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आचार्य मम्मट और काव्यशास्त्र

शॉर्टकट: मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ

आचार्य मम्मट और काव्यशास्त्र के बीच अंतर

आचार्य मम्मट vs. काव्यशास्त्र

आचार्य मम्मट संस्कृत काव्यशास्त्र के सर्वश्रेष्ठ विद्वानों में से एक समझे जाते हैं। वे अपने शास्त्रग्रंथ काव्यप्रकाश के कारण प्रसिद्ध हुए। कश्मीरी पंडितों की परंपरागत प्रसिद्धि के अनुसार वे नैषधीय चरित के रचयिता श्रीहर्ष के मामा थे। उन दिनों कश्मीर विद्या और साहित्य के केंद्र था तथा सभी प्रमुख आचार्यों की शिक्षा एवं विकास इसी स्थान पर हुआ। वे कश्मीरी थे, ऐसा उनके नाम से भी पता चलता है लेकिन इसके अतिरिक्त उनके विषय में बहुत कम जानकारी मिलती है। वे भोजराज के उत्तरवर्ती माने जाते है, इस हिसाब से उनका काल दसवीं शती का लगभग उत्तरार्ध है। ऐसा विवरण भी मिलता है कि उनकी शिक्षा-दीक्षा वाराणसी में हुई। . काव्यशास्त्र काव्य और साहित्य का दर्शन तथा विज्ञान है। यह काव्यकृतियों के विश्लेषण के आधार पर समय-समय पर उद्भावित सिद्धांतों की ज्ञानराशि है। युगानुरूप परिस्थितियों के अनुसार काव्य और साहित्य का कथ्य और शिल्प बदलता रहता है; फलत: काव्यशास्त्रीय सिद्धांतों में भी निरंतर परिवर्तन होता रहा है। भारत में भरत के सिद्धांतों से लेकर आज तक और पश्चिम में सुकरात और उसके शिष्य प्लेटो से लेकर अद्यतन "नवआलोचना' (नियो-क्रिटिसिज्म़) तक के सिद्धांतों के ऐतिहासिक अनुशीलन से यह बात साफ हो जाती है। भारत में काव्य नाटकादि कृतियों को 'लक्ष्य ग्रंथ' तथा सैद्धांतिक ग्रंथों को 'लक्षण ग्रंथ' कहा जाता है। ये लक्षण ग्रंथ सदा लक्ष्य ग्रंथ के पश्चाद्भावनी तथा अनुगामी है और महान्‌ कवि इनकी लीक को चुनौती देते देखे जाते हैं। काव्यशास्त्र के लिए पुराने नाम 'साहित्यशास्त्र' तथा 'अलंकारशास्त्र' हैं और साहित्य के व्यापक रचनात्मक वाङमय को समेटने पर इसे 'समीक्षाशास्त्र' भी कहा जाने लगा। मूलत: काव्यशास्त्रीय चिंतन शब्दकाव्य (महाकाव्य एवं मुक्तक) तथा दृश्यकाव्य (नाटक) के ही सम्बंध में सिद्धांत स्थिर करता देखा जाता है। अरस्तू के "पोयटिक्स" में कामेडी, ट्रैजेडी, तथा एपिक की समीक्षात्मक कसौटी का आकलन है और भरत का नाट्यशास्त्र केवल रूपक या दृश्यकाव्य की ही समीक्षा के सिद्धांत प्रस्तुत करता है। भारत और पश्चिम में यह चिंतन ई.पू.

आचार्य मम्मट और काव्यशास्त्र के बीच समानता

आचार्य मम्मट और काव्यशास्त्र आम में 2 बातें हैं (यूनियनपीडिया में): परमार भोज, काव्यप्रकाश

