताव करते हुए घोषित किया कि प्रथमाक्रमण मनुष्य मात्र के प्रति एक अपराध है, प्रत्येक प्रथमाक्रमण प्रतिषिद्ध और इस कारण निषिद्ध है। इन्हीं विचारों तथा प्रयत्नों को केलाग-ब्रियाँ समझौते का रूप प्रदान किया गया। प्रोफेसर शाटवेल के सुझाव पर फ्रांस के विदेश- सचिव ब्रियाँ ने अमरीका के सचिव केलाग के बीच इस संबंध में पत्राचार आरंभ किया और इस पत्राचार के फलस्वरूप यह संधिपत्र स्वीकार किया गया। इस कारण इसे केलाग-ब्रियाँ अथवा पेरिस समझौता (पैक्ट) कहते हैं। इस समझौते में एक प्राक्कथन तथा दो मुख्य अनुच्छेद हैं। इसमें यह घोषणा की गई है- (1) उच्च संविदित पक्ष (हाई कांट्रैक्टिंग पार्टीज), अपने अपने देशवासियों की ओर से गंभीरतापूर्वक घोषित करते हैं कि वे अंतरराष्ट्रीय विवादों को सुलझाने में, युद्ध का आश्रय लेना तिरस्कृत समझते हैं और एक दूसरे से संबंधित विषयों में राष्ट्रीय नीति के साधन के रूप में उसका परित्याग करते हैं। (2) उच्च संविदित पक्ष इस बात पर सहमत हैं कि सारे झगड़े अथवा विवादों का समाधान, चाहे वे किसी भी प्रकार के हों या किसी भी कारण से उत्पन्न हुए हों, जो उनके बीच उठें, केवल शांतिपूर्ण रीतियों से ही सुलझाए जाएँ। इस प्रकार कहा जाता है कि यह समझौता युद्ध का त्याग करने की एक सार्वजनिक संधि है। कालांतर में यह संधि केवल मौखिक घोषणा मात्र बन कर रह गई। इसपर हस्ताक्षर करनेवाले देशों ने शीघ्र इसका उल्लंघन किया। 1929 ई. में रूस ने चीन के विरुद्ध, 1931-32 में जापान ने मंचूरिया के विरुद्ध और 1931 में पेरू ने कोलंबिया के विरुद्ध बड़े पैमाने पर बल-प्रयोग किया, यद्यपि उन्होंने युद्ध की विधिवत घोषणा नहीं की। सन् 1935 में इटली ने अबीसीनिया के विरुद्ध, 1937 में जापान ने चीन के विरुद्ध और 1939 में रूस ने फिनलैंड के विरुद्ध स्पष्ट रूप से युद्ध की घोषणा की। इस प्रकार, यद्यपि इस समझौते का व्यतिक्रमण शीघ्र ही होना आरंभ हो गया फिर भी इससे यह नहीं कहा जा सकता कि उसका विधिक महत्व घट गया। एक स्थायी समझौता होने के नाते तथा अंतरराष्ट्रीय समाज के विधिक ढाँचे में एक मूलभूत परिवर्तन उत्पन्न करने के कारण अंतरराष्ट्रीय विधि व्यवस्था में वह अपना महत्वपूर्ण स्थान तो रखता ही है। . न्यूज़ीलैंड प्रशान्त महासागर में ऑस्ट्रेलिया के पास स्थित देश है। ये दो बड़े द्वीपों से बना है। न्यूजीलैंड (माओरी भाषा में: Aotearoa आओटेआरोआ) दक्षिण पश्चिमि पेसिफ़िक ओशन में दो बड़े द्वीप और अन्य कई छोटे द्वीपों से बना एक देश है। न्यूजीलैंड के ४० लाख लोगों में से लगभग तीस लाख लोग उत्तरी द्वीप में रहते हैं और दस लाख लोग दक्षिणि द्वीप में। यह द्वीप दुनिया के सबसे बडे द्वीपों में गिने जाते हैं। अन्य द्वीपों में बहुत कम लोग रहतें हैं और वे बहुत छोटे हैं। इनमें मुख्य है.

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संदर्भ

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