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केरलीय गणित सम्प्रदाय और युक्तिभाषा

शॉर्टकट: मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ

केरलीय गणित सम्प्रदाय और युक्तिभाषा के बीच अंतर

केरलीय गणित सम्प्रदाय vs. युक्तिभाषा

केरलीय गणित सम्प्रदाय केरल के गणितज्ञों और खगोलशास्त्रियों का एक के बाद एक आने वाला क्रम था जिसने गणित और खगोल के क्षेत्र में बहुत उन्नत कार्य किया। इसकी स्थापना संगमग्राम के माधव द्वारा की गयी थी। परमेश्वर, नीलकण्ठ सोमजाजिन्, ज्येष्ठदेव, अच्युत पिशारती, मेलापतुर नारायण भट्टतिरि तथा अच्युत पान्निकर इसके अन्य सदस्य थे। यह सम्प्रदाय १४वीं शदी से लेकर १६वीं शदी तक फला-फूला। खगोलीय समस्याओं के समाधान के खोज के चक्कर में इस सम्प्रदाय ने स्वतंत्र रूप से अनेकों महत्वपूर्ण गणितीय संकल्पनाएँ सृजित की। इनमें नीलकंठ द्वारा तंत्रसंग्रह नामक ग्रन्थ में दिया गया त्रिकोणमितीय फलनों का श्रेणी के रूप में प्रसार सबसे महत्वपूर्ण है। केरलीय गणित सम्प्रदाय माधवन के बाद कम से कम दो शताब्दियों तक फलता-फूलता रहा। ज्येष्ठदेव से हमें समाकलन का विचार मिला, जिसे संकलितम कहा गया था, (हिंदी अर्थ संग्रह), जैसा कि इस कथन में है: जो समाकलन को एक ऐसे चर (पद) के रूप में अनुवादित करता है जो चर के वर्ग के आधे के बराबर होगा; अर्थात x dx का समाकलन x2 / 2 के बराबर होगा। यह स्पष्ट रूप से समाकलन की शुरुआत है। इससे सम्बंधित एक अन्य परिणाम कहता है कि किसी वक्र के अन्दर का क्षेत्रफल उसके समाकल के बराबर होता है। इसमें से अधिकांश परिणाम यूरोप में ऐसे ही परिणामों के अस्तित्व से कई शताब्दियों पूर्व के हैं। अनेक प्रकार से, ज्येष्ठदेव की युक्तिभाषा कलन पर विश्व की पहली पुस्तक मानी जा सकती है। इस समूह ने खगोल विज्ञान में अन्य कई कार्य भी किये; वास्तव में खगोलीय परिकलनों पर विश्लेषण संबंधी परिणामों की तुलना में कहीं अधिक पृष्ठ लिखे गए हैं। केरल स्कूल ने भाषाविज्ञान (भाषा और गणित के मध्य सम्बन्ध एक प्राचीन भारतीय परंपरा है, देखें, कात्यायन) में भी योगदान दिया है। केरल की आयुर्वेदिक और काव्यमय परंपरा की जड़ें भी इस स्कूल में खोजी जा सकती हैं। प्रसिद्ध कविता, नारायणीयम, की रचना नारायण भात्ताथिरी द्वारा की गयी थी। . गणितयुक्तिभाषा अथवा युक्तिभाषा (യുക്തിഭാഷ) या गणितन्यायसंग्रह मलयालम भाषा में लिखित गणित एवं ज्योतिष का ग्रंथ है। इसकी रचना भारत के गणितज्ञ एवं ज्योतिषाचार्य ज्येष्ठदेव ने सन् १५३० के आसपास की थी। प्राचीन प्रथा से हटकर यह ग्रंथ पद्य के बजाय गद्य में और संस्कृत के बजाय मलयालम में लिखा गया है। इसके अलावा इसमें सिद्धि (proof) भी दी गयी हैं। भारतीय गणितसाहित्य में 'युक्ति' से तात्पर्य सिद्धि या 'प्रूफ' (proof) है। यह ग्रंथ कैलकुलस का प्रथम ग्रंथ कहलाने का अधिकारी है। .

