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काशीबाई और राधाबाई

शॉर्टकट: मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ

काशीबाई और राधाबाई के बीच अंतर

काशीबाई vs. राधाबाई

काशीबाई १८वीं सदी के मराठा साम्राज्य के प्रधानमंत्री (पेशवा) बाजीराव प्रथम की पहली पत्नी थी। उनके चार पुत्र थे जिनमें से बालाजी बाजीराव और रघुनाथराव आगे चल कर पेशवा बने। बाजीराव की दुसरी शादी के बाद बुंदेलखंड राज्य की मस्तानी काशीबाई की सौतन थी। बाजीराव की मौत के बाद काशीबाई ने विभिन्न तीर्थयात्राएं की। कुछ इतिहासकारों के अनुसार वे एक प्रकार के संधि शोथ से पीड़ित रही। . राधाबाई नेवास के बर्वे परिवार की कन्या थीं जिनका विवाह बालाजी विश्वनाथ के साथ हुआ था। इनके पिता का नाम डुबेरकर अंताजी मल्हार बर्वे था। राधाबाई बालाजी के पिता विश्वनाथ भट्ट सिद्दियों के अधीन श्रीवर्धन गाँव के देशमुख थे। भारत के पश्चिमी सिद्दियों से न पटने के कारण विश्वनाथ और बालाजी श्रीवर्धन गाँव छोड़कर बेला नामक स्थान पर भानु भाइयों के साथ रहने लगे। राधाबाई भी अपने परिवार के साथ बेला में रहने लगीं। कुछ समय पश्चात् बालाजी डंडाराजपुरी के देशमुख हो गए। १६९९ ई. से १७०८ ई. तक वे पूना के सर-सूबेदार रहे। राधाबाई में त्याग, दृढ़ता, कार्यकुशलता, व्यवहारचातुर्य और उदारता आदि गुण थे। राधाबाई एवं बालाजी के दो पुत्र और दो पुत्रियाँ थीं। इनके बड़े पुत्र बाजीराव का जन्म १७०० ई. में और दूसरे पुत्र चिमाजी अप्पा का सन् १७१० में हुआ था। इनकी पुत्रियों के नाम अनुबाई और भिऊबाई थे। बालाजी विश्वनाथ की मृत्यु सन् १७२० में हुई। राधाबाई को बहुत दु:ख हुआ, यद्यपि उनके पुत्र बाजीराव पेशवा बनाए गए। राधाबाई राज्य के विभिन्न कार्यों में बाजीराव को उचित सलाह देती थीं। जब १७३५ में राधाबाई ने तीर्थयात्रा पर जाने की इच्छा प्रकट की, चिमाजी अप्पा ने इसका प्रबंध शीघ्र ही किया। १४ फरवरी को इन्होंने पूना से प्रस्थान किया। ८ मार्च को वे बुरहानपुर पहुँची। ६ मई को उदयपुर में उन्हें राजकीय सम्मान मिला। २१ मई को नाथद्वारा का दर्शन किया और २१ जून को जयपुर पहुँची। सवाई राजा जयसिंह ने उनका अत्यधिक आदर सत्कार किया। वे यहाँ तीन माह तक ठहरीं। सितंबर मास में वे जयपुर से चल पड़ीं। वे मथुरा, वृंदावन, कुरुक्षेत्र और प्रयाग होती हुईं १७ अक्टूबर को वाराणसी पहुँच गईं। वहाँ से दिसंबर के अंतिम सप्ताह में गया की ओर प्रस्थान किया। वहीं से १७३६ में वे वापसी यात्रा पर चल पड़ीं। मार्ग में स्थानीय शासकों ने उनके लिए अंगरक्षकों की व्यवस्था की। मोहम्मद खान बंगश ने राधाबाई का बहुत सम्मान किया और उन्हें बहुमूल्य उपहार प्रदान किए। राधाबाई प्रसन्न हुई और १ जून, १७३६ ई. को पूना पहुंचीं। राधाबाई की इस यात्रा ने साधारणत: मराठों के लिए और विशेषकर पेशवा बाजीराव के लिए मित्रतापूर्ण वातावरण का निर्माण किया। राधाबाई को यात्रा से लौट दो वर्ष भी न हो पाए थे कि उन्हें एक और परिस्थिति का सामना करना पड़ा। मस्तानी और बाजीराव का संबंध सरदारों की आलोचना का विषय बन चुका था। बाजीराव के आलोचकों का वर्ताव उस समय और तीव्र हुआ जब पेशवा परिवार में रघुनाथ राव का उपनयन और सदाशिव राव का विवाह होने वाला था। पंडितों ने किसी भी ऐसे कार्य में भाग न लेने का निर्णय किया। राधाबाई ने बाजीराव को विशेष रूप से सतर्क रहने के लिए लिखा। अंतत: राधाबाई उपर्युक्त कार्य कराने में सफल हुई। मस्तानी और बाजीराव के संबंध को विशेष महत्व कभी नहीं दिया अपितु सदा ही यह प्रयत्न किया कि परिवार में फूट की स्थिति न उत्पन्न हो और पेशवा परिवार का सम्मान भी बना रहे। चिमाजी अप्पा ने मस्तानी को कैद किया। राधाबाई ने मस्तानी को कैद से छुड़ाया और वह बाजीराव के पास आ गई। बाजीराव ने भी राधाबाई की आज्ञाओं का पालन किया। १७४० ई. के अप्रैल मास में बाजीराव की मृत्यु से राधाबाई को बहुत दु:ख हुआ। पाँच माह पश्चात् ही चिमाजी अप्पा की भी मृत्यु हो गई। अब राधाबाई का उत्साह शिथिल पड़ गया। फिर भी, जब कभी आवश्यकता पड़ती थी, वे परिवार की सेवा और राजकीय कार्यों में बालाजी बाजीराव को उचित परामर्श देतीं थीं। १७५२ ई. में जब पेशवा दक्षिण की ओर गए हुए थे राधाबाई ने ताराबाई और उमाबाई की सम्मिलित सेना को पूना की ओर बढ़ने से रोकने का उपाय किया। दूसरे अवसर पर उन्होंने बाबूजी नाइक को पेशवा बालाजी के विरुद्ध अनशन करने से रोका। राधाबाई ने तत्कालीन राजनीति में सक्रिय भाग लिया। इनके व्यवहार में कभी भी कटुता नहीं आने पाती थी। इन्होंने अपने परिवार को साधारण स्थिति से पेशवा पद प्राप्त करते देखा। २० मार्च, १७५३ ई. को इनकी मृत्यु हुई। श्रेणी:मराठा साम्राज्य.

