कालिदास और प्राकृत साहित्य के बीच समानता
कालिदास और प्राकृत साहित्य आम में 9 बातें हैं (यूनियनपीडिया में): चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य, दण्डी, बाणभट्ट, भास, शृंगार रस, संस्कृत साहित्य, हर्षचरितम्, कालिदास, अलंकार शास्त्र।
चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य
चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य (380-413) गुप्त राजवंश का राजा। चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य की मुद्रा चन्द्रगुप्त द्वितीय महान जिनको संस्कृत में विक्रमादित्य या चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य के नाम से जाना जाता है; गुप्त वंश के एक महान शक्तिशाली सम्राट थे। उनका राज्य 380-412 ई तक चला जिसमें गुप्त राजवंश ने अपना शिखर प्राप्त किया। गुप्त साम्राज्य का वह समय भारत का स्वर्णिम युग भी कहा जाता है। चन्द्रगुप्त द्वितीय महान अपने पूर्व राजा समुद्रगुप्त महान के पुत्र थे। उसने आक्रामक विस्तार की नीति एवं लाभदयक पारिग्रहण नीति का अनुसार करके सफलता प्राप्त की। .
कालिदास और चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य · चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य और प्राकृत साहित्य ·
दण्डी
दण्डी संस्कृत भाषा के प्रसिद्ध साहित्यकार हैं। इनके जीवन के संबंध में प्रामाणिक सूचनाओं का अभाव है। कुछ विद्वान इन्हें सातवीं शती के उत्तरार्ध या आठवीं शती के प्रारम्भ का मानते हैं तो कुछ विद्वान इनका जन्म 550 और 650 ई० के मध्य मानते हैं। .
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बाणभट्ट
बाणभट्ट सातवीं शताब्दी के संस्कृत गद्य लेखक और कवि थे। वह राजा हर्षवर्धन के आस्थान कवि थे। उनके दो प्रमुख ग्रंथ हैं: हर्षचरितम् तथा कादम्बरी। हर्षचरितम्, राजा हर्षवर्धन का जीवन-चरित्र था और कादंबरी दुनिया का पहला उपन्यास था। कादंबरी पूर्ण होने से पहले ही बाणभट्ट जी का देहांत हो गया तो उपन्यास पूरा करने का काम उनके पुत्र भूषणभट्ट ने अपने हाथ में लिया। दोनों ग्रंथ संस्कृत साहित्य के महत्त्वपूर्ण ग्रंथ माने जाते है। .
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भास
भास संस्कृत साहित्य के प्रसिद्ध नाटककार थे जिनके जीवनकाल के बारे में अधिक पता नहीं है। स्वप्नवासवदत्ता उनके द्वारा लिखित सबसे चर्चित नाटक है जिसमें एक राजा के अपने रानी के प्रति अविरहनीय प्रेम और पुनर्मिलन की कहानी है। कालिदास जो गुप्तकालीन समझे जाते हैं, ने भास का नाम अपने नाटक में लिया है, जिससे लगता है कि वो गुप्तकाल से पहले रहे होंगे पर इससे भी उनके जीवनकाल का अधिक ठोस प्रमाण नहीं मिलता। आज कई नाटकों में उनका नाम लेखक के रूप में उल्लिखित है पर १९१२ में त्रिवेंद्रम में गणपति शास्त्री ने नाटकों की लेखन शैली में समानता देखकर उन्हें भास-लिखित बताया। इससे पहले भास का नाम संस्कृत नाटककार के रूप में विस्मृत हो गया था। .
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शृंगार रस
श्रृंगार रस रसों में से एक प्रमुख रस है। यह रति भाव को दर्शाता है। .