केरलीय गणित सम्प्रदाय और युक्तिभाषा के बीच समानता

केरलीय गणित सम्प्रदाय और युक्तिभाषा आम में 3 बातें हैं (यूनियनपीडिया में): ज्येष्ठदेव, गणित, कलन

ज्येष्ठदेव

ज्येष्ठदेव (मलयालम: ജ്യേഷ്ഠദേവന്; 1500 ई -- 1575) भारत के एक खगोलशास्त्री एवं गणितज्ञ थे। वे केरलीय गणित सम्प्रदाय से सम्बन्धित थे जिसकी स्थापना संगमग्राम के माधव (1350 -- 1425) ने की थी। युक्तिभाषा उनकी प्रसिद्ध रचना है जो नीलकण्ठ सोमयाजि द्वारा रचित तन्त्रसंग्रह की मलयालम भाषा में टीका है। युक्तिभाषा में ज्येष्ठदेव ने तन्त्रसंग्रह में दिये गये गणितीय कथनों का सम्पूर्ण उपपत्ति दिया है तथा उनके औचित्य के बारे में लिखा है। युक्तिभाषा में वर्णित विषयों को देखते हुए कई विद्वान इसे 'कैलकुलस का प्रथम ग्रन्थ' कहते हैं। ज्येष्ठदेव ने 'दृक्करण' नामक ग्रन्थ भी रचा जिसमें उनके खगोलीय प्रेक्षणों का संग्रह है। ज्येष्ठदेव ने समाकलन का विचार दिया है, जिसे उन्होने संकलितम कहा है, (हिंदी अर्थ, संग्रह), जैसा कि इस कथन में है: जो समाकलन को एक ऐसे चर (पद) के रूप में बदल देता है जो चर के वर्ग के आधे के बराबर होगा; अर्थात x dx का समाकलन x2 / 2 के बराबर होगा। यह स्पष्ट रूप से समाकलन की शुरुआत है। इससे सम्बंधित एक अन्य परिणाम कहता है कि किसी वक्र के अन्दर का क्षेत्रफल उसके समाकल के बराबर होता है। इसमें दिये हुए अधिकांश परिणाम ऐसे हैं जो यूरोप में कई शताब्दियों बाद देखने को मिलते हैं। अनेक प्रकार से, ज्येष्ठदेव की युक्तिभाषा कलन पर विश्व की पहली पुस्तक मानी जा सकती है। .

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गणित

पुणे में आर्यभट की मूर्ति ४७६-५५० गणित ऐसी विद्याओं का समूह है जो संख्याओं, मात्राओं, परिमाणों, रूपों और उनके आपसी रिश्तों, गुण, स्वभाव इत्यादि का अध्ययन करती हैं। गणित एक अमूर्त या निराकार (abstract) और निगमनात्मक प्रणाली है। गणित की कई शाखाएँ हैं: अंकगणित, रेखागणित, त्रिकोणमिति, सांख्यिकी, बीजगणित, कलन, इत्यादि। गणित में अभ्यस्त व्यक्ति या खोज करने वाले वैज्ञानिक को गणितज्ञ कहते हैं। बीसवीं शताब्दी के प्रख्यात ब्रिटिश गणितज्ञ और दार्शनिक बर्टेंड रसेल के अनुसार ‘‘गणित को एक ऐसे विषय के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जिसमें हम जानते ही नहीं कि हम क्या कह रहे हैं, न ही हमें यह पता होता है कि जो हम कह रहे हैं वह सत्य भी है या नहीं।’’ गणित कुछ अमूर्त धारणाओं एवं नियमों का संकलन मात्र ही नहीं है, बल्कि दैनंदिन जीवन का मूलाधार है। .

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कलन

कलन (Calculus) गणित का प्रमुख क्षेत्र है जिसमें राशियों के परिवर्तन का गणितीय अध्ययन किया जाता है। इसकी दो मुख्य शाखाएँ हैं- अवकल गणित (डिफरेंशियल कैल्कुलस) तथा समाकलन गणित (इटीग्रल कैलकुलस)। कैलकुलस के ये दोनों शाखाएँ कलन के मूलभूत प्रमेय द्वारा परस्पर सम्बन्धित हैं। वर्तमान समय में विज्ञान, इंजीनियरी, अर्थशास्त्र आदि के क्षेत्र में कैल्कुलस का उपयोग किया जाता है। भारत में कैल्कुलस से सम्बन्धित कई कॉन्सेप्ट १४वीं शताब्दी में ही विकसित हो गये थे। किन्तु परम्परागत रूप से यही मान्यता है कि कैलकुलस का प्रयोग 17वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में आरंभ हुआ तथा आइजक न्यूटन तथा लैब्नीज इसके जनक थे। .

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केरलीय गणित सम्प्रदाय और युक्तिभाषा के बीच तुलना

केरलीय गणित सम्प्रदाय 22 संबंध है और युक्तिभाषा 17 है। वे आम 3 में है, समानता सूचकांक 7.69% है = 3 / (22 + 17)।

संदर्भ

यह लेख केरलीय गणित सम्प्रदाय और युक्तिभाषा के बीच संबंध को दर्शाता है। जानकारी निकाला गया था, जिसमें से एक लेख का उपयोग करने के लिए, कृपया देखें:

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