काशीबाई और राधाबाई के बीच समानता

काशीबाई और राधाबाई आम में 4 बातें हैं (यूनियनपीडिया में): चिमाजी अप्पा, पुणे, मस्तानी, वाराणसी

चिमाजी अप्पा

चिमाजी अप्पा या चिमणाजी अप्पा बालाजी विश्वनाथ के बैठे और बाजीराव के छोटे भाई थे। उन्होंने पुर्तगाली शासन से भारत के पश्चिमी तट को मुक्त कराया। वह वसई किले में हुए एक कठिन युद्ध को जीत लिया। .

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पुणे

पुणे भारत के महाराष्ट्र राज्य का एक महत्त्वपूर्ण शहर है। यह शहर महाराष्ट्र के पश्चिम भाग, मुला व मूठा इन दो नदियों के किनारे बसा है और पुणे जिला का प्रशासकीय मुख्यालय है। पुणे भारत का छठवां सबसे बड़ा शहर व महाराष्ट्र का दूसरा सबसे बड़ा शहर है। सार्वजनिक सुखसुविधा व विकास के हिसाब से पुणे महाराष्ट्र मे मुंबई के बाद अग्रसर है। अनेक नामांकित शिक्षणसंस्थायें होने के कारण इस शहर को 'पूरब का ऑक्सफोर्ड' भी कहा जाता है। पुणे में अनेक प्रौद्योगिकी और ऑटोमोबाईल उपक्रम हैं, इसलिए पुणे भारत का ”डेट्राइट” जैसा लगता है। काफी प्राचीन ज्ञात इतिहास से पुणे शहर महाराष्ट्र की 'सांस्कृतिक राजधानी' माना जाता है। मराठी भाषा इस शहर की मुख्य भाषा है। पुणे शहर मे लगभग सभी विषयों के उच्च शिक्षण की सुविधा उपलब्ध है। पुणे विद्यापीठ, राष्ट्रीय रासायनिक प्रयोगशाला, आयुका, आगरकर संशोधन संस्था, सी-डैक जैसी आंतरराष्ट्रीय स्तर के शिक्षण संस्थान यहाँ है। पुणे फिल्म इन्स्टिट्युट भी काफी प्रसिद्ध है। पुणे महाराष्ट्र व भारत का एक महत्त्वपूर्ण औद्योगिक केंद्र है। टाटा मोटर्स, बजाज ऑटो, भारत फोर्ज जैसे उत्पादनक्षेत्र के अनेक बड़े उद्योग यहाँ है। 1990 के दशक मे इन्फोसिस, टाटा कंसल्टंसी सर्विसे, विप्रो, सिमैंटेक, आइ.बी.एम जैसे प्रसिद्ध सॉफ्टवेअर कंपनियों ने पुणे मे अपने केंन्द्र खोले और यह शहर भारत का एक प्रमुख सूचना प्रौद्योगिकी उद्योगकेंद्र के रूप मे विकसित हुआ। .