परमार भोज

राजा भोज की प्रतिमा (भोपाल) भोज पंवार या परमार वंश के नवें राजा थे। परमार वंशीय राजाओं ने मालवा की राजधानी धारानगरी (धार) से आठवीं शताब्दी से लेकर चौदहवीं शताब्दी के पूर्वार्ध तक राज्य किया था। भोज ने बहुत से युद्ध किए और अपनी प्रतिष्ठा स्थापित की जिससे सिद्ध होता है कि उनमें असाधारण योग्यता थी। यद्यपि उनके जीवन का अधिकांश युद्धक्षेत्र में बीता तथापि उन्होंने अपने राज्य की उन्नति में किसी प्रकार की बाधा न उत्पन्न होने दी। उन्होंने मालवा के नगरों व ग्रामों में बहुत से मंदिर बनवाए, यद्यपि उनमें से अब बहुत कम का पता चलता है। कहा जाता है कि वर्तमान मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल को राजा भोज ने ही बसाया था, तब उसका नाम भोजपाल नगर था, जो कि कालान्तर में भूपाल और फिर भोपाल हो गया। राजा भोज ने भोजपाल नगर के पास ही एक समुद्र के समान विशाल तालाब का निर्माण कराया था, जो पूर्व और दक्षिण में भोजपुर के विशाल शिव मंदिर तक जाता था। आज भी भोजपुर जाते समय, रास्ते में शिवमंदिर के पास उस तालाब की पत्थरों की बनी विशाल पाल दिखती है। उस समय उस तालाब का पानी बहुत पवित्र और बीमारियों को ठीक करने वाला माना जाता था। कहा जाता है कि राजा भोज को चर्म रोग हो गया था तब किसी ऋषि या वैद्य ने उन्हें इस तालाब के पानी में स्नान करने और उसे पीने की सलाह दी थी जिससे उनका चर्मरोग ठीक हो गया था। उस विशाल तालाब के पानी से शिवमंदिर में स्थापित विशाल शिवलिंग का अभिषेक भी किया जाता था। राजा भोज स्वयं बहुत बड़े विद्वान थे और कहा जाता है कि उन्होंने धर्म, खगोल विद्या, कला, कोशरचना, भवननिर्माण, काव्य, औषधशास्त्र आदि विभिन्न विषयों पर पुस्तकें लिखी हैं जो अब भी विद्यमान हैं। इनके समय में कवियों को राज्य से आश्रय मिला था। उन्होने सन् 1000 ई. से 1055 ई. तक राज्य किया। इनकी विद्वता के कारण जनमानस में एक कहावत प्रचलित हुई कहाँ राजा भोज कहाँ गंगू तैली। भोज बहुत बड़े वीर, प्रतापी, और गुणग्राही थे। इन्होंने अनेक देशों पर विजय प्राप्त की थी और कई विषयों के अनेक ग्रंथों का निर्माण किया था। ये बहुत अच्छे कवि, दार्शनिक और ज्योतिषी थे। सरस्वतीकंठाभरण, शृंगारमंजरी, चंपूरामायण, चारुचर्या, तत्वप्रकाश, व्यवहारसमुच्चय आदि अनेक ग्रंथ इनके लिखे हुए बतलाए जाते हैं। इनकी सभा सदा बड़े बड़े पंडितों से सुशोभित रहती थी। इनकी पत्नी का नाम लीलावती था जो बहुत बड़ी विदुषी थी। जब भोज जीवित थे तो कहा जाता था- (आज जब भोजराज धरती पर स्थित हैं तो धारा नगरी सदाधारा (अच्छे आधार वाली) है; सरस्वती को सदा आलम्ब मिला हुआ है; सभी पंडित आदृत हैं।) जब उनका देहान्त हुआ तो कहा गया - (आज भोजराज के दिवंगत हो जाने से धारा नगरी निराधार हो गयी है; सरस्वती बिना आलम्ब की हो गयी हैं और सभी पंडित खंडित हैं।) .

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काव्यप्रकाश

काव्यप्रकाश (संस्कृत में काव्यप्रकाशः), आचार्य मम्मट द्वारा रचित काव्य की परख कैसे की जाय इस विषय पर उदाहरण सहित लिखा गया एक विस्तृत एवं अत्यंत महत्त्वपूर्ण एवं प्रामाणिक ग्रंथ माना जाता है। इस ग्रंथ का अध्ययन आज भी विश्वविद्यालयों के संस्कृत विभाग में पढ़ने वाले साहित्य के विद्यार्थियों के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण समझा जाता है। .

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आचार्य मम्मट और काव्यशास्त्र के बीच तुलना

आचार्य मम्मट 11 संबंध है और काव्यशास्त्र 47 है। वे आम 2 में है, समानता सूचकांक 3.45% है = 2 / (11 + 47)।

संदर्भ

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