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संस्कृत साहित्य
बिहार या नेपाल से प्राप्त देवीमाहात्म्य की यह पाण्डुलिपि संस्कृत की सबसे प्राचीन सुरक्षित बची पाण्डुलिपि है। (११वीं शताब्दी की) ऋग्वेदकाल से लेकर आज तक संस्कृत भाषा के माध्यम से सभी प्रकार के वाङ्मय का निर्माण होता आ रहा है। हिमालय से लेकर कन्याकुमारी के छोर तक किसी न किसी रूप में संस्कृत का अध्ययन अध्यापन अब तक होता चल रहा है। भारतीय संस्कृति और विचारधारा का माध्यम होकर भी यह भाषा अनेक दृष्टियों से धर्मनिरपेक्ष (सेक्यूलर) रही है। इस भाषा में धार्मिक, साहित्यिक, आध्यात्मिक, दार्शनिक, वैज्ञानिक और मानविकी (ह्यूमैनिटी) आदि प्राय: समस्त प्रकार के वाङ्मय की रचना हुई। संस्कृत भाषा का साहित्य अनेक अमूल्य ग्रंथरत्नों का सागर है, इतना समृद्ध साहित्य किसी भी दूसरी प्राचीन भाषा का नहीं है और न ही किसी अन्य भाषा की परम्परा अविच्छिन्न प्रवाह के रूप में इतने दीर्घ काल तक रहने पाई है। अति प्राचीन होने पर भी इस भाषा की सृजन-शक्ति कुण्ठित नहीं हुई, इसका धातुपाठ नित्य नये शब्दों को गढ़ने में समर्थ रहा है। संस्कृत साहित्य इतना विशाल और scientific है तो भारत से संस्कृत भाषा विलुप्तप्राय कैसे हो गया? .
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हर्षचरितम्
हर्षचरित संस्कृत में बाणभट्ट द्वारा रचित एक ग्रन्थ है। इसमें भारतीय सम्राट हर्षवर्धन का जीवनचरित वर्णित है। ऐतिहासिक कथानक से सम्बन्धित यह संस्कृत का सबसे प्राचीन ग्रन्थ है। .
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कालिदास
कालिदास संस्कृत भाषा के महान कवि और नाटककार थे। उन्होंने भारत की पौराणिक कथाओं और दर्शन को आधार बनाकर रचनाएं की और उनकी रचनाओं में भारतीय जीवन और दर्शन के विविध रूप और मूल तत्व निरूपित हैं। कालिदास अपनी इन्हीं विशेषताओं के कारण राष्ट्र की समग्र राष्ट्रीय चेतना को स्वर देने वाले कवि माने जाते हैं और कुछ विद्वान उन्हें राष्ट्रीय कवि का स्थान तक देते हैं। अभिज्ञानशाकुंतलम् कालिदास की सबसे प्रसिद्ध रचना है। यह नाटक कुछ उन भारतीय साहित्यिक कृतियों में से है जिनका सबसे पहले यूरोपीय भाषाओं में अनुवाद हुआ था। यह पूरे विश्व साहित्य में अग्रगण्य रचना मानी जाती है। मेघदूतम् कालिदास की सर्वश्रेष्ठ रचना है जिसमें कवि की कल्पनाशक्ति और अभिव्यंजनावादभावाभिव्यन्जना शक्ति अपने सर्वोत्कृष्ट स्तर पर है और प्रकृति के मानवीकरण का अद्भुत रखंडकाव्ये से खंडकाव्य में दिखता है। कालिदास वैदर्भी रीति के कवि हैं और तदनुरूप वे अपनी अलंकार युक्त किन्तु सरल और मधुर भाषा के लिये विशेष रूप से जाने जाते हैं। उनके प्रकृति वर्णन अद्वितीय हैं और विशेष रूप से अपनी उपमाओं के लिये जाने जाते हैं। साहित्य में औदार्य गुण के प्रति कालिदास का विशेष प्रेम है और उन्होंने अपने शृंगार रस प्रधान साहित्य में भी आदर्शवादी परंपरा और नैतिक मूल्यों का समुचित ध्यान रखा है। कालिदास के परवर्ती कवि बाणभट्ट ने उनकी सूक्तियों की विशेष रूप से प्रशंसा की है। thumb .
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अलंकार शास्त्र
संस्कृत आलोचना के अनेक अभिधानों में अलंकारशास्त्र ही नितांत लोकप्रिय अभिधान है। इसके प्राचीन नामों में क्रियाकलाप (क्रिया काव्यग्रंथ; कल्प विधान) वात्स्यायन द्वारा निर्दिष्ट 64 कलाओं में से अन्यतम है। राजशेखर द्वारा उल्लिखित "साहित्य विद्या" नामकरण काव्य की भारतीय कल्पना के ऊपर आश्रित है, परंतु ये नामकरण प्रसिद्ध नहीं हो सके। "अलंकारशास्त्र" में अलंकार शब्द का प्रयोग व्यापक तथा संकीर्ण दोनों अर्थों में समझना चाहिए। अलंकार के दो अर्थ मान्य हैं -.
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कालिदास 55 संबंध है और प्राकृत साहित्य 47 है। वे आम 9 में है, समानता सूचकांक 8.82% है = 9 / (55 + 47)।
संदर्भ
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