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मस्तानी

मस्तानी का कथित चित्र मस्तानी (मृत्यु: 1740 ई०) एक अत्यन्त सुन्दर और बहादुर महिला थी। वह पेशवा बाजीराव प्रथम की प्रेयसी तथा पत्नी थी। बाजीराव स्वयं उसे पत्नी ही मानते थे, परन्तु उनकी पत्नी के रूप में उसे पारिवारिक तथा सामाजिक स्वीकृति कभी नहीं मिल पायी। .

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वाराणसी

वाराणसी (अंग्रेज़ी: Vārāṇasī) भारत के उत्तर प्रदेश राज्य का प्रसिद्ध नगर है। इसे 'बनारस' और 'काशी' भी कहते हैं। इसे हिन्दू धर्म में सर्वाधिक पवित्र नगरों में से एक माना जाता है और इसे अविमुक्त क्षेत्र कहा जाता है। इसके अलावा बौद्ध एवं जैन धर्म में भी इसे पवित्र माना जाता है। यह संसार के प्राचीनतम बसे शहरों में से एक और भारत का प्राचीनतम बसा शहर है। काशी नरेश (काशी के महाराजा) वाराणसी शहर के मुख्य सांस्कृतिक संरक्षक एवं सभी धार्मिक क्रिया-कलापों के अभिन्न अंग हैं। वाराणसी की संस्कृति का गंगा नदी एवं इसके धार्मिक महत्त्व से अटूट रिश्ता है। ये शहर सहस्रों वर्षों से भारत का, विशेषकर उत्तर भारत का सांस्कृतिक एवं धार्मिक केन्द्र रहा है। हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत का बनारस घराना वाराणसी में ही जन्मा एवं विकसित हुआ है। भारत के कई दार्शनिक, कवि, लेखक, संगीतज्ञ वाराणसी में रहे हैं, जिनमें कबीर, वल्लभाचार्य, रविदास, स्वामी रामानंद, त्रैलंग स्वामी, शिवानन्द गोस्वामी, मुंशी प्रेमचंद, जयशंकर प्रसाद, आचार्य रामचंद्र शुक्ल, पंडित रवि शंकर, गिरिजा देवी, पंडित हरि प्रसाद चौरसिया एवं उस्ताद बिस्मिल्लाह खां आदि कुछ हैं। गोस्वामी तुलसीदास ने हिन्दू धर्म का परम-पूज्य ग्रंथ रामचरितमानस यहीं लिखा था और गौतम बुद्ध ने अपना प्रथम प्रवचन यहीं निकट ही सारनाथ में दिया था। वाराणसी में चार बड़े विश्वविद्यालय स्थित हैं: बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय, महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ, सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ हाइयर टिबेटियन स्टडीज़ और संपूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय। यहां के निवासी मुख्यतः काशिका भोजपुरी बोलते हैं, जो हिन्दी की ही एक बोली है। वाराणसी को प्रायः 'मंदिरों का शहर', 'भारत की धार्मिक राजधानी', 'भगवान शिव की नगरी', 'दीपों का शहर', 'ज्ञान नगरी' आदि विशेषणों से संबोधित किया जाता है। प्रसिद्ध अमरीकी लेखक मार्क ट्वेन लिखते हैं: "बनारस इतिहास से भी पुरातन है, परंपराओं से पुराना है, किंवदंतियों (लीजेन्ड्स) से भी प्राचीन है और जब इन सबको एकत्र कर दें, तो उस संग्रह से भी दोगुना प्राचीन है।" .

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सूची के ऊपर निम्न सवालों के जवाब

काशीबाई और राधाबाई के बीच तुलना

काशीबाई 20 संबंध है और राधाबाई 18 है। वे आम 4 में है, समानता सूचकांक 10.53% है = 4 / (20 + 18)।

संदर्भ

यह लेख काशीबाई और राधाबाई के बीच संबंध को दर्शाता है। जानकारी निकाला गया था, जिसमें से एक लेख का उपयोग करने के लिए, कृपया देखें:

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